प्रेमचन्द के बाद हिन्दी उपन्यास। प्रमुख उपन्यासकार और उनके उपन्यास । Premchand ke Baad Hindi Upnyaas

प्रेमचन्द के बाद हिन्दी उपन्यास,प्रमुख उपन्यासकार और उनके उपन्यास 

प्रेमचन्द के बाद हिन्दी उपन्यास। प्रमुख उपन्यासकार और उनके उपन्यास  । Premchand ke Baad Hindi Upnyaas


प्रेमचन्दोत्तर युग के हिन्दी उपन्यास

 

  • जैसा आप जानते होंगे कि मुशी प्रेमचन्द को हिन्दी उपन्यास प्रवर्तक कहा जाता है। इन्ही प्रेमचन्द के प्रभामण्डल से आकर्षित होकर कालान्तर में अनेक उपन्यासकारों ने अपनी रचनाओं से हिन्दी उपन्यास संसार का भण्डार भरा। इन सभी उपन्यासकारों ने युगीन परिधि से हटकर हिन्दी उपन्यास को नई-नई दिशाओं की ओर अग्रसर किया। पूर्व में इन उपन्यासकारों पर गाँधीवाद का प्रभाव पड़ा। लेकिन बाद में कार्ल मार्क्सफ्रायड आदि के प्रभाव स्वरूप इन्होंने प्रगतिवादी और मनोविश्लेषणवादी विचार धारा के अनुकूल उपन्यास लिखे। 


प्रेमचन्दोत्तर (प्रेमचन्द के बाद) युग के प्रसिद्ध उपन्यासकार और उनके उपन्यास 

 

1. भगवती चरण वर्मा (सन् 1903-1981) 

  • भगवती चरण वर्मा प्रेमचन्दोत्तर युग के प्रतिनिधि उपन्यासकार है। सन् 1927 में इनके 'पतनऔर सन् 1934 में चित्रलेखानामक उपन्यास प्रकाशित हुए। इनका 'चित्रलेखाउपन्यास एक ऐसा उपन्यास है जिस पर दो बार फ़िल्में बनी। यह पाप-पुण्य की परिभाषा देने वाला उपन्यास बन गया। साहित्य जगत में जिसकी सर्वत्र धूम मच गयी। 
  • इन उपन्यासों के अतिरिक्त वर्मा जी ने 'तीन वर्ष' 'आखिरी दाँव', टेढ़े-मेढ़े रास्तेसामर्थ्य और सीमावह फिर नहीं आयीसबहिं नचावत राम गोसाईभूले बिसरे चित्ररेखायुवराज चुण्डाप्रश्न और मरीचिकासीधी-सच्ची बातेंचाणक्य आदि उपन्यासों में वर्मा जी ने सामाजिक सम्बन्धों और अन्तर्मन की परतों को खोलने में पूर्णत: सफलता पाई।

 

2. आचार्य चतुरसेन शास्त्री (सन् 1891-1961) 

  • आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने हृदय की प्यासहृदय की परखगोलीसोमनाथवैशाली की नगरवधूधर्मपुत्रखग्रासवयं रक्षाम:आत्मदाहमन्दिर की नर्तकीआदि उपन्यास लिखकर प्रेमचन्दोत्तर युग के उपन्यास साहित्य को समृद्ध करने में जो भूमिका निभायी है इसकी जितनी प्रशंसा की   जाय वह कम ही है। आचार्य जी ने अपने कथा साहित्य की अधिकतर सामग्री पुराण और इतिहास से उठायी है। तत्सम् शब्दावली से युक्त इनकी भाषा इस युग के उपन्यासकारों से भिन्न है। 

 

3. भगवती प्रसाद वाजपेयी (सन् 1899-1973)- 

  • श्री भगवती प्रसाद वाजपेयी ने अपने जीवन काल में प्रेमपथ, प्यासा, कर्मपथ, चलते-चलते, निमन्त्रण, दो बहिने, परित्यक्ता, यथार्थ से आगे, गुप्तधन, विश्वास का बल, टूटा टी सेट, आदि उपन्यास लिखकर औपन्यासिक जगत में नई क्राँन्ति उत्पन्न की। 
  • आपने अपने उपन्यासों में व्यक्ति और समाज के सम्बन्धों और उसके अन्तर्जगत की व्याख्या और विश्लेषण को औपन्यासिक ताने-बाने में बुना है।

 

4. यशपाल (सन् 1903-1975)- 

  • श्री यशपाल का नाम प्रगतिवादी और यथार्थवादी कथाकारों में सबसे पहले आता है। 'दादा कामरेड, ' देशद्रोही, मनुष्य के रूप, बारह घण्टे, दिव्या, अमिता जैसे उपन्यास आपने सामाजिक परिप्रेक्ष्य और इतिहास को लेकर लिखे हैं।
  • आपका झूठी सच' उपन्यास भागों में लिखा उपन्यास है।


 5. अज्ञेय (सन् 1911-1987)- 

  • मनोवैज्ञानिक कथाकारों में 'अज्ञेय' का नाम विशेष उल्लेखनीय है। अज्ञेय के शेखर एक जीवनी (दो भाग) 'अपने-अपने अजनबी', नदी के द्वीप आदि प्रसिद्ध उपन्यास हैं।

 

6. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी (सन् 1907-1979) 

  • आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी आलोचक और निबन्धकार होने के साथ साथ एक सफल उपन्यासकार भी थे। इन्होंने अपने जीवन काल में 'बाणभट्ट की आत्मकथा', 'चारूचन्द्रलेख', 'पुनर्नवा', और 'अनामदास का पोथा', जैसे आत्मकथ्य परक और विशिष्ट कथा शैली के उपन्यास लिखे।

 

7. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला' (सन् 1998-1961) 

  • उपन्यास रचना में स्वछंदता दिखाने वाले सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला ने कविता के अतिरिक्त 'अप्सरा' अलका, ‘प्रभावती’, ‘निरूपमा’, ‘चाटो की पकड़', और बिल्लेसुर का बकरिहा', जैसे उपन्यास लिखे। इनके उपन्यासों में जहाँ अशिक्षित दलित वर्ग के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित होती है वहाँ सामाजिक रूढ़ियों एवं शोषकों के प्रति भी आक्रोश दिखायी देता है।

 

8. इलाचन्द्र जोशी (सन् 1902-1987) 

  • मनोविश्लेषणत्मक उपन्यास लेखक श्री इलाचन्द्र जोशी ने अपने जीवन काल में 'घृणामयी', 'मुक्ति पथ,' जिप्सी, सन्यासी, ऋतुचक्र, सुबह के भूले, जहाज का पंछी, प्रेत और छाया तथा पर्दे की रानी जैसे प्रसिद्ध उपन्यास लिखे। जहाज का पंछी’, जैसे उपन्यास इनका सबसे लोकप्रिय उपन्यास है।

 

9. राहुल सांकृत्यायन (सन् 1893-1963) 

  • यात्रा साहित्य के संपोषक और इतिहास पर सूक्ष्मदृष्टि रखने वाले राहुल सांकृत्यायन ने हिन्दी उपन्यास साहित्य की समृद्धि के लिए सिंह सेनापति’, ‘जयौधेय’, मुधर स्वप्न', 'विस्मृत यात्री’, ‘दिवोदास’, जीने के लिए आदि उपन्यास लिखे, इनके ये उपन्यास मार्क्सवाद और बौद्ध सम्प्रदाय से प्रभावित हैं।

 

10. रांगेय राधव (सन् 1922-1962) 

  • रांगेय राधव का वास्तविक नाम तिरूमल्लै नम्बाकम वीर राधव था। इन्होंने तीस से अधिक उपन्यास लिखे। धरौंदा, सीधा-साधा रास्ता, विषाद मठ, हुजूर, काका, कब तक पुकारूँ, मुर्दों का टीला, आखिरी आवाज, प्रतिदान अँधेरे जुगुनू, आदि इनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं। 

11. फणीश्वरनाथ 'रेणु' (सन् 1921-1977) 

  • आंचलिक उपन्यास लिखने में सिद्धहस्त फणीश्वरनाथ रेणु ने समाज में व्याप्त शोषण और दमन के विरुद्ध आवाज उठायी। इनका मैला आँचल उपन्यास काफी चर्चित हैं। इसके अतिरिक्त 'रेणु' जी ने 'परती परिकथा', दीर्घतपा, जुलूस और चौराहे जैसे उपन्यासों की रचना की।

 

12. राधाकृष्ण (1912-1971)

  • राँची में जन्मे राधाकृष्ण ने प्रेमचन्द के समय कथा साहित्य लिखकर काफी ख्याति अर्जित की 'फुटपाथ', सनसनाते सपने, रूपान्तर, सपने विकाऊ हैं, इनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं।

 

13. अमृतलाल नागर (सन् 1916-1990) 

  • प्रेमचन्दोत्तर उपन्यासकारों में अमृतलाल नागर का विशेष स्थान हैं। इन्होंने अपने जीवनकाल में शतरंज की मोहरे', सहाग के नपुर, बूँद और समुद्र, अमृत और बिष, सेठ बाँकेलाल, नाच्यो बहुत गोपाल, मानस का हंस, और खंजन - नयन, जैसे चर्चित उपन्यास लिखकर हिन्दी उपन्यास संसार की समृद्धि में बहुत बड़ा योगदान दिया।

 

14. बिष्णु प्रभाकर (सन् 1912) 

  • गाँधीवादी विचारधारा के कथाकार श्री विष्णु प्रभाकर उपन्यासकार ही नहीं कहानीकार भी थे। इन्होंने अपने जीवन काल में 'स्वप्मयी', निशिकान्त', तट के बन्धन, और ढलती रात, जैसे प्रसिद्ध उपन्यास लिखे।

 

15. नागार्जुन (सन् 1911) 

  • मार्क्सवाद में आस्था रखने वाले नागार्जुन ने ग्रामीण जीवन के चित्रकार थे। इन्होंने रातिनाथ की चाची, बलचमा, नई पौध बाबा बटेसरनाथदुःखमोचन, वरूण के बेटे, कुम्भीपाक जैसे चर्चित उपन्यास लिखे। 


16. उपेन्द्रनाथ 'अश्क' (सन् 1910-1996)

  • मध्यम वर्गीय व्यक्ति की घुटन, बेबसी, और यौनकुंठा जैसे बिषयों पर लेखनी चलाने वाले उपेन्द्रनाथ अश्क, नाटककार ही नहीं उपन्यासकार भी थे। सितारों के खेल, गिरती दीवारें, गर्मराख, बड़ी-बड़ी आँखेंपत्थर-अल-पत्थर, शहर में घूमता हुआ आईना, बाँधों न नाव इस ठाँव, आपकी प्रसिद्ध उपन्यास कृतियाँ हैं. 

 

17. गुरूदत्त (सन् 1919-1971) 

  • राजनैतिक, सामाजिक और धार्मिक गुरुदत्त ने अपने उपन्यासों में संस्कृति तथा वैदिक विचारधारा को श्रेष्ठ दिखाया। पुष्यमित्र, विश्वासघात, उल्टी बही गंगा, इनके प्रसिद्ध उपन्यास है।

 

18. डॉ0 देवराज (सन् 1921)

  • मध्यवर्गीय बुद्धिजीवी समाज का जीवन चित्रित करने वाले डॉ0 देवराज पथ की खोज, बाहर भीतर, रोड़े और पत्थर, अजय की डायरी, दूसरा सूत्रजैसे उपन्यास लिखकर हिन्दी की सतत् सेवा की।

 

19. मोहन राकेश (सन् 1925-1972) 

  • एक नाटकार के रूप में ख्याति प्राप्त करने वाले मोहन राकेश ने कई उपन्यास भी लिखे। 'अँधेरे बन्द कमरे", "नीली रोशनी की बाहें, न जाने वाला कल, इनके महत्वपूर्ण उपन्यास हैं।

 

20. भीष्म साहनी ( सन् 1915) 

  • साम्यवाद से प्रभावित श्री भीष्म साहनी की मूल धारणा मानवतावादी रही है। इन्होंने अपने जीवनकाल में वसंती, तमस, झरोखे, कडियाँ जैसे उपन्यास लिखकर हिन्दी उपन्यास जगत को और अधिक समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

 

हिन्दी के अन्य उपन्याकार

  • उपरोक्त उपन्याकारों के अतिरिक्त अन्य जिन उपन्यासकारों ने उपन्यास विधा पर लेखनी चलाकर इसे समृद्ध करने का बीड़ा उठाया उनमें प्रमुख उपन्यासकार है- कमलेश्वर - सुबह दोपहर शाम, राजेन्द्र यादव- उखड़े हुए लोग, राजेन्द्र अवस्थी- 'जंगल के फूल', हिमांशु जोशी अरणय, रामवृक्ष बेनपुरी- 'पतितों के देश में, शिवप्रसाद सिंह गली आगे मुड़ती हैं, रघुवीरशरण मित्र- राख और दुल्हन, भैरव प्रसाद गुप्त- सती भैया का चौरा, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना सोया हुआ जल, धर्मवीर भारती- गुनाहों का देवता, मोहन लाल महतो वियोगी, महामंत्री आदि।

 

  • इन उपन्यासकारों में कुछ उपन्यासकार ऐसे भी हैं जिन्होंने आँचलिक उपन्यासों के सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ये अन्य उपन्यासकार हैं- उदयशंकर भट्ट- सागर, लहरें और मनुष्य, देवेन्द्र सत्यार्थी रथ के पहिये, ब्रह्मपुत्र, बलभद्र ठाकुर आदित्यनाथ, देवताओं के देश में, नेपाल की बेटी, हिमांशु श्रीवास्तव नदी फिर बह चली, रामदरश मिश्र पानी के प्राचीर, शैलेश मटियानी- हौलदार, राजेन्द्र अवस्थी जंगल के फूल, सूरज किरण की छाँह, मनहर चौहान - हिरना सावरी, श्याम परमार मोरझल, राही मासूम रजा- आधा गाँव आदि।

 

  • स्वातन्त्र्योत्तर भारतीय जीवन के बदलते परिवेश में कुछ नये उपन्यासकार उभरकर आये जिन्होंने समाजिक संघर्ष, व्यक्ति और परिवार के सम्बन्ध, भ्रष्टाचार, आर्थिक शोषण, नैतिक मूल्यों का परिवर्तन, परम्परा और रूढिवाद के प्रति विद्रोह, आधुनिकता का आकर्षण जैसे विविध विषयों को अपने उपन्यासों के माध्यम से उभारा। इन उपन्यासकारों में यादवेन्द्र शर्मा चन्द्र- पथहीन, दिया जला दिया बुझा, गुनाहों की देवी, यज्ञदत्त शर्मा इनसान, निर्माणपथ, महल और मकान, बदलती राहें, मन्नू भंडारी- आपका बंटी, उषा प्रियंवदा, पचपन खम्भे लाल दीवारें, शेष यात्रा, रूकेगी नहीं राधिका, रमेश वक्षी- अठारह सूरज के पौधे, महेन्द्र मल्ला- पत्नी के नोट्स, बदी उज्जयाँ- एक चूहे की मौत आदि उपन्यास बड़े लोकप्रिय और प्रख्यात हैं।


 हिन्दी की प्रमुख महिला उपन्यासकर 

  • हिन्दी के प्रारम्भिक उपन्यास लेखन में भले पुरूष उपन्यासकारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही लेकिन बाद में धीरे-धीरे इस विधा को आगे बढ़ाने में महिलाएँ भी जुड़ने लगी। इन महिलाओं में उषा मित्रा के उपन्यास काफी चर्चित रहे। बाद में चन्द्रकिरण, कंचनलता सब्बरवाल, शिवानी जैसी प्रतिभा सम्पन्न लेखिकाओं ने उपन्यास विधा को अनेक विस्मरणीय रचनाएँ दी।

 

  • इसी श्रृखंला को बाद में मन्नू भण्डारी, चित्रा मुद्गल, मालती परूलकर, दीप्ति खण्डेलवाल, मालती जोशी, मृदुला गर्ग, नासिरा शर्मा, उषा प्रियंवदा कृष्णा अग्निहोती, ममता कालिया निरूपमा शास्त्री कृष्णा सोबती, रजनी पन्निकर, संतोष शैलजा, सूर्यवाला, सिम्मी हर्षिता , मैसेयी पुष्पा राजी सेठ कमल कुमार, स्नेह मोहनीश आदि महिलाओं ने आगे बढाय और बढ़ा रही है।


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