निर्यात- आयात नीति 2009-14 |Export-Import Policy 2009-14 in Hindi

निर्यात- आयात नीति 2009-14

निर्यात- आयात नीति 2009-14 |Export-Import Policy 2009-14 in Hindi


 

निर्यात- आयात नीति 2009-14

  • 2009-14 की अवधि के लिए दीर्घकालीन निर्यात आयात नीति की घोषणा 7 अगस्त, 2009 को की गयी थी। यह नीति निर्यातों में अप्रत्याशित संकुचलनिर्यातकों के लिए कर वापसीअपेक्षाकृत कम लेन-देन लागतोंबेहतर आधारभूत ढाँचे के आश्वासन की पृष्ठभूमि में निर्मित की गयी थी। परंपरागत किंतु मंदी पीड़ित यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका के बाजार के बजाय लैटिन अमेरिकाओशीनिया एवं अफ्रीका के नये बाजारों को अधिक वस्तुएँ एवं सेवाएँ निर्यात करने की विस्तृत रणनीति इस नीति की कुछ विशेष बातें हैं।

 

निर्यात- आयात नीति 2009-14 के उद्देश्य

 

  • नीति का अल्पकालीन उद्देश्य निर्यातों में घटती हुई प्रवृत्ति को रोकना एवं उसे विपरीत करना तथा विशेष रूप से उन क्षेत्रों को अतिरिक्त समर्थन प्रदान करना था जो विकसित विश्व में मंदी के कारण बुरी तरह से पीड़ित हुए हैं। स्थिति को देखते हुए नीति का उद्देश्य $200 बिलियन के वार्षिक निर्यात लक्ष्य के साथ 15 प्रतिशत वार्षिक निर्यात वृद्धि प्राप्त करना है।

 

सरकार यह आशा करती है कि देश पुनः लगभग 25 प्रतिशत वार्षिक की ऊँची निर्यात वृद्धि मार्ग पर वापस आयेगा तथा वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यातों को 2014 तक दुगुना कर देगा। दीर्घकाल में नीति का उद्देश्य 2020 तक विश्व के व्यापार में भारत के अंश को दुगुना करना है जो 2008 तक 1.64 प्रतिशत रहा। नीति के अन्य दीर्घकालीन उद्देश्य निम्न थे :

 

निर्यात- आयात नीति के अन्य दीर्घकालीन उद्देश्य

  • विस्तृत होते विश्व बाजार अवसरों से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए देश का संक्रमण एक विश्वोन्मुख कंपनशील अर्थव्यवस्था की ओर तीव्र करना
  • उत्पादन में वृद्धि करने के लिए आवश्यक कच्चे मालमध्यवर्ती वस्तुओंपुर्जोउपभोग की जाने वाली वस्तुओं की सुलभता प्रदान करके सतत् आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करना; 
  • भारतीय कृषिउद्योग एवं सेवाओं की तकनीकी शक्ति एवं कार्यकुशलता में वृद्धि करना तथा उसके द्वारा अपनी प्रतिस्पर्धा शक्ति में सुधार करना तथा अंतर्राष्ट्रीय रूप से स्वीकृत गुणवत्ता के मानदंडों को प्रोत्साहित करना; 
  • उपभोक्ताओं को उचित कीमतों पर अच्छी गुणवत्तायुक्त उत्पादों को प्रदान करना


निर्यात- आयात नीति के वृहत् लक्षण

 

बाजार एवं उत्पाद विविधीकरण के लिए समर्थन

 

i) नये उत्पादों एवं बाजारों को जोड़ने के लिए अध्याय 3 के अंतर्गत प्रोत्साहन योजनाएँ विस्तृत कर दी गयी है। संकेंद्रित बाजार योजना (Focus Market Scheme) के अंतर्गत 26 नये बाजार जोड़ दिये गये हैं। इनमें से 16 बाजार लेटिन अमेरिका एवं 10 बाजार एशिया-ओशीनिया के सम्मिलित हैं।

 

ii) संकेंद्रित बाजार योजना (FMS) के अंतर्गत उपलब्ध प्रोत्साहन राशि को 2.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 3 प्रतिशत कर दिया गया है। संकेंद्रित उत्पाद योजना (FPS ) के अंतर्गत उपलब्ध प्रोत्साहन राशि को 1.25 प्रतिशत से बढ़ाकर 2 प्रतिशत कर दिया गया है।

 

ii) बाजार संबद्ध संकेंद्रित उत्पाद योजना (MLFPS) को औषधिकृत्रिम वस्त्रमूल्यवर्धित खड़ एवं प्लास्टिकसिले-सिलाये वस्त्रबुने हुए एवं काँटे से बुनाई किये हुए वस्त्रकांच उत्पादलोहा एवं इस्पात उत्पाद एवं अल्यूमीनियम उत्पादों तक विस्तृत कर दिया गया है।

 

प्रौद्योगिकी उच्चीकरण, EPCG ढील एवं DEPB

 

i) इंजीनियरिंग एवं इलेक्ट्रॉनिक उत्पादोंमूल रसायन एवं औषधिसिले-सिलाये वस्त्र एवं कपड़े प्लास्टिकहस्तशिल्प एवं चमड़ा इत्यादि के लिए शून्य शुल्क पर EPCG योजना। यह TUES एवं प्रतिष्ठा धारक योजना (Status Holder Scheme) जैसी अन्य योजनाओं से वर्तमान में लाभ प्राप्त करने वालों को उपलब्ध नहीं है।

 

i) वर्तमान प्लांट एवं मशीनरी के जीवन में वृद्धि करने के लिए EPCG योजना के अंतर्गत पुर्जोसांचों के आयात पर निर्यात दायित्व को कम करके सामान्य विशिष्ट निर्यात दायित्व के 50 प्रतिशत तक कम कर दिया गया है।

 

iii) निर्यातों में कमी को देखते हुए देश से निर्यात में कमी होने वाले किसी विशिष्ट वित्तीय वर्ष के वार्षिक औसत निर्यात दायित्व के पुनर्निर्धारण की सुविधा को पंचवर्षीय नीति अवधि 2009-14 तक के लिए बढ़ा दिया गया है।

 

iv) निर्यातों में तीव्रता लाने के लिए अतिरिक्त शुल्क साख पर्ची प्रतिष्ठा धारकों को पिछले निर्यातों के FOB मूल्य के 1 प्रतिशत पर्ची की दर से दी जायगी। यह शुल्क साख पर्ची पूँजीगत वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए उपयोग की जा सकती है। यह सुविधा 31 मार्च, 2011 तक उपलब्ध रहेगी।

 

v) यह नीति प्रतिष्ठा धारकों को निर्गमित की जाने वाली शुल्क साख पर्ची के हस्तांतरण की अनुमति प्रदान करती है। यह हस्तांतरण केवल प्रतिष्ठा धारकों को ही किया जा सकता है तथा पर्चियाँ केवल शील श्रृंखला उपकरण प्राप्त करने के लिए ही उपयोग की जा सकती हैं।

 

विदेशी व्यापार नीति की स्थिरता / निरंतरता

 

i) नीति की शासन प्रणाली में स्थिरता लाने के लिए शुल्क अधिकार पास बुक (DEPB) योजना को एक वर्ष के लिए 31 दिसंबर तक विस्तारित किया जा रहा है।7 क्षेत्रों के जहाज से भेजने से पूर्व 2 प्रतिशत ब्याज आर्थिक सहायता को 2009 के बजट में 31 मार्च, 2010 तक के लिए बढ़ा दिया गया है।

 

ii) DEPB दरों के अंतर्गत ईंधन पर सीमा शुल्क संघटक की दलाली भी सम्मिलित होगी जहाँ प्रमापित आगत-निर्गत व्यवस्था में ईंधन को एक उपभोज्य के रूप में अनुमति दी जाती है।

 

iii) बजट 2009-10 के अंतर्गत 100 प्रतिशत निर्यातोन्मुख इकाइयों (EOUs) एवं IT अधिनियम के अंतर्गत STPI को आय कर छूट को वित्तीय वर्ष 2010-11 के लिए बढ़ा दिया गया है।

 

iv) विपरीत रूप से प्रभावित क्षेत्रों को बढ़ा हुआ 95 प्रतिशत का ECGC लाभ प्रदान करने के लिए दिसंबर, 2008 में प्रारंभ की गयी समायोजन सहायता योजना को मार्च, 2010 तक निरंतर बढ़ा दिया गया है। 


निर्यातोन्मुख इकाइयों के लिए सुविधाएँ

 

i) DIA बिक्री के लिए संपूर्ण अधिकार के 50 प्रतिशत के अंतर्गत समान वस्तु मापदंड में परिवर्तन किये बिना निर्यातोन्मुख इकाइयों को वर्तमान 75 प्रतिशत के बजाय उनके द्वारा उत्पादित उत्पादों को DTA में 90 प्रतिशत की सीमा तक बेचने की अनुमति प्रदान कर दी गयी है।

 

ii) सीमा शुल्क क्षेत्र निर्माण को सुस्पष्ट बनाने के लिए आगम विभाग (revenue department ) ग्रेनाइट EOUs द्वारा 5 प्रतिशत से अधिक पुर्जों को प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए एक स्पष्टीकरण निर्गमित करेगा। कुछ निश्चित सुरक्षा की सीमाओं के अंतर्गत EOUs को सुदृढ़ बनाने के लिए निर्मित वस्तुएँ प्राप्त करने की अनुमति प्रदान की जायगी।

 

iii) अनुमोदन मंडल EOUs के विशुद्ध विदेशी विनिमय आय की गणना के उद्देश्य से ब्लाक अवधि के एक वर्ष के विस्तार पर विचार करेगा। EOUs को SAD के संघटक एवं DTA बिक्री पर शिक्षा उप-कर के लिए साख सुविधा की अनुमति प्रदान की जायगी।

 

मूल्यवर्धित विनिर्माण पर जोर

 

  • मूल्यवर्धित निर्मित वस्तुओं के निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए अग्रिम अनुज्ञप्ति योजना के अंतर्गत आयातित आगतों पर कम से कम 15 प्रतिशत मूल्यवर्धन को निश्चित किया गया है। प्रोजेक्ट निर्यात एवं बड़ी संख्या में निर्मित वस्तुओं को FPS एवं MLFPS के अंतर्गत लाया गया है।

 

निर्यातकों को पदत्त लचीलापन

 

i) अग्रिम अनुज्ञाप्ति / DFIA / EPCG अनुज्ञाप्ति के अंतर्गत निर्यात दायित्वों में कमी हो जाने से सीमा शुल्क का भुगतान शुल्क साख पर्ची खाते में देनी (debit) प्रविष्टि द्वारा अनुमति प्रदान की गयी है। पहले भुगतान की अनुमति केवल नकद में होती थी।

 

ii) प्रतिबंधित मदों की पुनः पूर्ति के रूप में आयात की अनुमति हस्तांतरित DFIA, के बदले दी जायगी। USA के संबंध में प्रदर्शनी में भागीदारी के लिए निर्यातित रत्न एवं आभूषण के पुनः आयात की समय सीमा को 60 दिन से बढ़कर 90 दिन कर दिया गया है।

 
कार्य विधियों का सरलीकरण एवं लेन-देन लागतों में कमी

 

i) निर्यातकों द्वारा न्यादर्शों (Samples) के शुल्क-मुक्त आयात को सुविधा प्रदान करने के लिए न्यादर्श / इकाइयों की संख्या को वर्तमान में 15 से बढ़ाकर 50 कर दिया गया है। इस प्रकार के न्यादर्शों का सीमा शुल्क निबटान आयातकर्ताओं द्वारा न्यादर्शों के मूल्य एवं मात्रा के संबंध में दी गयी घोषणाओं पर आधारित होगा।

 

iii) घरेलू मध्यवर्ती विनिर्माता द्वारा (अमान्यता पत्र के बदले) एक अग्रिम अनुराशि धारक को पूर्ति की स्थिति में धनराशि वापसी के बदले उत्पाद शुल्क के भुगतान से दो अवस्थाओं तक छूट को अनुमति प्रदान करना ।

 

ii) प्रोत्साहन राशि की स्वीकृति के लिए अब शुल्क वसूल नहीं किया जायगा। सभी अन्य 18 अनुज्ञाप्तियों के लिए अधिकतम शुल्क को 1,50,000/- रुपये से कम करके 1,00,000/- रुपये की जा रही है तथा (EDI आवेदन पत्रों के लिए) वर्तमान में 75,000/- रुपये से कम करके 50,000/- रुपये किया जा रहा है।

 

निर्यात- आयात नीति 2009-14 का मूल्यांकन

 

निर्यात- आयात नीति 2009-14 के सकारात्मक लक्षण

 

  • विदेश व्यापार नीति तीन ऐसे बड़े स्तंभों की पहचान करती है जो मार्च, 2014 तक वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यातों को दुगुना करने के लिए लक्ष्य को प्राप्त करने में भारत का समर्थन करेंगे। तीन स्तंभ- निर्यातों से संबंधित आधारभूत ढाँचे में सुधारलेन-देन लागतों में कमी करना तथा सभी अप्रत्यक्ष करों एवं अधिभारों पूर्ण राहत प्रदान करना है।

 

  • नीति घोषणापत्र का संपूर्ण दृष्टिकोण कुछ ऐसे निश्चित क्षेत्रों की भेद्यता (Vulnerability) की पहचान करता है जो रोज़गारोन्मुख एवं संवेदनशील हैं। अतः अनेक ऐसे प्रयासों की घोषणा की गयी है जो पुनर्गठित योजनाओं के माध्यम से बढ़ी हुई बाजार पहुँच को सक्षम बनायेंगे। जैसे संकेंद्रित बाजारसंकेंद्रित उत्पाद एवं बाजार संबद्ध संकेंद्रित उत्पाद योजनाएँ ।

 

  • यह ध्यान देने योग्य है कि संकेंद्रित बाजार योजना के अंतर्गत उपलब्ध प्रोत्साहन राशि को आधा प्रतिशत बढ़ाकर 3 प्रतिशत कर दिया गया है तथा संकेंद्रित उत्पाद योजना में प्रोत्साहन राशि 1.25 प्रतिशत से बढ़ाकर 2 प्रतिशत कर दिया गया है। प्रोत्साहन राशि की दरों में इन सीमांत वृद्धि के साथ उनका क्षेत्र अत्यधिक महत्त्वपूर्ण रूप से विस्तृत कर दिया गया है। संकेंद्रित बाजार योजना के अंतर्गत सम्मिलित 26 नये बाजारों में से 16 लैटिन अमेरिका एवं 10 एशिया-ओशीनिया में है जिसमें अपेक्षाकृत अधिक बड़े बाजार सम्मिलित हैं जैसे दक्षिणी अफ्रीकाब्राजील एवं मेक्सिको। यह हमारे निर्यातकों को उन योजनाओं के अंतर्गत लाभों को प्राप्त करने में सक्षम बनायेगी जो अब तक उन्हें नहीं मिलते थे।

 

  • पूँजीगत वस्तुओं के आयात से संबंधित नये नीतिगत प्रयास वास्तव में सामयिक हैं।EPCG योजना भारत के निर्यात वस्तुओं का उत्पादन करने वाले क्षेत्र के उच्चीकरण एवं आधुनिकीकरण में वास्तव में लाभ पहुँचा रही है। पूँजीगत वस्तुओं की शून्य शुल्क पर आयात सुविधा प्राप्त करने की नई प्रोत्साहन राशि तकनीक के उच्चीकरण की प्रक्रिया को तीव्र करने में दीर्घकाल तक बनी रहेगी।

 

  • नीति उन रोजगारोन्मुख क्षेत्रों पर विशेष जोर देगी जिनमें मंदी के कारण रोजगार में कमी हो गयी थीविशेष रूप से कपड़ाचमड़ा एवं हस्तशिल्प के क्षेत्रों में।

 

  • सीमा शुल्क विभाग एवं विदेशी व्यापार के सामान्य निदेशालय (DGET) के बीच इलेक्टॉनिक संदेश विनिमय, DGFT योजनाओं के लिए सीमा शुल्क विभाग द्वारा जहाजी बिलों के दोहरे सत्यापन को रोकना तथा EDI के माध्यम से निर्यात संवर्धन परिषदों RCMC को प्रमाणपत्र निर्गमित करने के लिए प्रोत्साहन स्वागत योग्य कदम हैं।

 

  • यद्यपि बाजार विकास एवं प्रोत्साहन योजनाओं के लिए बढ़े हुए लाभ निर्यातक समुदाय को नये निर्यात गंतव्य स्थान की खोज करने में सक्षम बनायेंगेशून्य शुल्क EPCG लाभ एवं अनेक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के प्रतिष्ठा धारकों के लिए 1 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क साख जैसे प्रौद्योगिकी उच्चीकरण के प्रोत्साहन भारत की प्रतिस्पर्धाशक्ति की वृद्धि में अत्यधिक सहायता करेंगे।

 

निर्यात- आयात नीति 2009-14 के नकारात्मक लक्षण

 

  • चिंता का एक क्षेत्रजिस पर विदेश व्यापार नीति में प्रकाश नहीं डाला गया है वह यह है कि निर्यातों के साथ आयातों में भी कमी हुई है। 2009 से प्रारंभ यह कमी निरंतर बनी हुई है। अपेक्षाकृत कम गैर-तेल आयात घरेलू विनियोग में कमी सूचित करते हैं। अपेक्षाकृत कम आयातों ने भुगतान संतुलन के वस्तु व्यापार घाटे को काम कर दिया है। यह एक ऐसा परिणाम है जो यदि प्रबल निर्यात निष्पादन के माध्यम से प्राप्त होता तो अनुकूल होता।

 

  • अन्य चिंता विदेशोंविशेष रूप से विकसित देशों में बढ़ता हुआ संरक्षणवाद है। भारतजिसने हाल ही में दक्षिण कोरिया एवं आसियान ( ASEAN) के साथ व्यापारिक समझौते किये हैंबातचीत के दोहरे विकास दौर को पुनः प्रारंभ करने में बड़ी भूमिका निभाने की आशा करता है। DEPB जैसी भारत की कुछ निर्यात प्रोत्साहन योजनाएँ WTO नियमों के संगत नहीं है तथा उनके पुनरीक्षण करने की आवश्यकता है।

 

  • यद्यपि 17 तकनीकी उत्पादों का संकेंद्रित उत्पाद (focus products) योजना में समावेश एक स्वागत योग्य कदम था किंतु प्रतिष्ठा धारकों (status holders) के लिए 1 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क पर्ची एवं EPCG के अंतर्गत आयातों पर शून्य शुल्क जैसे लाभों को उन इकाइयों तक सीमित कर देना जो प्रौद्योगिकी उच्चीकरण कोष योजना से लाभ नहीं उठा रही थींनिराशाजनक था क्योंकि अधिकांश कपड़ा इकाइयाँ उपरोक्त योजना के अंतर्गत आती थीं तथा उन्हें लाभ प्राप्त नहीं होगा।

 

  • बाजार संवृद्ध संकेंद्रित बाजार योजना (MLFPS) के अंतर्गत देशों की संख्या में वृद्धि से कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि योजना के अंतर्गत प्रोत्साहन राशि के लिए अर्द्धउत्पादों की सूची में केवल सिले सिलाए वस्त्रबुनाई वाले कपड़े एवं कृत्रिम वस्त्र ही सम्मिलित थे। इस सुविधा के लिए सम्मिलित किये गये कंबोडिया एवं वियतनाम जैसे देश सिले सिलाये वस्त्रों के बड़े निर्यातकों में से हैं। दूसरी ओरवे धागे एवं बुने हुए कपड़ों की पर्याप्त मात्राओं का आयात करते हैं। तथापि कृत्रिम वस्त्रों को छोड़कर लाभों को इन उत्पादों तक विस्तृत नहीं किया गया।

 

  • यह सच है कि वैश्विक रूप में औद्योगिक उत्पादनबेरोज़गारी प्रतिव्यक्ति विनियोग एवं उपभोग पर अत्यधिक विपरीत प्रभाव पड़ा है। WTO ने अनुमान किया है कि 2009 की अवधि में विश्व व्यापार में 9 प्रतिशत की कमी होगी। यदि ऐसा है तो इस प्रश्न पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है कि वैश्विक प्रवृत्ति को कम करने के लिए घरेलू व्यापार नीति क्या कर सकती है। इसके समाधान खोजने होंगे ताकि माँग में इतनी भारी कमीविशेष रूप से विकसित विश्व में देखते हुए भारत के निर्यातों में वृद्धि हो सके। इस विषय पर विदेश व्यापार नीति शान्त है। इसका कोई कारण नहीं है कि भारत के निर्यातों में वृद्धि करने के लिए FTP को प्रयास नहीं करने चाहिए।

 

  • नीति ने विशिष्ट क्षेत्रों में प्रतिष्ठा धारकों को निर्यातों के FOB मूल्य के 1 प्रतिशत दर पर अतिरिक्त शुल्क साख पर्ची प्रदान करने द्वारा वास्तविक उपयोगकर्ता शर्तों के साथ पूँजीगत वस्तुओं के आयात को प्रोत्साहित किया है। यह किस सीमा तक लाभप्रद होगीयह संदेहजनक है क्योंकि अधिकांश प्रतिष्ठा धारक व्यापारी निर्यातक होते हैं। अतः वास्तविक उपयोगकर्ता शर्तों को पूरा करना उनके लिए कठिन होगा।

 

  • नई FTP इस विश्वास पर आधारित प्रतीत होती है समय परीक्षित निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं ने निर्यात वृद्धि में योगदान किया हैअतः उन्हें बनाये रखना चाहिए । अतः यह पहले की अपेक्षा महत्त्वपूर्ण परिवर्तन करने में असफल रही है। यह निर्यातकों के लिए लाइसेंस निर्गमित करने वाले कार्यालयों में और अधिक जाने एवं अधिक कागजी कार्यवाही करने का कारण बना देती है। यह लाइसेंस निर्गमित करने वाले कार्यालयों के अधिकारियों के हाथों में अधिक शक्ति संकेंद्रित कर देती है तथा इस प्रकार भ्रष्टाचार के अधिक अवसरों का सृजन करती है।

 

  • यह नीति एकमुश्त प्रोत्साहन राशि के रूप में एक विस्तृत एवं प्रतिस्पर्धाशक्ति में वृद्धि करने वाली रणनीति के लिए क्षतिपूर्ति नहीं करती है क्योंकि भारतीय वस्तुएँ चीनबांग्लादेशवियतनाम एवं कंबोडिया जैसे देशों की अपेक्षा 20 प्रतिशत से अधिक मँहगी होती हैं। अपेक्षाकृत अधिक लागतें अधिक साख दरोंश्रम की मज़दूरियों एवं लेन-देन लागतों के कारण हैं।

 

  • यद्यपि विदेशी व्यापार वृद्धि के स्तंभ - आधारभूत ढाँचाशुल्कों की वापसी एवं लेन-देन लागतों में कमी पर विचार किया गया है किंतु नीति ने स्वयं के निर्यातों के वर्तमान स्तर को सतत बनाये रखने के अल्पकालीन उद्देश्य तक प्रतिबंधित कर रखा है। स्थिरता के दृष्टिकोण से नीति के अंतर्गत बहुत कम किया गया है क्योंकि राजकोषीय सुविधाएँ केवल 2011 तक के लिए ही दी गयी हैं। इसके अतिरिक्तनिर्यातकों को बैंकों से अपेक्षाकृत सस्ती वित्त सुविधा उपलब्ध कराने के लिए कुछ किया जाना चाहिए। यह कुछ ऐसी बात है जो उन देशों में हो रही है जो हमारे प्रतिस्पर्धी हैं। 

 

  • मात्र राजकोषीय प्रोत्साहन ही निर्यातों में वृद्धि नहीं करेंगे। आज महत्त्वपूर्ण समस्या यह है कि वैश्विक मंदी के कारण हमारे निर्यात उत्पादों की मांग नहीं है। हमें इस काम की आवश्यकता है कि हमारे निर्यात अधिक प्रतिस्पर्धी बनाये जायें ताकि हम अपने प्रतिस्पर्धियों पर विजय प्राप्त कर सकें। इसके लिए हमारा संभार तंत्र (logistics) की लागतों को वर्तमान में 13 प्रतिशत से कम होकर 8 प्रतिशत हो जाना चाहिए जो अंतर्राष्ट्रीय रूप से लागतें होती हैं। इन सब के लिए संबंधित मंत्रालयों को एक साथ आना चाहिए तथा निर्यातों एवं आयातों की सुविधाओं में सुधार करना चाहिए ।


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