उत्पादन आदानों पर करों का प्रभाव |Effect of taxes on production inputs

उत्पादन आदानों पर करों का प्रभाव

 Effect of taxes on production inputs

उत्पादन आदानों पर करों का प्रभाव |Effect of taxes on production inputs



  • सभी करों से अपेक्षित होता है कि वे अर्थव्यवस्था के आपूर्ति एवं माँग दोनों पक्षों पर प्रभाव डालते हुए निर्णयन् में फेर बदल करेंगे। 
  • दूसरे शब्दों मेंयदि हम कर लगाए जाने से पहले और बाद में किसी करदाता इकाई के निर्णयों की तुलना करें तो उम्मीद करें कि ये निर्णय भिन्न-भिन्न होंगे। चूँकि कराधान परिवार के आर्थिक संसाधनों (आय अथवा धन-संपत्ति) का कुछ प्रतिशत ले लेता हैपारिवारिक निर्णयों पर प्रभाव की जाँच की जानी चाहिए। 
  • आयकर के मामले मेंकर उत्पादन के दोनों ही उपादानोंयथा श्रम और पूँजी द्वारा अर्जित आय पर प्रयोज्य होता है। श्रम आय पर कोई भी कर काम करने अथवा अवकाश ले लेने के बीच श्रमिक के विकल्प में परिवर्तन ला देगा। इसी प्रकारब्याज़ से आय अथवा पूँजीगत लाभ पर कोई भी कर बचत विषयक निर्णयों को प्रभावित करेगा। दूसरी ओरयदि हम परोक्ष करों पर विचार करें तो किसी वस्तु पर कर उस वस्तु की माँग घटा सकता है ।
 

1 श्रम पर प्रत्यक्ष करों का प्रभाव

 

  • व्यक्ति की श्रम आपूर्ति 'करोपरांत वेतनऔर 'आयका फलन होती है। जब पारिश्रमिक कम हो तो व्यक्तिवेतन वृद्धि के लिएश्रम आपूर्ति बढ़ा देता है। परंतुकिसी स्तर विशेष के पश्चात्वेतन में कोई भी अग्रिम वृद्धि श्रमापूर्ति के निवर्तन अथवा समाप्ति में परिणत होती है। दूसरे शब्दों मेंएक स्तर के बाद श्रम आपूर्ति वक्र 'पश्चगामीहो जाता है।


  • उक्त तथ्य को और अधिक स्पष्ट करने के लिएआइएअपनी उस उपयोगिता को अधिकतम करने के इच्छुक एक प्रतिनिधि व्यक्ति पर विचार करेंजो उसकी निवल आय (Y) और अवकाश का फलन है। चर बिताए गए कार्य के घंटे इंगित करता है और Lo उपलब्ध कार्य के घंटों की कुल संख्या उपयोगिता फलन को मूल बिंदु के प्रति उत्तल माना जाता है। यह वक्र संतत होता है में पूर्णतः वर्धमान और में नियमनिष्ठतः ह्रासमान किसी भी कर के अभाव मेंबजट संरोध होगा

 

Y = wL + I 

जहाँ, I 'अन्य आयइंगित करता है। 

चर ti के बराबर किसी दर पर कोई अनुपातिक आय कर अध्यारोपित करने के बादउक्त बजट संबोध बदलकर हो जाता है

 

Y = (wL+I) (l-t; ) = w L + M

 


जहाँ, w करोपरांत वेतन दर है और करोपरांत अन्य आय। किसी कर के अध्यारोपण का प्रभाव चित्र में दर्शाया गया हैजहाँ कर पूर्व साम्यावस्था है और करोपरांत साम्यावस्था चित्र मेंअनुलेख '1' नहीं दर्शाया गया है क्योंकि हम कालांतर में अथवा अभिकर्ताओं के बीच विभिन्न कर दरों पर विचार नहीं कर रहे हैं। जब कर लगाया जाता है तो करपूर्व साम्यावस्था को खिसकाकर नई करोपरांत साम्यावस्था पर ले जाया जाता है। यह कर न सिर्फ करोपरांत वेतन दर को घटा देता है बल्कि व्यक्ति द्वारा चयनित आपूर्ति की जाने वाले श्रम की मात्रा भी घट जाती है। फलतः वास्तविक प्रभाव उपयोगिता फलन की प्रकृति पर और वेतन की दृष्टि से श्रमापूर्ति की लोच पर निर्भर करेगा। दूसरे शब्दों मेंवेतनराशियों पर कोई कर किसी भी व्यक्ति के इस विकल्प को प्रभावित कर सकता है कि वह श्रम बाज़ार में कितनी श्रमापूर्ति करना पसंद करता है।

श्रम पर प्रत्यक्ष करों का प्रभाव


 

2 पूँजी पर प्रत्यक्ष करों का प्रभाव

 

  • ब्याज और लाभांश पूँजी पर अर्जित आय कहलाते हैं। पूँजीबदले में निवेश के रूप में बचत राशियों पर पुनर्प्रस्तरण है। बचत मुख्यतः वर्तमान उपभोग के स्थगन अथवा विलंबन के कारण होती है। बचत के प्रतिफल का एक रूप ब्याज है। अतः सैद्धांतिक रूप सेब्याज की आय पर करारोपण करपूर्व ब्याज दर को घटा देने जैसा ही प्रभाव रखता है। ह्रास की सही मात्रा बचत की ब्याज लोच पर निर्भर करती है ।

 

  • इसी प्रकार लाभांश आय का कराधान भी निवेश निर्णयों में परिवर्तन लाता है। कोई कंपनी अपने अंशधारकों को लाभांश चुकाने अथवा अपना लाभ भावी निवेशार्थ रख लेने का विकल्प चुन सकती है। पूर्ववर्ती मेंलाभांश पर कर अनुप्रयोज्य होगा। तथापियदि पूँजीगत लाभ पर कोई समतुल्य कर नहीं है (यथाकिसी कंपनी के शेयर खरीदने और बेचने से लाभ पर कर) तो कंपनी लाभांश न चुकाने का विकल्प चुन सकती है और निवेशक को उच्चतर पूँजीगत लाभों से लाभांवित होने दे सकती है। ऐसे परिणामों का सामना करने के लिए ही आयकर नियम निवेशकों के ऐसे प्रचुरोभवन कर के अधीन ले आते हैं।

 

3 परोक्ष करों का प्रभाव

 

  • वस्तुओं या जिंसों पर करारोपण (यथावस्तु का दाम बढ़ाकर) किसी वस्तु विशेष की माँग में गिरावट ला सकता है। इस प्रभाव की व्याप्ति कीमत के लिहाज से माँग के लोच पर निर्भर करेगी। विभिन्न जिंसों पर एकसमान कर व्यापक रूप से भिन्न-भिन्न प्रभावों में परिणत हो सकता है। ऐसे आंशिक संतुलन दृष्टिकोण अपनाते हुए चित्र 10.2 किसी कर का उपभुक्त जिंस की कीमत एवं उसकी मात्रा पर प्रभाव दर्शाता है। यह चित्र इस तथ्य को उजागर करता है कि कीमत में समस्त वृद्धि उपभोक्ता पर नहीं डाली जा सकती।

 

  • अतःपरिणाम माँग में लघुतर ह्रास और कीमत में लघुतर वृद्धि ही होगा। आरंभिक संतुलन कीमत पर थापरंतु कर लगाए जाने के बाद नयी मूल्य पर पहुँच जाती हैजो कि 'करोपरांत कीमत से कम है। यदि हम किसी सामान्य कीमत संतुलन प्राधार का प्रयोग करें तो माँग में परिवर्तन न सिर्फ उस वस्तु के लिए होगा जिसके लिए कर उद्ग्रहण किया गया हैबल्कि कई अन्य वस्तुओं के लिए भी होगा। उदाहरण के लिएकिसी प्रतिस्थायी वस्तु हेतु बढ़ सकती है जबकि माँग किसी संपूरक वस्तु के लिए घट माँग सकती है।

श्रम पर प्रत्यक्ष करों का प्रभाव


  • यह ज्ञात होने पर कि कर अर्थव्यवस्था और आर्थिक अभिकर्ताओं पर व्यापक प्रभाव डालते हैंकिसी भी सरकार के उद्देश्यों में एक करों को इस भाँति अभिकल्पित करना होना चाहिए कि वे सामाजिक क्षेम को अधिकतम करें। इस प्रकार का एक इष्टतम कराधान रामसे के जिंस कराधान निर्भेय (1927) का विस्तार हैजिसमें समस्या यह थी कि राजस्व उपयुक्तता के अनुरूप लोगों के समरूप समुदाय पर वस्तु कर कैसे निर्धारित किए जाएँरामसे का तर्क था कि यह समस्या हल की जा सकती है यदि जिंसों पर उद्ग्रहण किया जाने वाला कर माँग की लोच के विलोमानुपाती हो। 


  • चूँकि रामसे लोगों को एक-सा ही मानकर चल रहे थे वितरणात्मक प्रश्न सामने नहीं आए। परवर्ती सहयोगियों [जैसे- डायमण्ड एवं मिर्लीस (1971), एटकिन्सन एवं स्टीग्लिट्ज़ (1976, 1980)] ने समरूप जनसमुदाय संबंधी रामसे की अवधारणा को कुछ शिथिल किया । वितरणात्मक प्रभाव तब सुस्पष्ट हो गए और विलास वस्तुओं पर अधिक कर वसूले गए और अनिवार्य वस्तुओं पर कम इसके अलावाउनका तर्क यह भी था कि यदि थोपा गया कर एकमुश्त कर हो तो उसे भिन्न-भिन्न प्रकारों अथवा विवरणात्मक पहलुओं विषयक किसी भी अवधारणा की आवश्यकता नहीं होगी।

    

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