पंडित दीनदयाल उपाध्याय कौन थे | Deen dayal upadhyaya Kaun

 पंडित दीनदयाल उपाध्याय  कौन थे

पंडित दीनदयाल उपाध्याय  कौन थे | Deen dayal upadhyaya Kaun



पंडित दीनदयाल उपाध्याय 

  • जन्म: 25 सितम्बर 1916
  • मृत्यु: 11 फरवरी 1968



पंडित दीनदयाल उपाध्याय  कौन थे

  • पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1916 को मथुरा ज़िले के नगला चंद्रभान गाँव में हुआ था। 
  • पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक दार्शनिक, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री एवं राजनीतिज्ञ थे। इनके द्वारा प्रस्तुत दर्शन को एकात्म मानववाद’ (Integral humanism) कहा जाता है जिसका उद्देश्य एक ऐसा स्वदेशी सामाजिक-आर्थिक मॉडलप्रस्तुत करना था जिसमें विकास के केंद्र में मानव हो। 
  • वर्ष 1942 में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में एक पूर्णकालिक कार्यकर्त्ता के रूप में शामिल हुए, जिन्हें संघ प्रचारक कहा जाता है। 
  • इसके पश्चात् उन्होंने वर्ष 1940 के दशक में लखनऊ से राष्ट्र धर्मनाम से एक मासिक पत्रिका की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य हिंदुत्व राष्ट्रवाद की विचारधारा का प्रसार करना था। 
  • इसके बाद उन्होंने पांचजन्य और स्वदेश जैसी पत्रिकाओं की भी शुरुआत की। 
  • वर्ष 1967 में जनसंघ के अध्यक्ष के रूप में चुने जाने के एक वर्ष बाद पटना में एक ट्रेन यात्रा के दौरान अज्ञात कारणों से उनकी मृत्यु हो गई।
  • पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक दार्शनिक, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री एवं राजनीतिज्ञ थे।


दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद 

  • इनके द्वारा प्रस्तुत दर्शन को एकात्म मानववादकहा जाता है जिसका उद्देश्य एक ऐसा स्वदेशी सामाजिक-आर्थिक मॉडलप्रस्तुत करना था जिसमें विकास के केंद्र में मानव हो। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने पश्चिमी पूंजीवादी व्यक्तिवादएवं मार्क्सवादी समाजवाददोनों का विरोध किया, लेकिन आधुनिक तकनीक एवं पश्चिमी विज्ञान का स्वागत किया। ये पूंजीवाद एवं समाजवाद के मध्य एक ऐसी राह के पक्षधर थे जिसमें दोनों प्रणालियों के गुण तो मौजूद हों लेकिन उनके अतिरेक एवं अलगाव जैसे अवगुण न हो।

 

  • इनके अनुसार पूंजीवादी एवं समाजवादी विचारधाराएँ केवल मानव के शरीर एवं मन की आवश्यकताओं पर विचार करती है इसलिए वे भौतिकवादी उद्देश्य पर आधारित हैं जबकि मानव के संपूर्ण विकास के लिए इनके साथ-साथ आत्मिक विकास भी आवश्यक है। साथ ही, उन्होंने एक वर्गहीन, जातिहीन और संघर्ष मुक्त सामाजिक व्यवस्था की कल्पना की थी। 
  • एकात्म मानववाद का उद्देश्य व्यक्ति एवं समाज की आवश्यकता को संतुलित करते हुए प्रत्येक मानव को गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करना है। यह प्राकृतिक संसाधनों के संधारणीय उपभोग का समर्थन करता है जिससे कि उन संसाधनों की पुनः पूर्ति की जा सके।

 

  • आज वैश्विक स्तर पर एक बड़ी जनसंख्या गरीबी में जीवन यापन कर रही है। विश्वभर में विकास के कई मॉडल लाए गए लेकिन आशानुरूप परिणाम नहीं मिला। अतः दुनिया को एक ऐसे विकास मॉडल की तलाश है जो एकीकृत और संधारणीय हो। एकात्म मानववाद ऐसा ही एक दर्शन है जो अपनी प्रकृति में एकीकृत एवं संधारणीय है।

 

  • एकात्म मानववाद न केवल राजनीतिक बल्कि आर्थिक एवं सामाजिक लोकतंत्र एवं स्वतंत्रता को भी बढ़ाता है। यह सिद्धांत विविधता को प्रोत्साहन देता है अतः भारत जैससे विविधतापूर्ण देश के लिए यह सर्वाधिक उपयुक्त है।
 

  • एकात्म मानववाद का उद्देश्य प्रत्येक मानव को गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करना है एवं अंत्योदयअर्थात समाज के निचले स्तर पर स्थित व्यक्ति के जीवन में सुधार करना है अतः यह दर्शन न केवल भारत अपितु सभी विकासशील देशों में सदैव प्रासंगिक रहेगा।

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