मध्य कालीन इतिहास की संकल्पनाऐं, विचार तथा शब्दावली |Concepts, ideas and terminology of Middle History

 

मध्य कालीन इतिहास की संकल्पनाऐं, विचार तथा शब्दावली

मध्य कालीन इतिहास की संकल्पनाऐं, विचार तथा शब्दावली |Concepts, ideas and terminology of Middle History


 

मनसबदारी व्यवस्था का वर्णन करें

 मनसब क्या है

  • अरबी भाषा के शब्द मनसब का शाब्दिक अर्थ है पद अथवा श्रेणी 
  • मनसबदारी व्यवस्था की उत्पत्ति मध्य एशिया से मानी जाती है, जिसे सर्वप्रथम बाबर द्वारा उत्तर भारत में लाया गया परन्तु इस व्यवस्था को संस्थागत रूप देने का पूरा श्रेय अकबर को दिया जाता है। 
  • अकबर की मनसबदारी व्यवस्था मंगोल नेता चंगेज खां की दशमलवी प्रणाली पर आधारित थी। इस व्यवस्था के अन्तर्गत इन व्यक्तियों को एक पद मिलता था जो शाही सेवा में होते थे। काजी और सद्र के अतिरिक्त सभी उच्चाधिकारियों को सैन्य कार्यवाही में हिस्सा लेना होता था। 
  • मनसब प्रदान किये जाने का प्रथम उल्लेख अकबर के शासन काल के ग्यारहवें वर्ष में मिलता है। 
  • 1593 तक केवल जात का प्रयोग किया जाता था, किन्तु 1594 में जात के साथ सवार का पद भी जुड़ गया। जात का अर्थ सैनिक पद से है तथा सवार का अर्थ घुड़सवारों की संख्या से जो मनसबदार को रखने पड़ते थे। 
  • मनसबदार का यह पद तीन श्रेणियों में विभाजित था। प्रथम श्रेणी में मनसबदार को अपने जात पद के बराबर ही सैनिकों की व्यवस्था करनी पड़ती थी। जैसे 5000/5000 जात तथा सवार, दूसरी श्रेणी में मनसबदार को अपने जात पद से कुछ कम या आधे घुड़सवार सैनिकों की व्यवस्था करनी पड़ती थी, जैसे 5000/3000 जात और सवार तीसरी श्रेणी में मनसबदारों को अपने जात पद से आधे से भी कम घुडसवारों सैनिको की व्यवस्था करनी होती थी; जैसे 5000/2000 जात और सवार । 
  • मुगलकालीन सैन्य व्यवस्था का आधार मनसबदारी व्यवस्था थी। सैनिक अधिकारी मनसबदार कहलाते थे। सबसे छोटा मनसब 10 और सबसे बडा 10 हजार का होता था। 5 हजार से अधिक का मनसब राजकुमार को ही मिलता था। किन्तु बाद में राजा मान सिंह को 7 हजार का मनसब मिला। 
  • मनसबदार स्वयं अपनी सेना की भर्ती किया करते थे। साधारणतः ये अपनी जाति के सैनिक भर्ती करते थे। मनसबदार के घोड़ों को दागा जाता था। प्रत्येक घोडे के दायें पुट्टे पर सरकारी निशान तथा बाएं पुट्ठे पर मनसबदार का निशान लगाया जाता था। मनसबदारों को शाही खजाने से वेतन दिया जाता था।

 

1 मनसबदारों में बहुत से विदेशी, तुर्क, ईरानी, अफगानी और भारतीय राजदूत थे। 

2 सवार इस बात का द्योतक था कि मनसबदार के अधीन एक निश्चित संख्या में घुड़सवार हैं। 

3 मनसबदारी व्यवस्था में तीन श्रेणियाँ थी प्रथम, द्वितीय, तृतीय। 

4 एक मनसबदार प्रथम श्रेणी में तभी आ सकता था जब उसका सवार और जात दर्जा एक समा होता था; यथा- (5000 जात और 5000 सवार ) 

5 यदि उसका सवार का दर्जा जात से कम होता था, किन्तु आधे से कम नहीं, तब वह द्वितीय श्रेणी का मनसबदार होता था। 

6. यदि उसका सवार का दर्जा, जात दर्जे के आधे से कम होता था या सवार दर्जा बिलकुल नहीं होता था तब वह तृतीय श्रेणी का मनसबदार होता था। 

मनसब प्राप्त करने वाले मनसबदार की श्रेणी 

  • 10 से 500 मनसबदार केवल मनसबदार कहलाते थे। 
  • 500 से 2500 मनसबदार अमीर कहलाते थे। 
  • 2500 से अधिक के मनसबदार अमीर-ए-उम्दा अथवा अमीर-ए-आजम कहलाते थे।

 

  • मनसबदार को वेतन नकद व जागीर दोनों में दिया जाता था | मनसबदारों की मृत्यु के बाद उनकी सम्पत्ति जब्त कर ली जाती थी। इन्हें प्राप्त जागीरें एक स्थान से दूसरे स्थान को स्थानान्तरित की जाती थीं। 
  • कुछ बढ़े पदाधिकारियों को स्थायी जागीरें भी दी गयीं थी, जिन्हें वतन जागीर कहते थे। वह वर्ग जो सरकारी विभागों में कार्यरत था परन्तु मनसबदार नहीं था, उसे रोजिनदार कहा जाता था। इन्हें दैनिक वेतन दिया जाता था। 
  • अकबर के समय में 1595 के लगभग कुल 1803 मनसबदार थे जो औरंगजेब के समय में 14449 तक पहुंच गये।


मेहराब की कला 

  • मेहराब की कला भारत में पहली मस्जिद, कुव्वत-उल-इस्लाम जो कुतुब मीनार के समीप है, उसमें देखने को मिलती है। यह तकनीक कला मध्य एशिया से भारत में तुर्क ले कर आये। मुगलकालीन स्थापत्य कला में मेहराबों का प्रयोग किया गया है। सल्तनत एवं मुगलकालीन अनेक इमारतों में मेहराब का प्रयोग मिलता है।

 

गुम्बद क्या है 

 

  • गुम्बद की कला भी तुर्की के आगमन के पश्चात भारत में देखने को मिलती है। गुम्बद इमारत के केन्द्र में चाहे वह मस्जिद हो या मजार ठीक उसके ऊपर बनाया जाता है। 
  • भारत में प्रथम गुम्बद हुशंग शाह के मकबरे में देखने को मिलता है जिसका निर्माण महमूद खिलजी ने सम्पूर्ण किया। 
  • विश्व में सबसे विशाल गुंबद आदिल शाह के मकबरे बीजापुर में देखने को मिलता है। 
  • गुंबद एक चौकोर संरचना के ऊपर बना उत्तल छत भवन में अष्टकोणीय या वृत्ताकार स्थान होता है।

 

दस्तूर का क्या अर्थ है 

 

  • राजस्व निर्धारक राजस्व मंत्रालय द्वारा 1574-81 में मालगुजारी और मूल्य को जोडकर उसमे 10 का भाग देकर औसत निकाल लिया जाता था और इसी औसत के आधार पर राज्य की सालना नकद माल गुजारी निश्चित कर दी जाती थी जिसे दस्तूर कहते थे। 
  • ये प्रथा अकबर के शासनकाल में टोडरमल द्वारा दहसाला प्रणाली के अर्न्तगत लागू की गई थी। अकबर के शासनकाल में राजस्व निर्धारण की दरों की सूची निर्मित की गयी थी। विभिन्न क्षेत्रों को उनकी उत्पादकता और मूल्यों के आधार पर राजस्व की दृष्टि से दस्तूर प्रखण्डों अर्थात् राजस्व क्षेत्रों में विभक्त किया गया था।प्रत्येक दस्तूर में ही फसल का प्रति बीघा कर निर्धारण नकद धन के रूप में होता था। 
  • जाब्ती में प्रत्येक फसल के लिए दस्तूर-उल-अमल या दस्तूर के नाम से जाता जाने वाला नकद राजस्व निर्धारित किया जाता था। 
  • जाब्ती व्यवस्था में निर्धारित दस्तूर के कारण पदाधिकारी अपनी मनमानी नहीं कर पाते थे। स्थायी दस्तूर के बाद भू-राजस्व की मांग की अनिश्चितता और उतार-चढ़ाव में बहुत कमी आ गई थी ।

 

खालसा भूमि किसे कहते हैं 

 

  • खालसा भूमि ऐसी भूमि थी जिसके भू-भाग का प्रबन्ध केन्द्र सरकार द्वारा किया जाता था । इसका लगान सीधे राजकोष में जमा होता था। खालसा भूमि को प्रशासन में भाग लेने वाले उच्च पदाधिकारियो को भी प्रदान किया जाता था इस भूमि पर उपज का 1/2 भाग लगान लिया जाता था।

 

  • वह भूमि जो व्यक्तियों को दान के रूप में दी जाती थी। जैसे मिल्क, वक्फ, इनाम जिस पर राज्य कोई लगान नहीं लेता था। वह जमीन जोकि अधीनस्थ हिन्दू राजाओं के आधिपत्य में थी।1582 में भू-राजस्व के लिए खालसा भूमि को चार भागों में विभाजित कर दिया और उन्हें एक योग्य राजस्व अधिकारी के अन्तर्गत रख दिया गया। भू राजस्व के व्यवस्थित होने से दीवान का स्थान महत्वपूर्ण हो गया।

 

  • खालसा भूमि जिसकी आय शाही कोषगार में जमा की जाती थी, का प्रयोग राजा एवं राजा के परिवार के खर्चों पर, राजा के अंगरक्षक व निजी सैनिकों के खर्चों पर तथा युद्ध की तैयारी पर खर्च किया जाता था। इस भूमि के अन्तर्गत मुगल साम्राज्य की कुल भूमि का 20 प्रतिशत हिस्सा आता था।

 

मुगल काल में काजी कौन होता था 

 

  • यह न्याय विभाग का सर्वोच्च अधिकारी होता था। प्रायः यह पद सद्र उस सुदूर को ही दे दिया जाता था। इसके न्यायालय से बड़ा सुल्तान का न्यायालय होता था। किन्तु राज्य का मुख्य काजी होने के नाते वह मुकदमों की सुनवाई तथा निर्णय दिया करता था। उसमें निर्णयों पर पुर्नविचार भी किया जा सकता था। कानून के नियम का मुख्य तौर पर इस्लामिक मुफ्ती नियमों से संचालित करते थे।

 

  • राज्य का सबसे बडा न्यायाधीष सम्राट होता था। वह प्रत्येक बुधवार को न्याय करता था, किन्तु सभी मुकदमों का निर्णय बादशाह नहीं करता था अतः उसकी सहायता के लिए मुख् न्यायाधीष होता था। जिसे मुख्य काजी के नाम से जाना जाता था। 


  • वह इस्लामिक कानून पर न्याय करता था | मुफ्ती नामक पदाधिकारी इसके सहायक होते थे। के आधार काजी की अदालत के अन्य कर्मचारियों में पेशकार, कातिब ( गवाहों के बयान तथा फैसले लिखने के लिए) अमीन, नाजिर, दफ्तरी इत्यादि प्रमुख थे। औरगंजेब के राजस्व काम में प्रत्येक सरकार के काजी की अदालत में प्रान्त के प्रमुख काजी अथवा काजी-उल-कुजात के द्वारा वकील ए-सरकार नियुक्त होते थे। उनका प्रमुख कार्य राज्य के मुकदमों की पैरवी करना, न्यायालय के आदेशों का राज्य द्वारा कार्यान्वयन करवाना, ऐसी सम्पत्ति के विषय में कानूनी राय देना जिसका न्यासी काजी था। काजी को समाज में उच्च स्थान मिलता था।

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