प्रशासन में नैतिक तत्व | Ethical elements in administration

प्रशासन में नैतिक तत्व  
Ethical Elements in administration
प्रशासन में नैतिक तत्व   Ethical Elements in administration


 

लोक प्रशासन में सेवाओं के प्रभावशाली तरीके से प्रदाय करने के लिए तथा संवैधानिक आदर्शों की पूर्ति के लिए शासन पद्धति को या गवर्नेस को कुछ मुख्य पद्धति को अपनाना आवश्यक है। इस मुख्य शासन पद्धति के मुख्य पहलू इस प्रकार हैं- 

1. सत्यनिष्ठता

सत्यनिष्ठता से सामान्य आशय नैतिक सिद्धांतों और व्यवहार की सुसंगतता से है। अर्थात प्रशासन जिन नैतिक सिद्धांतों पर आधारित है। व्यवहार में उनका पालन करे। सामान्यत: सत्यनिष्ठता में ईमानदारी, विश्वसनीयता और कार्य के प्रति प्रतिबद्धता आदि पहलू मिलकर सत्यनिष्ठता का निर्माण करते हैं। यह सत्यनिष्ठता प्रशासन की पूर्णता तथा पवित्रता का भी परिचायक है, सत्यनिष्ठता में किसी भी प्रकार की कमी प्रशासन नैतिक मार्ग से विचलन का कारण बनेगी। अत: प्रशासन में इसकी उपयोगिता अत्यंत महत्वपूर्ण है । 

प्रशासन में सत्यनिष्ठता का वर्गीकरण  

1- बौद्धिक सत्यनिष्ठता

  • इसके अंतर्गत ऐसे नैतिक सिद्धांतों का समावेश किया गया है, जिनका संबंध व्यक्ति के विचार और कार्यों से है। इसके अंतर्गत शामिल हैं दूसरों का मूल्यांकन करने वाला मापदंडों पर स्वयं को परख कर तर्क के साथ अपनी बात रखने का साहस तथा कथनी और करनी में समानता आदि।

2- व्यक्तिगत सत्यनिष्ठता

  • व्यक्तिगत सत्यनिष्ठता में व्यक्ति के निजी जीवन संबंधित तत्व जैसे- सत्य बोलना, अपने वादों की पूर्ति करना, चरित्र की उत्कृष्टता साथ बिना वजह किसी की झूठी तारीफ या बुराई न करना आदि चीजें शामिल हैं।

3-  व्यावसायिक सत्यनिष्ठता

  • इसके अंतर्गत एक व्यक्ति या प्रशासक को अपने कार्यों से संबंधित सत्यनिष्ठता शामिल है, जैसे- कार्य के प्रति प्रतिबद्धता, अपने कार्य और व्यवसाय के नियमों का पालन, प्रशासनिक जिम्मेदारियों का समय पर निर्वहन आदि शामिल हैं। उदा. एक डॉक्टर या वकील की व्यावसायिक सत्यनिष्ठता तभी सुनिश्चित होगी जब वे अपने ग्राहकों को सही और उचित सलाह तथा मार्गदर्शन उपलब्ध कराएँ।

 

सत्यनिष्ठता न होने के प्रभाव

  • प्रशासनिक जीवन में सत्यनिष्ठता न होने से वर्तमान समय में लोक प्रशासन के अंतर्गत भ्रष्टाचार और नैतिक पतन जैसी घटनाएँ बढ़ी हैं, साथ ही जनकल्याण के लक्ष्यों की पूर्ति में भी बाधा आई है। 
  • जनकल्याण के स्रोतों का रिसाव भ्रष्ट लोकसेवकों और ठेकेदारों का कल्याण कर रहे हैं। वर्तमान समय में सत्यनिष्ठता सुनिश्चित करने के लिए पूर्व में स्थापित संस्थाओं को और ज्यादा मजबूत बनाया जा रहा है। 
  • संविधान के अनुच्छेद 309 के तहत सिविल सेवाओं के लिए आचरण संहिता 1954 और 1964 में बनाई गई। लेकिन इसकी व्यावहारिक कमियों की वजह से तथा इसे और ज्यादा मजबूत बनाने के लिए संविधान के अनु. 3।। को हटाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

 

2. उत्तरदायित्व

सरकार के लोक कल्याणकारी दृष्टिकोण को अपनाने की वजह से लोकसेवकों के अधिकारों में भी बढ़ोतरी की गई है, ताकि वे स्थानीय समस्याओं का स्थानीय स्तर पर ही समाधान कर सकें। लेकिन इन विवेकाधीन अधिकारों के दुरुपयोग की भी संभावना बहुत अधिक होती है। इसलिए आवश्यक है कि उनके विवेकाधीन अधिकारों के लिए उन्हें ऊपरी सत्ता के प्रति उत्तरदायित्व बनाया जाए। संक्षेप में उत्तरदायित्व का आशय अपने कार्यों और अधिकारों के उपयोग का लेखा-जोखा अपने उच्च स्तर के अधिकारियों को देने की विधिक जिम्मेदारी से है। 


उत्तरदायित्व के प्रकार

 

1-  ऊर्ध्वाधर और लम्बवत् उत्तरदायित्व

  • इसके अंतर्गत प्रत्येक निचले स्तर के अधिकारियों को अपने से ऊपरी सत्ता के प्रति उत्तरदायित्व से है। लोक प्रशासन में मुख्यतः इसी प्रकार की जवाबदेहिता देखने को मिलती है। जैसे- सचिव- मुख्य सचिव- मुख्यमंत्री- सरकार- विधायिका। 
  • लम्बवत् या समान स्तर की उत्तरदायित्व उसे कहते हैं जब दोनों संस्थाएँ एक- दूसरे के प्रति उत्तरदायी होती हैं, लेकिन उनके स्तर समान होते हैं। जैसे- लोकतंत्र में कार्यपालिका को विधायिका के प्रति उत्तरदायी बनाया गया है जबकि दोनों के स्तर समान हैं।

 

2- सूक्ष्म और वृहद उत्तरदायित्व 

इसके अंतर्गत मुख्यत: विश्व बैंक की वृहद जवाबदेही है जो नागरिकों के प्रति प्रशासन को उत्तरदायित्व बनाने का दो स्तरों पर प्रयास करती है। सूक्ष्म उतरदायित्व दो प्रकार के होते हैं आवाज और निकास । 

(1) आवाज उत्तरदायित्व के अंतर्गत नागरिकों/ग्राहकों के सार्वजनिक सेवाओं की अपर्याप्तता की स्थिति में आवाज उठाने या विरोध करने की व्यवस्था उपलब्ध कराने से है। साधारण शब्दों में इसे शिकायत निवारण तंत्र की उपलब्धता भी कहा जा सकता है। 


(2) निकास उत्तरदायित्व में सरकारों का यह उत्तरदायित्व आता है कि वे सेवा से असंतुष्टि की दशा में दूसरी सेवा का चुनाव कर सकें। और दूसरी सेवाओं के लिए ये अवसर उपलब्ध करवाना सरकारों की जिम्मेदारी होनी चाहिए। 


उत्तरदायित्व से लाभ 

शासनतंत्र में उत्तरदायित्व के सुनिश्चित होने से लोकसेवकों के अन्दर तार्किकता बढ़ेगी। साथ ही उनके द्वारा लिए गए निर्णयों होगी ना कि धन आधारित। इससे यह भी पता चलेगा कि लोकसेवकों द्वारा किया गया प्रयास सर्वश्रेष्ठ था। उसमें किसी तथ्य को नहीं छुपाया गया है उत्तरदायित्व के होने से यह भी सुनिश्चित होगा कि लोक सेव कों ने कानूनी सीमा और नैतिक संहिता का पालन किया है।


लोक सेवा में उत्तरदायित्व के लाभ और उपयोगिता को हम निम्न विधियों में देख सकते हैं।

 1. उत्तरदायित्व सुनिश्चित होने से प्रशासन के कार्यों में तार्किकता आती है। 

2. उत्तरदायित्व तय होने से शासन तंत्र का प्रत्येक स्तर अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजग होता है तथा अपने अधिकारों का प्रयोग अपने निर्दिष्ट लक्ष्यों के लिए करता है। 

3. उत्तरदायित्व के कारण भी प्रशासन के कार्यों में तेजी आती है जिससे कि भ्रष्टाचार जैसी समस्या से निपटना सुनिश्चित होगा। 

4. उत्तरदायित्व प्रशासन तंत्र होने से जनता का विश्वास शासन और प्रशासन तंत्र में बढ़ता है और लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए यह महत्वपूर्ण है। 

5. उत्तरदायित्व से प्रशासन में पारदर्शिता और तार्किकता आती है। 

6. यह दिखाई दे कि सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन किया गया 7. निष्पक्षता के साथ भेदभाव से रहित निर्णय लिया गया है। 

8. कानून सम्मत निर्णय लिया गया है। 

9. नैतिक व समाजिक मान्यताओं के अनुरूप है।

 

प्रशासन में नैतिक तत्व का मुख्य लक्ष्य गलत और मनमाने प्रशासनिक प्रशासनिक प्रक्रिया की कार्यकुशलता और प्रभावशीलता को बढ़ाना है। कार्यों को रोकना और और प्रशासनिक प्रक्रिया की कार्यकुशलता और प्रभावशीलता को बढ़ाना है

 

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