उपभोक्ता संरक्षण का महत्व । उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019। Importance of consumer protection

उपभोक्ता संरक्षण का महत्व 

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 

उपभोक्ता संरक्षण का महत्व । उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019। Importance of consumer protection



उपभोक्ता संरक्षण का महत्व Importance of consumer protection

 

  • उपभोक्ता संरक्षण की संकल्पना उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना है। यह उपभोक्ताओं को व्यवसायों के ( अनैतिक अनाचारों से बचाने के उपायों को अपनाता है और निम्नलिखित के संबंध में उनकी शिकायतों का त्वरित निवारण करता है. 

 

1. मिलावटी सामानों की बिक्री, जैसे कि बेचे जा रहे उत्पाद में घटिया पदार्थ मिलाना। 

2. नकली वस्तुओं की बिक्री, जैसे वास्तविक उत्पाद से कम मूल्य का उत्पाद बेचना। 

3. घटिया वस्तुओं की बिक्री, जैसे कि उन उत्पादों की बिक्री जो निर्धारित गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं करते है। 

4. असली जैसे दिखने वाले नकली माल की बिक्री। 

5. तोल और माप में हेरफेर करना, जिससे उत्पादों का भार कम हो जाता है। 

6. कालाबाज़ारी और जमाखोरी, जिससे अंततः उत्पाद की कमी हो जाती है और साथ ही उसकी कीमत में वृद्धि हो जाती है। 

7. किसी उत्पाद का अधिक मूल्य लेना, अर्थात्, किसी उत्पाद के अधिकतम खुदरा मूल्य अधिक पैसे वसूल करना।  

8. दोषपूर्ण माल की आपूर्ति से 

9. ऐसे विज्ञापन, जो भ्रामक होते हैं, अर्थात् जो किसी उत्पाद या सेवा का झूठा दावा करते हैं, जिसे वास्तव में बेहतर गुणवत्ता नहीं होने पर भी, उत्कृष्ट ग्रेड या मानक वाला दिखाया जाता है। 

10. घटिया सेवाएँ देना, अर्थात सेवा की गुणवत्ता से तय शर्त से कम।

 

उपभोक्ताओं के दृष्टिकोण से उपभोक्ता संरक्षण

 

उपभोक्ताओं के दृष्टिकोण से उपभोक्ता संरक्षण के महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है

 

(i) उपभोक्ता की अनभिज्ञता- 

  • क्योंकि उपभोक्ताओं में उनके अधिकारों और उनके लिए उपलब्ध राहत के बारे में व्यापक अज्ञानता है, इस दृष्टि से उपभोक्ता जागरूकता पाने के लिए उन्हें शिक्षित करना आवश्यक है।

 

(ii) असंगठित उपभोक्ता-

  • उपभोक्ताओं को उपभोक्ता संगठनों के रूप में संगठित होने की आवश्यकता है जो उनके हितों का ध्यान रखेंगे। हालांकि, भारत में, हमारे पास उपभोक्ता संगठन हैं जो इस दिशा में काम कर रहे हैं, फिर भी उपभोक्ताओं को पर्याप्त सुरक्षा देने की आवश्यकता है, जब तक कि ये संगठन उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा और बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली नहीं बन जाते।

 

(iii) उपभोक्ताओं का व्यापक शोषण- 

  • दोषपूर्ण और असुरक्षित उत्पादों, मिलावट, झूठे और भ्रामक विज्ञापन, जमाखोरी, काला बाजारी, आदि जैसी अनैतिक, शोषणकारी और अनुचित व्यापार पद्धतियों के द्वारा उपभोक्ताओं का शोषण किया जा सकता है। 


उपभोक्ताओं को विक्रेताओं के इस तरह के दुराचारों के खिलाफ संरक्षण की आवशयकता होती है। 

 

व्यवसाय के दृष्टिकोण से उपभोक्ता संरक्षण के महत्त्व को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है-

 

(i) व्यवसाय का दीर्घकालिक लाभ जानकार 

  • व्यवसायी समझते हैं कि अपने ग्राहकों को संतुष्ट करना उनके दीर्घकालिक हित में है। संतुष्ट ग्राहक न केवल बार-बार बिक्री करवाते हैं, बल्कि भावी ग्राहकों को अच्छा फीडबैक भी देते हैं और इस प्रकार, व्यवसाय के ग्राहक आधार को बढ़ाने में - मदद करते हैं। इस प्रकार, व्यासायिक फर्मों को ग्राहक संतुष्टि के माध्यम से दीर्घकालिक लाभ को अधिकतम करने का लक्ष्य रखना चाहिए।

 

(ii) व्यवसाय समाज के संसाधनों का उपयोग करता है

  • व्यावसायिक संगठन उन संसाधनों का उपयोग करते हैं जो समाज के हैं। इस प्रकार, उनके पास ऐसे उत्पादों की आपूर्ति करने और ऐसी सेवाएँ देने का उत्तरदायित्व है जो सार्वजनिक हित में हैं और उन पर जनता के विश्वास को कम नहीं होने देंगे।

 

(iii) सामाजिक उत्तरदायित्व 

  • एक व्यवसाय के विभिन्न हितकारी समूहों के प्रति सामाजिक उत्तरदायित्व होते हैं। व्यावसायिक संगठन उपभोक्ताओं को माल बेचकर और सेवाएँ उपलब्ध कराकर पैसा कमाते हैं। इस प्रकार, उपभोक्ता व्यवसाय के कई हितधारकों के बीच एक महत्त्वपूर्ण समूह बनाते हैं और अन्य हितधारकों की तरह, उनकी रुचि का अच्छी तरह से ध्यान रखना पड़ता है।

 

(iv) नैतिक औचित्य- 

  • किसी भी व्यवसाय का नैतिक कर्तव्य है कि वह उपभोक्ता के हितों का ध्यान रखे और उनके शोषण के किसी भी रूप से बचे। इस प्रकार, एक व्यवसाय को दोषपूर्ण और असुरक्षित उत्पादों, मिलावट, झूठे और भ्रामक विज्ञापनों, जमाखोरी, कालाबाजारी, आदि जैसे अनैतिक, शोषणकारी और अनुचित व्यापारिक पद्धतियों से बचना चाहिए।

 

(v) सरकारी हस्तक्षेप 

  • किसी भी रूप में शोषक व्यापार पद्धतियों में लिप्त व्यवसाय सरकारी हस्तक्षेप या कार्रवाई को आमंत्रित करेगा। इससे कंपनी की छवि क्षीण और धूमिल हो सकती है। इसलिए, बुद्धिमानी इसी में है कि व्यावसायिक संगठन स्वेच्छा से ऐसी पद्धतियों को अपनाएँ, जहाँ ग्राहकों की आवश्यकताओं और हितों का भली भांति ध्यान रखा जाता है।

 

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019

 

  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 उपभोक्ताओं की शिकायतों का त्वरित और सस्ते तरीके से निवारण करके उनके हितों की रक्षा करने और बढ़ावा देने का प्रयास करता है। यह पूरे भारत में मान्य है। यह सभी प्रकार के व्यवसायों पर लागू होता है चाहे एक निर्माता या एक व्यापारी हो और चाहे ई-कॉमर्स फर्मों सहित माल की आपूर्ति करने वाला या सेवाएँ देनेवाला हो। यह अधिनियम उपभोक्ताओं को सशक्त बनाने और उनके हितों की रक्षा करने की दृष्टि से उन्हें कुछ अधिकार प्रदान करता है।

 

उपभोक्ता कौन है ?

 

  • एक 'उपभोक्ता' को आमतौर पर किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में समझा जाता है जो सामान का उपयोग या उपभोग करता है या किसी सेवा को काम में लेता है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के अंतर्गत, एक उपभोक्ता वह व्यक्ति होता है जो किसी सामान को खरीदता है या सेवाएँ प्राप्त करता है, जिसका भुगतान किया गया है या भुगतान करने का वादा किया गया है, या आंशिक रूप से भुगतान किया गया है या आंशिक रूप से भुगतान करने का वादा किया गया है, या किसी योजना के अंतर्गत भुगतान को टाल दिया गया है। 
  • इसमें इस तरह के सामान या सेवाओं के लाभार्थी का कोई भी उपयोगकर्ता शामिल है यदि ऐसा उपयोग खरीदार की स्वीकृति के साथ किया जाता है। यह इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से या टेलीशॉपिंग या सीधी बिक्री या मल्टीलेवल मार्केटिंग के माध्यम से। 

उपभोक्ता अधिकार

 

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 उपभोक्ताओं के छह अधिकारों का प्रावधान करता है। इन अधिकारों में निम्नलिखित शामिल हैं

 

1. सुरक्षा का अधिकार 

  • उपभोक्ता को उन वस्तुओं और सेवाओं के प्रति सुरक्षित होने का अधिकार है जो जीवन, स्वास्थ्य और संपत्ति के लिए खतरनाक हैं। उदाहरण के लिए, बिजली के उपकरण जो घटिया उत्पादों के साथ निर्मित होते हैं या सुरक्षा मानदंडों के अनुरूप नहीं होते हैं, उनसे गंभीर चोट लग सकती है। इस प्रकार, उपभोक्ताओं को शिक्षित किया जाता है कि वे उन बिजली के उपकरणों का उपयोग करें जो आईएसआई चिह्नित  करने का हैं क्योंकि यह ऐसे उत्पादों गुणवत्ता के विशेष विवरणों को आश्वासन होगा।

 

2. सूचित किए जाने का अधिकार-


  • उपभोक्ता को उस उत्पाद के बारे में पूरी जानकारी पाने का अधिकार है जिसे वह खरीदने का इरादा रखता है। इसमें उत्पाद के संघटक, निर्माण की तिथि, मूल्य, मात्रा, उपयोग के लिए निर्देश, आदि शामिल होते हैं। यह इस कारण से है कि कानूनी ढाँचे में भारत में निर्माताओं को उत्पाद के पैकेज और लेबल पर ऐसी जानकारी आवश्यक रूप से देनी पड़ती है।

 

3. आश्वस्त होने का अधिकार- 

  • उपभोक्ता को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर विभिन्न प्रकार के उत्पाद पाने उ की स्वतंत्रता है। इसका तात्पर्य यह है कि विक्रेताओं को गुणवत्ता, , ब्रांड, कीमतों, साइज़ आदि के संदर्भ में कई तरह के उत्पाद प्रस्तुत करने चाहिए और उपभोक्ता को इनमें से चुनाव करने का विकल्प देना चाहिए।

 

4. सुनवाई का अधिकार- 

  • उपभोक्ता को किसी वस्तु या सेवा से असंतोष के मामले में शिकायत दर्ज करने और सुनवाई का अधिकार है। इस कारण से कई प्रबुद्ध व्यावसायिक फर्मों ने अपने उपभोक्ता सेवा और शिकायत प्रकोष्ठ स्थापित किए हैं। कई उपभोक्ता संगठन भी इस दिशा में काम कर रहे हैं और उपभोक्ताओं को उनकी शिकायतों के निवारण में मदद कर रहे हैं।

 

5. निवारण पाने का अधिकार

  • उपभोक्ता को यह अधिकार है कि यदि उत्पाद या सेवा में उसकी अपेक्षाओं की तुलना में कमी रहती है तो उसे अनुचित व्यापार पद्धति की प्रतिबंधी व्यापार पद्धतियों या अनैतिक शोषण के खिलाफ राहत पाने का अधिकार है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 में उत्पाद को बदलने, उत्पाद में दोष को दूर कराने, उपभोक्ता किसी भी हानि या चोट के लिए क्षतिपूर्ति के भुगतान, आदि सहित उपभोक्ताओं को निवारण उपलब्ध कराने का प्रावधान है।
  • ऑफ़लाइन और ऑनलाइन लेनदेनदोनों पर लागू होता है। परंतुकोई भी व्यक्ति जो पुनर्विक्रय या वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए सामान या सेवाएँ प्राप्त करता हैउसे उपभोक्ता नहीं माना जाता है और वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के दायरे से बाहर होता है।

 


6. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार- 

  • उपभोक्ता को ज्ञान प्राप्त करने और जीवन भर एक अच्छा जानकार उपभोक्ता होने का अधिकार है। उसे किसी उत्पाद या सेवा के उसकी अपेक्षा से कम होने की स्थिति में अपने अधिकारों और उपलब्ध राहतों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। कई उपभोक्ता संगठन और कुछ ज्ञानसम्पन्न व्यवसाय इस संबंध में उपभोक्ताओं को शिक्षित करने में सक्रिय भाग ले रहे हैं।

 

उपभोक्ता के उत्तरदायित्व

 

  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ता को विक्रेताओं द्वारा अपनाई गई किसी भी अनैतिक,शोषक और अनुचित, प्रतिबंधी व्यापार पद्धतियों के विरुद्ध लड़ने का अधिकार देता है। उपभोक्ता अधिकार अपने आप उपभोक्ता संरक्षण के उद्देश्य को प्राप्त करने में प्रभावी नहीं हो सकते। उपभोक्ता संरक्षण वास्तव तभी प्राप्त किया जा सकता है जब उपभोक्ता भी अपने उत्तरदायित्वों को समझते हैं।

 

एक उपभोक्ता को वस्तुओं और सेवाओं की खरीद, उपयोग और उपभोग करते समय निम्नलिखित उत्तरदायित्वों को ध्यान में रखना चाहिए

 

(i) बाजार में उपलब्ध विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के बारे में जागरूक रहें ताकि एक बुद्धिसंगत और विवेकी विकल्प अपनाया जा सके।

 

(ii) केवल मानकीकृत सामान खरीदें, क्योंकि वे गुणवत्ता का आश्वासन देते हैं। इस प्रकार, बिजली के सामानों पर आईएसआई मार्क, खाद्य उत्पादों पर एफपीओ मार्क, गहनों पर ( हॉलमार्क, आदि को देखें।

 

(iii) उत्पादों और सेवाओं से जुड़े जोखिमों के बारे में जानें, निर्माता के निर्देशों का पालन करें और उत्पादों का सुरक्षित उपयोग करें।

 

(iv) लेबल को ध्यान से पढ़ें ताकि कीमतों, कुल भार, बनने और उपयोग समाप्ति की तारीखों आदि के बारे में जानकारी हो सके।

 

(v) यह सुनिश्चित करने के लिए ज़ोर दें कि आपका सौदा संतोषजनक रहे।

 

(vi) अपने लेन-देन में ईमानदार रहें। केवल वैध वस्तुओं और सेवाओं को चुनें और कालाबाज़ारी, जमाखोरी आदि जैसी अनैतिक पद्धतियों को हतोत्साहित करें।

 

(vii) वस्तुओं या सेवाओं की खरीद पर नकद मेमो देने के लिए कहें। यह खरीद के प्रमाण के रूप में कार्य करेगा।

 

(viii) खरीदे गए सामान या सेवाओं की गुणवत्ता में कमी के मामले में एक उपयुक्त उपभोक्ता मंच में शिकायत दर्ज कराएँ। इसकी राशि के कम होने पर भी कार्रवाई करें।

 

(ix) उपभोक्ता समितियाँ बनाएँ जो उपभोक्ताओं को शिक्षित करने और उनके हितों की सुरक्षा में एक सक्रिय भूमिका निभाएँगी। 

 

(x) पर्यावरण का सम्मान करें। अपशिष्ट, कूड़ा कचरा फैलाने और से बचें। भूषण को बढ़ाने

 

उपभोक्ता संरक्षण के तरीके और साधन

 

अपने अधिकारों और उत्तरदायित्वों के बारे में उपभोक्ताओं की जागरूकता सिर्फ एक तरीका है जिससे उपभोक्ता संरक्षण के उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है। ऐसे अन्य तरीके हैं जिनसे यह उद्देश्य प्राप्त किया जा सकता है, जो इस प्रकार हैं

 

1. व्यवसाय द्वारा स्व नियमन -

  • सामाजिक रूप से उत्तरदायी फर्म अपने ग्राहकों के साथ लेन-देन करने में नैतिक मानकों और पद्धतियों का पालन करती हैं। अच्छी और नैतिक पद्धतियाँ फर्मों को यह अनुभव करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं कि ग्राहकों को सही तरीके से सेवा देना उनके दीर्घकालिक हित में है। कई फर्मों ने अपने उपभोक्ताओं की समस्याओं और शिकायतों के निवारण के लिए अपने ग्राहक सेवा और शिकायत प्रकोष्ठ स्थापित किए हैं।

 

2. व्यापार संघ- 

  • फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स (FICCI) और भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) जैसे व्यापार, वाणिज्य और व्यवसाय संघों ने अपनी आचार संहिता को निर्धारित किया है, जो ग्राहकों के साथ उनके लेन-देन में उनके सदस्यों के लिए मार्गदर्शन निर्धारित करता है।

 

3. उपभोक्ता जागरुकता -

  • एक उपभोक्ता, जिसे अपने अधिकारों और उसके लिए उपलब्ध राहतों के बारे में अच्छी तरह से जानकारी है, वह किसी भी अनुचित व्यापार पद्धतियों या अनैतिक शोषण के खिलाफ अपनी आवाज उठाने की स्थिति में होगा। इसके अलावा, उपभोक्ता की उत्तरदायित्वों की अपनी समझ भी उसे अपने हितों की रक्षा करने में सक्षम बनाएगी। इस संबंध में, उपभोक्ता मामलों का विभाग (भारत सरकार), उपभोक्ताओं में जागरूकता पैदा करने के लिए 'जागो ग्राहक जागो' अभियान चला रहा है।

 

4. उपभोक्ता संगठन 

  • संगठनउपभोक्ता संगठन उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करने और उन्हें सुरक्षा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये संगठन व्यावसायिक फर्मों को गलत पद्धतियाँ न अपनाने और उपभोक्ताओं का शोषण न करने के लिए विवश कर सकते हैं।

 

5. सरकार – 

  • सरकार विभिन्न उपायों के लिए अधिनियम बनाकर उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा कर सकती है। उदाहरण के लिए, भारत सरकार ने इस उद्देश्य के लिए एक टोल फ्री राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन नंबर 1800114000 दिया है। भारत में कानूनी ढाँचा उपभोक्ताओं को सुरक्षा प्रदान करने वाले विभिन्न कानूनों को शामिल करता है। इन विनियमों में सबसे महत्त्वपूर्ण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 है। 
  • अधिनियम उपभोक्ताओं के अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित व्यापार पद्धतियों और झूठे या भ्रामक विज्ञापनों, जो उपभोक्ताओं के हितों के प्रतिकूल होते हैं, से संबंधित मामलों को विनियमित करने के लिए एक केंद्रीय प्राधिकरण प्रदान करता है। इसे केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) के रूप में जाना जाता है। उपभोक्ता शिकायतों के निवारण के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर त्रि-स्तरीय मशीनरी है।

 

उपभोक्ता संरक्षण के अंतर्गत निवारण अभिकरण / ऐजेंसियाँ

 

  • उपभोक्ता की शिकायतों के निवारण के लिए, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 में जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर एक त्रिस्तरीय प्रवर्तन मशीनरी स्थापित करने का प्रावधान है, जिसे जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग कहा जाता है। उन्हें संक्षेप में क्रमश: 'जिला आयोग’, ‘राज्य आयोग' और 'राष्ट्रीय आयोग' के रूप में जाना जाता है। जबकि राष्ट्रीय आयोग की स्थापना केंद्र सरकार द्वारा की जाती है, राज्य आयोगों और जिला आयोगों की स्थापना राज्य सरकार द्वारा की जाती है।

 

आइए अब देखते हैं कि त्रिस्तरीय मशीनरी द्वारा उपभोक्ता शिकायतों का निवारण कैसे किया जाता है-

 

1. जिला आयोग- 

  • जिला आयोग के पास उन शिकायतों पर विचार करने का क्षेत्राधिकार है जहाँ विचाराधीन वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य को एक करोड़ रुपये से अधिक नहीं माना जाता है। पहली सुनवाई पर या बाद में, यदि जिला आयोग को लगता है कि समझौता हो सकता है, जो दोनों पक्षों को स्वीकार हो, तो वह उन्हें पाँच दिनों के भीतर मध्यस्थता के माध्यम से विवाद के निपटारे के लिए अपनी-अपनी सहमति देने का निर्देश दे सकता है। 
  • यदि पक्ष मध्यस्थता से निपटारे के लिए सहमत होते हैं और लिखित सहम देते हैं, तो जिला आयोग मध्यस्थता के लिए मामले को संदर्भित करता है और मध्यस्थता से संबंधित प्रावधान लागू होंगे। परंतु, मध्यस्थता द्वारा निपटारे की विफलता की स्थिति में मामला शिकायत के साथ आगे बढ़ता है। 
  • यदि शिकायत माल में दोष का आरोप लगाती है जिसे माल के उचित विश्लेषण या परीक्षण के बिना निर्धारित नहीं किया जा सकता है, तो आयोग माल का नमूना प्राप्त करता है, इसे सील करता है और विश्लेषण के लिए उपयुक्त प्राधिकारी को भेज देता है। 
  • सेवाओं के मामले में, शिकायतकर्ता द्वारा उनके नोटिस में लाए गए सबूतों के आधार पर विवाद का निपटारा किया जाता है और निपटारे के लिए सेवा प्रदाता से किसी आवश्यक जानकारी के दस्तावेज या रिकॉर्ड माँगे जा सकते हैं।

 

  • यदि जिला आयोग के आदेश से कोई भी पक्ष संतुष्ट नहीं है तो वह आदेश की तारीख से पैंतालीस दिनों के भीतर तथ्यों या कानून के आधार पर राज्य आयोग को ऐसे आदेश के खिलाफ अपील कर सकता है।

 

2. राज्य आयोग- 

  • यह संबंधित राज्य सरकार द्वारा स्थापित किया गया है और आमतौर पर राज्य की राजधानी में कार्य करता है। राज्य आयोग के पास उन शिकायतों पर विचार करने का क्षेत्राधिकार है जहाँ विचाराधीन वस्तुओं और दी गई सेवाओं का मूल्य = एक करोड़ से अधिक है, लेकिन दस करोड़ रुपये से अधिक नहीं है। यदि राज्य आयोग के आदेश से कोई भी पक्ष संतुष्ट नहीं है तो वह ऐसे आदेश के तीस दिनों की अवधि के भीतर राष्ट्रीय आयोग को इस तरह के देश के खिलाफ अपील कर सकता है।

 

राष्ट्रीय आयोग- 

  • राष्ट्रीय आयोग का पूरे देश पर क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार है। राष्ट्रीय आयोग के पास उन शिकायतों पर विचार करने का क्षेत्राधिकार है, जहाँ विचार के रूप में भुगतान की गई वस्तुओं या सेवाओं का मूल्य दस करोड़ रुपये से अधिक है। यदि राष्ट्रीय आयोग के आदेश से कोई भी पक्ष संतुष्ट नहीं है, तो वह ऐसे आदेश के तीस दिनों की अवधि के भीतर भारत के सर्वोच्च न्यायालय में इस तरह के आदेश के खिलाफ अपील कर सकता है।

 

उपभोक्ता फोरम उपलब्ध राहत

 

यदि जिला या राज्य या राष्ट्रीय आयोग माल में दोष, या किसी अनुचित व्यापार पद्धति में सेवाओं में कमी या उत्पाद दायित्व के अंतर्गत क्षतिपूर्ति के लिए दावा करने से संतुष्ट हो, तो वहाँ एक आदेश जारी करता है-

 

(i) माल में दोष या सेवा में कमी को करने के लिए। 

(ii) दोषपूर्ण उत्पाद के स्थान पर नया दोष-मुक्त उत्पाद देने के लिए। 

(iii) उत्पाद के लिए भुगतान की गई कीमत या सेवा के लिए दिए गए शुल्क को वापस करने के लिए। 

(iv) विरोधी पक्ष की लापरवाही के कारण उपभोक्ता को हुए किसी भी नुकसान या चोट के लिए उचित मात्रा में क्षतिपूर्ति-राशि का भुगतान करने के लिए। 

(v) उपयुक्त परिस्थितियों में दंडात्मक हर्जाना देने 

(vi) अनुचित प्रतिबंधी व्यापार पद्धति को बंद करने और भविष्य में इसे न दोहराने के लिए। 

(vii) बिक्री के लिए खतरनाक वस्तुओं को नहीं देने के लिए | 

(viii) बिक्री से खत के लिए। नाक वस्तुओं को वापस लेने।  

(ix) खतरनाक वस्तुओं के निर्माण को रोकने और खतरनाक सेवाएँ देने से रोकने के लिए। 

(x) उत्पाद दायित्व कार्रवाई के अंतर्गत उपभोक्ता को होने वाली किसी भी हानि या चोट के लिए क्षतिपूर्ति करने और खतरनाक उत्पादों को बिक्री आदि किए जाने से रोकने के लिए।

 

परंतु जिला आयोग, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग के प्रत्येक आदेश को अंतिम माना जाता है, यदि विवाद में शामिल किसी भी पक्ष द्वारा इस तरह के आदेश के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जाती है।

 

उपभोक्ता संगठनों और गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका

 

भारत में, उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण और के लिए कई उपभोक्ता संगठन और संगठन स्थापित किए गए हैं। गैर संगठन गैर-लाभकारी संगठन हैं जिनका उद्देश्य लोगों के कल्याण को बढ़ावा देना है। उनका अपना संविधान होता है और वे सरकार के हस्तक्षेप से मुक्त होते हैं। उपभोक्ता संगठन और गैर-सरकारी संगठन उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण और संवर्धन के लिए कई कार्य करते हैं। इनमें शामिल है -

 

(i) प्रशिक्षण कार्यक्रमों, संगोष्ठियों और कार्यशालाओं का आयोजन करके उपभोक्ता अधिकारों के बारे में आम जनता को शिक्षित करना ।

 

(ii) उपभोक्ता समस्याओं, कानूनी रिपोर्टिंग, उपलब्ध राहत और हित के अन्य मामलों के बारे में ज्ञान देने के लिए आवधिक-पत्रिकाओं और अन्य प्रकाशनों का प्रकाशन करना।

 

(iii) प्रतिस्पर्धी ब्रांडों के सापेक्ष गुणों का परीक्षण करने के लिए अधिकृत प्रयोगशालाओं में उपभोक्ता उत्पादों के तुलनात्मक परीक्षण करवाना और उपभोक्ताओं के लाभ के लिए परीक्षण परिणामों को प्रकाशित करना।

 

(iv) उपभोक्ताओं को विक्रेताओं के अनैतिक, शोषणकारी और अनुचित व्यापार पद्धतियों का दृढ़ता से विरोध करने और इनके विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित करना।

(v) कानूनी उपाय प्राप्त करने के लिए सहायता, कानूनी सलाह आदि देकर उपभोक्ताओं को कानूनी सहायता उपलब्ध कराना। 

(vi) उपभोक्ताओं की ओर से उपयुक्त उपभोक्ता न्यायालयों में शिकायत दर्ज करना। 

(vii) उपभोक्ता अदालतों में किसी व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि आम जनता के हित में शिकायत दायर करना।

 

उपभोक्ता फोरम शब्द और परिभाषाएँ

 

1. शिकायत 

  • प्रतिबंधी व्यापार पद्धतिवस्तुओं में दोष या उपलब्ध कराई गई सेवाओं में कमीअधिक दाम लेना या - जीवन और सुरक्षा के लिए हानिकारक वस्तु या सेवा देने के संदर्भ में राहत प्राप्त करने के लिए शिकायतकर्ता द्वारा लिखित में लगाया गया कोई आरोप |

 

2. शिकायतकर्ता 

  • एक या अधिक उपभोक्ताया किसी स्वैच्छिक उपभोक्ता संघकेंद्र या राज्य सरकार या केंद्रीय - प्राधिकरण या कानूनी उत्तराधिकारी या कानूनी प्रतिनिधि या नाबालिग के मामले में माता-पिता या कानूनी प्रतिनिधि।


 3. नकली समान 

  •  जिन सामानों पर असली होने का झूठा दावा किया जाता है।

 

4. अनुचित व्यापार पद्धति 

  • किसी भी सामान या सेवा की बिक्रीउपयोग या आपूर्ति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक व्यापार पद्धति जो उसकी गुणवत्तामानकमात्रासंरचनाशैली या मॉडल को गलत रूप से दर्शाती है।

 

5. प्रतिबंधी व्यापार पद्धति 

  • एक व्यापार पद्धति जो वस्तुओं और सेवाओं से संबंधित दाम में इस प्रकार चाल करती है या बाजार में आपूर्ति के प्रवाह को प्रभावित करती है कि उपभोक्ता से एक अनुचित कीमत वसूल की जाती है। 


6. दोष – 

  • वस्तु या उत्पाद के संबंध में अपर्याप्तता। वत्ताप्रकृति और कार्य करने के तरीके में कोई त्रुटिअपूर्णताकमी या

 

7. कमी 

  • किसी भी सेवा के संबंध में गुणवत्ताप्रकृति और प्रदर्शन के तरीके में कोई दोषअपूर्णताकमी या अपर्याप्तता - और इसमें लापरवाही या चूक या कमीशन या संबंधित जानकारी को रोकना शामिल है जो उपभोक्ता को हानि या चोट पहुँचाता है।

 

8. चोट -

  • शरीरमन या संपत्ति में किसी व्यक्ति को अवैध रूप से पहुँचाई गई कोई हानि।

 

9. उत्पाद - 

  • किसी वस्तु या सामान या पदार्थ या कच्चे माल या ऐसे उत्पाद का कोई विस्तारित चक्र जो या तो गैसीयतरल या ठोस अवस्था में होजिसका वितरण में सक्षम आंतरिक मूल्य होइसे व्यापार के लिए या तो जोड़कर-निर्मित या संघटक के रूप में उत्पादित किया गया हो। इसमें मानव ऊतकरक्तरक्त उत्पाद और अंग शामिल नहीं हैं।

 

10. उत्पाद विक्रेता- 

  • कोई भी व्यक्ति जो व्यवसाय की प्रक्रिया में आयात करता हैबिक्री करता हैवितरण करता हैपट्टे पर देता हैस्थापित करता हैबनाता हैलेबल लगाता हैविपणन करता हैमरम्मत करता हैरखरखाव करता है या अन्यथा उत्पाद को वाणिज्यिक उपयोग के लिए रखने में शामिल होता है या सेवा प्रदाता।

 

11. उत्पाद दायित्व 

  • किसी भी उत्पाद निर्माता या किसी उत्पाद या सेवा के विक्रेता की किसी उपभोक्ता को निर्मित या बेचे गए दोषपूर्ण उत्पाद या सेवाओं में कमी के कारण होने वाली किसी भी क्षति के लिए भरपाई करने की ज़िम्मेदारी होती है।


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