सल्तनतकालीन कला (स्थापत्य) |Sultanate Art (Architecture)

सल्तनतकालीन कला (स्थापत्य)

 

सल्तनतकालीन कला (स्थापत्य) |Sultanate Art (Architecture)

  • तुर्कों की भारत विजय के समय तक मध्य एशिया की विभिन्न जातियों ने स्थापत्य कला की एक ऐसी शैली विकसित कर ली थी जो एक ओर ट्रान्स ऑक्सियानाईरानअफगानिस्तानईराकमिस्रउत्तरी अफ्रीका तथा दक्षिण पश्चिमी यूरोप की स्थानीय शैलियों और दूसरी ओर अरब की मुस्लिम शैली के समन्वय से बनी थी |
  • 12 वीं सदी में जिस स्थापत्य कला को साथ लेकर तुर्क आक्रमणकारियों ने भारत में प्रवेश कियावह पूर्णतः अरबी अथवा मुस्लिम नहीं थी। 

इसकी चार मुख्य विशेषताऐं थीं- 

1. गुम्बद 

2. ऊँची मीनारें 

3. मेहराब तथा

मेहराबी डाटदार छत। 


परन्तु भारत में उन्हें एक अत्यन्त विकसित स्थापत्य निर्माण कला के दर्शन हुए जो बीम ब्रेकेट सिद्धान्त पर आधारित थीइसकी प्रमुख विषेषताऐं 

1. पटी हुयी छतें

2. आगे बडे हुए ब्रेकेट

3. शिखर 

4. टोडियों पर स्थित मेहराब तथा 

5. गोल व चौकोर खम्बे थे। तुर्क अपने साथ कलाकारों को नहीं लाये थे अतः भारतीय कलाकारों की सहायता से उन्होंने जिन भवनों का निर्माण कराया उन पर भारतीयता की छाप स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

 

  • हिन्दु मुस्लिम कला के सम्पर्क ने एक नवीन शैली को जन्म दिया जिसे इण्डोइस्लामिक कला कहा जा सकता है। 
  • अलंकरण के लिए तुर्कों ने मानव और पशु आकृतियों का प्रयोग नहीं कियाइसके स्थान पर इन्होंने ज्यामितीय और पुष्प अलंकरण को अपनाया। 
  • कुरान की आयतें खुदवाना भी अलंकरण का एक तरीका थाइसमें अरबी लिपि कला का नमूना बन गया। अलंकरण की यह संयुक्त विधि 'अरबस्ककहलायी। 
  • तुर्कों ने हिन्दू अलंकरण के नमूने घटियांबेलस्वास्तिककमल आदि का भी प्रयोग किया। तुर्क लाल पत्थर का प्रयोग करके अपनी इमारतों को रंगीन भी बनाते थे। लाल रंग को हल्का रखने के लिए इसमें पीला पत्थर और संगमरमर का प्रयोग भी किया गया है।

 

  • दिल्ली सल्तनत के प्रथम सुल्तान कुतुबदीन ऐबक ने कुव्वत-उल-इस्लाम मजिदअजमेर में अढाई दिन का झोपड़ा“ बनवाया तथा कुतुबमीनार का निर्माण प्रारंभ किया। 
  • अल्तमश ने कुतुबुमीनार को पूरा करायानासिरूदीन का मकबरासुलतानगढ़ीहौज-ए-शम्मीशम्सी ईदगाहबदायूं की जामी मस्जिद और नागौर का अतरकीन का दरवाजा बनवाया।
  • बलबन ने स्वयं का मकबरा और लाल महल का निर्माण करवाया। 
  • अलाउद्दीन एक महान निर्माता था उसने कुतुब के समीप एक बड़ी मीनार और बड़ी मस्जिद बनाने का प्रयास किया परंतु वह उस कार्य को न कर सका। उसने सीरी का नगर बनायाउसमें हजार स्तंभों वाला महल बनवायाजमैयतखाना मस्जिदअलाई दरवाजाहौज-ए-अलाइ या हौज-ए-खास का निर्माण भी करवाया। 
  • तुगलक काल की इमारतें संभवतः उनकी आर्थिक कठिनाइयों के कारण इतनी भव्य और सुन्दर नहीं बन सकी हैं 
  • गयासुद्दीन तुगलक ने तुगलकाबाद नामक नवीन नगर और उसमें स्वयं का मकबरा एवं महल बनवाया। 
  • मुहम्मद तुगलक ने जहांपनाह नामक नवीन नगर का निर्माण किया और आदिलाबाद का किला बनवाया। 
  • फीरोज ने अनेक इमारतें बनवायी परंतु वे अत्यधिक साधारण थीं। उसने इमारतों के अतिरिक्त फीरोजाबादफतेहाबादजौनपुर आदि नगरों की नींव भी डालीउसके पुत्र जूनाशाह ने खानेजहां तिलंगानी का मकबराकाली मस्जिदखिरकी मस्जिद तथा कलन मस्जिद की रचना की। 
  • सैयद ओर लोदी शासकों के काल की मुख्य इमारतों में मुबारकशाह सिकन्दर लोदी का मकबरा तथा मोठ की मस्जिद उल्लेखनीय है । 
  • सैयदमुहम्मदशाह सैयद और उपर्युक्त इमारतों में अधिकांश नगरकिले और महल नष्ट हो गये हैं परन्तु मकबरेमजिदें तथा मीनारें अभी भी विद्यमान हैं। ये कला के अद्वितीय तो नहीं परन्तु पर्याप्त अच्छे नमूने माने जा सकते हैं। 
  • कला की दृष्टि से कुतुबमीनार और अलाई दरवाजा का प्रमुख स्थान है।

 

प्रांतीय स्थापत्य कला

 

  • विभिन्न प्रान्तों में विभिन्न शासकों ने भी महत्वपूर्णकिलोंमस्जिदों एवं मकबरों का निर्माण करवाया। मूल आधार पर उनकी इमारतें भी दिल्ली अथवा शाही स्थापत्य कला की भांति थी उनकी परिस्थितियों ने उनकी इमारतों को दिल्ली सल्तनत की इमारतों से परन्तु स्वरूप प्रदान किया। 
  • कुछ भिन्न मुल्तान की इमारतों में शाह युसुफ-उल-गर्दिजीशमसुद्दीन और रूकने आलम के मकबरे हैं। इनमें रूकने आलम के मकबरे को कला की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ माना गया है। बंगाल में बनी इमारतें बहुत श्रेष्ठ नहीं बन सकींउनमें अधिकांशतः ईटों का प्रयोग किया गया है।
  • बंगाली शैली की इमारतों के अवशेष लखनौतीत्रिवेनीगौड़ और पांडुआ में मिले हैं। इनमें सिकन्दर शाह की अदीना मस्जिदगौड़ का मकबरापांडुआ का एकलखी मकबरागौड़ की लोटन मस्जिदबड़ा सोना मस्जिदछोटा सोना मस्जिदकदम रसूल मस्जिद आदि महत्वपूर्ण हैं।
  • बंगाली शैली की प्रमुख विशेषताओं में छोटे छोटे स्तभों पर नुकीले मेहराबलहरदार कार्निसें छत के ऊपर झोपड़ी के समान ढलाव और उससे संलग्न अर्द्ध गुम्बद है। 
  • जौनपुर के शर्की शासकों ने स्थापत्य को बहुत प्रोत्साहन दिया। शर्की शैली में चौकोर स्तंभछोटी दहलीजें होना और मीनारों का अभाव महत्वपूर्ण विशेषताऐं हैं। यहाँ की इमारतों में अटाला मस्जिदजामा मस्जिद और लाल दरवाजा मस्जिद प्रमुख हैं। 
  • मालवा शैली की इमारतों में मांडू की हिंडोला महलजहाज महलहुशंगशाह का मकबरा व रूपमती व बाजबहादुर के महल हैं। कला की दृष्टि से ये दिल्ली सुल्तानों द्वारा बनायी गयी इमारतों के काफी निकट हैं तथा अत्यन्त सुन्दर और दृढ़ हैं। 
  • गुजरात में हिन्दू मुस्लिम कला का सबसे अच्छा समन्वय मिलता है। यहां की इमारतों में काम्बे की जामा मस्जिदअहमदाबद की जामा मस्जिदढेलवा का हिलाल खाँ काजी का मकबराआदि इमारतें महत्वपूर्ण हैं |
  • काश्मीर में जैनुल आब्दीन के काल में सुन्दर इमारतों का निर्माण हुआ इनमें मदानी का मकबरा अति भव्य है। बहमनी राज्य में गुलबर्गा और बीदर की मस्जिदेंआदिलशाह का मकबरागोल गुम्बददौलताबाद की चार मीनार आदि कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं इस काल में हिन्दू स्थापत्य के नमूने मुख्यतः राजस्थान में मिलते हैंहॉलाकि विजयनगर में भी भव्य और सुन्दर इमारतें रही होगींकिन्तु तलीकोटा के युद्ध के बाद आक्रमणाकारियों ने उन्हें नष्ट कर दिया था। राजस्थान की इमारतों में कुंभलगढ़ का किलाचित्तौड़ का कीर्ति स्तंभ या जय स्तंभ तथा मान मन्दिर प्रमुख हैं। 
  • संक्षेप में कहा जा सकता है कि सल्तनत काल स्थापत्य निर्माण की दृष्टि से महत्वपूर्ण युग थाइस काल में स्थापत्य के द्वारा भारत की संयुक्त संस्कृति की नींव पड़ी थी।

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