उपयोगितावादी इतिहास लेखन | साम्राज्यावादी इतिहास लेखन | Utilitarian Historiography

उपयोगितावादी इतिहास लेखन 

Utilitarian Historiography

उपयोगितावादी इतिहास लेखन  Utilitarian Historiography


 

उपयोगितावादी (Utilitarian) विचारधारा 

  • उपयोगितावादी (Utilitarian) विचारधारा उन्नीसवीं शताब्दी के ब्रिटेन में उपस्थित उदारवादी (Liberalism) विचारधारा का ही विस्तार थी. आर्थिक जगत में यह विचारधारा एडम स्मिथ के मुक्त बाज़ार के सिद्धांत में अभिव्यक्त हुयी. परंतु इसका दार्शनिक आधार प्रसिद्ध विद्वान जेरेमीं बेंथम ने दिया. 
  • बेंथम का विचार था कि यूरोप ने तर्क एवं बुद्धि के आधार पर प्रति की है. बेंथम के अनुयायी एवं मित्र उपयोगितावादी जेम्स मिल का मानना था कि भारतीय संस्कृति पतित है तथा भारत के उद्धार की एकमात्र आशा तर्क बुद्धिवाद के आधार पर निर्मित कठोर कानूनों से ही संभव हैजहाँ प्राच्यवादियों ने प्राचीन भारतीय संस्कृति की प्रशंसा की थीवहीं उपयोगितावादियों ने उसकी तीखी आलोचना की एक अन्य उपयोगितावादी मैकॉले के विचारों से आप भलिभाति परिचित होंगेजिसने शिक्षा के प्रश्न पर प्राच्यवादियों तथा उपयोगितावादियों के मध्य हुए वैचारिक संघर्ष में अंग्रेजी भाषा के पक्ष में सफलतापूर्वक तर्क दिये थे. 
  • यहाँ हम उपयोगितावादी इतिहासकार के रूप मे जेम्स मिल के विचारों की ही चर्चा करेंगे. मिल ने बारह वर्षों ( 1806 से 1818 के मध्य) के कठोर परिश्रम द्वारा छः खण्डों में हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया नामक पुस्तक लिखी. भारत संपूर्ण इतिहास लिखने का यह पहला प्रयास था.
  • हलांकिप्राचीन एवं मध्यकाल को प्रथम तीन खण्डों में समेटा गया थातथा शेष तीन खण्डों में ब्रिटिश भारत की चर्चा थी. इस पुस्तक का महत्व इस बात से ही साबित होता है कि लगभग आधी सदी तक यह भारत आने वाले ब्रिटिश प्रशासकों के प्रशिक्षण के लिये पाठ्य पुस्तक का काम करती रही. 
  • 1818 से 1840 के मध्य चार बार इसे पुनर्मुद्रित किया गया. 1850 के पश्चात भी इसे एक महान कृति माना जाता रहा. आधुनिक भारतीय इतिहास लेखन पर इस पुस्तक के दूरगामी प्रभाव को नज़रअन्दाज़ नही किया जा सकता. मिल ने प्राचीन भारतीय के समाजिक वर्गीकरणधर्मकानूनोंराजस्व प्रणाली ही नहींकला-साहित्य एवं रीति-रिवाज़ों की भी भर्त्सना की. 
  • उन्होंने प्राचीन संस्थाओं को मानव इतिहास की सबसे दुर्बल अवस्था का परिणाम मानाप्राचीन भारतीयों की इतिहास एवं कालक्रम की अनदेखी कीमिल ने तीखी आलोचना की. हलांकि मध्यकालीन मुस्लिम शासन को मिल ने बेहतर मानापरंतु वर्तमान ब्रिटिश शासन के सामने वह भी निकृष्ट ही था. मिल के इतिहास के दूरगामी प्रभाव के रूप में भारतीय इतिहास का काल विभाजन सबसे महत्वपूर्ण था. उन्होंने प्राचीनकाल को हिन्दूकाल तथा मध्यकाल को मुस्लिमकाल के रूप में पहचाना. हलांकि आधुनिककाल को ईसाईकाल न कहकर ब्रिटिशकाल कहा गया. मिल के इस कालविभाजन ने पूर्व-औपनिवेशिक इतिहास को साम्प्रदायिक आधार पर विभाजित कर दिया जिसके दुष्परिणाम हाल तक भारतीय इतिहास लेखन को प्रभावित करते रहे हैं. 
  • सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि मिल का इतिहास तथ्यसम्मत एवं तर्कसम्मत भी नहीं था. मिल ने बिना भारत की यात्रा किये और केवल विदेशी विवरणों के आधार पर ही अपना कार्य किया था. इस इतिहास में मूल स्रोतों की उपेक्षा की गयी थी. वास्तव में मिल का इतिहास साम्राज्यवाद के नये युग की उद्घोषणा थी. 
  • उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ तक भारत में ब्रिटिश शासन पर्याप्त सशक्त हो चुका था. यूरोप मे नेपोलियन की पराजय ने ब्रिटेन को सर्वोपरि शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया था. औधोगिक क्रांति की सफलता ने आर्थिक क्षेत्र में भी ब्रिटेन को सुदृढ़ कर दिया था. ब्रिटिश सर्वोच्चता का अपार विश्वास साम्राज्यवादी दंभ मे प्रकट हो रहा था.

 

उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य साम्राज्यावादी इतिहास लेखन

 

  • उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक मिल के इतिहास की आलोचना होने लगी थी. यूरोपीय इतिहासकारों ने अब भारतीय इतिहास को भारतीय स्रोतों के आधार पर लिखने का बीड़ा उठाया. इन इतिहासकारों को विचारधारा के आधार पर पुराने पड़ चुके प्राच्यवादी या उपयोगितावादी खेमों में नहीं रखा जा सकता. परंतु उनमें साम्राज्यवादी विचारधारा को स्पष्ट पहचाना जा सकता है. 
  • मॉउंटस्टुअर्ट एल्फिंसटन ने मूल ऐतिहासिक स्रोतों के अनुवादों के आधार पर अपने ग्रंथ हिस्ट्री ऑफ हिन्दू एंड मुहम्मडन इंडिया की रचना 1841 में की हलांकि एल्फिंसटन ने मिल के इतिहास की निन्दा की थीपरंतु 'हिन्दूभारत एवं 'मुस्लिमभारत की शब्दावली का प्रयोग करके उन्होंने मिल के कालविभाजन को स्थायित्व प्रदान कर दिया. 
  • एल्फिंसटन के इतिहास की दो महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ थीं. एक तो उन्होंने पुराणों के आधार पर मौर्यकाल से लेकर गुप्तों तक भारतीय शासकों की क्रमबद्ध वंशावलियाँ देने का प्रयास किया. दूसरेउन्होंने प्राचीन भारत के सांस्कृतिक इतिहास पर अधिक बल दिया. स्थानीय स्रोतों के आधार पर क्षेत्रीय इतिहास लिखने की परम्परा का आरम्भ भी यूरोपीय इतिहासकारों ने किया. इस श्रेणी में ग्रांट डफ नें मूल मराठा स्रोतों के आधार पर 1825 मे ए हिस्ट्री ऑफ दी मराठाज़ प्रकशित की. 
  • जेम्स टॉड ने राजपूत स्रोतों एवं लोकश्रुतियों के आधार पर एनल्स एंड एंटीक्वीटीज़ ऑफ राजस्थान की रचना की. फारसी मूल स्रोतों के आधार पर मध्य भारत के इतिहास को पुनर्लिखित करने के प्रयास स्वरूप आठ खंडों में रचित दी हिस्ट्री ऑफ इंडिया ऐज़ टोल्ड बाई इट्स ओन हिस्टोरियन्स सामने आई. इसे डाउसन की सहायता से ईलियट द्वारा लिखा गया था तथा यह 1857 की क्रांति के पश्चात लिखी गयी. हलांकि यह श्रृंखला वस्तुत: फ़ारसी मूल स्रोतों का अनुवाद थीपरंतु इसके प्राक्कथन में ईलियट ने तुर्क एवं मुग़ल शासकों के विरुद्ध खूब विषवमन किया. 
  • ब्रिटिश भारतीय शासकों एवं परिवर्ती भारतीय इतिहासकारों को इस ग्रंथ ने काफी प्रभावित किया. इस ग्रंथ श्रृंखला ने पहली बार वे तर्क दिये जो आज तक साम्प्रदायिक शक्तियों द्वारा प्रयोग किये जाते हैं.

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