भारतीय संविधान एवं राजभाषा |Indian Constitution and Official Language

 भारतीय संविधान एवं राजभाषा

 

भारतीय संविधान एवं राजभाषा |Indian Constitution and Official Language



भारतीय संविधान के भाग 17 के अन्तर्गत संघ की राजभाषा, क्षेत्रीय भाषा और उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों की भाषा से सम्बन्धित उपबन्ध दिये गये हैं . 

 

संघ की राजभाषा 

  • भारतीय संविधान का भाग 17 (अनुच्छेद 343) यह उपबन्ध करता है कि संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।
  • लेकिन अंको का प्रयोग इस देवनागरी लिपि में नहीं होगा। हमारे संविधान में भारत द्वारा विकसित अंको का ही प्रयोग होगा। ये अंक हैं(1,2,3, 4,5, आदि) जिसे भारतीय अंको का अन्तर्राष्ट्रीय रुप कहा जाता है। 
  • यद्यपि कालान्तर में लेखन प्रक्रिया में कुछ परिवर्तन भी हुआ है। संविधान का अनुच्छेद 343(1) के अनुसार संघ के शास्त्रीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंको का रुप भारतीय अंको का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा।
  • इसी प्रकार अनुच्छेद 343 (2) में यह उपबन्ध दिया गया है किसी बात के होते हुए भी इस संविधान के प्रारंभ से 15 वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा । 
  • किन्तु भारत का राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान संघ के शासकीय प्रयोजन हेतु स्वयं के आदेश द्वारा हिन्दी भाषा एवं देवनागरी लिपि का प्रयोग सुनिश्चित कर सकेगा । 
  • इसी प्रकार अनुच्छेद 343(3) में यह उपबन्ध है कि संसद पन्द्रह वर्ष की अवधि के पश्चात कानून द्वारा अंग्रेजी भाषा का या अंकों के देवनागरी रुप का प्रयोग उपबन्धित कर सकती है।
  • संसद ने राजभाषा अधिनियम 1963 भी अधिनियमित किया। 
  • 1967 में संशोधित इस अधिनियम की धारा तीन में अंग्रेजी को अनिश्चित काल तक प्रयोग की छूट दे दी गयी। इस प्रकार हम देखते हैं यद्यपि संविधान के अनुसार हिन्दी राजभाषा है, अंग्रेजी नहीं परन्तु व्यवहार में अंग्रेजी का प्रयोग आज राजभाषा के रुप में हो रहा है।

 क्षेत्रीय भाषाएं 

  • विभिन्न क्षेत्रों अथवा राज्यों की राजभाषा क्या होगी इसका उपबन्ध भारतीय संविधान में नहीं किया गया। 
  • अनुच्छेद 345 में यह उपबन्ध है कि राज्य का विधानमण्डल विधि द्वारा उस राज्य में प्रयोग होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिन्दी को राजभाषा के रुप में स्वीकार कर सकेगा। 
  • इस उपबन्ध के अनुसार अधिकतर बड़े राज्यों ने राज्य की प्रमुख भाषा को ही अपनी राजभाषा बनाया। जैसे महाराष्ट्र ने मराठी, तमिलनाडु ने तमिल को और उत्तर प्रदेश ने हिन्दी को अपनी राजभाषा बनाया
  • परन्तु पूर्वोत्तर के राज्यों नागालैण्ड, मिजोरम, मेघालय और अरुणांचल प्रदेश ने अंग्रेजी को अपनी राजभाषा के रुप में स्वीकार किया।
  • इसी प्रकार अनुच्छेद 346 के अन्तर्गत एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच तथा एक राज्य और संघ के बीच पत्रादि की भाषा अंग्रेजी ही होगी व्यवहारिक स्तर पर जब तक कि हिन्दी राजभाषा के स्तर को नहीं प्राप्त कर लेती है। 
  • क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु भी अनुच्छेद 347 के अन्तर्गत विशेष उपबन्ध किया गया है कि-'यदि किसी राज्य की अधिकतम जनसंख्या यह मांग करती है कि उसकी भाषा को राजभाषा बनाया जाय तो राष्ट्रपति उस भाषा को मान्यता देने से सम्बन्धित आदेश जारी कर सकता है इस प्रकार हमारा संविधान क्षेत्रीय भाषाओं के संवर्द्धन हेतु भी पर्याप्त प्रावधान करता है, जिसका प्रभाव यह रहा है कि भारत एक बहुभाषा-भाषी राष्ट्र के रुप में पूरे विश्व में अपनी अनूठी पहचान रखता है।

 

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न्यायालयों, संसद तथा विधानसभाओं की भाषा

  •  भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348 में यह प्रावधान किया गया है कि- जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबन्ध न करे तब तक उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों की सभी कार्यवाहियां अंग्रेजी भाषा में की जायेगी।
  • इसी प्रकार का प्रावधान राजभाषा अधिनियम, 1963 ( धारा 7) के अन्तर्गत है कि- राष्ट्रपति के आदेश द्वारा किसी राज्य की राजभाषा का प्रयोग वहाँ के उच्च न्यायालयों की कार्यवाहियों में किया जा सकता है। इसके सबसे बड़े उदाहरण चार राज्य बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश हैं जहाँ राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त करते हुए हिन्दी को न्यायालय की कार्यवाहियों तथा निर्णय में प्रयोग में लाया जा रहा है। 
  • यही शक्ति राजभाषा अधिनियम तथा अनुच्छेद 348 (2)के अन्तर्गत राज्यपाल को दी गयी है कि वह उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में हिन्दी या उस राज्य की राजभाषा को अनुमति प्रदान कर सकता है। 
  • परन्तु उच्चतम न्यायालय के सम्बन्ध में संसद ने अभी तक ऐसी कोई विधि नहीं बनायी है जिससे अंग्रेजी की जगह हिन्दी अथवा हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का प्रयोग उसकी कार्यवाहियों में किया जा सके।
  • आज भी उच्चतम न्यायालय में केवल अंग्रेजी भाषा में ही अपील की जाती है। इसका एक उदाहरण है उच्चतम न्यायालय का केस (1971 एस.सी. 2608) जिसमें हिन्दी में की जाने वाली बहस को असंवैधानिक घोषित किया गया। इस प्रकार हम देखते है कि आज वास्तविक रुप में अंग्रेजी को ही राजभाषा का गौरव प्राप्त है।

 सरकारिया आयोग तथा भाषा

  • सरकारिया आयोग जिसका गठन मार्च 1983 में किया गया, उसकी अध्यक्षता एक अवकाश प्राप्त न्यायाधीश जो सर्वोच्च न्यायालय का ही होगा को प्रदान की गयी। 
  • इस प्रयोग का उद्देश्य था केन्द्र राज्य सम्बन्धों की समीक्षा करते हुए देश की एकता और अखण्डता हेतु ऐसे सुझावों को प्रस्तुत करना जो जनता के लिए हितकारी हो । इसीलिए सरकारिया आयोग द्वारा राजभाषा के सम्बन्ध में भी कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिये गये।

 

राजभाषा के सम्बन्ध में सरकारिया आयोग के सुझाव 

  •  राजभाषा के विवाद के कारण राजनैतिक व्यवस्था का विकास अवरुद्ध हुआ है।
  • भारतीय संविधान के अन्तर्गत उपबंधित भाग 17 (ग्टप्प्) संविधान सभा में एक समझौते के परिणाम स्वरुप सामने आया है। 
  • देवनागरी लिपि में हिन्दी में राजभाषा का दर्जा प्रदान करने के बावजूद अंग्रेजी भाषा के प्रयोग को 15 साल तक निर्बाध छूट प्रदान की गयी। 
  • विविध भाषा-भाषी वाले इस भारत देश में किसी एक भाषा को राजभाषा का दर्जा देना एक विवाद पैदा करता है, क्योंकि जहाँ कुछ राज्यों ने हिन्दी को अपनी राजभाषा बनाया वहीं पर कुछ अन्य राज्यों ने अंग्रेजी को ही अपनी राजभाषा बनाया है। 


अतः सरकारिया आयोग ने अपने महत्वपूर्ण सुझावों के अन्तर्गत हिन्दी और अंग्रेजी के साथ ही साथ अन्य क्षेत्रीय  भाषाओं के संवर्द्धन एवं विकास हेतु भी कदम उठाने की बात कही है। क्योंकि विविधता युक्त इस देश भारत में समग्र विकास की दृष्टि से भी यह आवश्यक कहा जा सकता है | आयोग ने 'त्रि-भाषा-सूत्र को लागू करने के साथ ही साथ भाषा के राजनैतिकरण को देश हित के लिए रोकने का भी सुझाव दिया। 

इस प्रकार सरकारिया आयोग ने राजभाषा के सम्बन्ध में दी गयी अपनी अंतिम रिपोर्ट में राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं के सम्बन्ध में एक समग्र एवं सन्तुलित दृष्टिकोण अपनाने की बात कही है।

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