विस्तारक मौद्रिक नीति |Expansionary Monetary Policy in Hindi

विस्तारक मौद्रिक नीति (Expansionary Monetary Policy )

विस्तारक मौद्रिक नीति |Expansionary Monetary Policy in Hindi


 

  • विस्तारक (या सस्ती) मौद्रिक नीति का उपयोग अवस्फीतिक अंतराल (defiationary gap) या मंदी या सुस्ती (recession) से निकलने के लिए होता है। जब वस्तुओं और सेवाओं की उपभोक्ता माँग और निवेश वस्तुओं की व्यवसाय माँग में गिरावट आती है तो अवस्फीतिक अंतराल प्रकट होता है। 


  • केंद्रीय बैंक विस्तारक मौद्रिक नीति प्रारंभ करता है जो साख बाजार की दशाओं को आसान बनाती है और समस्त माँग में ऊपर की ओर परिवर्तन लाती है। इस उद्देश्य के लिएकेंद्रीय बैंक खुले बाजार में सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदता हैसदस्य बैंकों की रिजर्व आवश्यकताएँ कम करता हैबट्टा दर कम करता है तथा चयनात्मक साख उपायों द्वारा उपभोक्ता और व्यवसाय साख को प्रोत्साहित करता है। इस उपायों द्वारा यह मुद्रा बाजार में साख की उपलब्धता और लागत को कम करता है और अर्थव्यवस्था में सुधार लाता है। 

विस्तारक मौद्रिक नीति |Expansionary Monetary Policy in Hindi


  • विस्तारक मुद्रा नीति का चित्र  (A) और (B) द्वारा वर्णित किया गया है। जहाँ प्रारंभिक सुस्ती संतुलन R, Y, P और Q पर है । चित्र के भाग (A) में ब्याज दर OR पर अर्थव्यवस्था में पहले से ही अतिरिक्त मुद्रा पूर्ति होता है। मान लीजिए केंद्रीय बैंक की साख नीति के कारण अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रा पूर्ति में वृद्धि होती है। यह LM वक़ को दाईं ओर LM1 पर सरका देगी। यह आय को OY से OY1 पर बढ़ाती है और समस्त माँग बढ़ती है तथा भाग (B) में भाग वक्र ऊपर की ओर D1 पर सरक जाता है। वस्तुओं और सेवाओं की माँग में वृद्धि के साथ उत्पादन ऊँची कीमत स्तर OP1 पर OQ से OQ1 तक बढ़ता है। यदि विस्तारक मुद्रा नीति अच्छी तरह से काम करती है तो E1 बिंदु पर संतुलन पूर्ण रोजगार स्तर पर हो सकता है। किंतु निम्न सीमाओं के कारण उस स्थिति में पहुँचने की संभावना नहीं होती है।

 

विस्तारक मौद्रिक नीति का क्षेत्र और सीमाएँ (Its Scope and Limitations)

 

  • 1930 और 1940 के दशकों के दौरान यह विश्वास किया जाता था कि तेजी और स्फीति को नियंत्रित करने की अपेक्षा मंदी में समुत्थान (recovery ) को प्रोत्साहित करने में मौद्रिक नीति की सफलता बहुत ही सीमित होती थी। यह धारणा महामंदी के अनुभवों और केन्ज़ के General Theory के प्रकाशन से प्रकट हुई।

 

  • मुद्रावादियों का मत है कि केंद्रीय बैंक मंदी के दौरान सस्ती मुद्रा नीति द्वारा कमर्शियल बैंकों के रिज़र्व बढ़ा सकता है। वह प्रतिभूतियों को खरीदकर और ब्याज दर घटाकर ऐसा कर सकता है। परिणामस्वरूपउधार लेने वालों को साख सुविधाएँ बढ़ाने से बैंकों की क्षमता बढ़ती है। किंतु महामंदी का अनुभव हमें बताता है कि तीव्र मंदी में जब व्यवसायियों में निराशावादिता होती है तो व्यवहार में ऐसी नीति की सफलता शून्य होती है। ऐसी स्थिति में बैंक पुनरुत्थान (revival) लाने में असहाय होते हैं। 

  • चूँकि व्यवसाय क्रिया लगभग ठहराव की स्थिति में होती है इसलिए व्यवसायियों को मालसूचियाँ (inventories) बनाने के लिए उधार लेने की कोई प्रवृत्ति नहीं होती हैजबकि ब्याज दर बहुत कम होती है। चूँकि वे बैंकों से पहले की ली हुई अपनी मालसूचियों को ऋण लौटाकर घटाना चाहते हैं । इसके अतिरिक्तदीर्घकालीन पूँजी जरूरतों के लिए उधार लेने का सवाल मंदी में नही उठता हैजब व्यवसाय क्रिया पहले ही बहुत निम्न स्तर पर होती है। उपभोक्ताओं के साथ भी वही स्थिति होती है जो घटी हुई आय और बेरोजगारी से जूझ रहे होते हैं। 

  • अतः वे बैंक ऋणों द्वारा कोई टिकाऊ वस्तु खरीदना पसंद नहीं करते। इस प्रकारसभी बैंक साख उपलब्ध करा सकते हैं लेकिन वे व्यवसायियों और उपभोक्ताओं को इसे स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। 1930 के दशक में बहुत कम ब्याज दर और बैंकों के पास बिना उपयोग किये रिजवों की राशिसंसार की मंदी वाली अर्थव्यवस्थाओं पर कोई महत्त्वपूर्ण प्रभाव नहीं डाल पाये।

 

  • यह नहीं कहा जाता है कि तीव्र संकुचन के समय में सस्ती मुद्रा नीति बिना लाभकारी प्रभाव के होगीबल्कि इसका अधिकतर प्रभाव खराब स्थिति को अधिक खराब स्थिति में पहुँचने से रोकने में होगा। परंतु अधोमुखी (downturn) व्यवसाय से जुड़ी प्रतिबंधात्मक मौद्रिक नीति निश्चित रूप से अधोमुखी व्यवसाय को और खराब बना देगी इसका परंपरावादी उदाहरण 1931 का मौद्रिक नीति थी जिसने महामंदी को गंभीर बनाने में अपना योगदान दिया. ...। दूसरी ओरयदि साख अनुकूल शर्तों पर आसानी से उपलब्ध है तो स्पष्ट रूप से इसका स्थिरताकारी प्रभाव होगा । व्यवसाय की तरलता आवश्यकताएँ पूरी होने पर यह धीमी हो सकता है तथा शायद अधोमुखी की सीमा को घटा सकती है। "

 

  • परंतु 1930 और 1940 के दशकों में मौद्रिक नीति के पतन का क्या कारण थामहामंदी के दौरान और उसके बाद की कष्टकारक एवं मोह भंग वाले अनुभवों के अतिरिक्त केन्ज की General Theory अधिक स्थिरता के औज़ार के रूप में मौद्रिक नीति में पतन का कारण बनी। केन्ज ने बताया कि अधिक लोच तरलता अधिमान अनुसूची (तरलता जाल) तीव्र मंदी के समय में मौद्रिक नीति को असहाय की स्थिति में प्रस्तुत करता है।

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