पेशी संकुचन की कार्यिकी विशेषताएँ | ऑक्सीजन ऋण | Working of Muscles in Hindi

 पेशी संकुचन की कार्यिकी विशेषताएँ

पेशी संकुचन की कार्यिकी विशेषताएँ | ऑक्सीजन ऋण | Working of Muscles in Hindi

पेशी संकुचन की कार्यिकी  

  • पेशी संकुचन की क्रियाविधि की व्याख्या एच. ई. हक्सले तथा ए. एफहक्सले (H. E. Huxley and A. F. Huxley) ने छड़ सरकवाँ सिद्धान्त (Sliding filament theory) की सहायता से की।
  • छड़ सरकवाँ सिद्धान्त के अनुसार पेशी संकुचन के समय A-पट्टियों की लम्बाई तो उतनी ही बनी लम्बाई बहुत कम हो जाती है तथा A-पट्टियों के मध्य स्थित H-क्षेत्र भी छोटा हो जाता है। रहती है परन्तु । पट्टियों की ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मायोसिन के सेतु बन्धन (Cross-bridges) एक्टिन से बार-बार जुड़ते और हटते हैं परिणामस्वरूप एक्टिन के अणु मायोसिन के अणुओं पर अन्दर की तरफ सरकते हैं। पेशों के संकुचित होते समय साकॉमियर के विपरीत सिरों से एक्टिन फिलामेन्ट एक-दूसरे की ओर बढ़ते हैं और संकुचन पूरा होने तक एक-दूसरे पर चढ़ जाते (Overlap) हैं। इस प्रकार सार्कोमियर 33% छोटा हो जाता है। 

  • पेशी संकुचन के समय एक्टिन एवं मायोसिन के सेतु बन्धनों (Cross bridges) के जुड़ने एवं हटने से सरकन (Sliding) उत्पन्न होती है। मायोसिन अणुओं के शीर्ष एक्टिन के साथ 90° कोण पर बन्धित (Bind) होकर घूर्णन गति (Swiveling move- ment) करके वियोजित (Disconnect) हो जाते हैं तथा उसके तुरन्त पश्चात् अगले बन्धन स्थल (Binding site) पर पुनर्योजित गति एवं प्रचलन (Reconnect) हो जाते हैं। यह प्रक्रिया क्रमबद्ध रूप से दोहराई जाती है। जुड़नेघूमने एवं असम्बद्ध होने के प्रत्येक एकल चक्र के पूर्ण होने पर पेशी लगभग 1% छोटी हो जाती है। प्रत्येक मोटे फिलामेन्ट में लगभग 500 मायोसिन शीर्ष होते हैं तथा तीव्र संकुचन के दौरान प्रत्येक शीर्ष एक सेकेण्ड में लगभग 5 चक्र पूरे करता है। 

  • उपर्युक्त प्रक्रिया हेतु वांछित त्वरित ऊर्जा मायोसिन छड़ों के शीर्ष पर उपस्थित ATPase एन्जाइम द्वारा ATP के जलअपघटन से प्राप्त होती है। ATP के जलअपघटन से प्राप्त ADP तथा P(i) फॉस्फोक्रिएटिन (Phosphocreatine) द्वारा फिर से ATP में परिवर्तित हो जाता है। 

  • रेखित पेशी संकुचन तन्त्रिकौय उद्दीपन के कारण होता है। जैसे ही तन्त्रिका आवेग तन्त्रिका-पेशी सन्धि स्थल पर पहुँचता हैतन्त्रिका एसिटाइलकोलीन (Acetylcholine) सावित करके पेशियों को आवेग का प्रेरण कर देती है जिससे सार्कोलेमा का निर्भूवण (Depolariation) हो जाता है। यह निध्रुवण सार्कोप्लाज्मिक जाल के माध्यम से पेशी तन्तु के अन्दर प्रसारित हो जाता है। वह प्रक्रिया जिसके द्वारा पेशी तन्तु का निर्धावण संकुचन का प्रवर्तन (Initiation) करता हैउद्दीपन-संकुचन युग्मन (Excitation contraction coupling) कहलाती है। पेशी तन्तु के समस्त तन्तुकों (Fibrils) में क्रियात्मक विभव (Action potential) का प्रसारण T-तन्त्र (T-system) के माध्यम से होता है। यह T-तन्त्र के सिरों पर पार्श्व थैलियों के रूप में उपस्थित सिस्टर्न्स (Cisterns) से Ca++ को मुक्त करने की प्रक्रिया को प्रेरित करता है। Ca++ संकुचन का प्रवर्तन करता है।

 

  • संकुचन प्रारम्भ करने के लिए Ca++ ट्रोपोनिन C (Troponin C) से बंध (Bind) जाता है। पेशी की विश्रामावस्था में ट्रोपोनिन । एक्टिन से कसकर जुड़ा रहता है तथा ट्रोपोमायोसिन एक्टिन के उस स्थल को आच्छादित किए रहता है जहाँ मायोसिन शीर्षों (Myosin heads) को जुड़ना होता है। इस प्रकार ट्रोपोनिन-ट्रोपोमायोसिन सम्मिश्र (Troponin-Tropomyosin complex) एक प्रकार की शिथिलन प्रोटीन (Relaxing protein) बनाते हैं जो एक्टिन-मायोसिन अन्योन्यक्रिया (Actin-myosin interaction) का अवरोधन करती है। जब क्रियात्मक विभव द्वारा मुक्त हुआ Ca++ ट्रोपोनिन से बन्धित हो जाता हैट्रोपोनिन तथा एक्टिन का बन्धन कमजोर पड़ जाता है जिसके फलस्वरूप ट्रोपोमायोसिन पार्श्व की ओर गति करता है जिससे एक्टिन पर स्थित मायोसिन शीर्षों के बन्ध-स्थल अनाच्छादित (Uncover) हो जाते हैं। अब ATP विघटित होता है तथा संकुचन हो जाता है। प्रत्येक Ca++ बन्धित ट्रोपोनिन अणु के कारण 7 मायोसिन बन्ध स्थलों का अनाच्छादन होता है। 
  • Ca++ मुक्त होने के कुछ ही समय पश्चात् सार्कोप्लाज्मिक जाल Cath को सक्रिय परिवहन द्वारा जाल के अनुदैर्ध्य भागों में एकत्रित करना प्रारम्भ कर देता है जहाँ से यह विसरित होकर सिरों पर स्थित सिस्टर्न्स में पहुँच कर अगले क्रियात्मक विभव द्वारा मुक्त होने तक संग्रहीत हो जाता है। 
  • जब जालिका के बाहर Ca" सान्द्रता पर्याप्त रूप से कम हो जाती हैमायोसिन-एक्टिन के मध्य की रासायनिक अन्योन्यक्रिया समाप्त हो जाती है और पेशी शिथिल हो जाती है। Ca++ के सार्कोप्लाज्मिक रेटीकुलम में सक्रिय परिवहन हेतु आवश्यक ऊर्जा ATP से प्राप्त होती है। इस प्रकार पेशी के संकुचन एवं शिथिलन दोनों के लिए ATP की आवश्यकता होती है।

 

  • T-नलिका कलाओं (T-tubule membranes) का निध्रुवण डाइहाइड्रोपिरिडीन ग्राही (Dihydropyridine receptors) के माध्यम से सार्को प्लाज्मिक जाल का सक्रियण करता है। T-नलिका के ये डाइहाइड्रोपिरिडीन ग्राही वास्तव में नलिका की झिल्ली पर उपस्थित वोल्टता-द्वार Ca++ कुल्याएँ (Voltage-gated Ca++ channels) होती हैं। Ca++ को सार्कोप्लाज्मिक जाल में सक्रियता से वापस करके पेशी संकुचन को समाप्त करने वाला पम्प (Pump) Ca++-Mg++ ATPase होता है।

 

पेशी संकुचन हेतु ऊर्जा के स्रोत (Energy Sources for Muscle Contraction) 

पेशी संकुचन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है और पेशियाँ रासायनिक ऊर्जा को यान्त्रिक कार्य में परिवर्तित करती हैं। संकुचन के समय पेशियों को ATP के जलअपघटन से ऊर्जा प्राप्त होती है जिसके फलस्वरूप ADP का निर्माण होता है। ऊर्जा के निम्नलिखित स्रोतों की सहायता से ADP से ATP का पुनर्संश्लेषण होता है।

 

(1) फॉस्फोक्रिएटिन (Phosphocreatine) - 

ADP से ATP का पुनर्संश्लेषण फॉस्फेट समूह के संयोजन द्वारा होता है। इस ऊष्माशोषी प्रतिक्रिया (Endothermic reaction) हेतु आवश्यक ऊर्जा के कुछ भाग की आपूर्ति ग्लूकोज के CO₂ एवं H₂O में विघटन से होती है परन्तु पेशियों में एक अन्य ऊर्जा-प्रचुर फॉस्फेट यौगिक भी पाया जाता है जो अल्प अवधि के लिए इस ऊर्जा की आपूर्ति कर सकता है। इस यौगिक को फॉस्फोक्रिएटिन (Phosphocreatine) कहते हैं। यह फॉस्फोक्रिएटिन क्रिएटिन (Creatine) एवं फॉस्फेट में जल अपघटित होकर पर्याप्त ऊर्जा मुक्त करता है जिसकी सहायता से ADP, ATP में परिवर्तित हो जाता है। विश्रामावस्था में माइटोकॉण्ड्रिया के अन्दर कुछ ATP अपने फॉस्फेट क्रिएटिन को स्थानान्तरित करके फॉस्फोक्रिएटिन भण्डार बनाते हैं।

 

कार्बोहाइड्रेट एवं लिपिड विघटन (Carbohydrate and lipid breakdown) - 

    • विश्राम के समय अथवा हल्के व्यायाम के दौरान पेशियाँ स्वतन्त्र वसीय अम्लों (Free fatty acids, FFA) के रूप में उपस्थित लिपिड्स का उपयोग ऊर्जा के स्रोत के रूप में करती है। स्वतन्त्र वसीय अम्लों के प्रत्येक अणु से प्राप्त होने वाली ऊर्जा की मात्रा अधिक होती है और वसीय अम्ल के अणु के आकार के अनुरूप भिन्नता दर्शाती है जैसे पामिटिक अम्ल (Palmitic acid) के एक अणु के पूर्ण ऑक्सीकरण से 140 ATP अणु बनते हैं। परन्तु जैसे-जैसे व्यायाम अथवा कार्य की तीव्रता में वृद्धि होती जाती हैलिपिड्स द्वारा होने वाली ऊर्जा की आपूर्ति कम पड़ने लगती है और तब कार्बोहाइड्रेट का उपयोग करना आवश्यक हो जाता है। अतः कठिन परिश्रम के दौरान फॉस्फोक्रिएटिन एवं ATP के पुनर्संश्लेषण हेतु आवश्यक ऊर्जा का अधिकांश भाग ग्लूकोज एवं ग्लाइकोजेन के CO₂ एवं H₂O में विघटन से प्राप्त होता है। ग्लूकोज रुधिर प्रवाह से कोशिकाओं में प्रवेश करता है जबकि ग्लाइकोजेन यकृत एवं कंकालीय ऊतक में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। ग्लूकोज एवं ग्लाइकोजेन से पाइरुविक अम्ल का निर्माण होता है। जब ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में उपस्थित होती हैपाइरुविक अम्ल क्रेब्स चक्र में प्रविष्ट कर जाता है और आगे की प्रक्रिया पूर्ण करके CO₂ एवं H₂O का निर्माण करता है। इस प्रक्रिया को ऑक्सीकर ग्लाइकोलिसिस (Aerobic glycolysis) कहते हैं तथा इस प्रक्रिया के फलस्वरूप अधिक ATP अणुओं का निर्माण होता है। ऑक्सीजन की आपूर्ति यदि अपर्याप्त है तो पाइरुविक अम्ल क्रेब्स चक्र में प्रवेश करने के बजाय लैक्टिक अम्ल में अपचयित (Reduce) हो जाता है। इस प्रक्रिया को अनॉक्सीकर ग्लाइकोलिसिस (Anaerobic glycolysis) कहते हैं तथा इसमें ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं पड़ती परन्तु इससे निर्मित ऊर्जा की मात्रा भी काफी कम होती है।

 

ऑक्सीजन ऋण (Oxygen Debt) 

  • लम्बे समय तक अथवा कठिन परिश्रम के दौरान पेशियों में ऊर्जा की खपत में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है। रक्त प्रवाह के तीव्र हो जाने के उपरान्त भी पेशियों को आवश्यक ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो पाती अतः ऐसे समय पेशियाँ अनॉक्सीकृत ग्लाइकोलाइसिस (Anaerobic glycolysis) द्वारा ऊर्जा प्राप्त करने लगती हैं जिससे पेशियों में तीव्रता से लैक्टिक अम्ल (Lactic acid) बनकर एकत्रित होने लगता है तथा तीव्रता से सामान्य परिसंचरण (General circulation) में विसरित होने लगता है। रक्त में लैक्टिक अम्ल की मात्रा में वृद्धि होने के कारण एन्जाइम अवरोधन के साथ-साथ थकान (Fatigue) उत्पन्न होती है। ऐसे समय पेशियों को एकत्रित लैक्टिक अम्ल के ऑक्सीकरण हेतु अतिरिक्त ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ती है इसे ऑक्सीजन ऋण कहते हैं। कठिन परिश्रम की समाप्ति के पश्चात् भी ऑक्सीजन की खपत तब तक बढ़ी रहती है जब तक कि सम्पूर्ण लैक्टिक अम्ल ऑक्सीकृत नहीं हो जाता।

 

कंकालीन पेशियों का उद्दीपन (Stimulation of Skeletal Muscles)

  •  कंकालीय पेशियाँ तन्त्रिजनक ( Neurogenic) होती हैं अत: केन्द्रीय अथवा परिधीय तन्त्रिका तन्त्रों के चालक तन्तुओं (Motor fibres) द्वारा उद्दीपित होने पर संकुचित होती हैं। कंकालीय पेशी तन्तुओं पर चालक तन्त्रिका (Motor nerve) के समापन से बने संगम स्थल को चालक छोर प्लेट (Motor end plate) कहते हैं। इस क्षेत्र की पहचान पेशी तन्तु पर उठे हुए प्लाक (Elevated plaque) के रूप में की जा सकती है। इन संगम स्थलों (Junctional regions) पर चालक तन्त्रिका की छोर घुण्डियाँ (Terminal nerve branches or buttons) समीपवर्ती पेशी तन्तुओं पर फैलकर चालक छोर प्लेट बनाती हैं। चालक छोर प्लेट पर छोर तन्त्रिकीय शाखाओं के केन्द्रकों को आर्बोराइजेशन केन्द्रक (Arborization nuclei) तथा पेशी तन्तुओं के बड़े आकार के केन्द्रकों को फण्डामेन्टल केन्द्रक (Fundamental nuclei) कहते हैं। प्रत्येक छोर घुण्डी तथा सम्बन्धित पेशी तन्तु के संगम को पेशी तन्त्रिकीय युग्मानुबन्धन (Myoneural synapse) कहते हैं। इस संगम स्थल पर संकुचन की प्रेरणा चालक तन्त्रिका तन्तु की छोर घुण्डियों द्वारा स्रावित एसिटाइलकोलीन (Acetylcholine) नामक तन्त्रिसंचारी (Neurotansmitter) पदार्थ के माध्यम से पेशी तन्तु की सार्कोलेमा तक पहुँचती है जिससे पेशी तन्तु संकुचित होते हैं।

 

कंकालीय पेशियों के संकुचन एवं शिथिलन में घटनाओं का अनुक्रम  

संकुचन के चरण (Steps in Contraction) 

(1) चालक न्यूरॉन की अवतारणा (Discharge of motor neurons) 

(2) चालक छोर प्लेट पर तन्त्रिसंचारी एसिटाइलकोलीन का मुक्त होना। 

(3) एसिटाइलकोलीन का निकोटिनिक एसिटाइलकोलीन ग्राही के साथ बन्धित होना। 

(4) छोर प्लेट झिल्ली पर Na+ एवं K+ के चालकत्व (Conductance) में वृद्धि होना।

(5छोर प्लेट विभव की उत्पत्ति। 

(6) पेशी तन्तुओं में क्रियात्मक विभव की उत्पत्ति । 

(7) T-नलिकाओं के साथ-साथ निध्रुवण का अन्दर की ओर विस्तारण। 

(8) सार्कोप्लाज्मिक जाल के छोर सिस्टर्स (Terminal cisterns) से Ca++ का मुक्त होकर मोटे एवं पतले फिलामेन्ट्स में विसरित होना। 

(9) Ca++ का ट्रोपोनिन के साथ बन्धित होकर एक्टिन पर मायोसिन बन्ध स्थलों को अनाच्छादित करना। 

(10) एक्टिन तथा मायोसिन के मध्य सेतु-बन्धनों का निर्माण। इसी के साथ पतले फिलामेन्ट्स का मोटे फिलामेन्ट पर सरकने से सार्कोमियर्स का लघुकरण (Shortening) होना।

 

शिथिलन के चरण (Steps in Relaxation) 

(1) Ca++ का सार्कोप्लाज्मिक जाल में वापस पम्प होना। 

(2) ट्रोपोनिन से Ca++ का मुक्त होना। 

(3) एक्टिन एवं मायोसिन के मध्य अन्योन्यक्रिया का अन्त होना।

 

पेशियों की विशेषताएँ (Properties of Muscles) 

पेशियाँ कार्य निष्पादन हेतु रासायनिक ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करती हैं। संकुचन के प्रारम्भ से लेकर शिथिलन के अन्त तक की अवधि को सक्रिय अवधि (Active period) कहते हैं। 

(1) जब भी कोई पेशी ऐसे भार के साथ जिसका कि वह उत्तोलन (Lift) कर सकेसंकुचित होती है तब इस दशा को आइसोटोनिक (Isotonic) (अर्थात् समान तनाव) दशा कहते हैं। इसके विपरीत जब कोई पेशी ऐसे भार के साथ संकुचित होती है जिसका उत्तोलन नहीं हो सके तब इस दशा को आइसोमेट्रिक (Isometric) दशा कहते हैं अर्थात इस दशा में पेशी की सम्पूर्ण लम्बाई में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता। इस प्रकार स्पष्ट है कि केवल आइसोटोनिक अवस्था में ही पेशी के आकार (Shape) में परिवर्तन होता है।

 

(2) पेशी फड़क या ट्विच (Muscles Twitch)-

  • एक एकल क्रियात्मक विभव के कारण पेशी में अल्पकालिक संकुचन एवं तत्पश्चात् शिथिलन होता है। इस प्रतिक्रिया को पेशी फड़क कहते हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि किसी अल्पकालिक प्रेरण के परिणामस्वरूप पेशी में होने वाली प्रतिक्रिया को पेशी फड़क कहते हैं। फड़क या ट्विच के दौरान तीन अवस्थाएँ आती हैं- अव्यक्त (Latent), संकुचन (Contraction) तथा शिथिलन (Relaxation) अवस्था। जैसे बिजली का झटका लगने पर ट्विच दशा उत्पन्न होती है। महीन (Fine) एवं तीव्रता से कार्य करने वाली पेशियों में ट्विच की अवधि 7.5 मिलीसेकेण्ड तथा स्थूलसम्पोषित गतियों (Sustained movement) से सम्बन्धित मन्द (Slow) पेशियों में ट्विच की अवधि 100 मिलीसेकेण्ड तक हो सकती है।

 

(3) अधिस्थापन या एम-वक्र (Superposition or M-Curve)-

  • पेशी की शिथिलन अवस्था के दौरान द्वितीय प्रेरण देने पर पेशी ट्विच और अधिक प्रबल हो जाता हैपरिणामस्वरूप अधिस्थापन अथवा एम-वक्र प्राप्त होता है। 

(4) संकलन (Summation)- 

  • संकुचन अवस्था के दौरान आवर्ती प्रेरण (Repeated stimuli) देने से उत्पन्न होने वाला ट्विच अधिक प्रबल होता जाता है जिससे सीढ़ीनुमा वक्र (Stair- case) प्राप्त होता है। इस गुण को संकलन कहते हैं। सीढ़ीनुमा वक्र को ट्रेपी (Treppe) भी कहते हैं। जर्मन भाषा में सीढ़ीनुमा वक्र को ट्रेपी कहते हैं।

 

(5) टिटेनस (Tetanus) - 

  • यदि पेशी को तीव्रता से बारम्बार उद्दीपन दिया जाए तो पेशी में शिथिलन के पूर्व ही बारम्बार संकुचन होने के कारण यह सतत् संकुचन की अवस्था में चली जाती है। इस प्रतिक्रिया को पूर्ण टिटेनस (Complete tetanus) कहते हैं। इसी प्रकार जब संकलित उद्दीपनों (Summated stimuli) के मध्य अपूर्ण शिथिलन होता रहता है तब इससे उत्पन्न टिटेनिक अवस्था को अपूर्ण टिटेनस (Incomplete tetanus) कहते हैं।

 

(6) टोनस (Tonus) - 

  • आन्तरांगीय अरेखित पेशियों (Visceral unstriated muscles) में कला विभव अस्थिर होता है तथा इनमें संकुचन सतत् एवं अनियमित होता है और तन्त्रिकीय आपूर्ति से स्वतन्त्र होता है। इस प्रकार के आंशिक संकुचन की अवस्था को टोनस या टोन (Tonus or Tone) कहते हैं। 

(7) थकान (Fatigue) - 

  • जब पेशी को शिथिलन हेतु उचित समय दिए बिना लगातार प्रेरित किया जाता है तब यह कार्य करना बन्द कर देती है। ऐसा लैक्टिक अम्ल (Lactic acid) के एकत्रित हो जाने के कारण होता है। इस दशा को थकान कहते हैं। 

(8) रिगर (Rigor) - 

  • जब पेशी तन्तु ATP तथा फॉस्फोरिलक्रिएटिन (Phosphorylcreatine) से पूर्णत: वंचित हो जाती हैं तो उनमें अत्यधिक कठोरता (Rigidity) विकसित हो जाती है। इसे रिगर कहते हैं। मृत्योपरान्त पेशियों का कठोर एवं असंकुचनशील हो जाना रिगर मॉर्टिस (Rigor mortis) कहलाता है। रिगर में लगभग सभी मायोसिन शीर्ष असामान्यस्थिर एवं प्रतिरोधी रूप से एक्टिन से जुड़ जाते हैं।

 

(9) कँपकपी (Shivering) -

  • कंकालीय पेशियों के क्षणिक अनैच्छिक संकुचन के कारण कँपकपी होती है। (10) पेशीय अतिवृद्धि एवं पेशीय क्षति (Muscular Hypertrophy and Muscular Atrophy) - क्षमता से अधिक काम लेने से पेशी तन्तु क्रमश: मोटे हो जाते हैं। इसे पेशीय अतिवृद्धि (Muscular hypertrophy) कहते हैं। इसके विपरीत पेशी को लम्बे समय तक काम में न लेने पर पेशी तन्तु पतले हो जाते हैं जिसे पेशीय क्षति (Muscular atrophy) कहते हैं।

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