सल्तनत काल में सामाजिक स्थिति |Social Status in the Sultanate Period

सल्तनत काल में सामाजिक स्थिति 

Social Status in the Sultanate Period

 

सल्तनत काल में सामाजिक स्थिति  Social Status in the Sultanate Period

सल्तनत काल में हिन्दुओं तथा अन्य गैर मुस्लिम समुदायों की जीवन शैली

 

  • दिल्ली सल्तनत काल में हिन्दुओं तथा अन्य गैर-मुस्लिम समुदायों के सामाजिक जीवन में कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं आया। 
  • वर्ण-व्यवस्था जन्मनाजाति की अवधारणा पर आधारित रही और सामाजिक असमानता को धार्मिक समर्थन भी प्राप्त रहा। ब्राह्मणों एवं क्षत्रियों का सामाजिक प्रभुत्व पूर्ववत स्थापित रहा।
  • धनाढ्य वैश्य समुदाय साधन-सम्पन्न होते हुए भी सम्मान का पात्र नहीं बन पाया। 
  • शूद्रों की स्थिति पहले की भांति दयनीय रही। 
  • सामाजिक जीवन में धर्म की प्रधानता रह परन्तु धर्म के नाम पर कर्मकाण्ड और आस्था के नाम पर अंधविश्वास का बोलबाला रहा। 
  • धनाढ्यों एवं निर्धनों के खानपान में बहुत अन्तर था। जहां गरीब के लिए भरपेट भोजन के नाम पर दाल-रोटी पर्याप्त होती थी वहां समृद्ध वर्ग छप्पन भोग का आनन्द उठाता था।
  • ब्राह्मण तथा वैश्य मुख्यतः शाकाहारी थे और क्षत्रियों व शूद्रों के मध्य मांसाहार प्रचलित था। इस काल के आभिजात्य वर्ग में सुरा का सेवन प्रचलित था। 
  • ग्रामों में पंचायतोंचौपाल और पनघट का सामुदायिक जीवन में बहुत अधिक महत्व था। ग्रामीणों की भेषभूषा बहुत साधारण होती थीउनमें सिले हुए कपड़ों का चलन कम था। जूते पहनना उनके मध्य अपवाद था। 
  • शहरी जीवन में भौतिकतावादी सुखों के प्रति अधिक रुझान था। शहरों में अमीर-गरीब के मध्य खाई और अधिक चौड़ी थी।

 

सल्तनत काल में मुसलमानों की जीवन शैली

 

  • मुस्लिम समाज में जन्मनाजाति की अन्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था का चलन नहीं था किन्तु अमीर-गरीबमालिक गुलामशहरी ग्रामीण आदि के मध्य गहरी खाई अवश्य थी। 
  • मुसलमानों में भी धर्म की महत्ता बहुत अधिक थी। 
  • उलेमा वर्ग का समाज में सम्मानपूर्ण स्थान था। मुसलमानों में जादू-टोटकेगण्डाताबीज़जिन्नपरीमन्नतनज़र लगना आदि अंधविश्वास व्याप्त थे। 
  • मुसलमानों में मांसाहार का चलन था। आभिजात्य वर्ग के खानपान में बहुत अधिक विविधता और मदिरापान एक आम बात थी। 
  • मुसलमानों में अचकनशेरवानीकुर्ताचूड़ीदार पाजामाशरारागरारासलवारकमीज़लहंगा आदि पहनावों का चलन था। 
  • गांवों में बसे मुसलमान और हिन्दू के रहन सहन में कोई अन्तर खोज पाना कठिन था किन्तु शहरों में आभिजात्य मुस्लिम वर्ग अन्य समुदायों के सभ्य समाज की तुलना में अधिक विलासिता की जीवन व्यतीत करता था।

 

सल्तनत काल में स्त्रियों की दशा

 

  • हिन्दू समाज में सती प्रथाविधवा विवाह निषेधदहेज की प्रथास्त्री की आर्थिक पराधीनतास्त्री शिक्षा पर प्रतिबन्ध आदि के कारण स्त्रियों का जीवन अभिशप्त था। 
  • मुस्लिम समाज में भी स्त्री शोषण और दमन का शिकार थी । इस्लाम में पुरुषों के लिए चार विवाह तक जायज़ होने के कारण लाखों मुस्लिम स्त्रियों को बहुपत्नीवाद की त्रासदी से गुज़रना पड़ता था। अन्य समुदायों में भी पुरुषों में बहु विवाह का प्रचलन थाकिन्तु मुसलमानों की तुलना में यह कम था 
  • पर्दा प्रथा के कारण मुस्लिम स्त्रियों को आमतौर पर घर की चहारदीवारी में कैद रहकर ही अपना सारा जीवन बिताना पड़ता था। 
  • मुस्लिम प्रभाव से अन्य समुदायों में स्त्रियों को पर्दे में रखने का चलन हो गया था। सभी समुदायों की स्त्रियां आभूषणों के प्रति अनुरक्त थीं और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के अनुरूप उन्हें बनवाती थीं। 
  • स्त्री शिक्षा का चलन एक अपवाद होने के कारण स्त्री समाज में अंधविश्वासों का व्यापक प्रसार था। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इस काल में स्त्रियों की दशा सामान्यतः शोचनीय तथा दयनीय थी।

 

सल्तनत काल में हिन्दू मुस्लिम सम्बन्ध

 

  • इस काल में हिन्दू-मुस्लिम सम्बन्ध धूप-छांव की तरह रहे। दोनों समुदायों में वैमनस्य रहा। हिन्दुओं के लिए मुसलमान म्लेच्छ थे तो मुसलमानों के लिए हर गैर-मुस्लिम काफ़िर था। मुसलमान मूर्तिभंजक थे तो हिन्दू मूर्तिपूजक दोनों के आचार-विचारखान-पानवेशभूषाभाषा आदि सभी में अन्तर था। 
  • इसी कारण दोनों समुदायों के मध्य एक तनावपूर्ण और कटुतापूर्ण वातावरण रहता था किन्तु समय के साथ-साथ दोनों समुदायों को एक-दूसरे को समझने का अवसर मिला। 
  • सूफ़ी फ़कीरों और भक्त सन्तों ने दोनों को आपस में मिलजुल कर रहने का उपदेश दिया। जहां मुस्लिम संस्कृति ने भारत की प्राचीन संस्कृति को प्रभावित कर उसमें बदलाव किया वहीं भारतीय संस्कृति ने भी मुसलमानों के जीवन और उनके विचारों को प्रभावित किया। 
  • दो महान किन्तु भिन्न-भिन्न समुदायों की संस्कृतियों के संगम से भारत में गंगा-जमुनी संस्कृति अथवा तहज़ीब का विकास हुआ।

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