मध्यप्रदेश पंचायती राज विकास की ऐतिहासिकता | MP Panchayti Raj Ka Vikas

मध्यप्रदेश  पंचायती राज विकास की ऐतिहासिकता
MP Panchyati Raj Ka Vikas

मध्यप्रदेश  पंचायती राज विकास की ऐतिहासिकता MP Panchyati Raj Ka Vikas


1. ब्रिटिशकालीन पंचायती राज विकास और

2. स्वतंत्रता के बाद पंचायती राज विकास

 

ब्रिटिश काल में पंचायती राज विकास 

 

  • प्रथम चरण (1772-1882): इस समय स्थानीय शासन की घोर उपेक्षा की गयी। 
  • मध्य प्रान्त की राजधानी नागपुर में 1864 ई. में नगरपालिका परिषद की स्थापना की गयी।
  •  म.प्र. के अन्य बड़े नगरों में भी ऐसी परिषदें समय-समय पर स्थापित की गयी। 
  • द्वितीय चरण (1883-1922) : यह चरण स्वशासन के का चरण है।
  • पुनुरूत्थान रिपन प्रस्ताव, 1882 के अनुरूप स्वशासन अधिनियम, 1883 पारित हुआ जिसके तहत् प्रत्येक प्रान्त में स्वशासन संस्थाओं (ग्रामीण एवं नगरीय दोनों) का विकास अपेक्षित था। 
  • इसके अनुरूप मध्य भारत स्थानीय स्वशासन अधिनियम, 1883 (i) पारित और लागू हुआ। 
  • तृतीय चरण (1922-1947) : इस चरण में म.प्र. स्थानीय शासन के विकास पर सर्वाधिक प्रभाव भारत शासन अधिनियम, 1935 का आया जैसे 1920 में होल्कर स्टेट ने पंचायत कानून लागू किया था जिसका अनुसरण ग्वालियर स्टेट, देवास, धार, नरसिंहगढ आदि रियासतों ने भी किया। 
  • .मध्य प्रान्त और बरार ग्रामीण पंचायत अधिनियम ( 1920) के रूप में पारित इस एक्ट से महाकौशल क्षेत्र में पंचायत राज का शुभारंभ हुआ। 
  • सरकार ने पंचायती कार्यों की समीक्षा के लिए एक समिति 1926 मे गठित की थी।

 पंचायती समीक्षा समिति 1926 प्रमुख सिफारिशें

1930 में प्रांतीय सरकार ने पुनः एक जाँच समिति गठित की जिसकी प्रमुख सिफारिशें थी-

  • पंचायतो को अपराध नियन्त्रण से संबंधित व्यवहार न्यायालय की कुछ शक्तियाँ दी जाय। 
  • जिला परिषदों की आय का एक भाग पंचायतों को जाए। 
  • पंचायतों के लिए कुछ कार्य स्वैच्छिक घोषित हो। 


स्वतंत्रता के बाद म.प्र. में पंचायती राज का विकास

1. मध्यप्रदेश पंचायत राज अधिनियम 1946 में पारित होकर 1947 में लागू हुआ। 

2. जनपद योजना : 1935 के अधिनियम के तहत् 'विकेन्द्रीकरण मॉडल' के रूप में 'जनपद योजना' (1948) लागू हुई।  जनपद योजना प्रांतीय सरकार के स्वशासन मंत्री पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र ने तैयार की थी लेकिन यह 1 जुलाई 1948 में ही लागू हो पायी। 

म.प्र. के विभिन्न भागों में पंचायत राज संबंधी प्रयास

मध्य भारत

म.प्र. संघ के गठन (1947) के बाद सरकार ने पंचायतों में एकरूपता मध्य भारत लाने और उन्हें समुचित विकास के लिये मध्य भारत पंचायत अधिनियम, 1949 लागू किया। इस एक्ट की प्रमुख विशेषताएँ थी

  • त्रिस्तरीय पंचायत मॉडल : ग्राम पंचायत (ग्राम स्तर), केन्द्र पंचायते (ब्लाक स्तर) तथा मण्डल पंचायतें (जिला स्तर)। 
  • ग्राम पंचायतों में वयस्क मताधिकार आधारित निर्वाचन व्यवस्था और गुप्त मतदान। 
  • केन्द्र और मण्डल पंचायतों के सदस्यों का अप्रत्यक्ष चुनाव । 

विंध्य प्रदेश

  • स्वतंत्रता के बाद विध्यप्रदेश पार्ट-सी राज्य के रूप में 1947 में पुनर्गठित हुआ। 
  • इसमें शामिल क्षेत्रों में पंचायते विभिन्न नामों से कार्यरत थी जैसे पंचसभा, प्रजामण्डल, चौसा, टप्पा आदि । 
  • ग्राम पंचायत अधिनियम, 1949 बनाया गया जो 1 अक्टूबर 1951 से लागू हुआ। 
  • इस अधिनियम द्वारा पहले 611 ग्राम पंचायते और 61 न्याय पंचायतें प्रायोगिक तौर पर स्थापित हुई। 
  • फिर प्रत्येक पटवारी हल्के में एक ग्राम पंचायत स्थापित हुई। 

भोपाल राज्य 

  • भोपाल नवाब के शाही आदेश से 1947 में ग्राम पंचायतों की स्थापना हुई।
  • 1947 में भोपाल पार्ट-सी राज्य बना और पंचायतों का पुनर्गठन हुआ। 
  • 572 पंचायतें कार्यरत थी। 
  •  पंचायत राज सुधार हेतु नवगठित जन प्रतिनिधी सरकार ने भोपाल राज्य पंचायत अधिनियम, 1952 पारित किया जो 15 अगस्त 1953 से लागू हुआ। 
  • इस एक्ट द्वारा प्रत्येक पटवारी हल्के में एक ग्राम पंचायत स्थापित की गयी जिनकी कुल संख्या 507 थी। 

महाकौशल में पंचायती राज विकास

  •  1947 में गठित पार्ट-ए स्टेट "सी पी बरार" का हिस्सा महाकौशल (जबलपुर से छत्तीसगढ़) क्षेत्र था।
  • मध्यप्रदेश पंचायती राज अधिनियम, 1946 पारित होकर 1947 में यहा लागू हुआ था। 
  • इस एक्ट ने ग्राम पंचायतों और न्याय पंचायतों की स्थापना की इस क्षेत्र में 6116 ग्राम पंचायतों तथा 802 न्याय पंचायते कार्यरत थी।

 सिरोंज 

  • यह 1956 के पूर्व राजस्थान का भाग था और तब तक इस क्षेत्र में राजस्थान पंचायत अधिनियम लागू रहे । 
  • यहाँ 1956 तक 19 ग्राम पंचायतों (ग्राम स्तर) और 2 तहसील पंचायतें (तहसील स्तर) कार्यशील थी। 

मध्यप्रदेश गठन के पश्चात पंचायत राज का विकास 

  • पाण्डे समिति और म.प्र. पंचायत राज अधिनियम 1962 केन्द्र में मेहता समिति के अनुरूप म.प्र. में भी काशीप्रसाद पाण्डे की अध्यक्षता में 15 सदस्यीय समिति गठित की गयी जिसका उदेश्य राज्य में एक समान पंचायत राज कायम करने के लिये सुझाव देना था । 
  • पाण्डे समिति ने सितम्बर 1958 में प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जिसमें बलवन्तराय मेहता समिति (केन्द्र सरकार) की अनुशंसाओं का अनुसरण किया गया था । 

पाण्डे समिति समिति की सिफारिशे 

  •  1. राज्य में त्रिस्तरीय पंचायत राज और न्याय पंचायत प्रणाली लागू की जाये। 
  • 2. ग्राम पंचायत (ग्राम स्तर), जनपद पंचायत (जनपद स्तर) और जिला पंचायतों (जिला स्तर) का गठन हो। 
  • 3. निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर हो जो ग्राम स्तर पर प्रत्यक्ष तथा अन्य स्तरों पर अप्रत्यक्ष ।

 

जनपद स्तर पर निर्वाचन के साथ विशेष परिस्थिति में मनोनयन भी किया जा सकता है। (इसे राष्ट्रपति के परामर्श उपरान्त हटा दिया गया ।)

 

मध्यप्रदेश पंचायती राज अधिनियम, 1962 का क्रियान्वयन 

  • पाण्डे समिति की सिफारिशों के अनुरूप विधानसभा ने इसे 1962 में पारित किया जो राष्ट्रपति की स्वीकृति उपरान्त 1962 में ही लागू हुआ। 
  • लेकिन 1962 में सिर्फ ग्राम पंचायत स्तर के ही चुनाव हो पाये । 
  • 1977 में जनता पार्टी केंद्र में सत्तारूढ़ हुई और भारत भर में पंचायतो के चुनाव हुए। 
  • म.प्र. में भी ग्राम पंचायतो और जनपद पंचायतों के पुनः चुनाव हुए।

 मध्यप्रदेश मंत्रि परिषद समिति की सिफारिशें

  •  1977 में गठित इस समिति ने राज्य का दौरा करने के उपरांत ग्राम पंचायतो और जनपद पंचायतों को अधिक सत्ता सौपनें की सिफारिशें की। 

मध्यप्रदेश पंचायत अध्यादेश, 1981

  • मंत्रि परिषद समिति की सिफारिशों के अनुरूप एक सरलीकृत पंचायत एक्ट बनाया गया। लेकिन इसके पारित होने तक सरकार ने अध्यादेश के द्वारा समिति की सिफारिशों को लागू करने हेतु म.प्र. पंचायत अध्यादेश, 1981 राज्य में लागू किया।
  • 1990 में जाकर नया पंचायत अधिनियम लागू हो गया। वैसे म. प्र. में त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली अक्टूम्बर 1985 में सर्वप्रथम लागु हुई थी। 
  • म.प्र. पंचायती राज अधिनियम 1990, (संशोधित अधिनियम म. प्र. पंचायतो एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993)
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