दतिया की इमारतें | Datia Architecture in Hindi

 दतिया की इमारतें

दतिया की इमारतें | Datia Architecture in Hindi



दतिया की इमारतें 

बुन्देली स्थापत्य कला के जनक महानायक वीरसिंहदेव बुन्देला का ओरछा के शासक बनने के पूर्व सन् 1592-1605 ई. के बीच दतिया परिक्षेत्र कर्मस्थली के रूप में रहा था। ओरछा के शासक बनने पर उन्होंने दतिया में एक बेजोड़ महल का निर्माण करवाया थाजो बुन्देली स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण है। उल्लेखनीय है कि वीरसिंहदेव ने दिसम्बर, 1618 ई. में एक साथ बावन इमारतों की नींव रखी थी।

 

सतखण्डा महल :- 

  • इस महल को वीरसिंहदेव पैलेस और हवामहल आदि नामों से भी पुकारा जाता है। दतिया का यह सात खण्डीय महल स्वास्तिक आकार का चतुर्भुजाकार है। शाहजहाँ यहाँ, 19 नवम्बर, 1635 ई. को आया थाउसने लिखा है, "वहाँ के पहाड़ पर राजा वीरसिंहदेव की बनवाई इमारत देखने गएजो बड़ी उम्दा नहरों और हरियालियों में थीउसमें 7 खण्ड थेवह 84 गज लम्बी और इतनी ही चौड़ी थी।" महल की प्रत्येक मंजिल में हवा और रोशनी का ध्यान रखा गया है। महल की चित्रकलाउसका कोड़िया चिकना प्लास्टरदरवाजे की ड्रेगन और हाथीलाल पत्थर के खम्बेमंडप और चंदोपे तथा ऊपर विराजे गणेशजीइस महल की आकर्षकता में वृद्धि करते हैं। महल की ऊँचाई से नगर का दृश्य मनोहरकारी प्रतीत होता है। स्थापत्य के विशेषज्ञ विद्वान पर्सी ब्राउनऔर कल्याणकुमार चक्रवर्ती ने इसके स्थापत्य को बुन्देलखण्ड में श्रेष्ठतमा माना है ।

 

2. चंदेवा और सिरौल की बाउरी :- 

  • चंदेवा नामक स्थान दतिया से भाण्डेर की ओर लगभग 7 किलोमीटर दूर है और सिरौल भी दतिया सेंवढ़ा मार्ग से बाई ओर इतनी ही दूरी पर स्थित है। छोटी बड़ौनी से सिरौलचंदेवा होकर ही भाण्डेर एरच कालपी की ओर जाने वाला तत्कालीन मार्ग था। इन दोनों स्थानों पर किलेनुमालम्बी सीढ़ियों और दालानों युक्त बहुमंजिला बाउरियाँ हैं। इनमें राहगीरडाक वाहक और शिकारी राजा भी आराम से विश्राम कर सकते थे। निजी अधिकार में चले जाने के कारण वीरसिंहदेव बुन्देला द्वारा निर्मित इन बाउरियों का स्थापत्य अपना मूल स्वरूप और आकर्षण जा रहा है।

 

3. प्रतापगढ़ :- 

  • यह दुर्ग वर्तमान में दतिया किले के नाम से अधिक जाना जाता है। इसका निर्माण 17वीं सदी के अंत में दलपतराव बुन्देला ने करवाया थादलपतराव बुन्देला का राशि नाम प्रतापसिंह थाअतः उनके नाम पर इस दुर्ग का नाम प्रतापगढ़ दुर्ग पड़ा थाजो वर्तमान में अप्रचलित हो गया है। यह समतल में बना मैदानी दुर्ग हैइसके चारों ओर 2-3 किलोमीटर दूर पहाड़ी - श्रृंगे थींजिन पर घने वनक्षेत्र होने के कारण यह तत्कालीन समय में बाहर से दिखाई ही नहीं देता था । मैदानी क्षेत्र में होने के कारण दुर्ग के चारों ओर की खाई को नैसर्गिक रूप से बरसाती पानी मिल जाता था। दुर्ग की दीवालें लगभग 40 फीट ऊँची और चारों ओर बुर्जियों से घिरी हुई हैं। दुर्ग के अन्दर फूल बाग नाम से बड़ा बागीचा था। यह बागीचा मुगल बादशाह बाबर के "चारबाग निर्माण की परिपाटी पर अष्टभुजाकार हौज और हमाम वाली वाडरी से युक्त है। दुर्ग के अन्दर अनेक भवन और बड़े-बड़े आँगन तथा कुएँ और बाउरियाँ हैं। यह दुर्ग 2-3 किलोमीटर की परिधि में लगभग गोलाकार है । वर्तमान में इस दुर्ग में राजपरिवार रहता है और इसमें व्यवसायिक परिसर भी बन गए हैं।

 

4. शिवगिर मंदिर :- 

  • नगर के मध्य में स्थित शिवगिर मंदिर दलपतराव के काल में 1688 ई. में बना था। इस मंदिर का भव्य दरवाजा दुर्गनुमा हैऔर मंदिर की टुड़ियों में मानव व पशु-पक्षियों के आकर्षक चित्र बने हैं। यह दशनामी साधुओं में गिरि बाबाओं का स्थान है। इन बाबाओं के सशस्त्र अखाड़े हुआ करते थे। इस मंदिर में चतुर्भुजी भगवान की प्रतिमा है. मंदिर के पिछवाड़े साधुओं की गहन और प्रभावी चित्रकलायुक्त समाधियाँ भी हैं।

 

सेंवढ़ा का दुर्ग: :- 

  • कन्हरगढ़ नाम से चर्चितदतिया की तहसील सेंवढ़ा का दुर्ग 18वीं सदी के प्रारंभ में बना था। दुर्ग सिन्ध नदी के समीप ऊँचे टीले पर बना हुआ है। इसके चारों ओर खंदक युक्त डूबते-उतराते वन तत्कालीन समय में थे। दुर्ग के अन्दर पृथ्वीसिंह की राउरजिसमें वो साधना करते थेनन्द-नन्दन भगवान का मंदिर एवं रनिवास आदि हैं। यह अच्छी हालत में है और दर्शकों के देखने योग्य है ।

 

दतिया के तालाब :- 

  • दतिया में मध्यकाल के बने हुए एक दूसरे से जलनिकासी से जुड़े श्रृंखलाबद्ध तालाब थे। जिनमें करनसागरसीतासागरलाला का तालतरनतालरामसागर आदि इस काल के उल्लेखनीय तालाब हैं। सभी तालाब नैसर्गिक जलस्त्रोतों के बहाव पर 30-40 फीट चौड़े बाँध बनाकर तैयार किये गये थे। सभी में स्नान के लिए घाट बने थे और मल्ल शिक्षा के लिए इनमें अखाड़े - भी थे। सभी के घाटों पर भगवान शिव की पिंडियां और मंदिर स्थापित किए गए थे। परन्तु वर्तमान में ये सभी तालाब अपना मूल स्वरूप खो चुके हैं।

 

  • दतिया में मध्यकाल की अनेक इमारतों के अवशेष हैंजिनमें प्रमुख हैंदतिया के बुन्देला शासकों की समाधियाँरावबागभरतगढ़ की हवेलीबड़ौनी का दुर्गखोड़न की गढ़ी आदि । अठारहवीं सदी के आगे की अनेक इमारतें और चित्रकला दतिया की बुन्देली स्थापत्य कला की दृष्टि से उल्लेखनीय और दर्शनीय है।

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