महावीर के बाद जैनधर्म | श्वेताम्बर और दिगम्बर मतों में भेद | Mahaveer Ke Baad Jain Dharm

महावीर के बाद जैनधर्म | श्वेताम्बर और दिगम्बर मतों में भेद

महावीर के बाद जैनधर्म | श्वेताम्बर और दिगम्बर मतों में भेद | Mahaveer Ke Baad Jain Dharm


श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदाय 

  • महावीर की मृत्यु के उपरान्त लगभग दो शताब्दी तक उनके अनुयायीभिक्षु तथा उपासक छोटे से सम्प्रदाय के रूप में संगठित बने रहे। महावीर के प्रमुख ग्यारह शिष्यों में दस की मृत्यु महावीर से पहले ही हो चुकी थी। महावीर की मृत्यु के बाद सुधर्मन जैनियों का प्रधान बना। ऐसा प्रतीत होता है कि अजातशत्रु के बाद मगध की गद्दी पर बैठने वाले उद्यन राजा ने भी जैनमत का पक्ष लिया। कलिंग के राजा खारवेल के हाथी गुफा शिलालेखों से पता चलता है कि राजा नन्द की प्रवृत्ति भी जैन धर्म की ओर थी। 
  • मौर्य काल में जैनधर्म दो प्रधान शाखाओं में विभक्त हो गया। एक दिगम्बर सम्प्रदाय और दूसरा श्वेताम्बर सम्प्रदाय कहलाया। 
  • जैन साहित्यों के अनसार चंद्रगुप्त मौर्य के काल में मगध में भयंकर अकाल पड़ा। कई वर्षों तक पानी नहीं पड़ा था। अतः आधे से अधिक जैनी लोग भाग खड़े हुए और दक्षिण भारत में जा बसे। बारह वर्ष के बाद जब अकाल समाप्त हुआ तब वे पुनः वापस आये। इन लोगों ने उन भिक्षुओं की निन्दा की जिन्होंने उनका साथ नहीं दिया था। उन्हें पथभ्रष्ट कहा गया। इस प्रकार जैनधर्म में दो शाखाएं फूट पड़ीं। दोनों दलों में कई अन्य बातों को लेकर मतमतान्तर हुआ।
  • भद्रबाहु नेपाल की ओर चला गया और "चौदह पूर्वो" में से केवल दस पूर्व" पढ़ाने की अनुमति स्थूलभ्रद को दे गया। इन दो दलों में मतभेदों को दूर करने के लिए पाटलिपुत्र में एक जैन सभा बुलायी गयीकिन्तु जो भिक्षु दक्षिण से लौटे थे उन्होंने सभा में भाग लेने से इन्कार कर दिया। पाटलिपुत्र की जैन सभा ने जैन सिद्धांतों के एक भाग को स्वीकार कर लिया। इस भाग में ही श्वेताम्बरों के सिद्धांत की उत्पत्ति हुई।

श्वेताम्बर और दिगम्बर में अंतर 

श्वेताम्बर और दिगम्बर मतों में भेद

  • श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदाय के सिद्धांत में कोई मौलिक अन्तर नहीं हैक्योंकि दोनों ही जैन मत के सिद्धांत में विश्वास करते हैं। इन दोनों का मौलिक सिद्धांत प्रायः एकसा है। 
  • अन्तर केवल इतना ही है कि दिगम्बर सम्प्रदाय कट्टरपंथी जैनियों का सम्प्रदाय है। ये लोग जैनधर्म के नियमों का पालन बड़ी कठोरता से करते हैं। इनका दृढ़ और निश्चय विचार है कि जैन साधुओं को सब कुछ त्याग देना चाहिए। इसलिए दिगम्बर मुनि वस्त्र धारण नहीं करते और नग्न रहते हैं। इनके मन्दिरों में भी नग्न मूर्तियों की ही पूजा की जाती है।
  • दिगम्बर सम्प्रदाय का विश्वास है कि जो संन्यासी और साधु सम्यक् ज्ञान की प्राप्ति कर लेता हैउसे भोजन की भी आवश्यकता नहीं रह जाती। उनकी भूख प्यास आदि सभी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं हो जाती है। इसके मत में स्त्रियों को कर्म बन्धन उस समय तक नहीं मिल सकता तब तक कि वे पुरुष योनि में जन्म न लें। 
  • इसके विपरीत श्वेताम्बर सम्प्रदाय का इन विचारों से मेल नहीं खाता। इसके सम्प्रदाय में नियमों की कठोरता कम कर दी गयी है। और मानवीय दुर्बलता को पूर्णतः ध्यान से ओझल नहीं किया गया है। वे सफेद वस्त्र धारण करने की बात मानते हैं।
  • दूसरी जैन सभा गुजरात में वल्लभी नामक स्थान पर देवऋद्धिगणी की अध्यक्षता में हुई थी। इस सभा का उद्देश्य था पवित्र मूल पाठों को एकत्र करके उन्हें पुस्तकों का रूप देना। परिमाणस्वरूप ऐसा ही हुआ। सभी मूल पाठों को पुस्तकों का रूप दे दिया गया और वे पुस्तकें आज भी देखने को मिलती हैं।

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