पंडित दीन दयाल उपाध्याय के राजनीतिक विचार|Political Thoughts of Deen Dayal Upadhyay in Hindi

 पंडित दीन दयाल उपाध्याय के राजनीतिक विचार

पंडित दीन दयाल उपाध्याय के राजनीतिक विचार|Political Thoughts of Deen Dayal Upadhyay in Hindi



पंडित दीन दयाल उपाध्याय का राजनीति में प्रवेश

 

  • दीन दयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को उत्तर प्रदेश, मथुरा जिला के नगला चंद्रभान गांव में हुआ। बचपन से ही उनके जीवन में विपत्तियों का पहाड़ टुट पड़ा। ढाई साल की ही उम्र में पिता का साया उनके जीवन से छंट गया । दीन दयाल उपाध्याय के पिता भगवती प्रसाद का देहांत हो गया। अभी दीन दयाल केवल सात वर्ष के ही हुए थे, कि माता का भी देहांत हो गया। दीन दयाल उस समय अपने नाना के घर में रह रहे थे। अभी माता को गुजरे हुए दो ही वर्ष हुए थे, कि नाना भी स्वर्ग सिधार गए। उनके जीवन पर मानो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो, पर दीन दयाल अभी भी हिम्मत नहीं हारे थे और अपने छोटे भाई का भी पालन पोषण करते थे। जब दीन दयाल अपने अठारबें वर्ष में थे और नवीं कक्षा में पढ़ रहे थे, तो उनका छोटा भाई भी रोगग्रसत हो गया, दीन दयाल ने सब प्रकार से उपचार करवाया पर 18 नवंबर 1934 को शिव दयाल अपने बड़े भाई को अकेला छोड़ संसार से विदा हो गया। इस तरह से अपनों की मृत्यु ने दीन दयाल को झकझोर के रख दिया था, पर पंडित दीन दयाल ने अपने हौंसलों को कमजोर नहीं पड़ने दिया और विपरीत परिस्थितयों में भी वे पूरे उत्साह से आग बढ़ते रहे ।

 

पंडित दीन दयाल उपाध्याय का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संपर्क

 

  • दीन दयाल उपाध्याय अपनी स्नातक की पढ़ाई करने के लिए कानपुर गए, वहीं उनका संपर्क 1937 में अपने सहपाठी बालूजी महाशब्दे के माध्यम से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से हुआ। कानपुर में संघ संस्थापक डा हेडगेवार से भी उनकी भेंट हुई। कानपुर के इस विद्यार्थी जीवन से ही दीन दयाल उपाध्याय का सार्वजनिक जीवन प्रारंभ हो जाता है। सन 1937 के बाद 1941 तक छात्र रहे। सन 1939 में उन्होंने संघ का 40 दिन का प्रशिक्षण वर्ग प्रथम वर्ष और सन 1942 मे द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त किया। अपनी पढ़ाई पूर्ण करने तथा द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद पं दीन दयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बन गए। वे आजीवन संघ के प्रचारक ही रहे। संघ के माध्यम से ही वे राजनीति में गए. भारतीय जन संघ के महामंत्री तथा अध्यक्ष रहे और एक संपूर्ण राजनीतिक विचार के प्रणेता बने।

 

पंडित दीन दयाल उपाध्याय राजनीतिक दल जनसंघ में प्रवेश

 

  • स्वतंत्रता के बाद भारत कई प्रकार की समस्याओं से भी घिरा हुआ था, देश किस दिशा में आगे बड़े और किस तरह से अग्रणी देशों की श्रेणी में अपने को ला कर खड़ा करे, यह बहस होना स्वाभाविक था। देश में कांग्रेस का एकतरफा जनाधार था और एक शक्तिशाली राजनीतिक दल के नाते भी भारत में कार्य कर रही थी। स्वतंत्रता के उद्देश्य से ही कांग्रेस का निर्माण हुआ था और अपनी भूमिका भारत को आजाद करवाने के लिए बखूबी निभाई। अब भारत आजाद हो गया था और कांग्रेस एक मजबूत राजनीतिक दल बन कर कार्य कर रहा था, पर स्वतंत्र भारत में किस विचार को लेकर आगे बढ़ना है और क्या लक्ष्य लेकर भारत की दिशा और दशा तय करनी है, इसकी कमी साफतौर पर झलक रही थी। पर कांग्रेस का कोई बेहतर और मजबूत विकल्प भी नहीं दिख रहा था। कांग्रेस में कुछ नेता ऐसे भी थी जो भारत की परिस्थितयों को भली भांति समझते थे और राष्ट्रहित में कार्य कर रहे थे और कुछ ऐसे भी थे, जो अपने निजि स्वार्थों को साथ ले कर चल रहे थे और राष्ट्र के विकास और प्रगति को दरकिनार कर अपना प्रभुत्व दिखा रहे थे हम सरदार पटेल के प्रयासों और पर्यत्नों को नहीं भूला सकते, जिन्होंने अपनी बौद्धिक क्षमता तथा कुशल रणनिति का परिचय देते हुए विभिन्न स्वतंत्र रियासतों का भारत में विल करवाया। 


  • डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी जो नेहरू सरकार में भारत के पहले उद्योग मंत्री थे, परंतु जब नेहरू लियाकत समझौता हुआ, उसके वो पक्षधर नहीं थे और उन्होंने मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया। डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में ही 21 अक्तूबर 1951को अखिल भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई।


  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शक्ति एवं डा मुखर्जी के नेतृत्व में अन्य हिंदू राष्ट्रवादी समुदायों को साथ लेकर भारतीय जनसंघ को विकसित करने की योजना बनी, लेकिन नियति इस योजना के अनूकूल नहीं थी। जनसंघ की स्थापना के 21 महीने के बाद ही कश्मीर आंदोलन के तहत श्रीनगर की जेल में 23 जून 1953 को डा मुखर्जी की मृत्यु हो गई। राष्ट्रवादी भारतीय राजनीति जिसका प्रतिनिधित्व जनसंघ को करना था, के नेतृत्व का भार अब पूरी तौर पर संघ द्वारा राजनीति में भेजे कार्यकर्ताओं पर आ गया था। पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने प्रत्यक्षतः यह कार्य संभाला। सरसंघचालक मा स गोलवलकर इन नवीन राजनीतिक कार्यकर्ताओं के प्रेरणास्त्रोत व मार्गदर्शक थे।

 

दीन दयाल उपाध्याय के राजनीतिक विचार
Political Thoughts of Deen Dayal Upadhyay

 

  • पंडित दीन दयाल उपाध्याय केवल राजनीतिक उपदेशक नहीं थे। उनके जीवन से ही राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को सीख लेनी चाहिए, उनका स्वयं का जीवन प्रेरणादायी अनुशासित तथा निष्कलंक था राजनीति उनके लिए राष्ट्र की सेवा के लिए साधन थी, केवल सत्ता सुख के लिए नहीं थी। दीन दयाल उपाध्याय राजनीति में क्यों आए? इस प्रश्न का उत्तर है. उन्होंने राष्ट्रनीति के लिए राजनीति में पदार्पण किया। वे देश की सत्ता चाहते तो थे, किंतु किसके हाथों में ? उनका विचार था कि सत्ता उसके हाथों में जानी चाहिए, जो राजनीति का उपयोग राष्ट्रनीति के लिए कर सकें।

 

भारत की अखंड़ता और एकता 

  • भारत में जिस समय जनसंघ की स्थापना हुई, उस समस देश विपरीत परिस्थितयों से गुजर रहा था। कांग्रेस देश की परिस्थितयों को नहीं समझ पा रही थी और बिना किसी उद्देश्य तथा लक्ष्य से देश में कार्य कर रही थी। कांग्रेस के नेताओं में दूरदर्शिता की कमी साफ झलक रही थी। 
  • जन संघ का उद्देश्य साफ था और वह अखंड भारत की कल्पना कर कार्य करने वाला था। वह भारत को खंडित भारत करने के पक्ष में नहीं थे। जन संघ का सपष्ट मानना था कि भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में दुनिया के सामने आएगा। दीन दयाल उपाध्याय के अनुसार अखंड भारत देश की भौगोलिक एकता ही परिचायक नहीं है, अपितु जीवन के भारतीय दृष्टिकोण का द्योतक है, जो अनेकता में एकता का दर्शन करता है। अतः हमारे लिए अखंड कोई राजनीतिक नारा नहीं है बल्कि यह तो हमारे संपूर्ण जीवनदर्शन का मूलाधार है। 
  • स्वतंत्रता के बाद कश्मीर भारत के लिए एक अनसुलझी सी पहेली बन कर सामने आया है। धारा 370 के तहत कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान किया गया है। कश्मीर के अलगाववादी नेता कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग न मानते हुए अपने राजनीतिक स्वार्थ को राष्ट्र के हित के आगे विशेष प्राथमिकता देते रहे हैं। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग होते हुए भी भारत के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बना हुआ है। 
  • भारतीय जनसंघ की स्थापना के पश्चात ही कश्मीर को भारत में विलय करने के लिए आंदोलनरत है। कश्मीर आंदोलन के प्रसिद्ध तीन नारे थे एक देश में दो विधान नहीं चलेंगे, एक देश में दो निशान नहीं चलेंगे, एक देश में दो प्रधान नहीं चलेंगे दीन दयाल उपाध्याय भी अपने एक लेख में लिखते हैं: आज कश्मीर कसौटी बन गया है, भारत की पथनिरपेक्ष राष्ट्रीयता की नेशनल कांग्रेस के नेताओं की राष्ट्र निष्ठा की और संयुक्त राष्ट्र संघ की न्यायप्रियता की। जिस कश्मीर के लिए भारतीय जनसंघ के प्रथम अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए और वर्तमान भारतीय जनता पार्टी के प्रेरणास्त्रोत दीन दयाल उपाध्याय अपने जीवन में कश्मीर के लिए आंदोलन लड़ते रहे, आज उसी भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने हाल ही मे पूरा किया । 


  • वर्तमान समय में भारतीय जनता पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कार्य कर रही है और धारा 370 को राष्ट्र की अखंडता में बाधा देखते हुए कश्मीर समस्या का समाधान 'कश्मीर का पूरी तरह से भारत में विलय करके किया है। यह उसी चिंतन का परिणाम दिखता है, जिसके लिए जनसंघ के दोनों नेताओं ने अपने राजनीतिक जीवन में राष्ट्र की अखंडता और एकता के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए।

 

राजनीतिक दलों की भूमिका तथा चुनावी मैदान : 

  • भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। एक स्वस्थ लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की भूमिका अहम हो जाती है। भारत में काफी राजनीतिक दल सकीय हैं, कुछ क्षेत्रीय दल तथा कुछ राष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रहे है। सभी राजनीतिक दल अपने अपने विचार को लेकर तथा लक्ष्य लेकर कार्य कर रहे हैं। 
  • राष्ट्र के विकास तथा उन्नति को गति देने के लिए राजनीतिक दलों की भूमिका भी अहम हो जाती है। राजनीतिक दलों के बारे में दीन दयाल उपाध्याय अपनी राय रखते हैं और कहते हैं, कि एक श्रेष्ठ दल जो सत्ता पर अधिकार प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्तियों का झुंड न होकर एक जीवमान संगठन हो, जिसका सत्ता प्राप्त करने के अतिरिक्त अपना अलग वैशिष्टय हो। 
  • वर्तमान समय में हम देखते हैं कि अधिकतर राजनीतिक दल स्वार्थ और एक दूसरे राजनीतिक दलों को नीचा दिखाने की राजनीति ज्यादा कर रहे हैं, जो कि देश के विकास में भी बाधक है। चुनावी संग्राम में हम देखते हैं कि किस तरह से राजनीतिक दलों द्वारा जातिगत समीकरण बिठाए जाते हैं, बाहुवल और धनवल का प्रयोग किया जाता है, जो कि एक स्वस्थ लोकतंत्र का परिचायक नहीं है। 
  • जातिवादी राजनीति वर्तमान समय में भारतीय लोकतंत्र में घातक बिमारी है। उपाध्याय की आस्था है कि मतदाता की बुद्धिमता ही इसका इलाज है, ये सब ऐसे तथ्य हैं कि जो देश की राजनीति को गलत दिशा में ले जा रहे हैं। राजनीतिक दलों को जो देश की राजनीति में प्रमुख दल के रूप में विकसित होना चाहते हैं, इन खतरों से सचेत रह कर अपने सिद्धांत की हत्या नहीं करनी चाहिए। इसी भांति जनता का यह कर्तव्य है कि वह जागरूक रहकर बुद्धिमता के साथ अपने विवेक का परिचय दें, जिससे राजनीतिक दलों के गलत दृष्टिकोण को सुधारा जा सके। 
  • भारतीय जनता पार्टी दीन दयाल उपाध्याय को अपना आदर्श तथा प्रेरणास्त्रोत मान कर कार्य कर तो रही है, पर कहीं न कहीं चुनावी संग्राम में जातिवादी समीकरण बिठाने के लिए जातिगत राजनीति का शिकार हो जाती है। 
  • उपाध्याय जितनी अधिक श्रद्धा भक्ति राष्ट्र के प्रति रखते थे, उतनी ही उनकी आस्था एवं श्रद्धा लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति थी। उन्होंने अपने संपूर्ण राजनीतिक जीवन में लोकतांत्रिक मूल्यों को गतिशीलता प्रदान की।

 

राष्ट्रीय संकट की घड़ी में राष्ट्रहित सर्वोपरि 

  • दीन दयाल उपाध्याय राष्ट्रहित में राजनीति करने वाले राजनीतिज्ञ थे। अपने भारतीय वीरों से, जिन्होंने भारत को स्वतंत्र करवाने के लिए अपने जीवन की आहूति स्वतंत्रता रूपी यज्ञ में हंसते हंसते डाल दी, उन्हीं से प्रेरणा लेकर ही दीन दयाल उपाध्याय राष्ट्रहित के लिए ही राजनीति में आए उनका पूरा प्रयत्न जनसंघ को राष्ट्रनीति में कार्य करने वाला राजनीतिक दल बनाना था। इसका उदाहरण हम देख सकते हैं, जब चीन द्वारा भारत पर आक्रमण किया गया, उस समय भारतीय जनसंघ का उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन चला हुआ था। 
  • दीन दयाल उपाध्याय की राजनीति चाल सीधी थी, टेढ़ी नहीं। राष्ट्रीय संकट की घड़ी में भी सरकार को कठिनाई में डालकर अपने दल का स्वार्थ साधना उनकी राजनीति में नहीं बैठता था इसलिए उन्होंने इस संकट की घड़ी में तुरंत अपने किसान आंदोलन को बिना किसी शर्त स्थगित कर दिया

 

  • दीन दयाल राजनीति में जनसंघ के स्वतंत्र व्यक्तित्व और अस्तित्व को इस प्रकार बनाये रखना चाहते थे कि वह देश के नवनिर्माण का कार्य कर सके। उनके विचार से जनसंघ केवल सत्ता प्राप्ति के लिए स्थापित दल नहीं था बल्कि राजनीतिक क्षेत्र के साथ ही राष्ट्रजीवन में युगपरिवर्तन कराने के लिए निर्मित राजनीति दल था। 


  • दीन दयाल उपाध्याय आधुनिक भारतीय राजनीति में कांति लाने वाल पुरोधा थे। राष्ट्र की अखंडता पर उन्होंने विशेष बल दिया और साथ ही विभाजन के पश्चात पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों तथा जबरनी धर्म परिवर्तन पर अपने विचार प्रस्तुत किए, उस समय की कांग्रेस सरकार से उनके हितों की रक्षा करने की वकालत की। 


  • वर्तमान समय में भाजपा सरकार के द्वारा नागरिकता संसोधन बिल को कर एक्ट दिया है, जिसके तहत अब इस्लामिक देश पकिस्तान, बंग्लादेश, अफगानिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यको को एक विशेष प्रक्रिया के तहत भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।

 

  • दीन दयाल उपाध्याय का विशेष बल ऐसे कार्यकर्ताओं की फौज तैयार करने पर था जो कि अनुशासित हों उन्होंने अपने जन संघ के सिद्धांतों से कभी भी समझौता नहीं किया । 
  • दीन दयाल उपाध्याय ऐसे राजनीतिक नेता थे, जो कि राष्ट्रीय संकट के समय सभी राजनीतिक दलों को एकता दिखाने के लिए अपील करते रहे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि अगर मुझे दो दीन दयाल मिल जाएं, तो में भारतीय राजनीति का नक्शा  ही बदल दूं। 
  • यहीं से हम कह सकते हैं कि दीन दयाल उपाध्याय का चरित्र कितना मजबूत था। उनके इसी गम्भीर प्रयत्न के परिणामस्वरूप राजनीतिक परिदृश्य में उनका स्थान बना है और सदा बना रहेगा। आधुनिक भारतीय राजनीतिक दर्शन को पंडित दीन दयाल उपाध्याय का विशिष्ट योगदान है।

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