पंचायती राज के वित्तीय स्त्रोत | पंचायतों की आय के साधन | Panchayat Sources of Earning

 पंचायती राज के वित्तीय स्त्रोत |पंचायतों की आय के साधन 

 

पंचायती राज के वित्तीय स्त्रोत | पंचायतों की आय के साधन  | Panchayat Sources of Earning

 पंचायती राज संस्थाओं के वित्तीय स्रोतों तथा उनकी वित्तीय शक्तियां 

भारत के द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2005-2009) पंचायती ने राज संस्थाओं के वित्तीय स्रोतों तथा उनकी वित्तीय शक्तियों को निम्नांकित रूप में संक्षेपित किया है -

 

1. संविधान के चौथे खंड का बड़ा हिस्सा पंचायती राज संस्थाओं के संरचनात्मक सशक्तीकरण के बारे में है। लेकिन स्वायत्तता तथा अपने ऊपर निर्भर संस्थाओं की कार्यकुशलता उनकी वित्तीय स्थिति पर निर्भर करती है। उनके अपने संसाधन जुटाने की क्षमता पर भी निर्भर करती है । साधारणतः हमारे देश में पंचायतें निम्नलिखित तरीकों में राजस्व एकत्र करती

पंचायतें निम्नलिखित तरीकों में राजस्व एकत्र करती

(i) संविधान की धारा 280 के आधार पर केंद्रीय वित्त आयोग की अनुशंसाओं के अनुसार केंद्र सरकार से प्राप्त अनुदान । 

(ii) संविधान धारा 243-1 के अनुसार राज्य वित्त आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर राज्य सरकार से प्राप्त अनुदान। 

(iii) राज्य सरकार से प्राप्त कर्ज/ अनुदान 

(iv) केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं तथा अतिरिक्त केंद्रीय मदद के नाम पर कार्यक्रम केंद्रित आवंटन 

(v) आंतरिक (स्थानीय स्तर) पर संसाधन निर्माण (कर) तथा गैर कर )


2. देशभर में राज्यों ने पंचायतों के वित्तीय सशक्तीकरण पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। पंचायतों के अपने संसाधन अत्यल्प है। करेल, कर्नाटक तथा तमिलनाडु वे राज्य हैं जिन्हें पंचायत सशक्तीकरण के मामले में अग्रणी समझा जाता है लेकिन वहाँ भी पंचायतें सरकारी अनुदान पर अत्यधिक निर्भर हैं । इनके बारे में कोई निम्नलिखित निष्कर्ष निकाल सकता है:

 

(i) पंचायतें आंतरिक संसाधन जुटाने में कमजोर हैं। यह एक हद तक एक क्षीण कर (domain) के कारण तो है ही, लेकिन यह पंचायतों के कर संग्रहण में 

(ii) पंचायतें अनुदान के लिए केंद्र तथा राज्य सरकारों पर अत्यधिक निर्भर हैं। 

(iii) केंद्र और राज्य सरकारों से प्राप्त अनुदानों का बहुलांश विशेष योजना पर केंद्रित है। पंचायत को सीमित अधिकार है। व्यय के मामले में भी उन्हें सीमित अधिकार हैं। 

(iv) राज्यों की गंभीर वित्तीय स्थिति के कारण राज्य सरकारों को पंचायतों को वित्त आवंटित करने में अनिच्छा हो रही है। 

(v) ग्यारहवीं अनुसूची के अहम विषयों प्राथमिक शिक्षा स्वास्थ्य सेवा, जलापूर्ति, स्वच्छता तथा लघु सिंचाई आदि से संबंधित योजनाओं तथा उन पर होने वाले व्यय पर आज भी राज्य सरकारें ही सीधे-सीधे जिम्मेदार हैं। 

(vi) कुल मिलाकर, स्थिति यह है कि पंचायतों के पास जिम्मेदारी बहुत है पर संसाधन बेहद कम

 

3. हालांकि केंद्र/राज्य सरकारों द्वारा हस्तांतरित वित्त पंचायत को प्राप्त होने वाली राशि का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, परंतु पंचायती राज संस्थाओं द्वारा स्वयं द्वारा संगृहीत संसाधन उनके वित्तीय आधार का मूल है। प्रश्न केवल संसाधनों का नहीं है, स्थानीय कर व्यवस्था की मौजूदगी इस चुनी गई संस्था में जन भागीदारी सुनिश्चित करती है। इससे पंचायती राज संस्था नागरिकों के प्रति जवाबदेह बनती है।

 

4. अपने संसाधनों के संग्रहण के मामले में, ग्राम पंचायतें तुलनात्मक रूप से बेहतर स्थिति में हैं क्योंकि उनकी अपनी भी कर व्यवस्था है। जबकि पंचायती राज के दो अन्य स्तर अपने संसाधन जुटाने के मामले में पूरी तरह से टोल करों, फीस तथा गैर-कर राजस्व पर निर्भर है।

 

5. राज्य पंचायती राज अधिनियम ने ग्राम पंचायतों को अधिकांश कराधान के अधिकार दे रखे हैं। माध्यमिक तथा जिला पंचायतों की कर व्यवस्था ( कर तथा गैर कर, . दोनों) काफी लघु रखी गई है जो कि द्वितीयक क्षेत्रों में जैसे कि (ferry services), बाजार, जल तथा संरक्षण सेवाएँ, वाहनों का पंजीकरण, स्टैंप ड्यूटी पर (cess) तथा अन्य तक सीमित होते हैं ।

 

6. कई राज्यों के विधायनों के अध्ययन से संकेत मिलता है कि कई तरह के कर, शुल्क मार्गकर तथा फीस ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। इनमें अन्य चीजों के अलावा चुंगी, संपत्ति / आवास कर, पेशाकार, भूमि करके, वाहनों पर लगने वाले कर / मार्गकर, मनोरंजन कर पीस, लाइसेन्स फीस गैर कृषि भूमि पर कर, मवेशी पंजीकरण फीस, स्वच्छता/जल- निवास / संरक्षण कर दे, जल कर, प्रकाश कर, शिक्षा शुल्क तथा मेलों, त्योहारों पर कर आते हैं।


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