सिन्धु घाटी सभ्यता का राजनीतिक जीवन |Political life of Indus Valley Civilization

सिन्धु घाटी सभ्यता का राजनीतिक जीवन

सिन्धु घाटी सभ्यता का राजनीतिक जीवन |Political life of Indus Valley Civilization


 

  • राजनीतिक संगठन के बारे में सिन्धु क्षेत्र में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले हैं। 
  • राजभवन जैसे कोई विशाल भवन भी अवशेष के रूप में यहां नहीं मिले हैंजिसके आधार पर राजनीतिक अध्ययन किया जा सके। 
  • किसी विशाल मंदिर और उसके प्रधान देवता की भी जानकारी नहीं हो पायी हैजिसके आधार पर यह अनुमान किया जाए कि यहां का प्रधान शासक कोई पुरोहित था। 
  • अवशेष के रूप में जहां विशाल स्नानागार मिला है उसी के समीप कुछ भवनों के अवशेष भी मिले हैं। इसे कुछ लोग राजभवन की संज्ञा देते हैं लेकिन यह विचार ठीक नहीं लगता। 
  • असल में इन भवनों में मात्र एक विशाल कमरे की जानकारी होती है और एक ही विशाल कमरे के आधार पर इसे राजभवन कहना उचित प्रतीत नहीं होता। 
  • इसके बावजूद इतना तो कहा ही जा सकता है कि इतना विशाल क्षेत्र किसी न किसी राजनीतिक घेरे के अन्दर निश्चित ही होगा। इस तर्क के पक्ष में यह प्रमाण दिया जा सकता है कि सारे क्षेत्र में एक ही तरह की माप तथा तौल प्रचलित थी। 
  • भवनों का निर्माण भी यहां लगभग एक ही प्रकार का होता था। यहां पायी गयी मूर्तियों में भी एकरूपता पायी गयी है तथा लिपि का प्रचार भी एक ही तरह का था। 
  • उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर ऐसा लगता है कि यहां एक व्यवस्थित शासन संगठन था। 
  • इस क्षेत्र में पाये गये नगरों की योजनाओं को देखकर यह कहा जा सकता है कि यहां नगरपालिका संगठन भी था जो राजनीतिक व्यवस्था का ही एक अंग है। 
  • नगरपालिका होने के कारण ही वहां गलियों तथा सड़कों की रक्षा एवं नालियों की समुचित व्यवस्वथा थी। अतएव विद्वानों का मत है कि यहां एक विशाल राजनीतिक संगठन था। 
  • ह्वीलर ने उत्खनन के आधार पर वहां की शासन व्यवस्था को मध्यवर्गीय जनतांत्रिक शासन कहा है। उसके अनुसार "चाहे कहीं से भी उपर्युक्त तथ्य ज्ञात हुआ होधार्मिक प्रवृत्ति की प्रमुखता तो स्वीकार करनी ही होगी। 
  • सुमेर और अक्कड़ के पुरोहित राजा के समान हड़प्पा के मालिक भी अपने नगरों पर शासन करते थे। मंदिर के मुख्य देवता के ही हाथ में सुमेर नगर का अनुशासन और धन रहता था। यहां के देवता को पुरोहित राजा कहा जाता था।" सुमेर की शासन प्रणाली को इतिहासकार हण्टर द्वारा राजतांत्रिक प्रणाली कहा गया है। 
  • सिन्धु घाटी सभ्यता में जनतांत्रिक शासन प्रणाली प्रचलित थीइसका अनुमान सिन्धु क्षेत्र में पाये गये विशाल स्नानागार से सटे हुए भवनों के आधार पर किया जा सकता है। विद्वानों का कहना है कि यहां के नगर के व्यक्ति इस विशाल भवन में अपने प्रतिनिधियों का निर्वाचन करने के लिए एकत्र हुआ करते थे। 
  • विशेष महत्त्वपूर्ण समस्याओं पर विचार करने के लिए भी वे इस भवन में एकत्रित होते थे। वैसे यह स्पष्ट नहीं हो सका कि शासन की लगाम एक संवैधानिक राजा के हाथ में थी या जनता के प्रतिनिधियों के हाथ में शासन में विकेन्द्रीकरण जैसी व्यवस्था शायद थी।
  • सिन्धु घाटी के लोग युद्धप्रिय नहीं थेयह प्रमाण तो उत्खनन से प्राप्त सामग्री के आधार पर ही हो चुका है। उनकी सभ्यता शान्तिप्रधान थी। खुदाई से प्राप्त अस्त्र-शस्त्र का अध्ययन करने पर पता चलता है कि ये ताम्बे एवं कांसे के बने रहते थे। ये औजार अधिक तीक्ष्ण नहीं थे।
  • सिन्धु घाटी के निवासी ऋग्वैदिक काल के समान तलवारकवचशिरस्त्राण आदि का प्रयोग नहीं करते थे। इन सब औजारों से ये अनभिज्ञ थे। 
  • यहां के निवासियों को शांतिमय जीवन व्यतीत करने में ज्यादा विश्वास था। फलतः कहा जा सकता है कि सिन्धु काल में शासन व्यवस्था अच्छी थी। अशान्ति एवं राजनीतिक अशांतियों से यह मुक्त था। 
  • युद्ध प्रिय नहीं रहने के कारण ही अगर बाहर की जातियों ने इन पर आक्रमण करके इन्हें परास्त कर दिया हो तो कोई आश्चर्य नहीं।

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