स्वनिर्णयात्मक राजकोषीय नीति |Discretionary Fiscal Policy in Hindi

स्वनिर्णयात्मक राजकोषीय नीति (Discretionary Fiscal Policy)

स्वनिर्णयात्मक राजकोषीय नीति |Discretionary Fiscal Policy in Hindi



3- स्वनिर्णयात्मक राजकोषीय नीति (Discretionary Fiscal Policy)

 

स्वनिर्णयात्मक राजकोषीय नीति के लिए बजट में ऐसे कार्यों द्वारा ऐसे सोच-समझकर परिवर्तन लाने की आवश्यकता होती है जैसे कर दरों अथवा सरकारी व्यय अथवा दोनों में परिवर्तन करना। यह सामान्य तौर से तीन रूप लेता है। 

(i) करो में परिवर्तनजबकि व्यय स्थिर रहता है

(ii) व्यय में परिवर्तनजबकि कर स्थिर रहते हैं

(iii) व्यय तथा कर दोनों में एक साथ परिवर्तन।

 

  • प्रथमजब करों में कटौती की जाती है जबकि सरकारी व्यय में कोई परिवर्तन नहीं किया जाता तो इस व्यापारिक और घरेलू क्षेत्र की प्रयोज्य आय में वृद्धि होती है। इससे निजी व्यय बढ़ता है। परंतु आय में वृद्धि इस बात पर निर्भर करती है कि किसके करों में और कहाँ तक कटौती होती है और क्या करदाता कटौती को स्थायी या अस्थायी समझते हैं। यदि करों में कटौती से लाभ प्राप्त करने वाले उच्च मध्यम आय वर्ग के हैं तो समस्त माँग में अधिक वृद्धि होगी। यदि इसका संबंध निम्न आय वर्ग से है तो उनकी समस्त माँग में अधिक वृद्धि नहीं होगी। यदि व्यापारियों के पास निवेश करने की कोई प्रेरणा नहीं है तो करों में कटौती उन्हें निवेश करने के लिए प्रेरित नहीं करेगी। अंत मेंयदि करदाता करों में कटौती को अस्थायी मानते हैं तो यह नीति कम प्रभावशाली होगी। इसलिए यह नीति करों में वृद्धि करके स्फीति को रोकने में अधिक प्रभावशाली है क्योंकि करों की उच्च दरों से व्यक्तियों और व्यवसायियों की प्रयोज्य आय में कमी होगीजिससे समस्त माँग में कमी होगी। 


  • दूसराअवस्फीतिकारी प्रवृत्तियों को रोकने के लिए दूसरा तरीका अधिक उपयोगी है। कर दरों के अपरिवर्तित रहते हुए यदि सरकार वस्तुओं और सेवाओं पर अपना व्यय बढ़ा देती है तो समस्त माँग सरकारी व्यय में वृद्धि की पूर्ण राशि के बराबर बढ़ती है। दूसरी ओरयदि सरकारी व्यय को स्फीति के दौरान कम कर दिया जाए तो यह अधिक प्रभावशाली नहीं होता क्योंकि अर्थव्यवस्था की व्यवसायिक प्रत्याशाएँ उच्च व्यापार की होती हैं जिनकी प्रभावशाली माँग को कम करने की संभावना नहीं होती है। 


  • तीसरा तरीका स्फीतिकारी और अवस्फीतिकारी प्रवृत्तियों को रोकने के लिए अन्य दोनों तरीकों की अपेक्षा कहीं अधिक प्रभाव और श्रेष्ठ है। स्फीति को रोकने के लिए कर बढ़ा दिया जाए और सरकारी व्यय घटा दिया जाए। दूसरी और मंदी का मुकाबला करने के लिए कर घटाए और सरकारी व्यय बढ़ाए जा सकते हैं।

 

स्वनिर्णयात्मक राजकोषीय नीति की सीमाएँ (Limitations)

 

  • स्वनिर्णयात्मक राजकोषीय नीति उचित समय तथा सही पूर्वानुमान पर निर्भर करती है। प्रथम चक्र की उस अवस्था को जानने के लिए सही पूर्वानुमान आवश्यक है जिसमें से अर्थव्यवस्था गुजर रही है। तभी यह संभव है कि समुचित राजकोषीय कार्रवाई की जा सके। गलत पूर्वानुमान चक्रीय उतार-चढ़ावों को मंद करने की बजाए बढ़ा सकता है।


  • वस्तुतः सही पूर्वानुमान करने के लिए अर्थशास्त्र एक पूर्ण विज्ञान नहीं है। परिणामस्वरूप राजकोषीय कार्रवाई हमेशा उसके बाद होती हैजब व्यापार चक्र में मोड़ बिंदु आ चुकते हैं। दूसरेसार्वजनिक राजकोषीय नीति की दो समय पश्चताएँ (time lags) हैं। प्रथम, “निर्णय पश्चता" होती है जो समस्या के अध्ययन और निर्णय लेने में जो समय लगता है। उससे संबंद्ध है। इस प्रक्रिया में पाई जाने वाली पश्चता बहुत लंबी हो सकती है।


  • दूसरेजब एक बार निर्णय ले लिया जाता है तो “ कार्यान्वयन पश्चता" होती है। इसमें वह व्यय पाया जाता है जो प्रोग्राम के कार्यान्वयन के लिए आवंटित किया जाता है। यू.एस.ए जैसे देश में यह दो से भी अधिक वर्ष ले सकती है और यू.के. जैसे देश में एक वर्ष से कम तीसरेकुछ सार्वजनिक परियोजनाएँ इतनी जटिल होती हैं कि उन पर सार्वजनिक व्यय बढ़ाने या कम करने के उद्देश्य से उनको धीमा या तेज करना संभव नहीं होता है।


विषय सूची - 


प्रति चक्रीय राजकोषीय नीति







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