मौद्रिक नीति की सीमाएँ |Limitations of Monetary Policy in LDCs(Least Developed countries)

मौद्रिक नीति की सीमाएँ

LDCs में मौद्रिक नीति की सीमाएँ |Limitations of Monetary Policy in LDCs(Least Developed countries)


   LDCs में मौद्रिक नीति की सीमाएँ

विकासशील देशों को अनुभव यह बतलाता है कि मौद्रिक नीति की ऐसे देशों में सीमित भूमिका होती है। इसके निम्नलिखित कारण हैं

 

1. विशाल गैर-मुद्रीकृत क्षेत्र (Large Non-monetized Sector ) 

  • ऐसे देशों में एक विशाल गैर-मुद्रीकृत क्षेत्र होता है जो मौद्रिक नीति की सफलता में बाधक होता है। अधिकतर लोग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं जहाँ वस्तु विनिमय प्रणाली का प्रचलन होता है। परिणामस्वरूपमौद्रिक नीति अर्थव्यवस्था के विस्तृत भाग को प्रभावित करने में असफल होती है।

 
2. अविकसित मुद्रा और पूँजी बाजार (Undeveloped Money and Capital Markets) -

  •  मुद्रा और पूँजी बाजार अविकसित होते हैं। इन बाजारों में बिलोंस्टॉकों एवं शेयरों का अभाव होता है जो मौद्रिक नीति की सफलता को सीमित करते हैं।

 

3. बहुसंख्यक NBFIs (Large Number of NBFIs)

 

  • ऐसे देशों में देशीय बैंकरों जैसे गैर-बैंक वित्तीय मध्यस्थ बड़े पैमाने पर कार्य करते हैंपरंतु ये मौद्रिक अधिकारी के नियंत्रण के अंतर्गत नहीं आते हैं। इस कारण भी ऐसे देशों में मौद्रिक नीति की प्रभाविता सीमित हो जाती है।

 

4. अधिक तरलता (High Liquidity)

  • कमर्शियल बैंकों के पास अधिक तरलता पाई जाती है जिससे वे केंद्रीय बैंक की साख नीति द्वारा प्रभावित नहीं होते। यह भी मौद्रिक नीति को कम प्रभावशील बनाता है।

 

5. विदेशी बैंक (Foreign Banks) 

  • लगभग सभी विकासशील देशों में विदेशी कमर्शियल बैंक विद्यमान होते हैं। वे भी विदेशी परिसंपत्तियाँ बेचकर तथा अपने मुख्य कार्यालयों से मुद्रा निकालकर मौद्रिक नीति को कम प्रभावशील बना देते हैंजबकि देश का केंद्रीय बैंक महँगी मुद्रा नीति का अनुसरण कर रहा होता है।

 

6. कम बैंक मुद्रा (Less Bank Money) 

  • ऐसे देशों में मौद्रिक नीति इसलिए भी सफल नहीं होती क्योंकि बैंक-मुद्रा देश में कुल मुद्रा पूर्ति का एक छोटा-सा अनुपात होती है। जिसके परिणामस्वरूप, केंद्रीय बैंक प्रभावशाली रूप से साख नियंत्रण करने में असमर्थ होता है।

 

7. बैकों में मुद्रा जमा नहीं (Money not Deposited with Banks ) 

  • समृद्ध लोग बैंकों में मुद्रा जमा नहीं करवाते परंतु उसे आभूषण, स्वर्ण, वास्तविक संपदा, सट्टे प्रदर्शनकारी उपभोग आदि पर प्रयोग करते हैं। ऐसी क्रियाएँ स्फीतिकारी दबावों को प्रोत्साहित करती हैं, क्योंकि ये मौद्रिक अधिकारी के नियंत्रण में नहीं आती हैं।

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