मध्य प्रदेश में औद्योगिक विकास | Industrial Development in Madhya Pradesh


Industrial Development in Madhya Pradesh

मध्य प्रदेश में औद्योगिक विकास

मध्य प्रदेश में औद्योगिक विकास की प्रक्रिया वर्ष 1961 में प्रारंभ हुई थी, किंतु राज्य के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग पर आधारित राज्य की प्रथम औद्योगिक नीति ( वर्ष 1972) के साथ प्रारंभ हुई थी ।

औद्योगिक नीति -1988 (Industrial Policy-1988)

मध्य प्रदेश सरकार ने उद्योगों का विकास करने के लिए वर्ष 1988 में  नवीन औद्योगिक नीति की घोषणा की। इस नीति में राज्य को विकसित तथा पिछड़े जिलों में विभाजित किया गया.

औद्योगिक नीति -1988 उद्देश्य 

  • मध्य प्रदेश  को उद्योग की श्रेणी में लाना।
  • क्षेत्रीय असमानता को कम करने के लिए उद्योग विहीन क्षेत्रों में नए उद्योगों की स्थापना करना।
  • राज्य के प्राकृतिक संसाधनों और मानव संसाधनों का अधिक उपयोग करना , जिससे औद्योगिक विकास की गति को तेज किया जा सके।
  • अनुसूचित जाति , जनजाति , महिलाओं , पिछड़े वर्गों तथा गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों में उद्यमिता (Entrepreneurship)का विकास करना।
  • कुटीर उद्योग (जैसे - खादी ग्रामउद्योग , हथकरघा , चर्म  शिल्प एवं हस्तशिल्प ) को संरक्षण देना ।
  • तीव्र गति से औद्योगिकरण के उद्देश्य से शासन द्वारा उद्यमियों को अनेक प्रकार की सुविधाएं प्रदान की गयी है जैसे - सस्ती दर पर भूमि , ब्याज अनुदान ,  पूंजी अनुदान एवं बिक्री कर अनुदान।

उद्योग संवर्द्धन नीति - 2004


  • राज्य में औद्योगिकरण को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने प्रथम उद्योग संवर्द्धन नीति - 2004 की घोषणा की।
  • वर्ष 2007 में इस नीति में संशोधन किया गया , ताकि इसे और अधिक प्रभावी रूप से लागू किया जा सके।

उद्योग संवर्द्धन नीति - 2004 प्रमुख उद्देश्य

  • इस नीति का मुख्य उद्देश्य रोजगार सृजन करना था।
  • औद्योगिकरण में तीव्र गति लाना, जिससे मध्य प्रदेश एक अग्रणी राज्य बन सके ।
  • विदेशी  निवेशक तथा प्रवासी भारतीय को आकर्षित करने के लिए विश्व स्तरीय आधारभूत संरचना का विकास करना।
  • गैर कृषि क्षेत्र में रोजगार का सृजन करना , जिसमें क्षेत्रीय विषमता को कम किया जा सके।
  • औद्योगिक  रुग्णता के लिए विशेष सहायता राशि उपलब्ध कराना।
  • राज्य के औद्योगिकरण हेतु निजी क्षेत्र की सहभागिता सुनिश्चित करना।

 उद्योग संवर्द्धन नीति - 2010 Industry Promotion Policy - 2010

यह नीति 1 नवंबर 2010  को 1 पारित की गई थी , किंतु 28 अगस्त , 2012 को इसमें कुछ संशोधन करके इसे और अधिक प्रभावी रूप से लागू किया गया ।


उद्योग संवर्द्धन नीति - 2010  प्रमुख उद्देश्य 

  • इस नीति के द्वारा राज्य के समग्र विकास के लिए कुछ विशेष क्षेत्रों , जैसे -कृषि आधारित उद्योग ,  खाद्य प्रसंस्करण , ऑटोमोबाइल , पर्यटन  , औषधि,  स्वास्थ्य , संचार , कौशल विकास को प्रोत्साहन देना,  भंडार ग्रहों के निर्माण।
  • तीव्र आर्थिक विकास एवं रोजगार सृजन के साथ-साथ राज्य के प्राकृतिक संसाधनों का सतत् उपयोग प्राकृतिक संसाधनों का सतत् उपयोग करना।
  • मध्यप्रदेश निवेश संवर्द्धन अधिनियम - 2008 के द्वारा निवेश प्रस्ताव को तीव्र गति से अनुमोदन (Approval) देना।
  • राज्य के नियम और कानूनों को उद्योगों के अनुकूल बनाना , जिससे राज्य को को अग्रणी औद्योगिक प्रदेश के रूप में स्थापित किया जा सके।
  • औद्योगिक क्षेत्रों का विकास करना , जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार प्राप्त हो एवं स्वरोजगार योजनाओं को लागू करना। को लागू करना।
  • औद्योगिक रुग्णता (Industrial Sickness) से ग्रस्त इकाइयों इकाइयों के लिए विशेष योजना लागू करना एवं निजी क्षेत्र के सहयोग से उद्योगों के लिए आधारभूत संरचना का विकास करना।
  • भूमि बैंक. (Land Bank) की स्थापना करना,  जिससे आधारभूत औद्योगिक संरचना के विकास के लिए भूमि उपलब्ध कराई जा सके।
  • इसके द्वारा लघु उद्योगों के लिए राज्य के सभी जिलों में 25 प्रतिशत की दर से अधिकतम 50 लाख रुपये तक अनुदान किया जाएगा।
  • सूक्ष्म एवं लघु उद्योग की आधारभूत संरचना के विकास के लिए कुल लागत का 50 प्रतिशत (अधिकतम एक करोड़ रुपए रुपए ) की सहायता राशि का निर्धारण किया गया है ।
  • टेक्सटाइल उद्योगों के लिए पूंजी निवेश का 10 प्रतिशत अथवा 1 करोड रुपये का अनुदान दिया जाएगा।

उद्योग संवर्द्धन नीति -2014 Industry Promotion Policy - 2014




मध्य प्रदेश सरकार ने 1 अक्टूबर , 2014 को नई उद्योग संवर्द्धन नीति घोषित की , परंतु जीएसटी लागू होने के पश्चात इस नीति में संशोधन किए गए।

उद्योग संवर्द्धन नीति - 2014  के प्रमुख उद्देश्य 

  • अर्थव्यवस्था की समावेशी (Sustainable  Development) के साथ-साथ राज्य में  सुस्थिर औद्योगिकरण ,कौशल विकास तथा पर्यावरण सुरक्षा आदि को बढ़ावा देना , जिससे राज्य का समग्र विकास किया जा सके।
  • सूक्ष्म , लघु ,मध्यम एवं वृहद श्रेणी के उद्योगों तथा निवेश परियोजनाओं के लिए आधारभूत संरचना का विकास करना।
  • सभी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सृजित करना।
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