सुल्तान बहलोल लोदी |Sultan Bahlol Lodi

 सुल्तान बहलोल लोदी |Sultan Bahlol Lodi

सुल्तान बहलोल लोदी |Sultan Bahlol Lodi


लोदी वंश सामान्य परिचय 

  • सुल्तान फिरोज़ शाह तुगलक के शासनकाल के अंतिम वर्षों में जिस राजनीतिक अस्थिरता ने दिल्ली सल्तनत को जकड़ा था वह अगले साठ वर्षों से भी अधिक काल तक बनी रही। 
  • वास्तव में 1451 में बहलोल लोदी के सुल्तान बनने पर ही स्थिति में कुछ सुधार आया परन्तु राज्य को पुनर्संगठित करना और विरोधी शक्तियों का स्थायी रूप से दमन कर पाना लोदी शासकों की सामर्थ्य से परे था। 
  • राज्य के आर्थिक संसाधन भी सीमित थे। अफ़गान राजत्व के सिद्धान्त का अनुपालन करते हुए सुल्तान बहलोल ने स्वयं को राज्य संघ का प्रमुख माना न कि राज्य का सार्वभौमिक शासक |
  • जौनपुर राज्य का दिल्ली सल्तनत में विलय बहलोल लोदी की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। 
  • बहलोल लोदी की मृत्यु के बाद सुल्तान सिकन्दर लोदी ने सुल्तान को सर्वोपरि स्थान राजत्व के सिद्धान्त में परिवर्तन किया और अमीरों की शक्ति को नियन्त्रित किया। 
  • सिकन्दर लोदी की साम्राज्य विस्तार की नीति एक सीमा तक सफल रही किन्तु उसके शासनकाल में सुल्तान अमीर सम्बन्धों में कटुता आ गई। 
  • सिकन्दर लोदी की धर्मांधता ने हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य को बढ़ावा दिया। 
  • सिकन्दर लोदी की मृत्यु के बाद सिंहासनारूढ़ इब्राहीम लोदी अपने दम्भ और असहिष्णुता के कारण एक असफल शासक सिद्ध हुआ। 
  • सीमा सुरक्षा का समुचित प्रबन्ध न कर पाना और अपने विरुद्ध पनप रहे षडयन्त्रों के प्रति असावधान रहने के कारण पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर से पराजित होने पर उसका अन्त हुआ। 
  • दिल्ली सल्तनत काल का समाज वर्ग भेद, जाति भेद और लिंग भेद से ग्रस्त था। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही समुदायों के सामाजिक जीवन में परम्परा के नाम पर रूढ़िवादिता, धर्म के नाम पर कर्म काण्ड और आस्था के नाम पर अंधविश्वास का बोलबाला था। 
  • इस काल का ग्राम्य जीवन सादगी का और शहरी, विशेषकर आभिजात्य वर्ग के शहरियों का जीवन विलासिता से परिपूर्ण था। इस काल में स्त्रियां सामान्यतः अभिशप्त जीवन व्यतीत करने के लिए विवश थीं।

 

सुल्तान बहलोल लोदी

 

अफ़गान राजत्व का सिद्धान्त

 

  • बहलोल अफ़गान जाति का था। अफ़गानों की कबाइली राजनीतिक अवधारणा में विश्वास करता था। शासक की पूर्ण सम्प्रभुता और उसकी निरंकुश शक्ति में अफ़गानों की आस्था नहीं थी।
  • उनका विश्वास शासक अथवा मुखिया के चुनाव में था न कि राजत्व के दैविक सिद्धान्त और वंशानुगत शासन की अवधारणा में अपनी कबाइली संस्कृति में विश्वास रखते हुए अफ़गानों के विभिन्न कबीले, शासक को अपनी बिरादरी का मुखिया मानते थे न कि अपना स्वामी। 
  • बलबन, अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद तुगलक के राजत्व के दैविक सिद्धान्त के विपरीत, सुल्तान बहलोल लोदी अफ़गानों के कबाइली और कुनबे की राजनीतिक अवधारणा में विश्वास करता था। 
  • बहलोल ने कभी भी एक स्वेच्छाचारी, निरंकुश एवं पूर्णसम्प्रभुता प्राप्त शासक की भांति व्यवहार नहीं किया। वह स्वयं को राज्य संघ का प्रमुख मात्र मानता था। उसने अपने पुरखों के स्थान रोह से अपने कबीले वालों को अपने राज्य में आने के लिए निमन्त्रित किया था। 
  • अपनी बिरादरी के अमीरों को उसने अपनी बराबरी का दर्जा दिया और सल्तनत में उनको अपना हिस्सेदार माना। उनके रूठने पर उनको मनाने के लिए उनके घर तक जाने में उसे कोई ऐतराज़ नहीं था और उनके साथ एक ही मसनद पर बैठने में उसे कोई संकोच नहीं था। 
  • उसने अपने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों को अपने सम्बन्धियों और अपने अमीरों में बांटने का निर्णय लिया था। 
  • अफ़गान राजत्व के सिद्धान्त का पोषण कर बहलोल लोदी ने अमीरों की महत्वाकांक्षाओं को बढ़ावा तो दिया था किन्तु उसने सुल्तान - अमीर सम्बन्धों में बढ़ती हुई कटुता को दूर करने में और स्वजातीय अफ़गान अमीरों के सहयोग से विघटित होती हुई दिल्ली सल्तनत में राजनीतिक स्थायित्व स्थापित करने में सफलता अवश्य प्राप्त की थी।

 

बहलोल लोदी की उपलब्धियां 

1 जौनपुर के शर्की राज्य पर विजय 

  • सुल्तान बनने के बाद बहलोल लोदी को विद्रोही अमीरों तथा शत्रु पड़ौसी राज्यों से घिरा, आर्थिक दृष्टि से बहुत कमज़ोर और एक अस्थिर राज्य प्राप्त हुआ था। जौनपुर के शर्की शासक दिल्ली सल्तनत के लिए सबसे बड़ा खतरा थे। सन् 1452, 1457, 1473, 1474 तथा 1479 में जौनपुर के सुल्तानों दिल्ली पर तथा दोआब पर अधिकार करने के लिए असफल सैनिक अभियान किए।
  • जौनपुर के शासकों ने विद्रोही अमीरों का गुप्त समर्थन प्राप्त कर बहलोल के लिए दोआब में कठिनाइयां खड़ी कीं किन्तु उसने उनका भी सफलतापूर्वक सामना किया। 
  • दीर्घकालीन संघर्ष के बाद बहलोल सन् 1479 में जौनपुर पर निर्णायक विजय प्राप्त करने में सफल रहा। उसने अपने पुत्र बरबक शाह को जौनपुर का सूबेदार नियुक्त किया। 
  • जौनपुर पर विजय प्राप्त करने के बाद बहलोल के राज्य का क्षेत्रफल व उसके संसाधन पहले की तुलना में दो गुने हो गए।

 

2 विद्रोहियों का दमन

 

  • राज्य की राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर मुल्तान, मेवात तथा दोआब के अमीरों तथा जागीरदारों ने न केवल बहलोल को राजस्व देना रोक दिया अपितु शर्की सुल्तानों से उसके विरुद्ध सांठगांठ करना भी प्रारम्भ कर दिया।
  • बहलोल ने मेवात, सम्भल, कोल, साकित, इटावा, रापरी, भोगाँव, ग्वालियर आदि के विरुद्ध अभियान किए तथा जौनपुर पर विजय प्राप्त करने के बाद इन क्षेत्रों के अमीरों, जागीरदारों तथा शासकों को अपनी आधीनता स्वीकार करने के लिए विवश भी किया।

 

3 दिल्ली सल्तनत के सम्मान की पुनर्प्रतिष्ठा

 

  • बहलोल लोदी ने राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार किया । यद्यपि उसने अपने राज्य के लिए इस्लाम के सिद्धान्तों को आधार बनाया किन्तु बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम प्रजा का उत्पीड़न करने में उसने कोई रुचि नहीं ली। अनेक हिन्दू शासक व जागीरदारों से उसके मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। बहलोल लोदी ने साठ वर्ष से भी अधिक समय से चली आ रही राजनीतिक अस्थिरता को समाप्त कर साम्राज्य - विघटन की प्रक्रिया पर अंकुश लगाने में पर्याप्त सफलता प्राप्त की।


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