पादप वृद्धि हार्मोन |Plant growth hormones in Hindi

 पादप वृद्धि हार्मोन  (Plant growth hormones in Hindi)

पादप वृद्धि हार्मोन |Plant growth hormones in Hindi

वृद्धि किसे कहते है ?

पौधों की जैविक क्रियाओं के बीच समन्वय स्थापित करने वाले रासायनिक पदार्थ को पादप हार्मोन (Plant hormones) या फाइटोहार्मोन (Phytohormone) कहते हैं। ये पौधों की विभिन्न अंगों में बहुत लघु मात्रा में पहुँचकर वृद्धि एवं अनेक उपापचयी क्रियाओं को नियंत्रित एवं प्रभावित करते हैं। इनके संश्लेषण का स्थान इनके क्रिया क्षेत्र से दूर होता है एवं ये विसरण द्वारा क्रिया क्षेत्र तक पहुँचते हैं। बहुत से कार्बनिक यौगिक जो पौधों से उत्पन्न नहीं होते, परन्तु पादप हार्मोन की तरह ही कार्य करते हैं, उन्हें भी वृद्धि नियंत्रक पदार्थ (Growth regulators) कहा जाता है।

सजीवो के आकार तथा आयतन में होने वाली स्थायी तथा अपरिवर्तनशील परिवर्तन , वृद्धि कहलाती है तथा वृद्धि के फलस्वरूप सजीव के शुष्क भार में बढ़ोतरी होती है।


सामान्यत: पादपो में पाए जाने वाली वृद्धि निरन्तर जीवन पर्यन्त संपन्न होती है , तथा कभी कभी यह वृद्धि परिवर्तनशील होती है वही सामान्यतया जन्तुओ में वृद्धि स्थायी अपरिवर्तनशील व एक निश्चित समयावधि तक संपन्न होती है।


पादपो में कभी कभी शुष्क बीज अथवा अन्य शुष्क संरचना आद्रता ग्रहण करके अपने आकार में वृद्धि करती है परन्तु सूखने पर बढ़ा हुआ आकार घट जाता है तथा शुष्क भार अपरिवर्तित रहता है अत: ऐसी स्थितियों में पादपो में परिवर्तनशील वृद्धि पायी जाती है।

पादप वृद्धि स्थल 

सामान्यत: एक पादप में निम्न वृद्धि स्थल पाए जाते है वृद्धि हेतु एक पादप में मुख्य रूप से विभज्योतकीय उत्तक पाए जाते है। 

 

1. शीर्ष विभज्योतकीय उत्तक : 

एक पादप के तने के तथा मूल के शीर्ष भाग में पाया जाने वाला उत्तक ही शीर्ष विभज्योतकीय उत्तक कहलाता है। 

यह उत्तक मुख्य रूप से पादप की लम्बाई में वृद्धि हेतु उत्तरदायी होता है , इसके अतिरिक्त पादप के इस भाग के द्वारा एक सिमित मात्रा में मोटाई में वृद्धि की जाती है। 

शीर्ष विभज्योतकीय उत्तक के द्वारा दर्शायी जाने वाली वृद्धि प्राथमिक वृद्धि के नाम से जानी जाती है।

 

2. अन्तर्वेशी उत्तक : 

इस प्रकार का विभज्योतकीय उत्तक मुख्य रूप से पर्व संधि के ऊपर पाया जाता है तथा इस उत्तक के फलस्वरूप पर्व की लम्बाई में वृद्धि होती है जिसके द्वारा मुख्य रूप से तने की लम्बाई में वृद्धि की जाती है।  इसके अतिरिक्त पर्णफलक तथा पर्णवृन्त की चौड़ाई में वृद्धि हेतु उपरोक्त उत्तक उत्तरदायी होता है। 

उदाहरण : घास , गन्ना तथा बाँस में इस प्रकार का उत्तक प्रमुख रूप से पाया जाता है।

 

3. पाशर्व विभज्योतकीय उत्तक : 

इस प्रकार का उत्तक मुख्य रूप से पादप की पाश्र्व भागो में पाया जाता है जिसके फलस्वरूप पादप के तने तथा मूल की मोटाई में वृद्धि होती है तथा इस प्रकार की वृद्धि द्वितीयक वृद्धि के नाम से जानी जाती है। 

नोट : शीर्ष विभज्योतकीय उत्तक तथा अन्तर्मेशी उत्तक सामान्यत: प्राथमिक वृद्धि को दर्शाते है।  वही पाशर्व उत्तक के द्वारा द्वितीयक वृद्धि दर्शायी जाती है।


पादप वृद्धि को प्रभावित करने वाले कारक 

पादपो में पादप वृद्धि को प्रभावित करने वाले अनेक कारक पाए जाते है जिनमे से कुछ प्रमुख कारक निम्न प्रकार से है  

1. वातावरणीय कारक : पादपो में वृद्धि को प्रभावित करने वाले इस कारक के अन्तर्गत मौसमी कारक तथा मृदा से सम्बन्धित कारक सम्मिलित किये जाते है। 

पादप वृद्धि को प्रभावित करने वाले ऐसे कुछ प्रमुख कारक निम्न है  

(i) प्रकाश : प्रकाश एक महत्वपूर्ण वातावरणीय कारक है जो पादप वृद्धि को कई प्रकार से प्रभावित करता है तथा यह प्रकार निम्न है  

(a) प्रकाश की तीव्रता : 

यदि पादपो पर प्रकाश की अधिक तीव्रता पडती है तो इसके फलस्वरूप पादपों में वृद्धि मंद हो जाती है क्योंकि प्रकाश की अधिक तीव्रता पर पर्व की लम्बाई अवरुद्ध हो जाती है तथा पत्तियों का आकार संदमित हो जाता है।  इसके फलस्वरूप पादप बौने तथा छोटी पत्ती वाले उत्पन्न होते है। 

(b) प्रकाश की गुणवत्ता : 

सामान्यत: पादपो के द्वारा एक निश्चित तरंगदैधर्यता वाले प्रकाश का अवशोषण किया किया जाता है अर्थात लाल रंग के प्रकाश की उपस्थिति में पादप सर्वाधिक वृद्धि दर्शाते है परन्तु पैराबैंगनी किरणों की उपस्थिति में तथा अवरक्त किरणों की उपस्थिति में पादप वृद्धि का संदमन होता है। 

(c) प्रकाश की अवधि : 

पादपों में विभिन्न कायिक तथा प्रजनन की क्रियाओ हेतु प्रकाश की एक निश्चित अवधि की आवश्यकता होती है अत: यह आवश्यकता दीप्तकालिता या Photoperiodism के नाम से जानी जाती है। 

नोट : मुख्य रूप से पादप के पुष्पन की क्रिया हेतु दीप्तकालिता की आवश्यकता होती है तथा पादप की एक निश्चित प्रकाश अवधि की अनुपस्थिति में पुष्पन की क्रिया अवरुद्ध हो जाती है।

 

दिप्तकालिता के आधार पर पादप मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते है  

   LDP (long day plants) : इन्हें प्रकाश की अधिक अवधि :- पुष्पन हेतु।

   SDP (short day plants) : इन्हें प्रकाश की कम अवधि :- पुष्पन हेतु।

   DNP (day nutral plants) : पुष्पन हेतु ऐसे पादप प्रकाश की अवधि से अप्रभावित होती है।

 

(ii) जल : 

पादप की वृद्धि का जल की आपूर्ति से सीधा सम्बन्ध है क्योकि किसी भी पादप की समस्त जैविक क्रिया जल पर निर्भर करता है जैसे प्रकाश संश्लेषण , श्वसन , बीजो का अंकुरण , अवशोषण , परासरण तथा वाष्पोत्सर्जन। 

इसके अतिरिक्त पादप की आकृति को बनाये रखने में भी जल एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

जल की अनुपस्थिति पर पादप की सभी जैविक क्रियाएं संदमित होती है जिसके फलस्वरूप अप्रत्यक्ष रूप से पादप की वृद्धि प्रभावित होती है तथा जल की पूर्ण अनुपस्थिति ऐसे पादप को नष्ट कर सकती है।

 

(iii) तापमान : 

तापमान पादप की वृद्धि को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित करता है। 

किसी पादप की वृद्धि श्रेष्ट प्रकार से 5 से 35 डिग्री सेल्सियस के मध्य संपन्न होती है।  यदि तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है तो ऊष्मा के प्रभाव से ऐसे पादप नष्ट हो जाते है।  इसके अतिरिक्त तापमान 0 डिग्री सेल्सियस से कम होने पर पादप की कोशिकाओ का कोशिका द्रव्य जम जाता है तथा इसके फलस्वरूप ऐसी कोशिकाएं निष्क्रिय होकर नष्ट होने लगती है जो एक पादप की वृद्धि को पूर्णत: संदमित कर देती है।

 

(iv) ऑक्सीजन : 

पादपो में ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि पादप वृद्धि को प्रेरित करती है क्योकि पादपो मे श्वसन की क्रिया से ऊर्जा उत्सर्जित होती है जिसके द्वारा पादप की कोशिकाओ की विभिन्न उपापचयीक क्रियाएं संपन्न की जाती है। इसके अतिरिक्त ऑक्सीजन की उपस्थिति श्वसन की क्रिया में विभव ऊर्जा को गतिज ऊर्जा में परिवर्तित करती है जो एक पादप की वृद्धि को प्रेरित करती है।

 

(v) खनिज लवण : 

खनिज लवण की उपस्थिति एक पादप में वृद्धि को प्रेरित करती है जिसे पादप के विशिष्ट संवहन उत्तक जाइलम के द्वारा पादप के विभिन्न भागो में पहुंचाया जाता है।  खनिज लवण की पर्याप्त मात्रा की अनुपस्थिति पादपो मे त्रुटी जन्य रोग उत्पन्न करती है जिसके फलस्वरूप ऐसे पादपो में पादप वृद्धि संदमित होती है या मंद पड़ जाती है।

 

(vi) पादप हार्मोन : 

  • पादपों में मुख्य रूप से वृद्धि कुछ विशेष प्रकार के कार्बनिक पदार्थो के द्वारा नियंत्रित की जाती है। 
  • ऐसे पदार्थो की सूक्ष्म मात्रा पादपों की वृद्धि को नियंत्रित करती है ऐसे कार्बनिक पदार्थ पादप हार्मोन के नाम से जाने जाते है तथा ऐसे पदार्थो की कमी पादप वृद्धि को संदमित करती है।


रासायनिक संघटन तथा कार्यविधि के आधार पर हार्मोन्स को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया गया है-


  • 1     ऑक्जिन Auxin
  • 2     जिबरेलिन्स Gibberellins
  • 3     साइटोकाइनिन Cytokinin
  • 4     ऐबसिसिक एसिड Abscisic Acid
  • 5     एथीलीन Ethylene


ऑक्जिन Auxin

ऑक्जिन कार्बनिक यौगिकों का समूह है जो पौधों में कोशिका विभाजन (Cell division) तथा कोशिका दीर्घन (Cell elongation) में भाग लेता है। इन्डोल एसीटिक एसिड (Indole acetic acid—I.A.A) एवं नैफ्थेलीन (Naphthalene acetic acid—N.A.A) इसके प्रमुख उदाहरण हैं। तने में जिस ओर ऑक्जिन की अधिकता होती है, उस ओर वृद्धि अधिक होती है। जड़ में इसकी अधिकता वृद्धि को कम करती है।

कार्य:

1.     ऑक्जिन कोशिका दीर्घन द्वारा स्तम्भ या तने की वृद्धि में सहायक होते हैं।

2.     ये जड़ की वृद्धि को नियंत्रित करते हैं।

3.     ये बीजरहित फल के उत्पादन में सहायक होते हैं।

4.     पत्तियों के झड़ने तथा फलों के गिरने पर ऑक्जिन का नियंत्रण होता है।

5.     गेहूँ एवं मक्का के खेतों में ऑक्जिन खर-पतवार नाशक का कार्य करते हैं।


जिबरेलिन Gibberellins

जिबरेलिन एक जटिल कार्बनिक यौगिक है, जिसका मुख्य उदाहरण जिबरैलिक एसिड (Gibberellic acid) है।

 कार्य: 

1  जिबरैलिन्स कोशिका विभाजन तथा कोशिका दीर्घन द्वारा तने को लम्बा बनाते हैं, जिसके कारण पौधे वृहत् आकार के हो जाते हैं।

2.     जिबरेलिन्स हार्मोन का प्रयोग करके बीजरहित फलों का उत्पादन किया जाता है।

3.     जिबरैलिन्स हार्मोन बीजों के अंकुरण में भाग लेते हैं। बीजों की सुषुप्तावस्था को भंग करके उन्हें अंकुरित होने के लिए प्रेरित करते हैं।

साइटोकाइनिन Cytokinins 

साइटोकाइनिन क्षारीय प्रकृति का हार्मोन है। काइनिटीन (Kinetin) एक संश्लेषित साइटोकाइनिन है। साइटोकाइनिन का संश्लेषण जड़ों के अग्र सिरों पर होता है, जहाँ कोशिका-विभाजन (Cell division) होता है। 

कार्य: 

1.     साइटोकाइनिन कोशिका विभाजन के लिए एक आवश्यक हार्मोन है। 

2.     यह ऊतकों एवं कोशिकाओं का विभेदन का कार्य करती है। 

3.     साइटोकाइनिन पार्श्व कलिकाओं (Lateral buds) की वृद्धि को प्रारम्भ करते हैं। 

4.     साइटोकाइनिन बीजों के अंकुरण (Germination) को प्रेरित करते हैं। 


ऐबसिसिक एसिड Abscisic Acid 

यह एक वृद्धरोधी (Growth inhibitor) हार्मोन है, अर्थात् यह पौधे की वृद्धि को रोकता है। 

कार्य: 

1.     ऐबसिसिक अम्ल पौधों की वृद्धि को रोकता है। 

2.     यह वाष्पोत्सर्जन की क्रिया का नियंत्रण रंध्रों (stomata) को बन्द करके करता है। 

3.     यह बीजों तथा कलिकाओं को सुषुप्तावस्था (Dormant stage) में लाता है। 

4.     यह पत्तियों के झड़ने की क्रिया को नियंत्रित करता है। 

5.     ऐबसिसिक एसिड पौधों से फूलों एवं फलों के पृथक्करण की क्रिया का भी नियंत्रण करता है।

 

एथिलीन Ethylene 

एथिलीन गैसीय रूप में पौधों में पाया जाने वाला हार्मोन है। इसके द्वारा पौधों की लम्बाई में वृद्धि होती है परन्तु यह पौधे की लम्बाई में वृद्धि को रोकता है। इस हार्मोन का निर्माण पौधे के प्रत्येक भाग में होता है। 

कार्य: 

1.     एथिलीन के द्वारा पौधों की चौड़ाई में वृद्धि होती है। 

2.     यह पौधों की पत्तियों एवं फलों के झड़ने की क्रिया को नियंत्रित करता है। 

3.     पौधे के विभिन्न भागों की सुषुप्तावस्था को समाप्त कर इसे अंकुरण के लिए प्रेरित करता है। 

4.     एथिलीन हार्मोन फलों के पकने (Ripening) में मुख्य भूमिका निभाता है।

 

फ्लोरिजिन्स Florigens 

फ्लोरिजिन्स का संश्लेषण पत्तियों में होता है, परन्तु ये फूलों के खिलने (Blooming) में मदद करते हैं। इसलिए फ्लोरिजिन्स को फूल खिलाने वाला हार्मोन (Flowering hormone) भी कार्य करते हैं। 

कार्य: 

1.     इस हार्मोन के द्वारा फ्लों का खिलना नियंत्रित होता है

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