73वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992 |73वां संशोधन अधिनियम |73rd Constitutional Amendment Act 1992

73वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992 |73rd Constitutional Amendment Act 1992

73वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992 |73वां संशोधन अधिनियम |73rd Constitutional Amendment Act 1992


1992 का 73वां संशोधन अधिनियम

 

73वां संशोधन अधिनियम अधिनियम का महत्व

 

  • इस अधिनियम ने भारत के संविधान में एक नया खंड-IX सम्मिलित किया । इसे 'पंचायतें' नाम से इस भाग में उल्लिखित किया गया और अनुच्छेद 243 से 243 '' के प्रावधान सम्मिलित किए गए। इस अधिनियम ने संविधान में एक नई 11वीं सूची भी जोड़ी । इस सूची में पंचायतों की 29 कार्यकारी विषय-वस्तु है। यह अनुच्छेद 243 - जी से संबंधित है।

 

  • इस अधिनियम ने संविधान के 40वें अनुच्छेद को एक व्यवहारिक रूप दिया, जिसमें कहा गया है कि, "ग्राम पंचायतों को गठित करने के लिए राज्य कदम उठाएगा और उन्हें उन आवश्यक शक्तियों और अधिकारों से विभूषित करेगा जिससे कि वे स्वशासन की इकाई की तरह कार्य करने में सक्षम हो । यह अनुच्छेद राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों का एक हिस्सा है । "

 

  • इस अधिनियम ने पंचायती राज संस्थाओं को एक संवैधानिक दर्जा दिया और इसे संविधान के अंतर्गत वाद योग्य हिस्से के अधीन लाया। दूसरे शब्दों में इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार नई पंचायती राज पद्धति को अपनाने के लिए राज्य सरकारें संवैधानिक से बाध्य है। परिणामस्वरूप, पंचायत का गठन और नियमित अंतराल पर चुनाव राज्य सरकार की इच्छा पर निर्भर नहीं।

 

  • इस अधिनियम के उपबंधों को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है- अनिवार्य और स्वैच्छिक अधिनियम के अनिवार्य हिस्से को पंचायती राज व्यवस्था के गठन के लिए राज्य के कानून में शामिल किया जाना आवश्यक है। दूसरे भाग के स्वैच्छिक उपबंधों को राज्यों के स्व विवेकानुसार सम्मिलित किया जा सकता है। अतः स्वैच्छिक प्रावधान राज्य को नई पंचायती राज पद्धति को अपनाते समय भौगोलिक, राजनीतिक एवं प्रशासनिक तथ्यों को ध्यान में रखकर अपनाने का अधिकार सुनिश्चित करता है ।

 

  • यह अधिनियम देश में जमीनी स्तर पर लोकतांत्रिक संस्थाओं के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह प्रतिनिधित्व लोकतंत्र को 'भागीदारी लोकतंत्र' में बदलता है। यह देश में लोकतंत्र को जमीनी स्तर पर तैयार करने की एक क्रांतिकारी संकल्पना है ।

 

73वां संशोधन अधिनियम प्रमुख विशेषताएं

 

इस अधिनियम की महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

 

ग्राम सभा: 

  • यह अधिनियम पंचायती राज के ग्राम सभा का प्रावधान करता है । इस निकाय में गांव स्तर पर गठित पंचायत क्षेत्र में निर्वाचक सूची में पंजीकृत व्यक्ति होते हैं । अतः यह पंचायत क्षेत्र में पंजीकृत मतदाताओं की एक ग्राम स्तरीय सभा है। यह उन शक्तियों का प्रयोग करेगी और ऐसे कार्य निष्पादित कर सकती है जो राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्धारित किए गए हैं ।

 

त्रिस्तरीय प्रणाली

  • इस अधिनियम में सभी राज्यों के लिए त्रिस्तरीय प्रणाली का प्रावधान किया गया है, अर्थात् ग्राम, माध्यमिक और जिला स्तर पर पंचायत। अतः यह अधिनियम पूरे देश मेंपंचायत राज की संरचना में समरूपता लाता है। फिर भी, ऐसा राज्य जिसकी जनसंख्या 20 लाख से ऊपर न हो, को माध्यमिक स्तर पर पंचायतें को गठन न करने की छूट देता है।

 

सदस्यों एवं अध्यक्ष का चुनाव

  • गांव, माध्यमिक तथा जिला स्तर पर पंचायतों के सभी सदस्य लोगों द्वारा सीधे चुने जाएंगे। इसके अलावा, माध्यमिक एवं जिला स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव निर्वाचित सदस्यों द्वारा उन्हीं में से अप्रत्यक्ष रूप से होगा, जबकि गांव स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्धारित तरीके से किया जाएगा।

 

सीटों का आरक्षण

  • यह अधिनियम प्रत्येक पंचायत में (सभी तीन स्तरों पर ) अनुसूचित जाति एवं जनजाति को उनकी संख्या के कुल जनसंख्या के अनुपात में सीटों पर आरक्षण उपलब्ध कराता है ।

 

  • राज्य विधानमंडल गांव या अन्य स्तर पर पंचायतों में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए अध्यक्ष के पद के लिए आरक्षण भी प्रदान करेगा।

 

  • इस अधिनियम में यह व्यवस्था की गई है कि आरक्षण के मसले पर महिलाओं के लिए उपलब्ध कुल सीटों की संख्या (इसमें वह संख्या भी शामिल है, जिसके तहत अनुसूचित जाति एवं जनजाति की महिलाओं को आरक्षण दिया जाता है) एक तिहाई से कम न हो । इसके अतिरिक्त पंचायतों में अध्यक्ष व अन्य पदों के लिए हर स्तर पर महिलाओं के लिए आरक्षण एक-तिहाई से कम नहीं होगा ।

 

  • यह अधिनियम विधानमंडल को इसके लिए भी अधिकृत करता है कि वह पंचायत अध्यक्ष के कार्यालय में पिछड़े वर्गों के लिए किसी भी स्तर पर आरक्षण की व्यवस्था करे |

 

पंचायतों का कार्यकालः 

  • यह अधिनियम सभी स्तरों पर पंचायतों का कार्यकाल पांच वर्ष के लिए निश्चित करता है तथापि, समय पूरा होने से पूर्व भी उसे विघटित किया जा सकता है । इसके बाद पंचायत गठन के लिए नए चुनाव होंगे। (अ) इसकी 5 वर्ष की अवधि खत्म होने से पूर्व या (ब) विघटित होने की दशा में इसके विघटित होने की तिथि से 6 माह खत्म होने की अवधि के अंदर ।

 

  • परंतु जहाँ शेष अवधि (जिसमें भंग पंचायत काम करते रहती है) छह माह से कम है, वहाँ इस अवधि के लिए नई पंचायत का चुनाव आवश्यक नहीं होगा।

 

  • यह भी है कि एक भंग पंचायत के स्थान पर गठित पंचायत जो भंग पंचायत की शेष अवधि के लिए गठित की गई है। वह भंग पंचायत की शेष अवधि तक ही कार्यरत रहेगी। दूसरे शब्दों में, एक पंचायत जो समय पूर्व भंग होने पर पुनर्गठित हुई है, वह पूरे पाँच वर्ष की निर्धारित अवधि तक कार्यरत नहीं होती, बल्कि केवल बचे हुए समय के लिए ही कार्यरत होती है।

 

पंचायत सदस्य के लिए अनर्हताएं:

कोई भी व्यक्ति पंचायत का सदस्य नहीं बन पाएगा यदि वह निम्न प्रकार से अनर्ह होगा ।

 

(अ) राज्य विधानमंडल के लिए निर्वाचित होने के उद्देश्य से संबंधित राज्य में उस समय प्रभावी कानून के अंतर्गत, अथवा

 

(ब) राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के अंतर्गत लेकिन किसी भी व्यक्ति को इस बात पर अयोग्य घोषित नहीं किया जाएगा कि वे 25 वर्ष से कम आयु का है, यदि वह 21 वर्ष की आयु पूरा कर चुका है। अयोग्यता संबंधित सभी प्रश्न, राज्य विधान द्वारा निर्धारित प्राधिकारी को संदर्भित किए जाएंगे।


राज्य निर्वाचन आयोग

चुनावी प्रक्रियाओं की तैयारी की देखरेख, निर्देशन, मतदाता सूची तैयार करने पर नियत्रंण और पंचायतों के सभी चुनावों को संपन्न कराने की शक्ति राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगी। इसमें राज्यपाल द्वारा नियुक्त राज्य चुनाव आयुक्त सम्मिलित हैं। उसकी सेवा शर्तें और पदावधि भी राज्यपाल द्वारा निर्धारित की जाएंगी। इसे राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का हटाने के लिए निर्धारित तरीके के अलावा अन्य किसी तरीके से नहीं हटाया जाएगा। उसकी नियुक्ति के बाद उसकी सेवा शर्तों में ऐसा कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा जिससे उसका नुकसान हो ।

 

पंचायतों के चुनाव संबंधित सभी मामलों पर राज्य विधान कोई भी उपबंध बना सकता है।

 

पंचयत चुनाव के संबंध में राज्य निर्वाचन आयोग की शक्तियां और कार्य: 

राज्य विधानमंडल पंचायतों को आवश्यकतानुसार ऐसी शक्तियां और अधिकार दे सकता है, जिससे कि वह स्वशासन संस्थाओं के रूप में कार्य करने में सक्षम हों। इस तरह की योजना में उपयुक्त स्तर पर पंचायतों के अंतर्गत शक्तियां और जिम्मेदारियां प्रत्यापित की जाएं जो निम्नलिखित से संबंधित हैं :

 

(अ) आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के कार्यक्रमों को तैयार करने से । 

(ब) आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के सौंपे जाएं कार्यक्रमों को कार्यान्वित करना जिसमें 11वीं अनुसूची के 29 मामलों के सूत्र भी सम्मिलित हैं।

 

वित्तः राज्य विधानमंडल निम्न अधिकार रखता है:

 

(अ) पंचायत को उपयुक्त कर, चुंगी, शुल्क लगाने और उनके संग्रहण के लिए प्राधिकृत कर सकता है ।

 

(ब) राज्य विधानमंडल राज्य सरकार द्वारा आरोपित और संगृहीत करो, चुंगी, मार्ग कर और शुल्क पंचायतों को सौंपे जा सकते हैं ।

 

(स) राज्य की समेकित निधि से पंचायतों को अनुदान सहातया देने के लिए उपबंध करता है

 

(द) निधियों के गठन का उपबंध करेगा जिसमें पंचायतों को दिया गया सारा धन जमा होगा।

 

पंचायतों के संबंध में वित्त आयोग: 

राज्य का राज्यपाल प्रत्येक 5 वर्ष के पश्चात पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा के लिए वित्त आयोग का गठन करेगा। यह आयोग राज्यपाल को निम्न सिफारिशें करेगा:

 

1. सिद्धांत जो नियंत्रित करेंगे:

 

(अ) राज्य सरकार द्वारा लगाए गए कुल करों, चुंगी, मार्ग कर एवं एकत्रित शुल्कों का राज्य और पंचायतों के बंटवारा। 

(ब) करों, चुंगी, मार्गकर और शुल्कों का निर्धारण जो पंचायतों को सौंपे गए हैं।

(स) राज्य की समेकित निधि कोष से पंचायतों को दी जाने वाली अनुदान सहायता ।

 

2. पंचायतों की वित्तीय स्थिति के सुधार के लिए आवश्यक उपाय।

 

3. राज्यपाल द्वारा आयोग को सौंपा जाने वाला कोई भी मामला जो पंचायतों के मजबूत वित्त के लिए हो

 

राज्य विधानमंडल आयोग की बनावट, इसके सदस्यों की आवश्यक अर्हता तथा उनके चुनने के तरीके को निर्धारित कर सकता है । 

राज्यपाल आयोग द्वारा की गई सिफारिशों को की गई कार्यवाही रिपोर्ट के साथ राज्य विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करेगा। 

केंद्रीय वित्त आयोग भी राज्य में पंचायतों के पूरक स्रोतों में वृद्धि के लिए राज्य की समेकित विधि आवश्यक उपायों के बारे में सलाह देगा। (राज्य वित्त आयोग द्वारा दी गई सिफारिशों के आधार पर) |

 पंचायतों के संबंध में  लेखा परीक्षण

राज्य विधान मंडल पंचायतों के खातों (accounts) की देखरेख और उनके परीक्षण के लिए प्रावधान बना सकता है। 

संघ राज्य क्षेत्रों पर लागू होना: भारत का राष्ट्रपति किसी भी संघ राज्यक्षेत्र अपवादों अथवा संशोधनों के साथ लागू करने के लिए। निर्देश दे सकता है।

 

छूट प्राप्त राज्य व क्षेत्र: यह कानून जम्मू-कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, मिजोरम और कुछ अन्य विशेष क्षेत्रों पर लागू नहीं होता। इन क्षेत्रों के अंतर्गत (अ) उन राज्यों के अनुसूचित आदिवासी और क्षेत्रों में (ब) मणिपुर के उन पहाड़ी क्षेत्रों में जहां जिला परिषद अस्तित्व में हो। (स) पं. बंगाल को दार्जिलिंग जिला जहां पर दार्जिलिंग गोरखा हिल, परिषद अस्तित्व में है । 

हालांकि, संसद चाहे तो इस अधिनियम को ऐसे अपवादों और संशोधनों के साथ अनुसूचित क्षेत्रों एवं जनजाति क्षेत्रों में लागू कर सकती है, जो वह उचित समझे ।

 

वर्तमान कानून की निरंतरता एवं पंचायतों का अस्तित्व

पंचायतों से संबंधित राज्य के सभी कानून प्रभावी रूप से इस अधिनियम के आरंभ होने से 1 वर्ष की अवधि खत्म होने तक लागू रहेंगे। दूसरे शब्दों में, कोई भी राज्य नए पंचायती राज कार्यक्रम को 24 अप्रैल, 1993 के बाद अधिकतम 1 वर्ष की अवधि के अंदर अपनाए जो कि इस अधिनियम के शुरुआत की तारीख है। फिर भी यह कानून लागू होने से पूर्व बनी पंचायत अपनी अवधि खत्म होने तक कार्यकाल पूरा कर सकती है यदि वह राज्य विधान उससे पूर्व शीघ्र ही विघटित न कर दी जाएं।

 

इसके परिणामस्वरूप 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के अनुसार नई व्यवस्था अपनाने के लिए अधिकांश राज्यों ने 1993 एवं 1994 पंचायती राज अधिनियम पारित किए।

 

चुनावी मामलों में न्यायालय के हस्तक्षेप पर रोकः 

यह अधिनियम पंचायत के चुनावी मामलों में न्यायालय के हस्तक्षेप पर रोक लगाता है। इसमें कहा गया है कि निर्वाचन क्षेत्र और इन निर्वाचन क्षेत्र में सीटों के आवंटन संबंधी मुद्दों को न्यायालय के समक्ष पेश नहीं किया जा सकता। इसमें यह भी कहा गया है कि किसी भी पंचायत के चुनावों को राज्य विधानमंडल द्वारा निर्धारित प्राधिकारी अथवा तरीके के अलावा चुनौती नहीं दी जाएगी। 


11वीं अनुसूची के अनुसार पंचायतों के 29 कार्य 

11वीं अनुसूची: इसमें पंचायतों के कानून क्षेत्र के साथ 29 प्रकार्यात्मक विषय वस्तु समाहित हैं: 

1. कृषि जिसमें कृषि विस्तार सम्मिलित है । 

2. भूमि विकास, भूमि सुधार लागू करना, भूमि संगठन एवं भूमि संरक्षण

3. लघु सिंचाई, जल प्रबंधन और नदियों के मध्य भूमिविकास । 

4. पशुपालन, दुग्ध व्यवसाय तथा मत्स्यपालन । 

5. मत्स्य उद्योग | 

6. वन जीवन तथा कृषि खेती (वनों में ) । 

7. लघु वन उत्पत्ति । 

8. लघु उद्योग, जिसमें खाद्य उद्योग सम्मिलित है। 

9. खादी ग्राम एवं कुटीर उद्योग | 

10. ग्रामीण विकास । 

11. पीने वाला पानी । 

12. ईंधन तथा पशु चारा 

13. सड़कें, पुलों, तटों, जलमार्ग तथा अन्य संचार के साधन । 

14. ग्रामीण विघुत जिसमें विद्युत विभाजन समाहित है । 

15. गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोत | 

16. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम

17. प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा संबंधी विघालय | 

18. यांत्रिक प्रशिक्षण एवं व्यावसायिक शिक्षा | 

19. वयस्क एवं गैर वयस्क औपचारिक शिक्षा ।

20. पुस्तकालय । 

21. सांस्कृतिक कार्य । 

22. बाजार एवं मेले । 

23. स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य संबंधी संस्थाएं जिनमें अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तथा दवाखाने शामिल हैं। 

24. पारिवारिक समृद्धि 

25. महिला एवं बाल विकास । 

26. सामाजिक समृद्धि जिसमें विकलांग व मानसिक रोगी की समृद्धि निहित है। 

27. कमजोर वर्ग की समृद्धि जिसमें विशेषकर अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति वर्ग शामिल हैं। 

28. लोक विभाजन पद्धति । 

29. सार्वजनिक संपत्ति की देखरेख ।

 

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