विजय नगर का शासन प्रबन्ध Management of Vijay Nagar Empire

विजय नगर का  शासन प्रबन्ध Management of Vijay Nagar Empire

विजय नगर का  शासन प्रबन्ध Management of Vijay Nagar Empire


 

  • साम्राज्य का शासक राज्य की सारी सत्ता का सर्वोच्च स्त्रोत थाकृष्णदेवराय ने अपने अमुक्तमाल्यदा" में राजपद का आदर्श स्थापित किया। 
  • विजयनगर का साम्राज्य एक विशाल सामन्ती संगठन था और राजा सारी व्यवस्था के उपर थाउसे कार्य में एक परिषद सहायता करती थीजिसमें मंत्रीप्रान्तीय अध्यक्ष गणसेनानीपुरोहित होते थेपरिषद के सदस्यों का चुनाव नहीं होता था वरन् राजा उन्हें मनोनीत करता थामन्त्रिगण क्षत्रिय तथा वैश्यों से भी लिये जाते थे ब्राहमणों के अलावा एक मन्त्री का पद कभी पैतृक और कभी अपैतृक होता था। नुनिज के अनुसारपुलिस संरक्षक को नगर में होने वाली चोरी व डकैतियों का उत्तर देना पड़ता था।  
  • शासक प्रबन्ध के लिए विजयनगर बहुत से प्रान्तों में बंटा हुआ थाप्रान्त के लिए राज्यमंडल और चवादी शब्दों का प्रयोग किया जाता थातमिल के भाग में कोट्टमपारू और नादू नाम के प्रान्तीय टुकडे थे और कर्नाटक भाग में नादूसीमाबैंथ और स्थल नामक प्रान्तीय भाग थे।
  • प्रत्येक प्रान्त एक नायक (नाइक) या अध्यक्ष के आधीन था। यदि नाइक अपनी आय का 1/3 भाग केन्द्रीय सरकार को न भेजता तो उसकी जागीर का उन्मूलन किया जा सकता था। ग्राम शासन प्रबन्ध की इकाई था प्रत्येक गाँव आत्मनिर्भर था गाँव के प्रबन्ध का उत्तरदायित्व ग्राम सभा पर था। राजा एक अधिकारी महानायकाचार्य द्वारा ग्राम पर नियंत्रण रखता था।

 

विजय नगर का  शासन की कर व्यवस्था

 

  • विजयनगर साम्राज्य की आय का मुख्य साधन भूमिकर थाइसका प्रबन्ध अठवणे नामक विभाग के आधीन था। भूमिकर लगाने के उद्देश्य से भूमि को तीन भागों में बांटा गया था- गीली भूमिसूखी भूमि व उद्यान तथा वन। 
  • हिन्दू विधि के अनुसार राज्य का हिस्सा उपज का 1/6 भाग था । 
  • भूमिकर के अतिरिक्त कृषकों को अन्य कर जैसे चरागाह करविवाह कर इत्यादि भी देने पड़ते थे। राज्य की आय के साधन और भी थे जैसे चुंगीव्यापार करउद्यान कर व धोबियोंव्यापारियोंसौदागरोंमजदूरोंकलाकारोंभिक्षुओं नाइयोंचमारें व वैश्याओं पर कर वैश्याओं द्वारा होने वाली आय को पुलिस व्यवस्था में व्यय किया जाता था।

 

विजय नगर की न्याय व्यवस्था

 

  • राजा सर्वोच्च न्यायाधीष था पर न्याय के लिए सुव्यवस्थित न्यायालय तथा विशेष न्याय संबंधी अधिकारी भी थे। स्थानीय संस्थाओं की सहायता से भी झगडों को सुलझाया जाता था।
  • देश का एकमात्र कानून ब्राहमणों का कानून या पुरोहितों का कानून नहीं था वरन् यह प्राचीन एवं परम्परागत नियमोंरीति रिवाजों तथा देश के संवैधानिक व्यवहारों पर आधारित थे।
  • दण्ड विधान कठोर था तथा जुर्मानेसम्पति हरण के साथ ही अंग भंग तथा मृत्यु दण्ड भी सामान्य प्रचलित दण्ड थे।

 

विजय नगर की सैन्य प्रशासन 

  • होयसलों की भांति ही विजयनगर का सैनिक विभाग भी सावधानी से संगठित थाइस विभाग का नाम कन्दाचार था और दण्डनायक या दण्डनायक के नियन्त्रण में था। 
  • राज्य में एक विशाल एवं कार्यक्षम सेना थी जिसकी संख्या समयानुसार घटती बढती थी।
  • आवश्यकता के समय जागीरदारों तथा सरदारों की सहायक सेना भी सम्मिलित की जाती थी। सेना के विविध अंग थे पदाति जिसमें मुसलमानों को भी लिया जता थाअश्वारोही सेना को पुर्तगालियों की सहायता से अच्छे अश्व लेकर सबल बनाया गया था। 
  • हाथी तथा ऊटों का भी प्रयोग होता था। तोपों का भी उल्लेख मिलता है संभवतः यह अविकसित अवस्था में रही होगी। प्रतीत होता है कि विजयनगर की सेना का अनुशासन तथा लड़ने की शक्ति दक्कन के मुस्लिम राज्यों की सेना से कम रही होगी।
 

नायकारा प्रणाली- विजय नगर का  

  • प्रान्तीय संगठन की एक विशेषता नायकारा प्रणाली थी। इस प्रणाली में राजा जो कि भूमि का स्वामी माना जाता थाअपने आश्रितों को भूमि प्रदान करता था। इसके भूस्वामी य थे। 
  • इनको बदले में दो कार्य करने होते थे प्रथमतः वे एक निश्चित वार्षिक राशि साम्राज्य के खजाने में भेजते थेनुनिज के अनुसार यह राशि उनके कुल राजस्व का आधा होती थी।
  • द्वितीयतः उनहें एक कुशल सेना रखनी होती जो कि आवश्यकता के समय राजा को देनी होती थी। उनहें अपने क्षेत्र में शान्ति स्थापित करनी होती थी और अपराधों का पता लगाना होता था। 
  • नायकों की संवैधानिक स्थितिप्रान्तों के शासकों से भिन्न प्रतीत होती है हाँलाकि दोनों को ही अनेक समान कर्तव्य निभाहने होते थे। नायक तुलनात्मक दृष्टि से अपने प्रान्तों में अधिक स्वतन्त्रता का उपभोग करते थे। 
  • संभवतः नायकों का एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में स्थानान्तरण नहीं होता था। नायक उपाधि प्रारंभ में व्यक्तिगत थी परन्तु जैसे जैसे शासक केन्द्र में कमजोर होते गये यह उपाधि वंशानुगत हो गयी ।
  • नायक दो प्रकार के अधिकारी केन्द्र में रखते थे। जिनमें से एक सैन्य अधिकारी होता था तथा दूसरा स्थानपति या नागरिक ऐजेण्ट होता था जो अपने स्वामी के हितों की राजधानी में रक्षा करता था। विजयनगर के बाद के काल में नायकों की स्वतन्त्रता पर अंकुश रखने के लिए विशेष आयुक्तों की नियुक्ति की गयी थी।

 

अयागार प्रणाली- विजय नगर

 

  • ग्राम्य संगठन की एक प्रमुख विशेषता अयागार प्रणाली थी। इस प्रणाली के अनुसार प्रत्येक गाँव एक पृथक इकाई थीऔर इसका कार्य संचालन 12 व्यक्तियों के एक निकाय द्वारा संचालित किया जाता थाजिनहें सम्मिलित रूप से आयागार पुकारा जाता था। 
  • आयागारों को सामान्यता सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता था परन्तु एक बार आयगार बन जाने पर इनका यह वंशानुगत अधिकार हो जाता था। जब कभी किसी निश्चित कार्य क्षेत्र को लेकर विवाद उठता तो सरकार बडी सावधानी से पता लगाती थी 
  • प्रजा और सुदीर्घ प्रयोग के आधार पर किस आयगार का यह क्षेत्राधिकार है। 
  • आयगारों को कर विमुक्त भूमि मिली होती थी। उन्हें अपने क्षेत्र में शान्ति स्थापित रखने का अधिकार था। बिना आयगारों के ज्ञान के सम्पत्ति का स्थानान्तरण या अनुदान नहीं दिया जा सकता था।

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