प्रशासन में पारदर्शिता, पारदर्शिता की परिभाषा, पारदर्शिता का अर्थ क्या है | Transparency in administration

प्रशासन में पारदर्शिता, पारदर्शिता की परिभाषा, पारदर्शिता का अर्थ क्या है

प्रशासन में पारदर्शिता, पारदर्शिता की परिभाषा, पारदर्शिता का अर्थ क्या है पारदर्शिता का क्या अर्थ है  What meant by transparency


पारदर्शिता का क्या अर्थ है  What meant by transparency

  • पारदर्शिता का अर्थ है खुलापन खुलेपन से आशय, प्रशासनिक नीति निर्माण और निर्णय लेने की प्रक्रिया की जानकारी तक नागरिकों की पहुँच से है। पारदर्शिता प्रशासन में जवाबदेही आती है और जवाबदेही से सहभागिता आती है। जनता की सहभागिता से लोकतंत्र की सफलता सुनिश्चित होती है और सुशासन की स्थापना होती है।

 

  • पारदर्शिता सुनिश्चित होने से सरकार के कार्यक्रमों की जानकारी जनता को सहज रूप में प्राप्त हो जाती है। जानकारी के अभाव में जनसहभागिता के लक्ष्य को नहीं पाया जा सकता है।
  • पारदर्शिता से लोककल्याण के लक्ष्य को सहजता से प्राप्त किया जा सकता है। अतः प्रशासन के प्रत्येक स्तर पर पारदर्शिता होना आवश्यक है। 
  • पारदर्शिता और जवाबदेही किसी भी जन हितैषी सरकार के दो आधार स्तम्भ हैं। 
  • पारदर्शिता और जवाबदेही न केवल लोगों को और करीब लाकर सरकार से जोड़ते हैं, बल्कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में उन्हें समान रूप से अहम भागीदार भी बनाते हैं।

 

1. सूचना का अधिकार 

  • प्रशासन तंत्र में लिए जाने वाले निर्णय और उनकी कार्यवाहियों के बारे में आम जनता को सूचना की उपलब्धता ही सूचना का अधिकार है। यह अधिकार न होने से प्रशासन के कार्यों की गुणवत्ता तथा समयबद्धता प्रभावित होती है। इन्हीं समस्याओं को दूर करने के लिए गोपनीय सूचना कानून 1921 को प्रतिस्थापित कर वर्ष 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम लाया गया लेकिन वर्तमान समय में सूचना के अधिकार अधिनियम की व्यापकता सीमित ही है। जिसका कारण जन जागरूकता का अभाव और प्रशासन का गैर जिम्मेदाराना रवैया भी है। इस जनजागरूकता को स्वयंसेवी संगठनों के सहयोग से सुनिश्चित किया जा सकता है।

 

2. सूचना तकनीकी 

  • प्रशासन तंत्र में सूचना तकनीक के द्वारा इसका सफल उदा. म.प्र. सरकार एम.पी. ऑनलाइन, राज. सरकार का ई-मित्र एवं कर्नाटक का फ्रेंडस तथा आंध्र प्रदेश का स्मार्ट, गुजरात सरकार का भू-लेख।।

 

3. जागरूक मीडिया 

  • जागरूक मीडिया के द्वारा भी प्रशासन तंत्र में जवाबदेयता और सत्यनिष्ठा सुनिश्चित की जा सकती है और सरकारों को भी मीडिया को इस दिशा में कार्य करने को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

 

4. सेवाओं की गुणवत्ता 

  • सेवाओं की गुणवत्ता के मानकों की सार्वजनिक घोषणा के द्वारा भी लोक सेवाओं में भी सत्यनिष्ठता तथा पारदर्शिता जवाबदेयता को भी सुनिश्चित किया जा सकता है। इसका उदाहरण नागरिक घोषणा पत्र है, जिसमें कि प्रत्येक कार्यालय द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली सेवाओं, गुणवत्ता, सम्बद्धता और  शिकायत निवारण तंत्र का वर्णन होता है। म.प्र. सरकार का लोक सेवा गारंटी अधिनियम नागरिक घोषणा पत्र का ही एक रूप है।


5. सतर्कता संस्थाओं की स्थापना

  • लोक सेवाओं में सत्यनिष्ठता और जवाबदेयता को सुनिश्चित करने के लिए सक्षम सतर्कता संस्थाओं के लिए महत्वपूर्ण भूमिका होती है वर्तमान समय में राष्ट्रीय स्तर पर लोकपाल, राज्य स्तर पर लोकायुक्त इसी प्रकार केन्द्रीय स्तर पर केन्द्रीय सतर्कता आयोग राज्य स्तर पर राज्य सतर्कता आयोग जैसी संस्थाएँ हैं लेकिन इनकी उपयोगिता सीमित ही है क्योंकि इनको अधिक अधिकार संपन्न नहीं बनाया गया है।

 

6. कठोरता से दंड

  • भारत में वर्तमान समय में आर्थिक अपराधों तथा प्रशासनिक भ्रष्टाचारों के संबंध में दंड की व्यवस्था अपर्याप्त है। यही कारण है कि भ्रष्टाचारियों और अपराधियों के मन में दंड का भय नहीं है। इस भय की कमी के कारण ही वे अपनी सत्यनिष्ठता से समझौता करते हैं। अत: आर्थिक भ्रष्टाचार के मामले ने कठोर दंड की व्यवस्था की जानी चाहिए।

 

7. आसान न्याय प्रणाली 

  • वर्तमान समय में जो दंड प्रणाली प्रचलित है उनमें अपने आप में विरोधाभास जैसी धारणाएँ भी हैं। अतः आवश्यकता इस बात की है। आर्थिक मामलों के संदर्भ में दंड संहिता के प्रावधान और ज्यादा स्पष्ट किये जाएँ तथा अष्टाचार और आर्थिक अपराधों के लिए विशेष न्यायालय स्थापित किये जाए और प्रत्येक मामले में उनके निस्तारण की समय सीमा भी तय की जाय उदा. म.प्र. सरकार का विशेष न्यायालय अधि. 2012 / म.प्र. सरकार का इस दिशा में किया गया कदम सराहनीय है।

 

8. नैतिक मूल्यों की आवश्यकता 

  • वर्तमान समय में समाज और प्रशासन दोनों ही जगह नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है, जिसकी वजह से लोक सेवकों में भ्रष्टाचार जैसी घटनाएँ बढ़ी हैं। सहयोगी समाज भी है। यदि समाज में मूल्य और नैतिकता शामिल होगी तभी हम प्रशासन से उम्मीद कर सकते हैं। जब अपने स्वार्थो के लिए नैतिक मूल्य का त्याग करेंगे और बदले में प्रशासनिक भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता को ही पायेंगे। समाज में नैतिक मूल्यों को स्थापित किया जाये तथा लोक सेवकों के लिए नैतिक आचार संहिता बनाई जानी चाहिए।

 

9. सामाजिक लेखा परीक्षण

  • लोक सेवा और सार्वजनिक कार्यों के संबंध में सामुदायिक अवधारणा को अपनाया जाना चाहिए जिसे Social Audit द्वारा सुनिश्चित किया जा सकता है। इससे एक ओर तो सामुदायिक सहभागिता बढ़ती है वहीं दूसरी ओर शासन तंत्र के कामों में पारदर्शिता और जवाबदेयता भी तय होती है। 

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