विजयनगर का राजवंश | Vijay Nagar Ka Rajvansh


विजयनगर का राजवंश | Vijay Nagar Ka Rajvansh

विजयनगर साम्राज्य एवं 
बहमनी राज्य सामान्य परिचय 


  • दक्षिण भारत की राजनीतिक परिस्थितियों से लाभ उठाकर 14वीं शताब्दी में अनेक स्थानीय शक्तियों ने छोटे-छोटे राज्य स्थापित किये, शीघ्र ही संगम के पुत्रों द्वारा स्थापित विजयनगर साम्राज्य और हसन गंगू द्वारा स्थापित बहमनी राज्य ने प्रतिष्ठा प्राप्त की और दीर्घकाल तक ये राज्य दक्षिण भारत की राजनीति के नियन्ता बने रहे। 
  • विजयनगर साम्राज्य और बहमनी साम्राज्य का संपूर्ण काल एक-दूसरे के साथ निरंतर युद्धों में व्यतीत हुआ और कभी एक पक्ष विजयी होता तो कभी दूसरा। लेकिन आपसी युद्धों के बावजूद भी इन दोनों ही राज्यों ने कला, साहित्य और स्थापत्य के क्षेत्र में अभूतपूर्व उपलब्धियां हासिल की और इस काल में अनेक विदेशी यात्रियों ने इन राज्यों का भ्रमण किया और अपने प्रंक्षण लिखे जो इन राज्यों के पूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। 
  • दक्षिण के इन राज्यों के आपसी संघर्ष के अलावा उत्तर के विस्तारवादी मुगल साम्राज्य के साथ भी इनका संघर्ष हुआ। 
  • राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के चलते बहमनी साम्राज्य का विघटन हो गया और बीजापुर गोलकुण्डा, बीदर, बरार और अहमदनगर की रियासतें अस्तित्व में आयीं लेकिन विजयनगर के साथ इनकी प्रतिद्वन्दता बनी रही। 
  • सन् 1565 ई. को राक्षसटंगड़ी के युद्ध में विजयनगर साम्राज्य की पराजय हुई और साम्राज्य का विजयी राज्यों ने बंटवारा किया हांलाकि विजयनगर राज्य पुनर्जीवित हुआ लेकिन यह पुनर्जीवन अल्पावधि का था और धीरे-धीरे विस्तारवादी मुगल साम्राज्य में दक्षिण के इन राज्यों को समाहित कर लिया गया।


विजयनगर का राजवंश Vijay Nagar Ka Rajvansh

 

  • विजयनगर का प्रारम्भिक इतिहास स्पष्ट नहीं है, बताया गया है कि संगम के पांच पुत्रों ने (जिनमें से दो का नाम हरिहर और बुक्का था) तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी तट पर उसके उत्तरी तट वाले अनागोण्डी के सामने विजयनगर साम्राज्य की नींव डाली थी।
  • हरिहर प्रथम व बुक्का प्रथम द्वारा संस्थापित वंश संगम वंश के नाम से प्रसिद्ध है। 
  • हरिहर और बुक्का ने कोई शाही उपाधि ग्रहण न की क्योंकि होयसल वंश का बल्लाल तृतीय अभी जीवित था जब होयसल वंश का अंतिम राजा विरूपाक्ष बल्लाल 1346 में मदुरा के सुल्तान से लड़ते हुए मारा गया तो हरिहर और ने होयसल राज्य को अपने अधीन कर लिया।
  • लगभग 1353 में हरिहर की मृत्यु हो गयी और बुक्का का राज्यारोहण हुआ। 
  • बुक्का ने 1353 से 1379 तक राज्य किया। उसने विजयनगर के शहर का निर्माण कार्य पूर्ण कराया और साम्राज्य भी बढाया, उसने चीन के सम्राट के पास अपना दूत' भेजा। 
  • बुक्का प्रथम एक उदार शासक था एक बार उसने जैनियों तथा वैष्णवों के बीच एक समन्वय करवाया। बुक्का के बाद उसका पुत्र हरिहर द्वितीय गद्दी पर बैठा उसने 1379 से 1406 तक शासन किया। 
  • हरिहर द्वितीय के बाद उसका पुत्र देवराय प्रथम राजा बना जिसने 1406 से 1422 तक शासन किया
  • देवराय द्वितीय 1422 से 1446 तक राजा बना 1442 में फारस का दूत अब्दुर्रज्जाक विजयनगर आया, उसने विजयनगर का आखों देखा विवरण दिया है। 
  • देवराय द्वितीय के बाद उसका पुत्र मल्लिकार्जुन (1446-1465) गद्दी पर बैठा। उसके बाद विरूपाक्ष द्वितीय (1465-863) गद्दी पर बैठा, वह एक अयोग्य शासक था.
  • विजयनगर साम्राज्य को बचाने के लिए 1486 में नरसिंह ने विरूपाक्ष द्वितीय को अपदस्थ कर दिया और स्वयं गद्दी पर अधिकार कर लिया इसे प्रथम अपहरण कहते हैं इससे संगम वंश का अन्त हुआ और उसके स्थान पर सलूवा वंश की सत्ता आरम्भ हुई।
  • 1486 से 1492 तक नरसिंह सलवा के दो पुत्रों की हत्या कर दी, किन्तु अभिलेखों से पता चलता है कि नरेश नायक ने नरसिंह सलूबा के पुत्र इम्मादी नरसिंह के गद्दी पर बैठा दिया, 1505 में नरेश नायक की मृत्यु हो गयी और उसके पुत्र वीर नर सिंह ने सलूवा वंश के अन्तिम शासक को हटा कर गद्दी का अपहरण कर लिया इसे द्वितीय अपहरण कहते है।


  • वीर नरसिंह तलूवा वंश का संस्थापक हुआ उसने 1505 से 1509 तक शासन किया। 
  • वीर नरसिंह के बाद उसके भाई कृष्णदेवराय ने 1509 से 1530 तक राज्य किया। 
  • पुर्तगाली यात्री डोमिन्गो पेस उसके शासन काल में आया। 
  • कृष्णदेवराय स्वंय एक विद्वान ही नहीं वरन् विद्या प्रेमी भी था। यद्यपि उसकी व्यक्तिगत रूचि वैष्णव धर्म की ओर थी किन्तु अन्य धर्मों के प्रति भी वह सहिष्णु था। 
  • कृष्णदेवराय के सम्बन्ध पुर्तगालियों से बहुत मैत्रीपूर्ण रहे, उसने उन्हें बहुत सी सुविधाऐं दीं, क्योंकि घोड़ों और अन्य वस्तुओं के आयात से उसे बहुत लाभ हुआ था
  • 1510 में पुर्तगाली अलबुकर्क ने बटकल में बनाने की स्वीकृति मांगी जो उसे मिल गयी।
  • कृष्णदेव राय के बाद अच्युत राय आया जिसने 1530 से 1542 तक शासन किया, उसके बाद उसका भतीजा रामराय एक योग्य व्यक्ति था, कुछ समय तक उसके प्रयत्न सफल रहे किन्तु अन्त में साम्राज्य के लिए घातक सिद्ध हुए। 
  • राक्षस व टंगड़ी के ग्रामों के बीच मित्र दक्षिण राज्यों ने विजयनगर के विरूद्ध युद्ध किया और इसमें मुसलमानों की विजय हुई, इसे तलीकोटा का युद्ध भी कहते हैं।
  • तालीकोटा के युद्ध ने विजयनगर के साम्राज्य को बहुत क्षति पंहुचायी वेंकटा द्वितीय राजा विजयनगर का अन्तिम महान शासक हुआ जिसने साम्राज्य को सुरक्षित रखा, वेंकटा द्वितीय की मृत्यु बाद साम्राज्य का विघटन प्रारम्भ हो गया, पारस्परिक संघर्षों ने मुसलमानों को उनके विरूद्ध विजय पाने में सफलता प्रदान की, इन्हीं परिस्थितियों के वश में आकर विजयनगर का साम्राज्य समाप्त हो गया।

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