सुलह कुल की नीति , दहसाला प्रणाली ,सयूरघाल का अर्थ एवं व्याख्या | Sulah Kul Ki Niti

 सुलह कुल की नीति , दहसाला प्रणाली ,सयूरघाल का अर्थ एवं व्याख्या  

सुलह कुल की नीति , दहसाला प्रणाली ,सयूरघाल का अर्थ एवं व्याख्या


सुलह कुल की नीति

 

  • अकबर ने विभिन्न धर्मो के सामंजस्य एवं शान्ति पर विशेष बल दिया। वह सार्वभौमिक ओर शान्ति की नीति को क्रियान्वित करना चाहता था। अपनी प्रजा की प्रार्थनाएं सुनने के लिए वह हर समय तैयार रहता था। उनकी इच्छाओं की पूर्ति बड़ी उदारता पूर्वक करता था। सुलह कुल के सिद्धातं का कलेवर अत्यंत व्यापक थाभारत को राजनीतिक रूप से जोड़नविशेषकर राजपूतों को वृहत भारत के कलेवर में शामिल करने के लिए इसका प्रयोग किया गया था।

 

  • ईश्वरीय अनुकंपा के विस्तुत आंचल में सभी वर्गों और धर्मों के अनुयायियों की एक जगह है • इसलिए उसके विशाल साम्राज्य में जिसकी चारों ओर की सीमाएं केवल समुद्र से ही निर्धारित होती थीं। विरोधी धर्मों के अनुयायियों और हर तरह के अच्छे-बुरे विचारों के लिए जगह थी। यहां असहिष्णुता का मार्ग बन्द था। यहां सुन्नी और शिया एक ही मस्जिद में इकट्ठे होते थे और ईसाई और यहूदी एक ही गिरजे में प्रार्थना करते थे। उसने सुसंगत तरीके से सबके लिए शांति (सुलह-ए कुल) ) के सिद्वान्त का पालन किया।

 

इबादतखाना क्या होता है ( पूजा गृह )

 

  • अकबर ने धार्मिक विषयों पर वाद-विवाद के उद्देश्य से 1575 में फतेहपुर सीकरी इबादतखाने की स्थापना की । प्रत्येक रविवार को इबादतखाने में विभिन्न धर्मावलम्बी एकत्र होकर धार्मिक विषयों का आदान प्रदान करते थे। इबादतखाने के प्रारम्भिक दिनों में मुसलमान शेखपीरउलेमा ही यहां धार्मिक वार्ता के लिए आते थे पर कालान्तर में ईसाईजरथ्रुस्टवादीहिन्दूजैन बौद्धपारसीसूफी आदि भी धार्मिक वार्ता में हिस्सा लेने लगे।

 

  • इबादतखाने की वार्ता में हिस्सा लेने वाले प्रमुख लोग थे। पुरूषोत्तमदेवी (हिन्दू दार्शनिक) हरि विजय सूरीभानुचन्द्र उपाध्याय (जैन दार्शनिक) आदि। इबादतखाने को अकबर ने 1578 में धर्म संसद के रूप में परिवर्तित कर दिया था।

 

दहसाला प्रणाली

 

  • दहसाला प्रणाली राजस्व निर्धारण की जाब्ती प्रणाली का एक संशोधित रूप था। 1580 में टोडरमल द्वारा निर्धारित इस व्यवस्था को अकबर द्वारा लागू किया गया था। राज्य के प्रत्येक परगने की पिछली दस साल की उपज और उपज की कीमतों की जानकारी प्राप्त कर ली जाती थी और उसका दसवां भाग वार्षिक मालगुजारी (माल-ए-दहसाला) के रूप में निश्चित कर लिया जाता था आंकडों के एकत्रित करने का लक्ष्य नये दस्तरूलअमल तैयार करना था।

 

  • 1570-71 में टोडरमल ने भू-राजस्व की नई प्रणाली जाब्ती को आरम्भ किया। इस प्रणाली के अन्तर्गत भूमि की नाप-जोख कर भूमि की वास्तविक पैदावार आंकने के आधार पर करों को निश्चित किया जाता था। 1580 में अकबर द्वारा चलाई गई दहसाला प्रणाली का ही यह सुधार रूप था। अकबर द्वारा अपने शासनकाल के चौबीसवें वर्ष अर्थात् 1580 में लागू की गई नवीन प्रणाली दहसाला के अन्तर्गत वास्तविक उत्पादनस्थानीय कीमतेंउत्पादकता आदि को आधार बनाया जाता था। 

  • इस प्रणाली में अलग-अलग फसलों के पिछले दस वर्ष के उत्पादन और इसी समय अवधि में उनकी कीमतों का असल निकाल कर उसी के आधार पर उपज का एक तिहाई भाग भू राजस्व होता था। पर रैयत इसका भुगतान नकद अथवा अनाज में कर सकती थी। फसलों के अनुसार नकद की दरें परिवर्तित होती रहती थीं। 

  • अकबर की यह प्रणाली टोडरमल (अकबर का दीवान-ए अशरफ) से सम्बन्धित होने के कारण टोडरमल बन्दाबेस्त के नाम से जानी गई। यह प्रणाली लाहौर इलाहाबाद तथा मालवा और गुजरात में लागू थी। शाहजहां के शासनकाल में मुर्शीदकुली खां ने से इस प्रणाली को दक्कन में लागू किया

 

सयूरघाल का अर्थ एवं व्याख्या  

  • राज्य द्वारा राज्य के संरक्षण में रहने वाले धार्मिक व्यक्तियोंविद्वानों और साधनविहीनों को राजस्व अनुदान दिया जाता था। इस प्रकार के अनुदानों को सयूरघाल कहा जाता था।
  • मुगलकाल में बादशाह द्वारा दिये जाने वाले भत्ते अथवा भूमि अनुदान के रूप में होते थे। इस प्रकार के अनुदान पाने वालों का भूमि पर कोई अधिकार नहीं होता था। अनुदान केवल नियत दर पर उस व्यक्ति को कुल उत्पादन में से दिया जाता था। 
  • सयूरघाल के अनुदान की अधिकतम सीमा 100 बीघा प्रति व्यक्ति थी | अनुदान प्राप्तकर्ता को अनुदान पूरे जीवन के लिए मिलता था । 
  • अनुदान प्राप्तकर्ता की मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी अनुदान के लिए आवेदन करते थे। यह अनुदान प्राय पूर्व अनुदान का ही एक अंश होता था। धर्माथपुरूषार्थशिक्षाणार्थगुजारे के लिए संस्थाओं तथा व्यक्तियों को दान में दी गई भूमि को सयूरघाल कहा जाता था।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.