ग्रियर्सन भाषा वर्गीकरण की आलोचना । Griyarsan Ka Bhassha Vargikran

 

 ग्रियर्सन भाषा वर्गीकरण की  आलोचना, Griyarsan Ka Bhassha Vargikran

ग्रियर्सन भाषा वर्गीकरण की  आलोचना । Griyarsan Ka Bhassha Vargikran


 ग्रियर्सन भाषा वर्गीकरण की आलोचना

  • ग्रियर्सन का वर्गीकरण ध्वनिव्याकरण या रूप तथा शब्द समूहइन तीन बातों पर आधारित है। डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी ने इन तीनों की ही आलोचना की है। उन्हीं के आधार पर ग्रियर्सन के कुछ प्रमुख आधार संक्षिप्त आलोचना के साथ दिये जा रहे हैं।

 

1. ध्वनि-

ग्रियर्सन के वर्गीकरण के ध्वन्यात्मक आधार लगभग पन्द्रह हैं जिनमें केवल प्रमुख चार-पाँच लिये जा रहे हैं। 

  • (क) ग्रियर्सन के अनुसार 'र्का 'ल्या 'ड्के लिए प्रयोग केवल बाहरी भाषाओं में मिलता हैकिंतु यथार्थतः ऐसी बात नहीं है। अवधीब्रजखड़ी बोली आदि में भी यह प्रवृत्ति मिलती हैं। जैसे बर (बल)गर (गला)जर (जल)। बीरा (बीड़ा)किवार (किवाड़)भीर (भीड़ आदि) । 


  • (ख) ग्रियर्सन के अनुसार बाहरी भाषाओं में 'द्का परिवर्तन 'ड्में हो जाता है। किंतु यह बात भीतरी में भी मिलती है। हिंदी में डीठि (दृष्टि)ड्योढ़ी (देहली)डेढ़ (द्वयर्द्ध)डाभ (दर्भ)डाढ़ा (दग्ध)डंडा (दंड) डोली (दोलिका)डोरा (दोरक)हँसना (दश) आदि उदाहरणार्थ देखे जा सकते हैं। 


  • (ग) ग्रियर्सन का कहना है कि 'म्बध्वनि का विकास बाहरी भाषाओं में 'रूप में हुआ है तथा भीतरी में 'ब्’ रूप में। किंतु इसके विरोधी उदाहरण भी मिलते हैं। पश्चिमी हिंदी क्षेत्र में 'जम्बुकका 'जामुनया 'तिम्बका 'नीममिलता है। दूसरी ओर बंगाल में 'निम्बुकका 'लेबूया 'नेबूमिलता है। 


  • (घ) ऊष्म ध्वनियों को लेकर ग्रियर्सन का कहना है कि भीतरी में इनका उच्चारण अधिक दबाकर किया जाता है और वह 'रूप में होता हैकिंतु बाहरी में यह शयारूप में मिलता है। बंगाल तथा महाराष्ट्र के कुछ भागों में निर्बल होकर यह 'हो गया है। पूर्वी बंगाल और असम में और भी निर्बल होकर 'हो गया है और बंगला तथा पश्चिमोत्तरी में 'हो गया है। जहाँ तक स्वरों के बीच में 'के 'हो जाने का संबंध हैवह बाहरी के साथ भीतरी भाषाओं में पाया जाता है। सं. एकसप्ततिपं. हिंदी एकहत्तरसं. द्वादशपं. हिं. बारहसं. करिष्यतिप. हि करिहइ। साथ ही बाहरी में 'भी कहीं कहीं हैजैसे लहँदा करेसी (करेगी)। 'बाला विकास बड़ा सीमित और पूर्वक्षेत्रीय है। उसके आधार पर धुर पूर्व और पश्चिम की भाषाएँ एक वर्ग में नहीं रखी जा सकतीं। 'वाली विशेषता बंगला आदि में मागधी प्राकृत से चली आ रही है और वह प्राय: निर्बन्ध (unconditional) है। मराठी में वह बाद का विकास है और संबंध (conditional) है (इ. ई. ए. य आदि तालव्य ध्वनियों के प्रभाव से ) इस रूप में तो भीतरी की गुजराती में भी यह विकास हैजैसे कर्श (करिष्यति ) । इस प्रकार यह भी भेदक तत्व नहीं है। 


  • (ङ) महाप्राण ध्वनियों का अल्पप्राण हो जाना भी ग्रियर्सन के अनुसार बाहरी भाषाओं में हैभीतरी में नहीं। किंतु हिंदी में भगिनी का बहिनप्राकृत कल्पि रूप ईंठा (र्स. इष्टक) का ईंटप्राकृत कल्पित रूप ऊँठ (सं. उष्ट्र) का ऊँट इसके विरोध में जाते हैं।

 

2. व्याकरण या रूप- 

ग्रियर्सन ने इस प्रसंग में पाँच-छह रूप-विषयक आधारों का उल्लेख किया है जिनमें से तीन यहाँ लिये जा रहे हैं। 

  • (क) ग्रियर्सन-ई स्त्री प्रत्यय के आधार पर बाहरी वर्ग की पश्चिमी और पूर्वी भाषाओं को एक वर्ग की सिद्ध करना चाहते हैंकिंतु वस्तुतः यह तर्क तब ठीक माना जाता जब भीतरी वर्ग में यह बात न मिलती। हिंदी में इस प्रत्यय का प्रयोग क्रिया (गातीदौड़ी)परसर्ग (की)संज्ञा (लड़कीबेटी)विशेषण (बड़ीछोटी) आदि कई वर्ग के शब्दों में खूब होता हैअतः इसे इस प्रकार के वर्गीकरण का आधार नहीं मान सकते।


  • (ख) भाषा संयोगात्मक से वियोगात्मक होती है और कुछ लोगों के अनुसार वियोगात्मक से फिर संयोगात्मक ग्रियर्सन का कहना है कि संयोगात्मक भाषा संस्कृत से चलकर आधुनिक भाषाएँ (कारक रूप में) वियोगात्मक हो गई हैंकिंतु आधुनिक में भी बाहरी भाषाएँ विकास में एक कदम और आगे बढ़कर संयोगात्मक हो रही हैं। जैसे हिंदी 'राम की किताब', बंगाली 'रामेर बोई। ग्रियर्सन का यह भी कहना है कि भीतरी में यदि कुछ संयोगात्मक रूप मिलते भी हैं तो वे प्राचीन के अवशेष मात्र हैंअर्थात् प्रवृत्ति नहीं हैअपवाद हैं। इस प्रकार बाहरी-भीतरी भाषाओं में यह एक काफी बड़ा अंतर है। किंतु ग्रियर्सन का यह अंतर भी सत्य की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। जैसा कि डॉ. चटर्जी ने दिखाया हैतुलनात्मक ढंग से जब हम बाहरी और भीतरी के कारक-रूपों का अध्ययन करते हैं तो देखते हैं कि संयोगात्मक रूपों का प्रयोग भीतरी में बाहरी से कम नहीं हैअतः इस बात को भी भेदक तत्व नहीं माना जा सकता। [ब्रज पूतहि (कर्म)मनहिं भौनहिं (अधिकरण) ] । 


  • (ग) ग्रियर्सन विशेषणात्मक प्रत्यय 'को केवल बाहरी भाषाओं की विशेषता मानते हैंयद्यपि भीतरी में भी यह पर्याप्त हैजैसे रंगीलाहठीलाभड़कीलाचमकीलाकटीलागठीला खर्चीला आदि।

 

3. शब्द समूह - 

  • इसके आधार पर भी ग्रियर्सन बाहरी भाषाओं में साम्य मानते हैं। किंतु विस्तार से देखने पर यह बात भी ठीक नहीं उतरती मराठी बंगाली या बंगाली सिन्धी में बंगाली हिंदी से अधिक साम्य नहीं है। इस प्रकार ग्रियर्सन जिन बातों के आधार पर बाहरी-भीतरी वर्गीकरण को स्थापित करना चाहते थेवे बहुत सम्पुष्ट नहीं हैं। 

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