Madhyapadresh Praagaitihaasik kaal मध्यपद्रेश प्रागैतिहासिक काल

मध्यपद्रेश प्रागैतिहासिक काल 

मध्यपद्रेश प्रागैतिहासिक काल Madhya Pradesh prehistoric period


पृथ्वी के भू-वैज्ञानिक इतिहास के प्रारंभिक काल से ही दक्कन का पठार स्थल का भाग रहा है। मध्य प्रदेश में निम्नलिखित प्राचीनतम शैल यत्र-तत्र प्राप्त होते हैः


1. आद्य महाकल्प चट्टान

विंध्यन व दक्कन ट्रैप का आधार आद्य महाकल्प शैल है। बुंदेलखण्ड की गुलाबी ग्रेनाइट चट्टाननीससिल तथा डाइक भी इसी शैल से निर्मित हैं।


2. धारवाड़ शैल समूह
बालाघाट की चिलपी श्रेणी व छिंदवाड़ा की सौंसर श्रेणी। बुंदेलखण्ड व विंध्यन के मध्य बिजावर श्रेणी। इसमें जीवाश्म नहीं मिलते हैं।
3. पुराना शैल समूह-बिजावर श्रृंखला (पन्नाग्वालियर)
4. विंध्यन और समूह
रीवा से चंबल तक विस्तारित (सोन घाटीकैमूरभाण्डेर तथा रीवा श्रेणी)।
5. गोण्डवाना शैल समूह
सतपुड़ा व बघेलखण्ड में विस्तारित है। पेंच घाटीमोहपानीपंचमढ़ीदेनवाबागरा आदि कोयला क्षेत्र।
6.दकन ट्रैप

बाघ तथा लमेटा स्तरों के निक्षेपण से ज्वालामुखी क्रिया पश्चात् बेसाल्ट निर्मित मालवा का पठार।

7.तृतीयक शैल समूह

गोण्डवाना महाद्वीप के टूटने पश्चात् दकन के पठार को वर्तमान रूप मिला इसी समय टेथिस सागर का निक्षेपण होने से मोड़दार पर्वत हिमालय बना।
स्पष्टतः प्रदेश में प्राचीनतम से नवीनतम चट्ठानों का प्रतिनिधित्व मिलता हैजो इसकी ऐतिहासिकता का स्वयंमेव साक्ष्य उपलब्ध कराता है।
यहॉ हुए उत्खनन व पुरा शोध उपरांत उपकरणों की बनावट के आधार पर प्रागैतिहासिक काल को निम्नानुसार बॉटा जा सकता हैः

1. पुरापाषाण काल (2.5 लाख से 10,000 ईसा पूर्व)


अ. नर्मदा घाटी सर्वेक्षण-

  • एच.डी. सांकलियामैक क्राऊनआर.बी.जोशी
  • होशंगाबादनरसिंहपुर में पुरातन जीवाश्म प्राप्त।
  • हथनोरा से नर्मदेनसिस मानव की खोपड़ी (होशंगाबाद जिला)।
  • डी. टेरा व पीटरसन को कुल्हाड़ी व बुगंदा प्राप्त।
  • पी. खत्री ने कुल्हाड़ीऔजार संग्रहित किए।
  • महादेव पिपरिया में सुपेकर को 860 औजार मिले।
  • चम्बल घाटी में वाकणकर को मंदसौर से औजार प्राप्त।
  • बेतवा घाटी व भीमबैटका से औजार प्राप्त।
  • निसार अहमद ने सोन घाटी से उपकरण खोज निकाले।
  • बी.बी.लाल ने ग्वालियर व जी. शर्मा ने रीवासतना क्षेत्रों में उत्खनन कार्य किया।
ब. मध्य पूर्व पाषाण काल

  • मण्डला में सर्वेक्षण कार्य सूपेकर द्वारा।
  • सोन घाटी से 464 औजार मिले।
  • मंदसौरनाहरगढ़इंदौरसीहोरभीमबेटका से प्रमाण मिले।
  • स. उच्च पूर्व पाषाण काल
  • भीमबेटकारीवासोन घाटी क्षेत्रशाहडोल क्षेत्र से उपकरण प्राप्त हुये।
2.मध्य-पाषाण काल
बी.बी. मिश्रा ने भीमबेटका से ब्लेड अवयव खोजे।
3. नव-पाषाण काल
ऐरणजतकारा दमोहसागरआदमगढ़ (होशंगाबाद)जबलपुर आदि क्षेत्रों में नव-पाषाणकालीन संस्कृति के साक्ष्य मिले हैं।
4. ताम्रपाषाण कालीन स्थल
हड़प्पा संस्कृति के चिन्ह मध्य प्रदेश में नहीं मिलें हैं।
महेश्वर नवदाटोली (1440 ई.पू.)कायथा-ऐरण (2000ई.पू.) से पत्थरब्लेड उपकरण व ताम्र धातु का एक साथ प्रयोग के साक्ष्य मिले हैं।
5. लौह युग संस्कृति (1000ई.पू.)
भिण्डमुरैनाग्वालियर क्षेत्र में लौहयुगीन संस्कृति के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
6. महापाषाण संस्कृति (मेगालिथ)
रीवा-सीधी क्षेत्र में महापाषाण स्मारक के साक्ष्य हैं।
स्पष्ट है किमध्य प्रदेश का इतिहास अत्यंत समृद्ध रहा हैजिसका समृद्ध व विस्तृत विवेचन निम्नानुसार हैः

प्रागैतिहासिक काल-मध्य प्रदेश  MP ka Pragaitihasik kal


राज्य के विभिन्न भागों से की गई पुरातात्विक खुदाई व खोज से प्रागैतिहासिक काल के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।

डॉ. एच.डी. सांकलियासुपेकरआर.बी. जोशी और बी.बी लाल आदि पुरातत्वविदों ने नर्मदा घाटी का सर्वेक्षण किया। नरसिंहपुर के निकट पुरातत्वविदों द्वारा एक खोपड़ी जीवाश्म की खोज की गई। होशंगाबादमण्डलानरसिंहपुर क्षेत्र से इस काल के औजार प्राप्त किए गए हैं। बी.बी. लाल द्वारा ग्वालियर क्षेत्र से पूर्व पाषाणकालीन औजारों की खोज की गई। निसार अहमद द्वारा सोन घाटी के उत्खनन में पूर्व पाषाणकालीन अवशेष 35 स्थानों से प्राप्त हुए थेजबकि जी.आर. शर्मा ने सतना व रीवा क्षेत्र में उत्खनन के दौरान 100 से अधिक पाषाणकालीन स्थलों की खोज की थी।

नरसिंहपुर व भीमबेटका की गुफाओं के उत्खनन से पूर्व पाषाण काल के साक्ष्य प्राप्त हैंजिनमें नरसिंहपुर से प्राप्त आद्य सोहन किस्म के गॅडासे और खंडक उपकरण तथा चौतरा किस्म के हस्तकुठार और विदारणियॉ भी शामिल हैंजबकि भीमबेटका की गुफाओं से सुस्पष्ट निवास स्थलों की एक श्रेणी प्राप्त हुई है। साथ ही साथ भीमबेटका से एश्यूलियन् उपकरण की प्राप्ति से वृहत् आबादी का संकेत मिला है जो विदारणियों के निर्माण में अत्यन्त कुशल व अनुभवी थे।

भीमबेटका गुफाओं तथा सोन घाटी के क्षेत्र से मध्य पूर्व पाषाण काल के उपकरण प्राप्त हुए हैं। इस राज्य में ईसा पूर्व 30 हजार से 10 हजार के मध्य तक मानव जीवन पूर्णतया प्राकृतिक था।

मध्य पाषाण काल (1000 ई.पू.) MP ka Madhya Pashan Kal


भारत में मध्य पाषाणकाल के बारे में जानकारी सर्वप्रथम 1867 0 में हुई जब सी.एल. कालाईल ने विंध्य क्षेत्र में लघु पाषाणोपकरण की खोज की। 1964 0 में आर.बी. जोशी ने होशंगाबाद जिले में स्थित आदमगढ़ शैलाश्रय में लगभग 25 हजार लघु पाषाणोपरकरण प्राप्त किये। भीमबेटका शिलाश्रयों तथा गुफाओं से मध्य पाषाणकाल के उपकरण प्राप्त हुए हैं।

नव-पाषाणकालीन संस्कृति (5000ई.पू.) MP ka Nav Pashan Kal


शवाधान की प्रक्रिया अग्नि के उपयोग का ज्ञान तथा कृषि व पशुपालन से परिचित हो चुके थे। इस काल में पत्थरों के अतिरिक्त हड्डियों के औजार भी बनाये जाने लगे थे। भारत में इस संस्कृति के बस्तियों का सबसे पहला प्रमाण मेहरगढ़ से प्राप्त होता है, जो पाकिस्तान के बलूचिस्तान का एक भूभाग है। इस काल के औजार ऐरण, जतकारा, जबलपुर, दमोह, सागर, व होशंगाबाद आदि क्षेत्रों से प्राप्त हुए हैं।

ताम्र पाषाणकालीन संस्कृति MP ki Tamra Pashan Kalin Sanskriti


ताम्र पाषाण अवस्था की बस्तियों के प्रमाण (पत्थरब्लेड व ताँबे का प्रयोग) इस राज्य के पश्चिमी भूभाग से मिले हैं। 

राज्य के पुरात्वविदो द्वारा पश्चिमी म0प्र0 के मालवाकायथानवदाटोलीऔर ऐरण में खुदाई कीजिसमें कायथा में चॉक की सहायता से बनाये गये मिट्ठी के बर्तनताँवेकी चूडि़याँ व कुल्हाडि़याँपत्थर के सूक्ष्म हथियार व मनके प्राप्त हुए हैं.

नवदाटोली में सुनियोजित बस्तीलाल-काले रंग के मृदभांडतांबे के उपकरण तथा गेंहूँ  मटरचना व चावल की कृषि के प्रमाण मिलते है।

मालवा में वृषभ मूर्तियों के प्रमाण मिले हैजिससे यह स्पष्ट है कि वृषभ इस काल में धार्मिक सम्प्रदाय का प्रतीक था।
जबकि ऐरण में राज्य के ताम्रकालीन संस्कृति के विकास की स्थिति देखने को मिलती हैं।
मालवा व नवदाटोली के उत्खनन से 1440 ई. पूर्व तक के साक्ष्य तथा कायथा व ऐरण के उत्खनन से 2000 ई. पूर्व तक के साक्ष्य हुए हैं।
सैंधवकालीन संस्कृति (2300 ई.पू.)
राज्य में सैधव कालीन संस्कृति के चिन्ह नहीं मिले हैं।

वैदिक काल (1500-600 ई.पू.) MP  ka Vedik Kal

आर्यों का भारत में सर्वप्रथम आगमान पंचनद प्रदेश‘ में हुआ थालेकिन उन्हें नर्मदा घाटी और उसके प्रदेश की जानकारी थी।

महर्षि अगस्त्य के नेतृत्व में यादवों का एक झुण्ड इस क्षेत्र में बस गया और यहीं से इस क्षेत्र में आर्यों का आगमान आरम्भ हुआ।

पौराणिक जनश्रुतियों के अनुसार कारकोट के नागवंशी शासक नर्मदा के किनारे काठे के शासक थे। ऐसे समय गन्धवों से जब उनका झगड़ा हुआ तो अयोध्या के इक्ष्वाकु नरेश मांधाता ने अपने पुत्र पुरूकुत्स को नागों की सहायता के लिए भेजा । पुरूकुत्स की सेना ने गन्धार्वों को बुरी तरह हराया। इस विजय अभियान से खुश होकर नाग शासक ने अपनी कन्या रेवा‘ का विवाह इक्ष्वाकु राजकुमार पुरूकुत्स से कर दिया। पुरूकुत्स ने रेवा का नाम नर्मदा में परिवर्तित कर दिया। इसी वंश के शासक मुचुकुन्द ने ऋक्ष और परियात्र पर्वतमालाओं के बीच नर्मदा के किनारे अपने पूर्वज नरेश मांधाता के नाम पर मांधाता नगरी‘ की स्थापना की थी (वर्तमान खाण्डवा जिला)।

यदु कबीले के हैहय शाखा के शासकों के काल में इस क्षेत्र की अभिवृद्धि  चरम पर थी। हैहय राजा महिष्मत ने नर्मदा के किनारे  ‘महिष्मति‘ नगर को बसाया। उन्होंने इक्ष्वाकु व नागों को भी हराया। कीर्तवीर्य अर्जुन इस वंश का प्रतापी राजा था।

    मध्य प्रदेश का प्राचीन इतिहास जानने के साधन


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