उत्तरकालीन मुगल सम्राट | उत्तरवर्ती मुगल शासक | Uttarvarti Mugal Shasak

 

उत्तरकालीन मुगल सम्राट | उत्तरवर्ती मुगल शासक

उत्तरकालीन मुगल सम्राट | उत्तरवर्ती मुगल शासक | Uttarvarti Mugal Shasak


 उत्तरकालीन मुगल सम्राट


औरंगजेब की मृत्यु मार्च, 1707 ई. को अहमदनगर में हुई। उस समय उसके तीन पुत्र जीवित थे मुअज्जम आजम तथा कामबक्श औरंगजेब उत्तराधिकार का युद्ध नहीं चाहता था। अतः उसने तीनों पुत्रों के लिए वसीयत लिखी थी, जिसमें मुगल साम्राज्य का बंटवारा किया गया था, परन्तु राज्य के बंटवारे के बावजूद तीनों भाई उत्तराधिकार युद्ध में उलझ गए। अन्ततः मुअज्जम ने जून, 1707 ई. में जजाओ के युद्ध में आजम को तथा 1709 ई. में बीजापुर के युद्ध में कामबक्श को पराजित कर बहादुरशाह प्रथम की उपाधि धारण कर सिंहासन पर बैठा। 

 

बहादुरशाह प्रथम ( शाह-ए-बेखबर) : 1707-1712 ई.

 

  • बहादुरशाह प्रथम ने मेल-मिलाप को नीति अपनाई। उसने राजा जयसिंह (आमेर) तथा अजीतसिंह (मारवाड़) को शासक स्वीकार किया। छत्रसाल बुन्देला तथा चूड़ामल जाट के साथ मित्रता की नीति अपनाई। साथ ही मराठों को दक्कन की सरदेशमुखी प्राप्त करने का अधिकार दिया, किन्तु साहू को मराठों का विधिवत राजा नहीं माना। बहादुरशाह ने गुरू गोविन्द के साथ भी संधि कर मेल-मिलाप करने की कोशिश की, परन्तु गुरु गोविन्द की मृत्यु के बाद बंदा बहादुर ने विद्रोह का झंडा बुलंद किया। 


  • बहादुरशाह ने 1711 ई. में बंदा बहादुर के विरूद्ध अभियान कर उसे पराजित किया, परन्तु 1712 ई. में बंदा बहादुर ने पुनः लौहगढ़ पर कब्जा कर लिया। 1712 ई. में बहादुरशाह की मृत्यु हो गई।

 

जहांदारशाह ( लम्पट मूर्ख ) : 1712-1713 ई.

 

  • बहादुरशाह की मृत्यु के पश्चात् उसके चारों पुत्रों में उत्तराधिकार युद्ध आरंभ हो गया। इस उत्तराधिकार के प्रश्न को हल करने में उसके पुत्रों ने इतनी निर्लजता दिखाई कि बहादुरशाह का शव एक माह तक दफन भी नहीं किया जा सका। दरबार में ईरानी दल के नेता जुल्फीकार खां की सहायता से जहांदारशाह शासक बनने में सफल हुआ। कृतज्ञ सम्राट ने जुल्फीकार खां को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया।

 

  • जहांदारशाह ने जयसिंह को मिर्जा राजा की उपाधि व मालवा की सूबेदारी तथा अजीतसिंह को महाराजा की उपाधि व गुजरात की सूबेदारी दी। उसने छत्रसाल बुन्देला तथा चूडामल जाट के साथ मित्रता की नीति अपनाए रखी। मराठों को दक्कन की चौथ और सरदेशमुखी इस शर्त पर दी गई कि इनकी वसूली मुगल अधिकारी कर मराठा शासक को दे देंगे। 
  • जहांदारशाह ने बंदाबहादुर के खिलाफ सैन्य कार्यवाही जारी रखी। इसके काल में जजिया कर समाप्त कर दिया गया, किन्तु एक गलत पद्धति (इजारा) की शुरुआत हुई। इजारा पद्धति में भू-राजस्व की निलामी की जाती थी, जिससे कृषकों के शोषण को प्रोत्साहन मिला। जहांदारशाह लालकुंवारि नामक वेश्या पर आसक्त था। 
  • 1713 ई. में जहांदारशाह के भतीजे फर्रुखशियर ने सैयद बंधुओं की सहायता से जहांदारशाह को पराजित किया और बाद में उसकी हत्या कर दी।

 

फर्रुखशियर ( घृणित कायर) 1713-1719 ई.

 

  • फर्रुखशियर ने हिन्दुस्तानी दल के नेता सैयद बंधुओं (किंग मेकर) की सहायता से राजगद्दी प्राप्त की थी। 
  • 1713 ई. में सैयद बंधुओं ने जहांदारशाह तथा जुल्फीकार खां की हत्या कर दी। कृतज्ञ बादशाह ने अब्दुल्ला खां को वजीर तथा हुसैन अली को मीर बक्शी नियुक्त किया। 
  • फर्रुखशियर ने जयसिंह को सवाई की उपाधि दी तथा अजीतसिंह की पुत्री से विवाह किया। उसने चूडामल जाट के साथ मित्रता बनाए रखी। 
  • फर्रुखशियर के समय में ही 1716 ई. में बंदा बहादुर को दिल्ली में फांसी दे दी गई। 
  • 1717 ई. में इसने अंग्रेजों को व्यापारिक लाभ का एक शाही फरमान जारी किया, जिसके द्वारा अंग्रेजों को बंगाल में 3,000 रुपए वार्षिक के बदले चुंगी मुक्त व्यापार करने की अनुमति मिल गई।
  • आगे चलकर फर्रुखशियर और सैयद बंधुओं के मध्य संबंध बिगड़ने लगे। सैयद बंधुओं ने मराठा शासक साहू के साथ 1719 ई. में दिल्ली की संधि की, जिसके अनुसार साहू को दक्कन के 6 प्रांतों की चौथ व सरदेशमुखी वसूल करने का अधिकार मिल गया, बदले में साहू ने 15,000 सैनिकों के साथ सैयद बंधुओं का सहयोग करने का वादा किया। 
  • 1719 ई. में ही बालाजी विश्वनाथ के नेतृत्व में मराठा सैन्य शक्ति की सहायता से सैयद बंधुओं ने फर्रुखशियर को पराजित कर उसकी हत्या कर दी।

 

  • फर्रुखशियर की मृत्यु के पश्चात् सैयद बंधुओं ने एक के बाद एक सम्राट दिल्ली के सिंहासन पर बैठाए। पहले रफी-उद्-दरजात को मुगल बादशाह बनाया गया। रफी-उद्-दरजात सबसे कम समय तक शासन करने वाला मुगल बादशाह था। इसकी मृत्यु क्षय रोग से हुई। इसके पश्चात् रफी-उद्-दौला को बादशाह बनाया गया, किन्तु इसकी मृत्यु पेचिस रोग से हो गई। फिर सैयद बंधुओं ने मुहम्मदशाह को बादशाह बनाया।

 

मुहम्मदशाह ( रंगीला ) 1719-1748 ई.

 

  • मुहम्मदशाह (रोशन अख्तर) के शासनकाल में मुगल परिवार में हिजड़ों तथा महिलाओं का प्रभुत्व स्थापित हो गया था। इसके काल में तुरानी दल के नेता निजाम-उल-मुल्क (चिनकिलिच खां ) के नेतृत्व में सैयद बंधुओं की हत्या कर दी गई। 
  • मुहम्मदशाह ने निजाम-उल-मुल्क को वजीर बनाया, परन्तु बादशाह के अत्यधिक लापरवाह होने के कारण निजाम-उल-मुल्क दक्कन की ओर पलायन कर गया। वहां उसने दक्कन के मुगल गवर्नर मुबारिज खाँ को शकूरखेड़ा के युद्ध में पराजित किया तथा 1724 ई. में हैदराबाद राज्य की नींव डाली। इसी तरह अवध (सआ खां) तथा बंगाल (मुर्शीद कुली खां) ने भी स्वयं को मुगलों से स्वतंत्र कर लिया। 
  • 1739 ई. में मुहम्मदशाह के समय ही फारस के शासक नादिरशाह ( ईरान का नेपोलियन) ने भारत पर आक्रमण किया तथा करनाल के युद्ध में मुगल सेना को पराजित किया। 
  • नादिरशाह दिल्ली में 57 दिनों तक रुका तथा यहां से अपने साथ तख्तेताऊस (मयूर सिंहासन) व कोहीनूर हीरा ले गया। इस प्रकार तख्तेताऊस पर बैठने वाला अंतिम मुगल शासक मुहम्मदशाह था।

 

अहमदशाह : 1748-1754 ई.

 

  • मुहम्महशाह की मृत्यु के पश्चात् उसका एकमात्र पुत्र अहमदशाह गद्दी पर बैठा। इसी के काल में अहमदशाह अब्दाली ने 1748 ई. में भारत पर आक्रमण किया था। 
  • अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर 1748 ई. से 1767 ई. कुल 07 आक्रमण किए अहमदशाह ने गाजीउद्दीन इमादुलमुल्क को वजीर बनाया। इमादुलमुल्क ने अहमदशाह को अंधा कर जेल में डाल दिया तथा आलमगीर द्वितीय को गद्दी पर बैठाया।

 

आलमगीर द्वितीय 1754-1758 ई.

 

  • इसके काल में अहमदशाह अब्दाली ने दिल्ली पर आक्रमण किया। प्लासी का युद्ध (1757 ई.) इसी मुगल बादशाह के काल में लड़ा गया। आलमगीर द्वितीय की हत्या भी गाजीउद्दीन इमादुलमुल्क द्वितीय द्वारा कर दी गई।

 

शाहआलम द्वितीय 1759-1806 ई.

 

  • इसी के काल में पानीपत का तृतीय युद्ध (1761 ई.) तथा बक्सर का युद्ध (1764 ई.) हुआ। शाहआलम द्वितीय ने ही इलाहाबाद की संधि (1765 ई.) के द्वारा क्लाइव को बंगाल, बिहार व उड़ीसा की दीवानी प्रदान की। इसके पश्चात् शाहआलम द्वितीय 1765 ई. से 1772 ई. तक अंग्रेजों के संरक्षण में इलाहाबाद में ही रहा, क्योंकि गाजीउद्दीन ने उसे दिल्ली में प्रवेश नहीं होने दिया। 
  • 1772 ई. में वह मराठों के संरक्षण में दिल्ली पहुंचा तथा 1803 ई. तक मराठों के संरक्षण में रहा। 1803 ई. में अंग्रेज सेनापति लेक ने मराठों को पराजित किया, जिससे शाहआलम द्वितीय ने अंग्रेजों का संरक्षण स्वीकार किया। 1806 ई. में शाहआलम द्वितीय की हत्या हो गई।

 

अकबर द्वितीय : 1806-1837 ई.

 

  • अकबर द्वितीय ने राजाराम मोहन राय को राजा की उपाधि दी तथा अपना केस लड़ने हेतु इन्हें इंग्लैण्ड भेजा। इंग्लैण्ड में ही 1833 ई. में ब्रिस्टल में राजाराम मोहन राय की मृत्यु हो गई। अकबर द्वितीय के समय ही 1835 ई. में मुगलों के सिक्के बंद हो गए थे।

 

बहादुरशाह द्वितीय ( जफर) : 1837-1857 ई.

 

  • बहादुरशाह द्वितीय अंतिम मुगल बादशाह था। इतिहास में इसे बिना साम्राज्य का सम्राट कहा जाता है। 
  • 1857 ई. के सैनिक विद्रोह के बाद इसे बंदी बनाकर रंगून भेज दिया गया, जहां इसे ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से प्रतिमाह 1 लाख रुपए पेंशन, 15 लाख रुपए अन्य परिसम्पत्तियों के लिए किराया तथा 1 हजार रुपए पारिवारिक खर्च के तौर पर मिलते थे। 
  • 1862 ई. में रंगून में ही बहादुरशाह जफर की मृत्यु हो गई। हालांकि कानूनी रूप से मुगल साम्राज्य 1 नवम्बर, 1858 ई. को महारानी विक्टोरिया के घोषणा पत्र से समाप्त हो गया था।
  • बहादुरशाह जफर बहुत अच्छे गजल गायक थे। इब्राहिम जौक और गालिब उसके कविता शिक्षक थे, जबकि हसन अश्करी उसके अध्यात्मिक शिक्षक थे।
 

Also Read...

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.