प्रेमचन्द युग के हिन्दी उपन्यास, उपन्यासकार और उनकी रचनाएँ । Premchan Yug Ke Upnyaskar aur Rachna

प्रेमचन्द युग के हिन्दी उपन्यास, उपन्यासकार और उनकी रचनाएँ 

प्रेमचन्द युग के हिन्दी उपन्यास, उपन्यासकार और उनकी रचनाएँ  । Premchan Yug Ke Upnyaskar aur Rachna




प्रेमचन्द युग के हिन्दी उपन्यास

 

  • हिन्दी उपन्यास के क्षेत्र में 'प्रेमचन्दके आगमन से एक नयी क्रान्ति का सूत्रपात हुआ। इस युग के उपन्यासकारों ने जीवन के यथार्थ को प्रस्तुत करने कार्य किया।
  • इस युग का प्रारम्भ प्रेमचन्द के 'सेवा सदननामक इस उपन्यास से हुआ जिसे सन् 1918 में लिखा गया था। वैसे तो पूर्व में मुंशी प्रेमचन्द ने आदर्शवादी उपन्यास लिखे लेकिन बाद में ये यथार्थवादी उपन्यास लिखने लगे। इन्होंने अपने उपन्यासों में सामाजिक समस्याओं को स्थान दिया। 
  • इस युग के प्रतिनिधि उपन्यासकार होने के कारण मुंशी प्रेमचन्द से प्रेरणा पाकर कई उपन्यासकार हिन्दी उपन्यास विधा को आगे बढ़ाने लगे। इनमें कुछ यथार्थवादी उपन्यासकार थे तो कुछ आदर्शवादी। 



प्रेमचन्द युग के उपन्यासकार और उनकी रचनाएँ 

 

1. उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द (सन् 1881-1936) 

  • हिन्दी में चरित्र प्रधान उपन्यास लिखने में मुंशी प्रेमचन्द की चर्चा सबसे पहले होती है।
  • हिन्दी उपन्यास का क्रमबद्ध और वास्तविक विकास प्रेमचन्द के उपन्यास साहित्य से ही होता है। इससे पूर्व के उपन्यास या तो मराठी-बंगला और अंग्रेजी के अनुदित उपन्यास थे या तिलिस्मिीएय्यारी और जासूसी उपन्यास। लेकिन प्रेमचन्द के उपन्यासों में इन सबसे हटकर जो सामाजिक परिदृश्य उत्पन्न हुए उनसे हिन्दी उपन्यास विधा को एक नई दिशा मिली। 

मुंशी प्रेमचन्द ने अपने जीवन काल में तीन प्रकार के उपन्यास लिखे। 

  • इनकी पहली श्रेणी में आने वाले उपन्यास 'प्रतिज्ञाऔर 'वरदानहै जिन्हें इन्होंने प्रारम्भिक काल में लिखा। 
  • दूसरी श्रेणी के उपन्यास 'सेवा सदन', निर्मला और गबन है। इस श्रेणी के उन्यासों में मुंशी प्रेमचन्द द्वारा सामाजिक समस्याओं को उभारा गया है। 
  • तीसरी श्रेणी के उपन्यास- प्रेमाश्रयरंगभूमि कायाकल्प कर्मभूमि और गोदान है। 
  • इस श्रेणी के उपन्यासों में उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द ने जीवन के एक अंश नहीं वरन् सम्पूर्ण जीवन को एक साथ देखा है। 

प्रेमचन्द के उपन्यास की विशेषताएँ 

  • इनके ये सभी प्रकार के उपन्यास किसी एक वर्ग - विशेष तक सीमित नहीं वरन समाज के सभी वर्गों तक फैले हैं। 
  • प्रेमचन्द के इन उपन्यासों में कहीं तो दहेज प्रथा तथा वृद्धावस्था के विवाह से उत्पन्न शंका और अविश्वास के दुष्परिणाम उभरते हैं तो वहीं आभूषण की लालसा और उसके दुष्परिणामों सामने आते दिखायी देते हैं। सेवा सदनऔर 'निर्मला इसके उदाहरण हैं
  • इसी तरह रंगभूमिकायाकल्प और कर्मभूमि में भारत की तत्कालीन राजनीति की स्पष्ट छाप दिखायी देती हैं। 
  • इन उपन्यासों में अंग्रेजी सत्ता के विरूद्ध चल रहे महात्मा गाँधी के सत्याग्रह आन्दोलन और समाज सुधार की झलक स्थान-स्थान पर उभरती है। 
  • इन उपन्यासों की भाँति 'प्रेमाश्रयजैसे उपन्यास तत्कालीन जमीदारी प्रथा और कृषक जीवन की झाँकी प्रस्तुत करता है। 
  • 'गोदान', प्रेमचन्द जी का सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यास हैंजिसे विद्वानों ने ग्राम्य जीवन के महाकाव्य की संज्ञा दी है। 'गोदानको अगर हम प्रेमचन्द युगीन भारत की प्रतिनिधि कृति कह देंतो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

 

2. जयशंकर प्रसाद - (सन् 1881-1933) 

  • प्रेमचन्द युगीन उपन्यासों में जयशंकर प्रसाद का भी अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने मात्र उपन्यास ही नहीं कहानियाँ भी लिखीलेकिन इनकी सभी कहानियाँ आदर्शवादी कहानियाँ हैंजबकि उपन्यास यथार्थ के अत्यन्त संनिकट है। 
  • प्रसाद जी ने अपने जीवन काल में तीन उपन्यास लिखे। इन उपन्यासों में तितली और कंकाल पूरे और 'इरावतीअधूरा उपन्यास है। 
  • प्रसाद जी एक सुधारवादी उपन्यासकार थे इसलिए वे लोगों का ध्यान समाज में फैली बुराइयों की ओर आकृष्ट कर उनसे बचे रहने के लिए सजग करते थे।
  • इनका 'कंकालनामक उपन्यास गोस्वामी के उपदेशों के माध्यम से हिन्दु संगठन और धार्मिक तथा सामाजिक आदेर्शों को स्थापित करने का प्रयत्न करता है। इसी संदर्भ में इनका तितली उपन्यास ग्रामीण जीवन की झाँकी और ग्रामीण समस्याओं को प्रस्तुत करता है । इरावती इनका ऐतिहासिक उपन्यास जो इनके आसामायिक निधन से अधूरा ही रह गया।

 

3. पंण्डित विश्वम्भर नाथ शर्मा 'कौशिक' (सन् 1891-1945)

  •  पंडित विश्वम्भर नाथ शर्मा कौशिक उपन्यासकार और कहानीकार दोनों ही थे। 'मिखारिणी', माँऔर संघर्षइनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं, तो मणिमाला और चित्रशालाइनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह । 'माँआपका सफलतम उपन्यास है।

 

4. सुदर्शन (सन् 1869-1967) - 

  • श्री सुदर्शनका पूरा नाम पंडित बदरीनाथ भट्ट था। ये पहले उर्दू में लिखते थे और बाद में हिन्दी कथा साहित्य में अवतीर्ण हुए। इनके 'अमर अभिलाषाऔर 'भागवन्तीअन्यन्त लोकप्रिय उपन्यास है। इनके उपन्यास और कहानियों में व्यक्तिगत और परिवारिक जीवन समस्याओं का चित्रण मिलता है। ये भी प्रेमचन्द की भाँति आदर्शोन्मुख यथार्थवादी थे।

 

5. वृन्दावन लाल वर्मा (सन् 1891-1969) -

  •  श्री वृन्दावन लाल वर्मा ऐतिहासिक उपन्यास कार है। इन्होंने अपने जीवन काल में, गढ़-कुण्डारविरादा की पद्मिनीमृग नयनीमाधवजी सिन्धियामहारानी दुर्गावतीरामगढ़ की रानीमुसाहिबजूललित विक्रम और अहिल्याबाई जैसे ऐतिहासिक उपन्यास लिखे तो कुण्डली चक्रसोना और संग्रामकभी न कभीटूटे काँटेअमर बेलकचनार जैसे उपन्यास भी हैं जिनमें प्रेम के साथ साथ अनके सामाजिक समस्याओं पर भी खुलकर लिखा गया है। 'झाँसी की रानी लक्ष्मीबाईइनका प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यास है जिसे लोकप्रियता में किसी अन्य उपन्यास से कम नहीं आँका जा सकता।

 

6. मुंशी प्रताप नारायाण श्रीवास्तवः 

  • शहरी जीवन पर अपनी लेखनी चलाने वाले मुंशी प्रताप नारायण भी प्रेमचन्द युगीन उपन्याकारों के मध्य सदैव समादृत रहे हैं। 
  • इन्होंने अपने जीवन काल में विदाविकासऔर विलयनाम तीन उपन्यास लिखे। मुंशी प्रताप नारायण श्रीवास्तव ने इन तीनों उपन्यासों में एक विशेष सीमा में रहकर स्त्री स्वतन्त्रता का पक्ष लिया।

 

7. चण्डी प्रसाद हृदयेश- 

  • श्री हृदयेश एक सफल कहानी कार और उपन्यास रहे हैं। इनके मंगल- प्रभात और मनोरमानामक दो उपन्यास हैं। कवित्व शैली में रची गई इनकी कृतियों में 'नन्दन निकुंजऔर 'वनमाला "नामक दो कहानी संग्रह भी हैं। आपकी कथा शैली की तुलना अधिकांश विद्वान संस्कृत के गद्यकार बाण भट्ट की कथा शैली के से करते हैं।

 

8. पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र' (सन् 1900-1967)

  •  पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्रप्रेमचन्द युगीन उपन्यासकारों के मध्य में अपनी एक विशिष्ट शैली के लिए काफी चर्चित रहे। चन्द हसीनों के खतूतदिल्ली का दलालबुधुआ की बेटीशराबीजीजीजीघण्टाफागुन के दिन चार आदि आपके महत्वपूर्ण किन्तु चटपटे उपन्यास हैं। आपने महात्मा ईसा नामक एक नाटक और 'अपनी खबरनामक आत्म कथा लिखी जो काफी चर्चित रही।

 

9. जैनेन्द्र कुमार (सन् 1905-1988)- 

  • जैनेन्द्र कुमार द्वारा उपन्यास के क्षेत्र में नयी शैली का सूत्रपात किया गया। इनके उपन्यासों में मनोवैज्ञानिक चित्रण की एक विशेष शैली दिखायी पड़ती है।
  • तापोभूमिपरखसुनीतासुखदात्यागपत्रकल्याणीमुक्तिबोधविवरणव्यतीत, 'जयवर्धनअनाम स्वामीआदि आपके अनेक उपन्यास हैं। 
  • उपन्यासों के अतिरिक्त आपके वातायनएक रातदो चिड़ियाँ और नीलम देश की राजकन्या जैसे कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए। आने हिन्दी साहित्य को लगभग एक दर्जन उपन्यासोंदस से अधिक कथा-संकलनोंचिन्तनपरक निबन्धों तथा दार्शनिक लेखों से समृद्ध किया। स्त्री पुरुष सम्बन्धोंप्रेम विवाह और काम-प्रसंगों के सम्बन्ध में आपके विचारों को लेकर काफी विवाद भी हुआ। 
  • जैनेन्द्र जी को भारत का गोर्की माना जाता हैं। आपकी कई रचनाओं को पुरस्कृत भी किया गया। 10. शिवपूजन सहाय (सन् 1893-1963)- श्री शिवूजन सहाय प्रायः सामाजिक विषयों पर लेख लिखते थे। इन्होंने 'देहाती दुनियाँ', नामक एक आंचलिक उपन्यास लिखा।

11. राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह (सन् 1891-1966) 

  • राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह ने अपने जीवन काल में 'राम-रहीमनामक वह प्रसिद्ध उपन्यास लिखा जिसकी कथा शैली ने सहृदय पाठकों को इसकी और आकृष्ट किया।
  •  इसके अतिरिक्त आपने चुम्बन और चाँटापुरूष और नारीतथा संस्कार जैसे उपन्यास लिखकर हिन्दी उपन्यास विधा को और समृद्ध किया।

 

प्रेमचन्द युग के अन्य उपन्यासकार 

प्रेमचन्द के युग मे हिन्दी उपन्यास विविध मुखी होकर निरन्तर विकास उन्नत शिखरों को स्पर्श करने लगा। इस युग में उपरोक्त उपन्यासकारों के अतिरिक्त महाप्राण निरालाराहुल सांकृत्यायनचतुरसेन शास्त्रीयशपालभगवती चरण वर्माभागवती प्रसाद वाजपेयी आदि लेखक-कवियों ने उपन्यास लेखन प्रारम्भ कियालेकिन प्रेमचन्दोत्तर युग में ही इन्हें विशेष प्रसिद्धि मिली।

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