74वां संशोधन अधिनियम | 1992 का 74वां संशोधन अधिनियम | 74 Amendment in India Constitution

74वां संशोधन अधिनियम | 1992 का 74वां संशोधन अधिनियम | 74 Amendment in India Constitution

विषय सूची 

 

1992 का 74वां संशोधन अधिनियम

 

  • 74वां संशोधन अधिनियम ने भारत के संविधान में नया भाग 9क शामिल किया । इसे 'नगरपालिकाएंनाम दिया गया और अनुच्छेद 243त से 243 यछ के उपबंध शामिल किए गए। इस अधिनियम के कारण संविधान में एक नई 12वीं सूची को भी जोड़ा । इस सूची में नगरपालिकाओं की 18 कार्यकारी विषय वस्तुओं का उल्लेख है। यह अनुच्छेद 243- डब्ल्यू से संबंधित हैं ।

 

  • इस अधिनियम ने नगरपालिकाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया। इससे इसे संविधान के न्यायोचित भाग के क्षेत्राधिकार में लाया गया। दूसरे शब्दों मेंराज्य सरकार अधिनियम के प्रावधानानुसार नई नगरपालिका पद्धति को अपनाने के लिए संवैधानिक रूप से बाध्य है

 

  • इस अधिनियम का उद्देश्य शहरी शासन को पुनर्जीवित करना एवं शक्तिशाली बनाना हैजिससे कि वे स्थानीय शासन की इकाई के रूप में प्रभावशाली ढंग से कार्य करें ।

 

74वां संशोधन अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं

 

तीन प्रकार की नगरपालिकाएं 

यह अधिनियम प्रत्येक राज्य में निम्न तीन तरह की नगरपालिकाओं की संरचना का उपबंध करता है:

1. नगर पंचायत (किसी भी नाम से) परिवर्तित क्षेत्र के लिएजैसे वह क्षेत्र जो ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्र में परिवर्तित हो रहा हो ।

 

2. नगरपालिका परिषद छोटे शहरी क्षेत्रों के लिए । 


3. बड़े शहरी क्षेत्रों के लिए नगरपालिका निगम

 

नगरपालिका की संरचना : 

नगरपालिका के सभी सदस्य सीधे नगरपालिका क्षेत्र के लोगों द्वारा चुने जाएंगे। इस उद्देश्य के लिए प्रत्येक नगरपालिकाओं को निर्वाचन क्षेत्रों (वार्ड) में बांटा जाएगा। राज्य विधानमंडल नगरपालिका के अध्यक्ष के निर्वाचन का तरीका प्रदान कर सकता है। यह नगरपालिका में निम्न व्यक्तियों के प्रतिनिधित्व की व्यवस्था करता है: 

 

1. वह व्यक्ति जिसे नगरपालिका के प्रशासन का विशेष ज्ञान अथवा अनुभव हो लेकिन उसे नगरपालिका की सभा में वोट डालने का अधिकार नहीं होगा।

 

2. निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले लोकसभा या राज्य विधानसभा के सदस्यजिनमें नगरपालिका का पूर्ण या अंशतः क्षेत्र आता हो ।

 

3. राज्यसभा और राज्य विधानपरिषद के सदस्य जो नगरपालिका क्षेत्र में मतदाता के रूप पंजीकृत हों ।

 

4. समिति के अध्यक्ष (वार्ड समितियों के अतिरिक्त ) |

 

वार्ड समितियां : 

  • तीन लाख या अधिक जनसंख्या वाली नगरपालिका के क्षेत्र के तहत एक या अधिक वार्डों को मिलाकर वार्ड समिति होगी। वार्ड समिति की संरचनाक्षेत्र और वार्ड समिति में पदों को भरने के संबंध में राज्य विधानमंडल उपबंध बना सकता है । यह वार्ड समिति के साथ-साथ समिति की बनावट के लिए भी उपबंध बना सकता है ।

 

पदों का आरक्षण : 

  • यह अधिनियम अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को उनकी जनसंख्या और कुल नगरपालिका क्षेत्र की जनसंख्या के अनुपात में प्रत्येक नगरपालिका में आरक्षण प्रदान करता है । इसके अलावा यह महिलाओं को कुल सीटों के एक-तिहाई (इसमें अनुसूचित जाति व जनजाति महिलाओं से संबंधित आरक्षित सीटें भी हैं) (इसमें कम नहीं) सीटों पर आरक्षण प्रदान करता है ।

 

  • राज्य विधानमण्डल अनुसूचित जातिअनुसूचित जनजाति और महिलाओं हेतु नगरपालिकाओं में अध्यक्ष पद के आरक्षण हेतु विधि निर्धारित कर सकता है। यह किसी भी नगरपालिका या अध्यक्ष पद पर पिछड़ी जातियों के आरक्षण के समर्थन में कोई भी उपबंध बना सकता है ।

 

नगरपालिकाओं का कार्यकाल : 

यह अधिनियम प्रत्येक नगरपालिका की कार्यकाल अवधि 5 वर्ष निर्धारित करता है । यद्यपि इसे इसकी अवधि से पूर्व समाप्त किया जा सकता है। उसके बाद एक नई नगरपालिका का गठन किया जाएगा:

 

(अ) इसकी 5 वर्ष की अवधि समाप्त होने से पूर्व या, 

(ब) विद्यटत होने की दशा में इसे विघटन होने की तिथि से 6 महीने की अवधि तक

 

किंतुजहां इस अवधि (जिसके लिए भंग नगरपालिका को कार्य करते रहना है) छह महीने से कम होउस अवधि के लिए नई नगरपालिका के लिए किसी चुनाव की आवश्यकता नहीं होगी। फिर भीकिसी नगरपालिका के कार्यकाल की समाप्ति के पूर्व गठित नगरपालिका उस शेष अवधि के लिए बना रहेगा जिस अवधि के लिए भंग की गयी नगरपालिका भंग नहीं किए जाने पर बना रहता।

 

दूसरे शब्दों मेंसमयपूर्व भंग के पश्चात पुनः गठित नगरपालिका पांच वर्ष की पूर्ण अवधि तक के लिए नहीं बना रहेगा बल्कि केवल बची हुई अवधि के लिए ही कार्य करेगा।

 

निरर्हताएं :

चुने जाने पर या नगरपालिका के चुने हुए सदस्य निम्न स्थितियों में निरर्ह घोषित किए जा सकते हैं:

 

  • (अ) संबंधित राज्य के विधानमण्डल के निर्वाचन के प्रयोजन हेतु प्रचलित किसी विधि के अंतर्गत ।

 

  • (ब) राज्य विधान द्वारा बनाए गई किसी विधि के अंतर्गतफिर भी किसी व्यक्ति को 25 वर्ष से कम आयु की शर्त पर निरर्ह घोषित नहीं किया जा सकेगायदि वह 21 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो। इसके बाद निरर्हता संबंधित सारे विवादराज्य विधान द्वारा नियुक्त अधिकारियों के समक्ष ही प्रस्तुत किए जा सकेंगे।

 

राज्य निर्वाचन आयोग : 

निर्वाचन प्रक्रियाओं की देख-रेखनिर्देशन एवं नियंत्रण और नगरपालिकाओं के सभी चुनावों का प्रबंधन राज्य चुनाव आयोग के अधिकार में होगा। 

नगरपालिकाओं के चुनाव संबंधित सभी मामलों पर राज्य विधानमंडल उपबंध बना सकता है ।

 

शक्तियां और कार्य : 

राज्य विधानमंडल नगरपालिकाओं को आवश्यकतानुसार ऐसी शक्तियां और अधिकार दे सकता है जिसमें कि वे स्वायत्त सरकारी संस्था के रूप में कार्य करने में सक्षम हों। इस तरह की योजना में उपयुक्त स्तर पर नगरपालिकाओं के अंतर्गत शक्तियां और जिम्मेदारी आती हैंजो निम्न हैं:

 नगरपालिकाओं के अंतर्गत शक्तियां और जिम्मेदारी

(अ) आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के कार्यक्रमों को तैयार करना । 

(ब) आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के कार्यक्रमों को कार्यान्वित करनाजो उन्हें सौंपे गए हैंजिसमें 12वीं अनुसूची के 18 मामले भी सम्मिलित हैं ।

 

वित्त : राज्य विधायिकाः

 

(अ) नगरपालिका को वसूलीउपयुक्त कर निर्धारणचुंगीयात्री करशुल्क लेने का अधिकार। 

(ब) यह नगरपालिकाओं राज्य सरकार द्वारा करोंचुंगीपथकर और शुल्क एकत्र करने का काम सौंप सकती है। 

(स) राज्य की संचित निधि से नगरपालिकाओं को सहायता के रूप में अनुदान प्रदान है।

(द) नगरपालिकाओं में जमा होने वाली सभी राशि संग्रहण की विधियां तैयार कर सकती है ।

 

वित्त आयोग : 

वित्त आयोग (जो पंचायतों के लिए गठित किया गया है) भी प्रत्येक 5 वर्ष में नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति का पुनरावलोकन करेगा और राज्यपाल को निम्न सिफारिशें करेगा: 

1. सिद्धांत जो नियंत्रित होंगे:

 

(अ) राज्य और नगरपालिकाओं में राज्य सरकार द्वारा एकत्र किए गए कुल करोंचुंगीमार्ग कर एवं संग्रहित शुल्कों का बंटवारा। 

(ब) करोंचुंगीपथकर और शुल्कों का निर्धारण जो कि नगरपालिकाओं को सौंपे जा सकते हैं । 

(स) राज्य की संचित निधि से नगरपालिकाओं को दिए जाने वाले सहायता अनुदान ।

 

2. नगरपालिका की वित्तीय स्थिति के सुधार के लिए आवश्यक उपाए।

 

3. राज्यपाल द्वारा आयोग को दिया जाने वाला कोई भी मामला जो कि पंचायतों के मजबूत वित्त के पक्ष में हो ।

 

राज्यपाल आयोग द्वारा की गई सिफारिशों और कार्यवाही रिपोर्ट को राज्य विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करेगा।

 

केंद्रीय वित्त आयोग भी राज्य में नगरपालिकाओं के पूरक स्रोतों की राज्य की संचित निधि में वृद्धि के लिए (राज्य वित्त आयोग द्वारा दी गई सिफारिशों के आधार पर) आवश्यक उपायों के बारे में सलाह देगा।

 

लेखाओं का लेखा परीक्षण: 

  • राज्य विधानमण्डल नगरपालिकाओं के लेखाओं के अनुरक्षण और ऐसे लेखाओं की लेखा परीक्षा के संबंध में उपबंध बना सकता है।

 

केंद्रीय शासित राज्यों पर लागू :

  •  भारत का राष्ट्रपति इस अधिनियम के उपबंधों को किसी भी केंद्रशासित क्षेत्र में लागू करने के संबंध में निर्देश दे सकता हैसिवाए कुछ छूटों और परिवर्तनों के जिन्हें वे विशिष्टतः बताएं।

 

छूट प्राप्त क्षेत्र : 

  • यह अधिनियम राज्यों के अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों पर लागू नहीं होता। यह अधिनियम प. बंगाल की दार्जिलिंग गोरखा हिल परिषद की शक्तियों और कार्यवाही को प्रभावित नहीं करता।

 

जिला योजना समिति : 

प्रत्येक राज्य जिला स्तर पर एक जिला योजना समिति का गठन करेगा जो जिले की पंचायतों एवं नगरपालिकाओं द्वारा तैयार योजना को संगठित करेगी और जिला स्तर पर एक विकास योजना का प्रारूप तैयार करेगी। राज्य विधानमंडल इस संबंध में निम्न उपबंध बना सकता है:

 

1. इस तरह की समितियों की संरचना, 

2. इन समितियों के सदस्यों के निर्वाचन का तरीका, 

3. इन समितियों की जिला योजना के संबंध में कार्य

4. इन समितियों के अध्यक्ष के निर्वाचन का ढंग ।

 

इस अधिनियम के अनुसार जिला योजना समिति के 4/5 भाग सदस्य जिला पंचायत और नगरपालिका के निर्वाचित सदस्य द्वारा स्वयं में से चुने जाएंगे। समिति के इन सदस्यों की संख्या जिले की ग्रामीण एवं शहरी जनसंख्या के अनुपात में होनी चाहिए। 

 

इस प्रकार की समितियों का अध्यक्षविकास योजनाओं को राज्य सरकार को प्रेषित करेगा।

 

प्रारूप विकास आयोजना को तैयार करते समय जिला आयोजना समिति निम्नलिखित को ध्यान में रखेगी: 

(a) इसके संबंध में

 

  • (i) पंचायतों एवं नगरपालिकाओं के बीच साझे हितों के मामलेजैसे-जल तथा अन्य भौतिक तथा प्राकृतिक संसाधनों की हिस्सेदारीआधारभूत सरंचना का समन्वित विकास तथा पर्यावरण संरक्षण |

 

  • (ii) वित्तीय अथवा अन्य प्रकार के उपलब्ध संसाधनों का परिमाण ।

 

(b) ऐसी संस्थाओं एवं सगठनों से परामर्श लेगी जैसा कि राज्यपाल निर्दिष्ट करें 


महानगरीय योजना समिति : 

प्रत्येक महानगर क्षेत्र में विकास योजना के प्रारूप को तैयार करने हेतु एक महानगरीय योजना समिति होगी। राज्य विधानमंडल इस संबंध में निम्न उपबंध बना सकता है:

 

1. इस तरह की समितियों की संरचना,

 

2. इन समिति के सदस्यों के निर्वाचन का तरीका, 3. केंद्र सरकारराज्य सरकार तथा अन्य संस्थाओं का इन समितियों में प्रतिनिधित्व,

 

4. महानगरीय क्षेत्रों के लिए योजनाओं तथा समन्वयता के  संबंध में इन समितियों के कार्य

5. इन समितियों में अध्यक्ष के चुनाव का ढंग ।

 

इस अधिनियम के अंतर्गत महानगरीय योजना समिति के 2/3 सदस्य महानगर क्षेत्र में नगरपालिका के निर्वाचित सदस्यों एवं पंचायतों के अध्यक्षों द्वारा स्वयं में से चुने जाएंगे। समिति के इन सदस्यों की संख्या उस महानगरीय क्षेत्र में नगरपालिकों एवं पंचायतों की जनसंख्या के अनुपात में समानुपाती होनी चाहिये ।

 

इस तरह की समितियों का अध्यक्षविकास योजना राज्य सरकार को भेजेगा। प्रारूप विकास योजना तैयार करते समय महानगरीय आयोजना समिति निम्नलिखित का ध्यान रखेगी:

 

(a) इसके संबंध में

 

(i) महानगरीय क्षेत्र में नगरपालिकाओं एवं पंचायतों द्वारा तैयार योजनाओं का।

 

(ii) नगरपालिकों एवं पंचायतों के बीच साझे हितों में मामले जैसे समन्वित आयोजनाजल तथा अन्य भौतिक एवं प्राकृतिक संसाधनों की हिस्सेदारीआधारभूत सरंचना का समन्वित विकास एवं पर्यावरण संरक्षण |

 

(iii) भारत सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य एवं प्राथमिकताएं।

 

(iv) महानगरीय क्षेत्र में भारत सरकार अथवा राज्य सरकार द्वारा किए जाने वाले निवेश का परिमाण एवं प्रकृति तथा उपलब्ध वित्तीय एवं अन्य संसाधन । (b) ऐसी संस्थाओं एवं सगठनों से परामर्श प्राप्त करेगी जैसाकि राज्यपाल निर्दिष्ट करें।

 

वर्तमान विधियों एवं नगरपालिकाओं की निरंतरता: 

  • नगरपालिकाओं से संबंधित सभी विधियां इस अधिनियम के जारी होने के एक वर्ष बाद तक प्रभावी रहेंगी। दूसरे शब्दों में राज्यों को इस अधिनियम पर आधारित नगरपालिकाओं के नए तंत्र को 1 जून, 1993 से अधिकतम एक वर्ष की अवधि के भीतर अपनाना होगा। यद्यपि इस अधिनियम के लागू होने से पूर्व अस्तित्व में सभी नगरपालिकाएं जारी रहेंगी बशर्ते कि राज्य विधानमण्डल उन्हें विघटित न करे ।

 

निर्वाचन सम्बन्धी मामलों में न्यायालय के हस्तक्षेप पर रोक : 

यह अधिनियम नगरपालिकाओं के चुनाव संबंधी मामलों में न्यायालय के हस्तक्षेप पर रोक लगाता है। यह घोषित करता है कि चुनाव क्षेत्र और इन चुनाव क्षेत्र में सीटों के विभाजन संबंधी मुद्दों की चुनौती को न्यायालय के समक्ष पेश नहीं किया जा सकता। फिर भी राज्य विधानमंडल द्वारा सुझाए तरीकों एवं अधिकारियों को दी गई। अर्जी को छोड़कर किसी भी क्षेत्र में चुनाव न होने की स्थिति में न्यायालय में चुनौती पेश नहीं कर सकता है।

 

12वीं अनुसूची

इसमें नगरपालिकाओं के कार्य क्षेत्र के साथ 18 क्रियाशील विषयवस्तु समाहित हैं।

 

1. नगरीय योजना जिसमें नगर की योजना भी है ।

2. भूमि उपयोग का विनियमन और भवनों का निर्माण। 

3. आर्थिक एवं सामाजिक विकास योजना | 

4. सड़कें एवं पुल । 

5. घरेलू औद्योगिक एवं वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए जल प्रदाय । 

6. लोक स्वास्थ्य स्वच्छतासफाई और कूड़ा करकट प्रबंधन । 

7. अग्निश्मन सेवाएं। 

8. नगर वानिकीपर्यावरण संरक्षण एवं पारिस्थितकी आयोमों की अभिवृद्धि । 

9. समाज के कमजोर वर्गों के हितों का संरक्षणजिनमें मानसिक रोगी व विकलांग शामिल हैं। 

10. गंदी बहती सुधार और प्रोन्नयन | 

11. नगरीय निर्धनता उन्मूलन । 

12. नगरीय सुख-सुविधाओं और सुविधाओंजैसे पार्कउद्यानखेल के मैदानों की व्यवस्था । 

13. सांस्कृतिकशैक्षिक व सौंदर्य पक्ष आयामों की अभिवृद्धि । 

14 शव गाड़ना तथा शवदाहदाहक्रिया व श्मशान और विद्युत शवदाहगृह । 

15. कांजी हाउस: पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण | 

16. जन्म व मृत्यु से संबंधित महत्वपूर्ण सांख्यिंकी । 

17. जन सुविधाएं जिनमें मार्गों पर विद्युत व्यवस्थापार्किंग स्थलबस स्टैंड तथा जन सुविधाएं सम्मिलित हैं। 

18. वधशालाओं और चर्म शोधन शाखाओं का विनियमन ।


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