अंबेडकर द्वारा अस्पृश्यता का विरोध |Opposition of untouchability By Ambedkar in Hindi

अंबेडकर द्वारा अस्पृश्यता का विरोध |Opposition of untouchability By Ambedkar

अंबेडकर द्वारा अस्पृश्यता का विरोध |Opposition of untouchability By Ambedkar in Hindi


 

अस्पृश्यता के विरोध में अंबेडकर की गतिविधियाँ

  • हिंदू धर्म की सबसे भीषण बुराइयों में से एक हैं अस्पृश्यता, गांधीजी कहा करते थे कि यदि अस्पृष्यता जीवित रहती है तो हिंदू धर्म मर जागा। वे जन्म मरण के चक्र से मुक्त होना चाहते थे। वे यह नहीं चाहते थे कि उनका फिर से जन्म हो। पर उनकी ईश्वर से प्रार्थना थी कि मेरा दुबारा हो तो एक शूद्र के घर में जन्म हो जिससे मैं शूद्रों के कष्टों तथा संकटों को स्वयं भी कह सकूं और उनकी सेवा कर सकूं। 


  • हिंदू धर्म में अस्पृश्यता की उत्पत्ति के बार में अनेक प्रकार की विचार धाराएं हैं। सामान्य विचार यह है कि अस्पृश्यता जातिप्रथा का विकृत रूप है। एक अन्य विचार यह है कि आर्यों ने विजित जातियों को अपना दास बनाया और उन्हें अछूतों की स्थिति तक पहुंचा दिया। एक तीसरा सिद्धांत यह है कि अछूत दास थे और उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। चूंकि उन्होंने गोमांस का सेवन नहीं छोड़ा इसलिए उन्हें समजा में तिरस्कृत करके अछूत बना दिया गया।


  • भारत में अछुतों की स्थिति दयनीय रही है। उनकी मुख्य रूप से तीन श्रेणियों रही है। पहली श्रेणी अस्पृश्यों की है अर्थात जिन्हें छुआ न जा सके। दूसरी श्रेणी वे लोग हैं जिनके नजदीक भी न जाया जाए। तीसरी श्रेणी में वे लोग है जिन्हें देखा भी न जाए। 


  • इस सदी के शुरू में हिंदुओं की कुल जनसंख्या तीस करोड़ थी इनमें से छह करोड़ लोग अछूत थे। हिंदओं की कुल आबादी का वे बीस प्रतिशत थे। उन्होंने भारत में विभिन्न भागों में उन्हें अलग-अलीग नामों से पुकारा उन्हें अत्यंजपेरियाअतिशूद्रअवर्णनामशूद्र आदि कहा जाता था। उनके ऊपर बड़े सामाजिक प्रतिबंध थे। उनके स्पर्श उनकी छाया उनकी बोली तक से परहेज था। वे कुछ घेरलू पशुओं को नही पाल सकते थे। 


  • आभूषण बनाने के लिए कुछ विशेष प्रकार की धातुओं का प्रयोग उनके लिए वर्जित था। उन्हें विशेष प्रकार की पोशाक पहननी पड़ती थी और बस्ती के बाहर गंदे स्थानों पर रहना पड़ता था। अम्बेडकर का जन्म एक अछूत परिवार में हुआ था। अपने जन्म के कारण उन्हें अपने आरंभिक जीवन में उनके यातनाएं तथा अपमान सहने पड़े थे। हिंदुओं के बीच जाति प्रथा तथा छुआछुत को मिटाने के समय-समय पर प्रयत्न होते रहे हैं। 


  • गौतम बुद्ध ने इस सामाजिक बुराइयों को दूर करने की चेष्टा की थी कबीर, नानक, रविदास, तुकाराम और चैतन्य जैसे संतों ने छुआछुत को एक बुराई माना था और मानव समाज की समानता पर बल दिया था।


  • 19वीं सदी के सामाजिक और धार्मिक बुराइयों का अंत करने की कोशिश की थी। दक्षिण भारत में जिस्टम पार्टी तथा ज्योति राव फुले जैसे समाज सुधारकों ने अछुतों की स्थिति सुधारने के लिए अनेकों कार्यक्रम संचालित किए थे। अम्बेडकर को अपनी बिरादरी की दुर्दशा देख कर बहुत पीड़ा होती थी। उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि यदि मैं दलित वर्गों की दयनीय स्थिति में सुधार नहीं कर सका तो अपनी जीवन लीला समाप्त कर दूंगा। अपनी इस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए उन्होंने तन-मन-धन से अछूतों की दशा सुधारने का प्रयास किया।

 

  • अम्बेडकर ने 1920 में मूकनायक नामक मराठी पाक्षिक आरंभ किया। इस पत्र के द्वारा उन्होंने अछूतों में जागृति पैदा करने का प्रयास किया। उन्होंने घोषणा की कि भारत के लिए सिर्फ आजादी पा लेना ही काफी नहीं है। भारत को एक श्रेष्ठ राज्य के रूप में विकसित होना चाहिए एक ऐसे राज्य के रूप में जो सभी वर्गों को धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विषयों में समान अधिकार दे सके। राज्य को एसी परिस्थितियों का निर्माण करना चाहिए कि सभी व्यक्तियों को विकास के समान अवसर सुलभ हो सके। 


  • 20 जुलाई 1924 को अम्बेडकर ने दलित वर्गों की उन्नति के लिए बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की । सभी का लक्ष्य दलित वर्गों के बीच शिक्षा और संस्कृति का विकास करना था। सभी दलितों की आर्थिक उन्नति भी करना था। अम्बेडकर ने अपनी रचनाओं और भाषणों द्वारा दलित वर्गों का संगठन किया। उन्के व्याख्यानों का मूल मंत्र था स्वावलंबन तथा एकता।


  • अम्बेडकर ने अछूतों के हित में सामाजिक एकता प्राप्त करने के लिए अनेक सत्याग्रह किए। इनमें महाद सत्याग्रह और नासिक सत्याग्रह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। महाद सत्याग्रह का उद्देश्य भी मंदिरों में प्रवेश कर सकते हैं। इन सत्याग्रहों के फलस्वरूप अछूतों को यह अनुभव हो गया है कि यदि वे मिल जुलकर सामूहिक आधार पर कार्य करें तो उनकी शक्ति कितनी बढ़ सकती हैं।

 

  • अम्बेडकर ने अछूतों की राजनीतिक स्थिति सुधारने तथा उन्हें राजनीतिक अधिकार दिलाने के लिए भी प्रयत्न किया। उन्होंने 29 मई 1928 को साइमन कमीशन की सेवा में एक ज्ञापन प्रस्तुत किया जिसमें आग्रह किया कि अनुसूचित जातियें के लिए कुछ रक्षापार्थी की आवश्यकता है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि दलित जातियों को विधानमंडलों, शासन व्यवस्था तथा लोकसंवाओं में प्रतिनिधित्व प्राप्त होना चाहिए। 


  • 1930-32 में ब्रिटिश सरकार के लंदन में भारत के भावी संविधान पर विचार करने के लिए तीन गोलमेज परिषदों का आयोजन किया। अम्बेडकर ने इन परिषदों में दलित वर्गों की नुमान्दगी की गोलमेज सम्मेलन में अम्बेडकर ने दलित वर्गों की दयनीय स्थिति का चित्र प्रस्तुत किया और मांग की कि देश के राजनीतिक भविष्य का निर्णय करकते समय अछूतों की समस्या को भी सुलझाया जाए। उनकी समस्या राजनीतिक समस्या का ही एक अभिन्न अंग है और उसे बृहद राजनीतिक समस्या के रूप में ही सुलझाने की आवश्यकता है। अम्बेडकर के प्रयत्नों के फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने अछूतों की पृथक सत्ता स्वीकार की तथा अन्य अल्पसंख्यक वर्गों के सथ उनहें भी पृथक निर्वाचन अधिकार दिए। इस विषय में ब्रिटिश सरकार के प्रस्ताव सांप्रदायिक निर्णय में निहित थे। 


  • ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमजे मैकडानल्ड ने अगस्त में इस निर्णय की घोषणा की थी। गांधी जी को साम्प्रदायिक निर्णय पसंद नहीं था और उन्होंने उसमें संशोधन करने के लिए आमरण अनशन किया। उनका यह उपवास सितंबर 1932 को आरंभ हुआ जिसे पूना समझौता कहा जाता है। इस समझौते के अनुसार गांधी जी दलित वर्गों को आरक्षित स्थान देने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने दलित वर्गों को सांप्रदायिक निर्णय में दिए गए स्थानों की अपेक्षा ज्यादा स्थान देने की पेशकश की। 


  • पूना समझौते की शर्ते भारतीय शासन अधिनियम 1935 में समाहित कर ली गई। इस अधिनियम में दलित वर्गों के लिए एक नए नाम का प्रयोग किया अनुसूचित वर्ग ओर दलितों को पहली बार राजनीतिक आरक्षण प्रदान किए। 1936 में अम्बेडकर ने एक नए राजनीतिक दल का संगठन किया और उसका नाम रखा इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी। फरवरी 1937 में बम्बई विधान मंडल के लिए निर्वाचन हुए। इस अद लने 15 स्थानों पर चुनाव लड़े और उनमें से 13 स्थानों पर विजय प्राप्त की। 


  • जूलाई 1942 में अम्बेडकर ने एक अन्य दल आल इंडिया शैडुल्ड कास्ट फेडरेशन (अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ) की स्थापना की। इस दल का उद्देश्य समूचे भारत में दलित वर्गों के हितों की रक्षा करना था। जुलाई 1942 में अम्बेडकर वायसराय की एक्जीक्यूटिव कौंसिल में रम सदस्य नियुक्त हुए। यह अस्पृश्यों के लिए भारी विजय थी । 


  • अम्बेडकर 1946 तक इस पर बने रहे। इस अवधि में उन्होंने सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों का हिस्सा बढ़ाने की कोशिश की। इस विषय में उन्होंने सरकार की सेवा में एक गोपनीय ज्ञापन भी प्रस्तुत किया। उनके प्रयत्नों के फलस्वरूप भारत सकार ने सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों के लिए 8.5 प्रतिशत स्थान आरक्षित कर दिए। अम्बेडकर ने सरकार को इस बात के लिए भी राजी कर लिया कि वह अनुसूचित जाति योग छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश में भेजे।

 

  • 1946 में संविधान सभा के लिए निर्वाचन हुए। अम्बेडकर बंगाल विधान सभा की तरफ से संविधान सभा में पहुंचे। संविधान सभा में उन्होंने पहला भाषण 17 दिसंबर 1946 को दिया। इस भाषण में उन्होंने आग्रह किया कि संविधान सभा के सदस्य सारे मतभेद भूल कर संयुक्त भारत के लिए कार्य करें। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें स्वतंत्र भारत का पहला विधि मंत्री बनने की दाव दी। संविधान सभा ने उन्हें संविधान की प्रारूप सिमति का अध्यक्ष निर्वाचित किया। अम्बेडकर के प्रयत्नों से संविधान ने अस्पृश्यता का अंत कर दिया तथा दलित वर्गों के विरूद्ध सरे भेदभाव दूर कर दिए संविधान समानता स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांतों पर आधारित है। मूल अधिकार भारत के सभी नागरिकों को प्राप्त हैं । 


  • संविधान ने जिस वयस्क मताधिकार की स्थापना की है वह सभी नागरिकों के बीच समानता की स्थापना करता है। अनटचेबिलिटी आफसेंस एक्ट 1955 ( अस्पृश्यता अपराध अधिनियम 1955) ने अस्पृश्यों के नागरिक अधिकारों की रक्षा की है। संविधान ने लोकसभा और विधामंडलों में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए स्थानों का आरंक्षण रखा है। लेकिन संविधान ने अनुसूचित जातियों ओर अनुसूचित जनजातियों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था नही रखी है। अम्बेडकर ने दलित वर्गों के लिए जो कुछ प्राप्त किया वे उससे संतुष्ट नहीं थे। उनका विचार था कि उन्होंने दलितों के लिए जो सुविधाएं प्राप्त की हैं उनका उपभोग केवल थोड़े से शिक्ष दलित लोग ही कर पाते हैं। इन शिक्षित दलितों के मन में अपने शोषित भाइयों के प्रति निक भी सहानुभूति नहीं था। यह खेद की बात कि रहने वाले अशिक्षित दलित जिनकी संख्या बहुत अधिक थी आर्थिक दृष्टि से पहले जैसे ही बने रहे। उन्हें इस बात का खेद था कि उनके सहायक जिनके ऊपर उनका पूरा विश्वास था आपस में लड़ते थे और खुद नेतृत्व संभालने तथा सत्ता प्राप्त करने की दौड़ में लगे रहते थे।


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