डॉ. अम्बेडकर द्वारा बौद्ध धर्म की दीक्षा | डॉ. अम्बेडकर द्वारा साहित्य का प्रकाशन |Diksha of Buddha Religion By Ambedkar

 

डॉ. अम्बेडकर द्वारा बौद्ध धर्म की दीक्षा | डॉ. अम्बेडकर द्वारा साहित्य का प्रकाशन |Diksha of Buddha Religion By Ambedkar

डॉ. अम्बेडकर द्वारा बौद्ध धर्म की दीक्षा (Diksha of Buddha Religion )

 

  • डॉ. अम्बेडकर ने भारतीय बौद्ध महासभा की मई 1955 में स्थापना की और उन्होंने महाराष्ट्र के जाने-माने शहर नागपुरजो देश का बौद्ध धर्म का एक ऐतिहासिक केंद्र थामें लगभग पांच लाख दलितों सहित 14 अक्तूबर 1956 को दशहरे के दिन बौद्ध धर्म की दीक्षा भी ली। 


  • यह विश्व इतिहास में अभूतपूर्व घटना हैक्योंकि एक साथ इतनी संख्या में व्यक्तियों ने कभी भी धर्म परिवर्तन नहीं किया। 


  • इस अवसर पर उन्होंने कहा बौद्ध धर्म का मौलिक सिद्धांत है समानता। अरे भिक्षुओं तुम अलग-अलग जाति के हो और विभिन्न देशों से आए हो। जिस तरह बड़ी नदियां विशाल सागर में मिरने पर अपनी पहचान खो देती हैं उसी तरह मेरे भाइयों जब ये चार जातियां क्षत्रियब्राह्मणवैश्य एवं शूद्र भगवान बुद्ध द्वारा प्रस्तुत किए गए मत तथा अनुशासन का मानने लगती हैं तब वे अपनी जाति और श्रेणी के अलग-अलग नाम त्याग कर एक ही समाज के सदस्य बन जाती हैं। यही भगवान बुद्ध के शब्द हैं। 


  • उन्होंने नेपाल के काठमांडू में चौथे विश्व बौद्ध सम्मेलन के अवसर पर 15 नवंबर 1956 को अपने विचार प्रकट करते हुए कहाबौद्ध धर्म विश्व का सबसे सर्वोत्तम धर्म है जिसे संसार अपना सकता है और जो जगत को विनाश और पतन से बचा सकता है।


  • डॉ. अम्बेडकर बौद्ध धर्मा की दीक्षा लेने के बाद अधिक समय तक जीवित नहीं रहे। उन्होंने 26 अलीपुर रोडदिल्ली अपने निवास स्थान पर 6 दिसंबर 1956 को अपने प्राण त्याग दिए। 


  • उनके देहांत का समाचार जंगल की आग की तरह पूरे देश में फैल गया। उनके अंतिम दर्शन के लिए हजारों नर-नारी दिल्ली और मुम्बई की ओर रवाना हो गए। उनका पार्थिव शरीर लेकर उनकी पत्नी (डॉ. सविता)पूत्र (यशवंतराव)निजी सचिव (नानकचंद रत्तू) आदि हवाई जहाज से अगले दिन मुम्बई पहुंचे। अर्थी के सथ लगभग तीन किलोमीटर लंबी शव यात्रा निकाली। उनकी देह को ट्रक पर फूलों से ढक कर रखा गया।


  • शव यात्रा के दोनों ओर की इमारतों से नर-नारियों ने फूलों की वर्षा की शव यात्रा चार घंटे बाद दादर की श्मशान भूमि पर विसर्जित हुई। 


  • यशवंतराव द्वारा उनकी चिता बौद्ध रीति के अनुसार प्रज्वलित की गयी और उनकी चिता को साक्षी बना कर लगभग 50000 व्यक्तियों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। 


  • अंत में भारत का सूपतजो स्वाधिनतासमता और बंधुता के एिल लड़ता रहापंचतत्व में विलीन हो गया। अब उनका भारतीय संविधान निर्माता के रूप में सदैव याद रखा जाता है ।


 डॉ. अम्बेडकर द्वारा साहित्य का प्रकाशन

साहित्य का प्रकाशन (Publication of Literature) डॉ. अम्बेडकर ने अपने जीवन में प्राप्त ज्ञानअनुभवों और शोध निष्कर्षों को निम्न पुस्तकों में वर्णित किया है।

  • Caste of India: Their Mechanism, 
  • Genisi and Development(1946)
  • Small Holdings in India and theri Remedies (1917)
  • The Problem of Rupee (1923)
  • The Evaluation of Provincial Finance British India (1925)
  • Annihilation of Case (1936),
  •  Federation Versus Freedom (1939),
  •  Ranade, Gandhi and Jinnah (1943)
  • Mr. Gandhi and Emancipation of the Untouchables (1943)
  • Thoughts of Pakistan (1943),
  •  Communal Deadlock and a way to solve it (1945),
  •  What Congress and Gandhi have done to the Untouchables? (1945)
  • Pakistan or Partition of India (1945)
  • Who were the Sudras? (1946)
  • States and Minorities (1947)
  • The untocuchables: Who are they and why they become Untouchable (1947)
  • History of Indian Currency and Banking volume I (1947)
  • Maharashtra as a Linguistic State (1948)
  • Rise and Fall o fHindu Women: Who is Responsible? (1951)
  • The Untouchables: Who and How (1948) and 
  • Thoughts on Linguistic States (1953) 

  • डॉ. अम्बेडकर की  अंतिम पुस्तक Buddha and His Dhamma (1957) तो उनके मरणांपरात प्रकाशित हुई है। इन पुस्तकों के अलावा विभिन्न आयोगें के सामने किये गये निवेदकों और भाषणों के भी हजारों पृष्ठ मुद्रित है। उनकी Waiting for visa Philosophy of Hinduism, India and Prerequisties of communism, Revolution and counter Revolution in Ancient India, Buddha of Karl Marx, Riddles in Hinduism and Untouchables or Children of India's Ghetto अप्रकाशित पुस्तकें हैं। 


  • उनके साहित्य ने अपने समय में काफी हलचल पैदा की थीक्योंकि वह मौलिक एवं अलौकिक था। उनक साहित्य पढने से उनके मानववादी दृष्टिकोण और उनकी अथाह जानकारी का पता लचता है। उनका साहित्य मराठी तथा हिंदी में भी उपलब्ध हैं। महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रकाशित उनका साहित्य तो रियायती दर पर मिलता है।

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