आधुनिक आर्य भाषा वर्गीकरण : सुनीतिकुमार चटर्जी, धीरेन्द्र वर्मा, सीताराम चतुर्वेदी । Bhasha Ka vargikran

आधुनिक आर्य भाषा  वर्गीकरण : सुनीतिकुमार चटर्जी, धीरेन्द्र वर्मा, सीताराम चतुर्वेदी 

आधुनिक आर्य भाषा  वर्गीकरण : सुनीतिकुमार चटर्जी, धीरेन्द्र वर्मा, सीताराम चतुर्वेदी । Bhasha Ka vargikran



 डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी का भाषा  वर्गीकरण 


डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी का वर्गीकरण (O.D.B.L. में) इस प्रकार है: 

(क) उदीच्य (सिन्धीलहँदापंजाबी) 
(ख) प्रतीच्य (गुजरातीराजस्थानी)। 
(ग) मध्यदेशीय (पश्चिमी हिंदी) । 
(घ) प्राच्य (पूर्वी हिंदीबिहारीउड़ियाअसमियाबंगाली) ।
(ङ) दक्षिणत्य (मराठी)

 

डॉ. चटर्जी पहाड़ी को राजस्थानी का प्रायः रूपान्तर सा मानते हैं। इसीलिए उसे यहाँ अलग स्थान नहीं दिया है।


डॉ. धीरेन्द्र वर्मा ने डॉ. चटर्जी के वर्गीकरण के आधार पर ही अपना वर्गीकरण दिया है: 

(क) उदीच्य (सिन्धीलहँदापंजाबी) 

(ख) प्रतीच्य (गुजराती)। 

(ग) मध्यदेशीय (राजस्थानीप. हिंदीपूर्वी हिंदी बिहारी ) । 

(घ) प्राच्य (उड़ियाअसमीबंगाली)। 

(ङ) दक्षिणात्य (मराठी) ।

 

इस वर्गीकरण में हिंदी के प्रमुख चारों रूपों को मध्यदेशीय माना गया है।

 

श्री सीताराम चतुर्वेदी ने संबंधसूचक परसर्ग के आधार पर

  • श्री सीताराम चतुर्वेदी ने संबंधसूचक परसर्ग के आधार पर का (हिंदीपहाड़ीजयपुरी)दा ( पंजाबीलहँदा)जो (सिन्धीकच्छी)नो (गुजराती)एर (बंगालीउड़ियाअसमी) वर्ग बनाये हैं। यथार्थतः यह कोई वर्गीकरण नहीं है। ऐसे तो 'या 'से 'ध्वनियों के आधार पर भी वर्ग बनाये जा सकते हैं।

 

व्यक्तिगत रूप से इन पंक्तियों का लेखक कुछ इस प्रकार वर्गीकरण (जो प्रमुखतः क्षेत्रीय है) पसन्द करता रहा है: 

मध्यवर्ती (पूर्वी और पश्चिमी हिंदी)

पूर्वी (बिहारीउड़ियाबंगालीअसमी)

दक्षिणी (मराठी)पश्चिमी (सिन्धीगुजरातीराजस्थानी)

उत्तरी (लहँदापंजाबीपहाड़ी)। 


  • किंतु वस्तुतः वर्गीकरण का आशय यह है कि उसके आधार पर भाषाओं की मूलभूत विशेषताएँ स्पष्ट हो जाएँ। उपर्युक्त किसी भी वर्गीकरण में यह बात नहीं हैऐसी स्थिति में ये सारे व्यर्थ हैं। इनके आधार पर कोई भाषा वैज्ञानिक निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। 


इससे अच्छा यह है कि इनकी अलग-अलग प्रवृत्तियों का ही अध्ययन किया जाय या यदि वर्गीकरण जरूरी ही समझा जाए तो दो बातें कही जा सकती हैं: 


(1) प्रवृत्तियों के आधार पर इन भाषाओं में इतना वैभिन्य या साम्य है कि सभी बातों का ठीक तरह से विचार करते हुए वर्गीकरण हो ही नहीं सकता। 

(2) अतएवउत्पत्ति या संबद्ध अपभ्रंशों के आधार पर इनके वर्ग बनाये जा सकते हैं। किंतु यह ध्यान रहे कि इस प्रकार के वर्गों में ध्वनि या गठन संबंधी साम्यबहुत कम दृष्टियों से मिल सकता है। 


उत्पत्ति भी अपने आप में महत्त्वपूर्ण हैअत: इसे बिल्कुल निरर्थक नहीं कहा जा सकता। इस वर्गीकरण का रूप यह है: 


(क) शौरसेनी (पश्चिमी हिंदीपहाड़ीराजस्थानीगुजराती) । 

(ख) मागधी (बिहारीबंगालीअसमीउड़िया)। 

(ग) अर्द्धमागधी (पूर्वी हिंदी) । 

(घ) महाराष्ट्री (मराठी) । वाचड-पैशाची (सिन्धीलहँदापंजाबी) । 


इन्हें क्रम से मध्यमपूर्वीयमध्यपूर्वीयदक्षिणी और पश्चिमोत्तरी भी कहा जा सकता है।



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