गुणसूत्र क्या होते हैं संरचना एवं कार्य |CHROMOSOMES Details in Hindi

 गुणसूत्र क्या होते हैं संरचना एवं कार्य  (CHROMOSOMES Details in Hindi)


गुणसूत्र क्या होते हैं संरचना एवं कार्य |CHROMOSOMES Details in Hindi




गुणसूत्र क्या होते हैं संरचना एवं कार्य  (CHROMOSOMES Details in Hindi)

गुणसूत्र केन्द्रक के अन्दर उपस्थित स्व-द्विगुणन (Self-replication) करने वाली तन्तुवत् (Filamentous) संरचनाएँ होती हैं, जो कि कोशिका विभाजन के समय स्पष्ट दिखाई देते हैं।

 

गुणसूत्रों को सर्वप्रथम हाफमिस्टर (Hafmeister) ने सन् 1848 में ट्रैडेस्कैन्शिया (Tradescantia) नामक पौधे की परागमातृ कोशिकाओं (Pollen mother cell) में देखा था। 

  • सर्वप्रथम स्ट्रासबर्गर (Strasberger) ने सन् 1875 में कोशिका विभाजन (Cell division) के अध्ययन के दौरान केन्द्रक के अन्दर कुछ धागेनुमा संरचनाएँ देखीं। 
  • डब्ल्यू. वाल्डेयर (W. Waldeyer, 1888) ने केन्द्रकद्रव्य (Nucleoplasm) में उपस्थित इन गहरी अभिरंजित (Dark stained) धागेनुमा संरचनाओं को क्रोमोसोम (Chromosome, Gr., chrom= colour, soma = body) नाम दिया। वाल्डेयर ने इन्हें क्रोमोसोम नाम इसलिये दिया, क्योंकि इनमें कुछ अभिरंजक पदार्थों जैसेऐसीटोकार्मिन (Acetocarmine), ऐसीटोआर्सिन (Acetoarcine) आदि के प्रति अत्यधिक बन्धुता (Affinity) होती हैं और गुणसूत्र इन अभिरंजकों (Stains) के रंग को धारण कर लेते हैं।

 

  • वाल्डेयर (Waldeyer, 1888) के अनुसार, केन्द्रक में उपस्थित केन्द्रकद्रव्य (Nucleoplasm) के अन्दर ये धागे एक जाल सदृश्य संरचना बना लेते हैं, जिसे क्रोमैटिन जाल (Chromatin reticulum) कहते हैं। ये धागे क्रोमैटिन के बने होते हैं तथा कोशिका विभाजन के समय छोटे एवं संघनित (Condensed) होकर फीतेनुमा संरचनाएँ बना लेते हैं, जिन्हें गुणसूत्र (Chromosomes) कहते हैं।

 

  • गुणसूत्र जीन्स के वाहक (Carrier of genes) होते हैं तथा आनुवंशिकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अतः गुणसूत्रों को आनुवंशिकता के वाहक या जीन के वाहक (Carrier of heredity or genes) भी कहते हैं। 

  • सटन (Sutton, 1902) ने गुणसूत्रों के क्रियात्मक महत्व का अध्ययन किया तथा आनुवंशिकता के गुणसूत्रीय सिद्धांत (Chromosomal theory of heredity) का प्रतिपादन किया।

 

गुणसूत्र को सामान्य रूप से निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है— 

गुणसूत्र निश्चित संख्या में पायी जाने वाली ऐसी वैयक्तिक जीवद्रव्यीय इकाइयाँ हैं, जो कि क्रमिक कोशिका विभाजनों के द्वारा गुणन (Multiplication) करती हैं तथा जीवों की वैयक्तिकता (Individuality), आकारिकी (Morphology) तथा कार्यिकी (Physiology) को स्थायित्व प्रदान करती हैं।"

 

गुणसूत्रों की संख्या (Number of Chromosomes) 

  • प्रत्येक जाति के जीवों में गुणसूत्रों की संख्या अलग-अलग होती है। इसी प्रकार एक ही जाति के समस्त जीवों में गुणसूत्रों की संख्या स्थिर होती है। उच्चवर्गीय पौधों एवं जन्तुओं की कायिक कोशिकाओं (Somatic cells) में गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित ( Diploid = 2n) होती है, जबकि इनकी युग्मकीय कोशिकाओं (Gametic cells) जैसे- अण्डाणु (Egg) एवं शुक्राणु (Sperms) में गुणसूत्रों का केवल एक सेट (n = 2) पाया जाता है। अत: ये अगुणित (Haploid) होते हैं। 
  • गुणसूत्रों के अगुणित सेट को संजीन या जीनोम (Genome) कहते हैं। इस प्रकार द्विगुणित कोशिका में दो जीनोम (Diploid, 2n = 4) हैं। प्रत्येक जनक का एक जीनोम दो समजात गुणसूत्रों (Homologous chromosomes) का बना होता है। समजात गुणसूत्रों का आकार एवं जीन संगठन समान होता है। 
  • यूकैरियॉटिक कोशिका की कायिक कोशिकाएँ (Somatic cells) द्विगुणित (Diploid) होती हैं। अत: इनमें गुणसूत्रों के दो सेट (2n = 4) होते हैं, जबकि युग्मकीय कोशिकाओं में केवल एक सेट (n = 2) ही पाये जाते हैं। बहुगुणित (Polyploid) जातियों में गुणसूत्रों की संख्या घट-बढ़ सकती है।

 

पौधों में सबसे कम गुणसूत्र ऐस्टेरेसी कुल (Asteraceae family) 

  • के हैप्लोपैपस ग्रैसिलिस (Haplopapus gracilis) नामक पौधे में 2n = 4 (n =2) गुणसूत्र पाये जाते हैं, जबकि सबसे अधिक गुणसूत्र ऑफियोग्लॉसम रेटिकुलेटम (Ophioglossum reticulatum) में 2n = 1262 (n = 631) पाये जाते हैं।

 

गुणसूत्र का परिमाप (Size of Chromosome) 

जाति के जीवों में गुणसूत्रों का परिमाप स्थिर होता है। गुणसूत्रों की लम्बाई, चौड़ाई का मापन एवं इसके आकार का अध्ययन समसूत्री विभाजन की मध्यावस्था (Metaphase) में किया जाता है। गुणसूत्रों की लम्बाई सामान्यत: 0-25 से 30u तक होती है, जबकि इनका व्यास 0-2 से 2 तक होता है। फफूँद एवं अधिकांश पक्षियों के गुणसूत्रों की लम्बाई 0-25 तक होती है, जबकि ट्रिलियम (Trillium) नामक पौधों में गुणसूत्रों की लम्बाई 30p होती है। ड्रोसोफिला (Drosophilla) में इनकी लम्बाई 3´, मनुष्य में तथा मक्का (Zea mays) के गुणसूत्रों की लम्बाई 8-25 तक होती है। 


गुणसूत्रों की आकारिकी (Morphology of Chromosomes) 

  • गुणसूत्रों की आकारिकी का अध्ययन कोशिका विभाजन की मेटाफेज (Metaphase) एवं ऐनाफेज (Anaphase) अवस्था में किया जाता है, क्योंकि इस अवस्था में सेन्ट्रोमियर (Centromere) की स्थिति स्पष्ट होती है। सेन्ट्रोमियर की स्थिति के आधार पर ही गुणसूत्रों के आकार का निर्धारण किया जाता है। 
  • पौधों में गुणसूत्रों की आकारिकीय विशेषताओं के अध्ययन के लिये जड़ों एवं शाखाओं के अग्र भाग तथा परागकणों (Pollen grains) का उपयोग किया जाता है। 
  • जन्तुओं में गुणसूत्रों की संरचना के अध्ययन के लिये प्रौढ़ लार्वा की पूँछ, लार ग्रंथि (Salivary glands), अस्थि मज्जा (Bone marrow) एवं गोनेड्स (Gonads) का उपयोग किया जाता है। 
  • अन्तरावस्था (Interphase) में गुणसूत्र छड़ाकार (Rod-shaped) या पतले धागेनुमा (Thread like), सकुण्डलित (Coiled), प्रत्यास्थ (Elastic) एवं संकुचनशील (Contractile) संरचनाओं के रूप में पाये जाते हैं, जिन्हें क्रोमैटिन धागे (Chroma- tin threads) कहते हैं। 
  • कोशिका विभाजन की मेटाफेज (Metaphase) एवं ऐनाफेज (Anaphase) अवस्था में ये छड़ाकार, अंग्रेजी के अक्षर 'T' या 'V' के आकार के हो सकते हैं। 


गुणसूत्रों का आकार सेन्ट्रोमियर (Centromere) की स्थिति पर निर्भर करता है। सेन्ट्रोमियर की स्थिति के आधार पर गुणसूत्र निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं-

 

1. मेटासेन्ट्रिक (Metacentric)

ऐसे गुणसूत्र ऐनाफेज अवस्था में अंग्रेजी के अक्षर 'V' के आकार के होते हैं, जिसकी दोनों भुजाओं की लम्बाई समान होती है। सेन्ट्रोमियर इन दोनों भुजाओं के मध्य स्थित होता है।

 

2. सब-मेटासेन्ट्रिक (Sub-metacentric)—

ऐसे गुणसूत्रों की दोनों भुजाएँ असमान लम्बाई की होती हैं तथा सेन्ट्रोमियर दोनों भुजाओं के मध्य, लेकिन सब-मिडियन (Sub-median) होता है। ऐनाफेज अवस्था में ये गुणसूत्र अंग्रेजी के 'L' या 'J' अक्षरों के समान दिखाई देते हैं।

 

3. टीलोसेन्ट्रिक (Telocentric)— 

ऐसे गुणसूत्रों में केवल एक ही भुजा होती है तथा सेन्ट्रोमियर भुजा के अग्र भाग पर स्थित होता है। 

4. ऐक्रोसेन्ट्रिक (Acrocentric) 

ऐसे गुणसूत्र छड़ाकार (Rod-shaped) होते हैं, जिसकी एक भुजा अत्यधिक लम्बी, जबकि दूसरी भुजा अत्यन्त छोटी होती है। सेन्ट्रोमियर दोनों भुजाओं के मध्य, लेकिन गुणसूत्र के एक छोर के पास स्थित होता है।

 

गुणसूत्रों की संरचना (Structure of Chromosomes) 

एक प्रारूपिक गुणसूत्र का प्रकाश सूक्ष्मदर्शीय (Light Microscopic) अध्ययन करने पर वह निम्नलिखित तीन भागों से बना हुआ दिखाई देता है-

 

Structure of Chromosomes

1. पेलिकल (Pellicle), 

2. मैट्रिक्स (Matrix), 

3. क्रोमोनिमा (Chromonema)। 


  • ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक गुणसूत्र एक झिल्लीनुमा आवरण (Membranous sheath) के द्वारा घिरा रहता है, जिसे पेलिकल (Pellicle) कहते हैं। पेलिकल के अन्दर एक द्रव भरा रहता है, जिसे मैट्रिक्स (Matrix) कहते हैं। मैट्रिक्स में कुछ कुण्डलित धागेनुमा संरचनाएँ पायी जाती हैं, जिसे क्रोर्मोनिमा (Chromonema) कहते हैं।

 

इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शीय अध्ययनों से ज्ञात होता है कि गुणसूत्रों के चारों ओर किसी भी प्रकार का आवरण नहीं पाया जाता है तथा निम्नलिखित भागों से मिलकर बना होता है-

 

1. क्रोमैटिड्स एवं क्रोमोनिमेटा (Chromatids and Chromonemata), 

2. सेन्ट्रोमियर या प्राथमिक संकीर्णन (Cetromere or Primary constriction), 

3. द्वितीयक संकीर्णन (Secondary constriction), 

4. सैटेलाइट (Satellite), 

5. टीलोमियर (Telomere)

 

1. क्रोमैटिड्स एवं क्रोमोनिमेटा (Chromatids and Chromonemata) 

  • प्रत्येक गुणसूत्र में दो अर्द्धगुणसूत्र (Chromatid) या जीनोनिमा (Genonema) पाये जाते हैं। इसी प्रकार प्रत्येक क्रोमैटिड में आधारद्रव्य (Matrix) अन्दर पूरी लम्बाई में दो कुण्डलित तन्तु (Coiled filament) पाये जाते हैं, जिन्हें क्रोमोनिमेटा (Chromonemata) कहते हैं। मेटाफेज में प्रत्येक गुणसूत्र में दो क्रोमैटिड होते हैं, जो कि सेन्ट्रोमियर के द्वारा आपस में जुड़े रहते हैं ।

 

  • प्रत्येक क्रोमोनिमेटा (Chromonemata, chromo = coloured, nema = threads) सतत् न्यूक्लियोप्रोटीन (Continuous nucleoproteins) के महीन धागों के रूप में होता है। प्रत्येक क्रोमोनिमेटा पर बहुत-से जीन (Genes) एक रेखिक क्रम (Linear-fashion) में व्यवस्थित रहते हैं। मेटाफेज में क्रोमोनिमेटा चक्रीय रूप से कुण्डलित (Spirally coiled) होते हैं। प्रत्येक क्रोमोनिमेटा की मोटाई लगभग 800 A तक होती है।

 

2. सेन्टोमियर या प्राथमिक संकीर्णन (Centromere or Primary)

  • प्राथमिक संकीर्णन को काइनेटोकोर (Kinetochore) भी कहते हैं। स्क्रेड (Schemer) के अनुसार, सैन्ट्रीमियर गुणसूत्र का वह स्थायी, घना एवं परिवर्तित भाग है, जहाँ पर गुणसूत्रों के गुणसूत्रीय तन्तु तथा क्रोमैटिड्स आपस में जुड़े रहते हैं।

 

  • प्रत्येक प्रकार के गुणसूत्र में सेन्ट्रोमियर एक निश्चित स्थान पर ही होता है। सेन्ट्रोमियर गुणसूत्र के अन्य भागों की अपेक्षा सँकरा एवं सबसे स्थायी भाग है। कोशिका विभाजन के समय तर्क तन्तुओं पर गुणसूत्रों की स्थिति एवं गति (Movement) सेन्ट्रोमियर पर निर्भर होती है। सेन्ट्रीमियर गुणसूत्र को दो भागों में विभक्त करता है।

 

सेन्टोमियर के कार्य (Functions of centromeres)— के अग्रलिखित मुख्य दो कार्य हैं

 

(i) कोशिका विभाजन के समय सेन्ट्रोमियर गुणसूत्रों को तर्क-तन्तुओं से जोड़ने का कार्य करते हैं तथा गुणसूत्रों के चलन (Movement) में सहायता करते हैं। 

(ii) सेन्ट्रोमियर ट्यूब्यूलिन (Tubulin) नामक प्रोटीन का निर्माण करता है, जो कि सूक्ष्म नलिकाओं (Microtubules) या तर्क तन्तुओं के निर्माण में काम आता है।

 

3. द्वितीयक संकीर्णन (Secondary constriction) - 

  • गुणसूत्र में प्राथमिक संकीर्णन के अतिरिक्त कुछ अन्य संकीर्णन भी उपस्थित रहते हैं, जिन्हें द्वितीयक संकीर्णन कहते हैं। रिसेन्डी (Ressende, 1945) ने इसे ओलिस्थीरोजोन्स (Olistherozones) नाम दिया था। गुणसूत्रों पर द्वितीयक संकीर्णन एक निश्चित स्थान पर पाये जाते हैं। अतः ये गुणसूत्रों की पहचान करने में सहायक सिद्ध होते हैं।

 

  • द्वितीयक संकीर्णन केन्द्रिका (Nucleolus) के निर्माण में भाग लेता है। अत: इस भाग को न्यूक्लियोलर आर्गेनाइजर (Nucle- olar organizer) कहते हैं। इस भाग में उपस्थित क्रोमैटिन अकुण्डलित होते हैं तथा केन्द्रिका (Nucleolus) की स्टेनिंग कम मात्रा में होती है, इसीलिए इसे यूक्रोमैटिक भाग (Euchromatic region) कहते हैं। गुणसूत्र में उपस्थित कुल DNA का 0-3% भाग न्यूक्लियोलर संगठक में पाया जाता है।

 

4. सैटेलाइट (Satellite) - 

  • इसे द्वितीयक संकीर्णन (Secondary constriction) या ट्रैबेन्ट भी कहते हैं। सैटेलाइट क्रोमैटिन के पतले तन्तुओं के द्वारा गुणसूत्र से जुड़ा घुंडीनुमा भाग होता है। सैटेलाइट युक्त गुणसूत्र को SAT - गुणसूत्र (SAT-Chromosome) भी कहते हैं। मनुष्य के 46 गुणसूत्रों में से 5 गुणसूत्रों (गुणसूत्र क्रमांक 1, 10, 13, 16 एवं Y गुणसूत्र) में द्वितीयक संकीर्णन पाये जाते हैं। प्रत्येक के गुणसूत्र में सैटेलाइट का परिमाण एवं आकार स्थिर एवं निश्चित होता है। [SAT = Sine Acid Thymonucleinico (Without thymonucleic acid or DNA)]

 

टीलोमियर्स (Telomeres ) – 

  • टीलोमियर्स गुणसूत्रों के शीर्ष भाग होते हैं। ये गुणसूत्रों की ध्रुवता को बनाये रखते हैं, जिसके कारण गुणसूत्र किसी अन्य गुणसूत्र या गुणसूत्र के खण्ड से जुड़ नहीं पाते हैं।

 

गुणसूत्रों के कार्य (Functions of Chromosomes) 

1. गुणसूत्र जीवों की शारीरिक क्रियाओं जैसे- विकास, प्रजनन, प्रकार्यात्मक कार्य आदि का संचालन करते हैं। 

2. ये गुणसूत्र जीवों के विभिन्न लक्षणों की अभिव्यक्ति (Expression) तथा विभेदन का नियन्त्रण करते हैं। 

3. गुणसूत्र के हेटेरोक्रोमैटिक क्षेत्र न्यूक्लियोलस के निर्माण में भाग लेते हैं। 

4. गुणसूत्रों का मुख्य कार्य आनुवंशिक सूचनाओं को एक कोशिका से दूसरी कोशिका एवं एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाना है। 

5. गुणसूत्रों की संरचना एवं संख्या में परिवर्तन से जीवों में अनेक परिवर्तन दृष्टिगत होते हैं। इससे नये लक्षण युक्त जीवों या नई जातियों का विकास संभव होता है। 

6. ये कोशिका के निर्माण में भाग लेते हैं ।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.