मल्हारराव के बाद इंदौर का इतिहास | इंदौर का इतिहास भाग 02 | Holkar Vansh After Malhar Rao


 मल्हारराव के बाद होल्कर वंश 

मल्हारराव की मृत्यु होल्कर वंश | इंदौर का इतिहास भाग 02 | Holkar Vansh After Malhar Rao


इंदौर का इतिहास भाग 01 

इंदौर का इतिहास भाग 02


  • मल्हारराव की मृत्यु के उपरान्त होलकरों की प्रशासनिक व्यवस्था दोहरी हो गई।

  • मल्हारराव की पुत्रवधू अहिल्याबाई ने जहां एक ओर खासगी की जागीर सम्हालीवहीं उन्होंने दौलत का कार्य भी देखना प्रारंभ किया। 

  • तुकोजीराव होलकर प्रथम (अगस्त 30, 1795 से 1797), जिसे दौलत की जागीर मिली थीने भी आजीवन एक सेनापति के रूप में अहिल्याबाई होलकर के प्रशासनिक निर्देशों के अनुरूप ही कार्य किया। उनके शासन काल में इन्द्रपुर का विस्तार तेजी से हुआ। जबकि राजधानी महेश्वर रही। बाहर से व्यापारी यहाँ आकर बसने लगे तथा अन्य प्रांतों के लोग भी यहाँ आकर रहने लगे। 

  • अहिल्याबाई के 30 वर्षों का शासनकाल एक विलक्षण प्रशासनिक दक्षता और कुशल नीतियों से परिपूर्ण था। धीरे-धीरे इन्द्रपुर ग्राम एक नगर का रूप धारण कर रहा था। 
  • अहिल्याबाई के जीवनकाल में ही सेनापति तुकोजीराव के दो पुत्रों काशीराव और यशवंतराव में उत्तराधिकारी का विवाद आरंभ हो गया। 
  • काशीराव के अपंग और कमजोर होने के कारण तुकोजीराव के उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार करने यशवंतराव तैयार नहीं था। उसने सेना संगठित कर उत्पात और लूटपाट मचा दी। 
  • फलस्वरूप अहिल्याबाई होलकर ने सन् 1794 में उसे कैद कर कुशलगढ़ के किले में रखा। यद्यपि अहिल्याबाई की अनुशंसा पर काशीराव को दौलत की खिलअत मिली परन्तु वह अधिक समय तक राज्य नहीं कर सका। 
  • इधर तुकोजीराव की प्रार्थना पर अहिल्याबाई ने यशवंतराव को कैद से मुक्त कर दियापरन्तु उसने फिर से भीलोंअफगानोंपिण्डारियों की विशाल सेना संगठित कर विद्रोही गतिविधियों से इस क्षेत्र में आतंक मचा दिया और मालवा में सिंधिया के क्षेत्र को भी हथियाने लगा। 
  • सिंधिया भी प्रतिरोध पर उतारू था और अपनी उज्जैन पराजय का बदला लेने के लिये उसने एक विशाल सेना लेकर इंदौर पर आक्रमण कर उसे तहस नहस कर दियाइसी समय उसने इन्दौर नगर में लूटपाट मचाई और यहां होलकर के राजनिवास राजवाड़े को ध्वस्त कर दिया। कहा जाता है कि इस संघर्ष में चार-पांच हजार व्यक्ति मारे गये थे और जो भाग गये थे वे अपनी संपत्ति गंवा बैठे थे।
  • इस अभियान में सिंधिया के सेनापति सरजे राव घाटगे ने नगरवासियों पर हर प्रकार के अत्याचार कियेजिससे शहर के कुएं स्त्रियों की लाशों से भर गये। कुछ समय उपरान्त यशवन्तराव लूट मार मचाता हुआ पूना की ओर अग्रसर हुआ। उसने सिंधिया और बाजीराव पेशवा की संयुक्त सेनाओं को 25 अक्टूबर, 1802 को पूना युद्ध में पराजित किया। 
  • इस पराजय से मराठा साम्राज्य की नींव हिल गईमराठा संघ छिन्न-भिन्न हो गया। ब्रिटिश प्रभुसत्ता को बल मिला मराठों में यशवन्तराव प्रथम एक शक्ति के रूप में उभरा। सिंधिया और भोंसले ने ब्रिटिश शक्ति से मोर्चा लेने हेतु एक संघ बनाया और यशवन्तराव प्रथम को भी संघ में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया। 
  • यद्यपि यशवंतराव ने इस संघ में शामिल होना स्वीकार कियाकिन्तु दौलतराव सिन्धिया के कपट पूर्ण आचरण के कारण वह इन्दौर चला गया। 
  • 16 जुलाई, 1803 में जनरल वेलेजली ने यशवन्तराव को पत्र लिख कर अनुरोध किया कि वह ईस्ट इण्डिया कम्पनी से शान्ति पूर्ण संबंध बनाये रखे। इस पत्र का अभीष्ट प्रभाव पड़ा और उसने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सिंधिया का साथ नहीं दिया। 

  • इस अवधि में यशवन्तराव उत्तर भारत में निरंतर आक्रामक कार्यवाही करता रहा। सन् 1804 में उसने ब्रिटिश शासन से टक्कर लीजो भारतीय इतिहास के युद्धों में एक महत्वपूर्ण युद्ध है। किन्तु इसी वर्ष मालवा और इंदौर स्थित प्रमुख किलों पर ब्रिटिश शासन का अधिकार हो गया। तदुपरान्त दोनों के मध्य हुई राजघाट संधि के पश्चात् वह इन्दौर लौटा और उसे अनेक संकटों का सामना करना पड़ा। 


  • अंग्रेजों के साथ हुए युद्ध से प्राप्त अनुभवों से उसने अपनी सेना को आधुनिक बनाने हेतु भानपुरा में एक गन फैक्टरी स्थापित की और तोपें बनवाना आरंभ किया। इसी समय उसने अपनी राजधानी को महेश्वर से भानपुरा स्थानान्तरित किया। 1808 ई. में वह विक्षिप्त हो गया 28 अक्टूबर, 1811 ई. में उसकी मृत्यु भानपुरा में हो गई। 


  • तुलसाबाईकेसरी बाई (कृष्णाबाई) और मीनाबाई यशवन्तराव की उप-पलियां थीं। 10 वर्ष तक तुलसाबाई होलकर वंश की भाग्य विधात्री बनी रही। बाद में केसरी बाई के अल्पवयस्क पुत्र मल्हारराव के नाम पर तुलसाबाई ने राजकाज का संचालन किया। तुलसाबाई कठोर स्वभाव वाली महिला थीऔर उसके शासन में जन मानस में भय और आतंक का वातावरण बन गया था। सैन्य अधिकारी भी बगावत पर उतारू हो गये थे । उन्होंने 20 दिसम्बर, 1817 को महिदपुर में तुलसाबाई को मार डाला और रक्त रंजित अवशेष नदी में डाल दिये । 


  • होलकर शासन के अमैत्रीपूर्ण व्यवहार के कारण ब्रिटिश सेना और होलकरों के मध्य महिदपुर में भीषण युद्ध हुआजिसमें से राज्याभिषेक किया गया। हरिराव के शासन में समस्त प्रशासन में अव्यवस्था फैल गईअधिकारी निरंकुश हो गये और जनसामान्य में व्यापक असंतोष फैल गया। स्थिति यहां तक बिगड़ी कि एक बार राजमहल पर आक्रमण कर महाराजा की हत्या का प्रयास किया गया। 


  • राज्य की अव्यवस्था और अराजकता की स्थिति में इन्दौर स्थित रेसीडेंट ने उसे अपना वारिस नामजद करने की सलाह दी। फलस्वरूप उसने 2 जुलाई, 1841 को जोतिसखेड़ा ग्राम के जमींदार बापू होलकर के पुत्र खांडेराव को अपने वारिस और उत्तराधिकारी के रूप में गोद लिया। 


  • 24 अक्टूबर, 1843 को हरिराव के निधन के बाद 13 नवंबर, 1843 को खांडेराव का राज्याभिषेक हुआ। खांडेराव अधिक समय तक जीवित नहीं रहा और 15 वर्ष की अल्पायु में 17 फरवरी, 1844 को उसका निधन हो गया। इन परिस्थितियों में उत्तराधिकारी की नामजदगी के अधिकार का निर्णय ब्रिटिश शासन के हाथों में आ गया।


  • रेसीडेन्ट ने गवर्नर को सुझाव दिया कि हरिराव की माँ को दूसरे बालक गोद लेने की अनुमति दी जाए या मार्तण्डराव सौंपी जावे। हरिराव की माँ ने भाऊ होलकर के छोटे पुत्र खांडेराव के उत्तराधिकारी के रूप में नामजद किया।


  • रेसीडेंट ने उसको तुकोजीराव होलकर द्वितीय के नाम से 27 जून, 1844 को गद्दी पर बैठाया। अब राज्य का प्रशासन रेसीडेन्ट की सलाह तथा उसके पर्यवेक्षण में होने लगा। हरिराव की माँ रेसीडेन्ट के मार्गदर्शन में रीजेन्सी कौंसिल की सहायता से शासन करती रही। इस अवधि में अनेक विकास कार्य हुए व राज्य में शांति स्थापित हो गई। इस काल में राजस्व में सुधार हुआ और राज्य ने खोई हुई समृद्धि को पुनः प्राप्त किया। अनेक मंदिरों का निर्माण उनके द्वारा कराया गया ।

 

  • सन् 1846 में महाराजा का विवाह हुआ। 1848 में महाराजा ने राज्य के प्रशासन में भाग लेने की इच्छा व्यक्त की । इसी समय 1849 में मां साहिबा की मृत्यु हो गई और महाराजा ने प्रशासन में सक्रिय रूप से भाग लेना प्रारंभ कर दिया। महाराज को 1852 में वयस्क होने पर संपूर्ण प्रशासनिक शक्ति सौंप दी गई ।
  • महाराज ब्रिटिश सेना को निर्णायक विजय प्राप्त हुई। यह युद्ध मराठों के लिये काफी विनाशकारी सिद्ध हुआऔर युवा मल्हारराव अंग्रेजों के पूर्ण अधीन हो गया।6 जनवरी 1818 को अंग्रेजों और होलकरों के मध्य मंदसौर में संधि हुईजिसकी शर्तों के अनुसार होलकरों को आंतरिक शांति बनाये रखने के लिये ब्रिटिश सेना रखने को बाध्य होना पड़ा ब्रिटिश रेसीडेंट की सहमति के बिना अन्य राज्यों से पत्राचार पर भी पाबन्दी लगाई गई। इसी संधि की शर्तों के अनुसार होलकरों ने इन्दौर नगर में राजबाड़े से पूर्व का एक बहुत बड़ा क्षेत्र अंग्रेजों को दिया जहां अंग्रेज रेसीडेन्ट का कार्यालय व अन्य आवासीय इमारतों को बनाया गया। 


  • यही क्षेत्र वर्तमान में इन्दौर नगर का रेसीडेंसी एरिया और पारसी मोहल्ले का क्षेत्र है। आरंभ में सर जान मालकम ने 1818 में महू में एक छावनी की स्थापना की। 
  • राज्य की राजधानी जो अब तक महेश्वर (1766-1797) एवं भाजपुरा (1798-1817) थीस्थायी रूप से इंदौर बना दी गई. 1818 ई. से 1821 ई. के तीन वर्षों की अवधि में रेसीडेन्सी क्षेत्र का विकास हुआ और यह साधारण नगर समृद्धिशाली राजधानी बन गया। 
  • सन् 1820 में इन्दौर की जनसंख्या 63,560 हो गई। यद्यपि मल्हारराव होलकर ने राजकाज में बहुत कम रुचि ली तथापि उसके सुयोग्य मंत्रियों ने शासन सुचारू रूप से चलाया। फिर भी फिजूलखर्ची एवं चापलूसों की सलाह से राज्य की स्थिति दिनों दिन खराब होती गई। 27 अक्टूबर 1833 ई. को मल्हारराव की मृत्यु हो गई।

 

मल्हारराव होलकर की मृत्यु के बाद की घटना 

  • निःसंतान मल्हारराव होलकर की मृत्यु के कारण उत्तराधिकार हेतु कुछ समय विवाद रहा। उनकी पत्नी गौतमा बाई मे बापू होलकर के 34 वर्षीय पुत्र को उत्तराधिकारी के रूप में गोद लिया 17 जनवरी, 18.34 को उसका महाराजा मार्तण्ड राव होलकर के नाम से राज्याभिषेक किया गया। 


  • इसी बीच इन्दौर सिंहासन के दो अन्य दावेदार सामने आये। इनमें एक स्वर्गीय महाराजा का चचेरा भाई हरिराव होलकर और दूसरा मल्हार राव की उप-पत्नी का पुत्र था।17 अप्रैल 1834 को अंतत: हरिराव ने राज्य की सत्ता अपने हाथ में ली और उसका औपचारिक रूप तुकोजीराव के समय में नगर में अनेक महत्वपूर्ण कार्य हुए। 


  • विभिन्न राजप्रासादों के निर्माण के साथ सिंचाई विभाग की स्थापनापुस्तकालयमध्यभारत के प्रथम अखबार मालवा अखबार के प्रकाशन और पेयजल की पूर्ति आदि अनेक कार्य किये गये। इन्हीं के शासन काल में इन्दौर को वर्तमान स्वरूप मिला।

 

  • महाराजा को सिंहासनारूढ़ हुए 5 वर्ष ही हुए थे कि 13 मई, 1857 में मेरठ में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी भड़क उठी और उसका असर इंदौर नगर में भी हुआ। नगर के विद्रोही भी सक्रिय हुए। 


  • कर्नल ड्यूरेन्ड ने सीहोर एवं भोपाल से सैन्य टुकड़ियां मय सैन्य सामग्री के बुलवाईं। महाराजा तुकोजीराव द्वितीय से भी अपनी सेना भेजने का निवेदन किया। 16 मई, 1857 को स्थित 23 वीं बंगाल आर्मी ने विद्रोह कर दियामहू जिससे ड्यूरेन्ड अधिक चिन्तित हो गयाऔर महाराजा से सहायता प्राप्त करने के लिये मुंशी स्वरूप नारायण को भेजा। 17 मई को महू से इंदौर आने वाली डाक भी बंद कर दी गई। 


  • सरदारपुर से चलित तोपों के साथ भील क्रोप को बुलवाया गया। 20 मई को भोपाल एवं सरदारपुर से सैन्य सहायता आ गई। 6 जून को नीमच हुए विद्रोह की सूचना प्राप्त होने पर दो तोपें रेसीडेंसी में के पश्चिम में लगा दी गईं। महाराजा ने अपनी सैन्य टुकड़ियाँ एवं तोपें आदि रेसीडेन्सी पहुंचा दीं।

 

महिदपुर विद्रोह

  • 10 जून को महिदपुर विद्रोह की सूचना मिलने पर महाराजा तुकोजीराव ने ड्यूरेन्ड को सूचित किया कि उनके द्वारा भेजी । सेना भी विद्रोह कर सकती है। 14 जून को भोपाल से आये कर्नल ट्रेवर्स ने सभी सैन्य टुकड़ियों का प्रभार लिया। ग्वालियर एवं झांसी में विद्रोह की सूचना मिलते ही इन्दौर में भी विद्रोह हो गया। 17 जून को रेसीडेन्सी पर लगाई तोपों को विद्रोही सिपाहियों ने ले लिया और ब्रिटिश अधिकारियों के आदेशों की अवहेलना की ।

 

  • 24 जून एक मुस्लिम फकीर को कर्नल प्लाट ने इन्दौर में कैद कर लिया। और भी अन्य फकीरों को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। माह जून के अंत में इन्दौर स्टेट केवेलरी के 500 सिपाहियों को जो खान नदी के तट पर रेसीडेन्सी की सुरक्षा के लिये लगाये गये थेबख्शी खुमानसिंह ने किसी बहाने हटा लिया।

 

  • क्रांति के नेता सादत खान वंश गोपालउमरावसिंहभागीरथ सिलावटबशीर मुहम्मद खानमौलवी अब्दुल समद ने 1 जुलाई, 1957 को विचार विमर्श कर यह निर्णय लिया कि इन्दौर की सेना को विद्रोह के लिये प्रयास करना चाहिये। इनके सम्मिलित प्रयासों से इन्दौर की सेना ने विद्रोह कर रेसीडेन्सी पर हमला कर दिया। कर्नल ट्रेवर्स ने इस विद्रोह का दमन करने के लिये छावनी की 75 वीं वाहिनी की केवेलरी को आदेश दिया परन्तु अधिकांश सिपाहियों ने आदेश का पालन करने से मना कर दिया। तत्पश्चात उसने भील कोप को लगाया किन्तु कर्नल ट्रेवर्स को ज्ञात हुआ कि वे सभी विद्रोहियों के साथ हैं।

 

  • क्रांतिकारियों का नेतृत्व सादत खान एवं वंश गोपाल कर रहे थे। 1 जुलाई को महाराजा ने सादत खान को गिरफ्तार तो किया किन्तु उसी दिन विद्रोह को दबाने के लिये छोड़ दिया। कर्नल ड्यूरेन्ड ने महाराजा पर क्रांतिकारियों के नेता होने का आरोप लगाया और स्वयं रेसीडेन्सी छोड़कर सीहोर चला गया।

 

  • इन्दौर में 1 जुलाई से 4 जुलाई तक विद्रोह की रही। विद्रोहियों ने राजबाड़ा पर प्रदर्शन करते हुये महाराजा तुकोजीराव होलकर द्वितीय से सहायता मांगी किन्तु महाराजा के मना करने पर वे लोग इन्दौर छोड़कर उत्तर दिशा में चले गये। जाने से उन्होंने इन्दौर की छावनीखजाने एवं बाजार को लूटा तथा कुल नौ लाख रुपये का खजाना अपने साथ ले गये ।

 

  • 9 नवम्बर, 1858 को ब्रिटिश शासन ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी से भारतीय प्रशासन अपने हाथ में ले लिया। 1857 के महान स्वतंत्रता संग्राम में होलकर महाराजा द्वारा ब्रिटिश शासन को दी गई सहायता को वायसराय ने विशेष रूप से आयोजित दरवार में सराहाऔर 1844 में होलकर पर लगाये गये प्रतिबंध 1860 की शाही उद्घोषणा के बाद हटा लिये गये। 1862 में होलकरों को एक सनद के माध्यम से वारिस न होने पर दत्तक पुत्र को लेने का अधिकार दिया गया।

 

तुकोजीराव का शासन प्रशासनिक एवं अन्य सुधार

  • तुकोजीराव का शासन प्रशासनिक एवं अन्य सुधार के लिये विशेष उल्लेखनीय है।1869 में उन्होंने ब्रिटिश शासन को खण्डवा इन्दौर रेल लाइन लिये एक करोड़ रूपये का ऋण दिया। इसी वर्ष इन्दौर नगर पालिका की स्थापना हुई। 
  • राज्य के अनेक ग्रामों में प्राथमिक शालायेंपंचायत प्रशासन इकाई और नियमित न्यायालय प्रारंभ किये गये। राज्य में वस्त्र उद्योग को स्थापित कर विकसित किया और कई भवनों का निर्माण किया गया। इसी समय शिक्षा में भी आवश्यक सुधार करते हुए संगीतनृत्य और चित्रकला की शिक्षा के लिये विद्यालयों की स्थापना की गई। 
  • 42 वर्षों के दीर्घकाल तक शासन करने के उपरान्त महाराजा तुकोजीराव की 17 जून, 1886 में मृत्यु हो गई। तुकोजीराव को राजनैतिक स्थायित्व तथा वित्तीय समृद्धि का प्रणेता कहा जाता है। 
  • सन् 1881 में इन्दौर की जनसंख्या 83,091 हो गई और इन्दौर एक प्रमुख नगर के रूप में स्थापित हो गया ।

 

तुकोजीराव के बाद इंदौर 

  • तुकोजीराव के पश्चात् उनका ज्येष्ठ पुत्र शिवाजीराव होलकर 1886 में गद्दी पर बैठा। उसने व्यापार की समृद्धि के लिये समस्त परिवहन शुल्कों को समाप्त कर दिया। 
  • 1891 में इन्दौर की जनसंख्या 92,329 थी। 1891 से 1895 के मध्य शिवाजीराव ने इन्दौर को रेल द्वारा गोधरारतलामभोपाल और उज्जैन से जोड़ने हेतु निशुल्क भूमि प्रदान की।
  • उन्होंने शिवगंज (सियागंज) में कर मुक्त बाजार की स्थापना की। उनके शासन काल में तकनीकी संस्थाकला शालाचिकित्सालयमहाविद्यालयों की स्थापना भी की गई। 
  • ब्रिटिश शासन उनके प्रशासन से असंतुष्ट था और 1899 में प्रशासन व्यवस्था के लिये रेसीडेन्ट को और अधिकार दिये गये। अब महाराजा से यह अपेक्षित था कि सभी महत्वपूर्ण मामलों में वे रेसीडेन्ट से परामर्श करें। 1899 से 1900 के मध्य में राज्य में भयंकर अकाल पड़ा ।
  • 1903 में प्लेग की भयंकर महामारी फैली और बहुत से लोग काल कलवित हो गये। फिर भी नगर का विकास जारी रहा। 1902 में ब्रिटिश रुपया राज्य की मानक मुद्रा के रूप में अपनाया गया ।

 

तुकोजीराव तृतीय और इंदौर का इतिहास 

  • 31 जनवरी, 1903 में शिवाजीराव ने अपने पुत्र तुकोजीराव तृतीय के पक्ष में स्वेच्छा से सिंहासन त्याग दिया । तुकोजीराव की अवयस्कता काल में राज्य परिषद (कौंसिल आफ स्टेट) को कौंसिल ऑफ रीजेन्सी में परिवर्तित कर दियातथा राज्य का प्रशासन रेसीडेन्ट के पर्यवेक्षण के अधीन होने लगा ।
  • 1911 में महाराजा को संपूर्ण प्रशासनिक शक्तियां सौंप दी गईं । उनके शासन में नागदा-मथुरा रेल मार्ग के एक भाग के निर्माण हेतु भूमि दी गयी।
  • 1911 से 1921 में जनसंख्या में लगभग 149.49 प्रतिशत की वृद्धि हुई । 
  • फरवरी, 1926 में तुकोजीराव ने अपने अवयस्क पुत्र यशवन्तराव द्वितीय के पक्ष में सिंहासन छोड़ दिया और 9 मई, 1930 को संपूर्ण शासकीय शक्तियां सौंप दीं । 
  • 20 वीं शती के प्रारंभ से ही देश में राजनैतिक आंदोलनों के परिणामस्वरूप इन्दौर में भी राजनैतिक जागृति की भावना  व्याप्त होने लगी थी।

 

मंदसौर संधि और महाराज यशवन्तराव द्वितीय

  • मंदसौर संधि के चौदहवें अनुच्छेद के उपबंधों के अनुसार महाराज यशवन्तराव द्वितीय ने 1930 में गवर्नर जनरल के पास अपना वकील नियुक्त किया। वह स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् उस समय तक राज्य पर निरंतर शासन करते रहे जब 28 मई, 1948 को राज्य अन्तत: तत्कालीन मध्य भारत राज्य में विलीन कर दिया गया। प्रशासनिक दृष्टि से राज्य का विभाजन हुआ इनमें इन्दौर जिला भी एक था। 
  • इस प्रकार इन्द्रपुर नामक ग्राम अपने विकास की कई मंजिलें तय करता हुआ होलकर राजाओं के शासन काल में एक प्रमुख नगर बन गया। इस नगर की जीवन यात्रा मात्र 200 वर्ष की है। 
  • इस अवधि में हुए विस्तार से इन्दौर ने अपने समीपवर्ती ग्रामों यथा खजराना, आजाद नगर, लोधीपुरा, मालगंज, तेलीबाखल, तमोली बाखल, दौलतपुरा, मूसाखेड़ी, चितावद, बाणगंगा, खातीपुरा, सुखलिया, निरंजनपुर, लसूड़िया, बीजलपुर, देवगुराड़िया, शेरपुर आदि को आत्मसात् करते हुए एक महानगर का रूप ले लिया।

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