सूर्यातप और ऊर्जा बजट क्या होता है ?| सौर स्थिरांक क्या होता है ? | Suryatap aur Energy Budget Kya Hota hai

सूर्यातप और ऊर्जा बजट क्या होता है ?|सौर स्थिरांक क्या होता है ? 

सूर्यातप और ऊर्जा बजट क्या होता है ?| सौर स्थिरांक क्या होता है ? | Suryatap aur Energy Budget Kya Hota hai



सूर्यातप और ऊर्जा बजट क्या होता है ?

 

पृथ्वी सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करती है जिसे सूर्यातप कहा जाता है। यह ऊर्जा वायुमंडलीय ऊष्मा का महत्वपूर्ण स्रोत है। पृथ्वी को सूर्य से लगातार विद्युत चुम्बकीय विकिरण के रूप में ऊर्जा प्राप्त होती रहती है। सूर्य में इस ऊर्जा का सोत हाइड्रोजन का संयोजन (Fusion) है जिससे हाइड्रोजन, हीलियम में परिवर्तित हो जाती है। 

सौर विकिरण वायुमंडल से होकर पृथ्वी तक पहुंचता है अत: इसकी मात्रा में प्रकीर्णन, विसरण, अवशोषण और परावर्तन आदि के कारण सूर्य से दूरी बढ़ने के साथ कम होती जाती है जिससे सौर विकिरण का केवल कुछ अंश ही पृथ्वी तक पहुंच पाता है। सौर विकिरण में से पराबैंगनी किरणों का अवशोषण मुख्यतः समताप मंडल में ओजोन द्वारा किया जाता है। परंतु वायुमंडल की ऊपरी परतों में सूर्य से प्राप्त ऊष्मा के कारण वायुमंडल विशेष गर्म नहीं हो पाता। 

पृथ्वी के वायुमंडल की निचली परत के गर्म होने का कारण वायुमंडल द्वारा पार्थिव विकिरण का अवशोषण है। सूर्यातप की प्राप्ति लघु तरंगों के रूप में होती है जिनके लिए वायुमंडल लगभग पारदर्शी माध्यम का काम करता है। इसलिए वायुमंडल द्वारा सौर विकिरण का अवशोषण बहुत कम मात्रा में किया जाता है। इस लघु तरंग सौर ऊर्जा का अवशोषण धरातल द्वारा किया जाता है जिससे धरातल गर्म हो जाता है । धरातल इस ऊष्मा को दीर्घ तरंगों के रूप में चारों ओर विकिरित करता है। 

वायुमंडल इस दीर्घ तरंग विकिरण का अवशोषण करता है और इसका तापमान बढ़ता है। इस प्रकार वायुमंडल मूलतः पार्थिव विकिरण द्वारा ऊष्मा प्राप्त करता है। 


सूर्यातप को प्रभावित करने वाले कारक - 

धरातल पर सूर्यातप की मात्रा संसार के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न होती है। सौर स्थिरांक, सूर्य की किरणों का कोण, सौर विकिरण की अवधि, सूर्य से पृथ्वी की दूरी, धरातल की प्रकृति आदि कारक धरातल पर प्राप्त होने वाली सूर्यातप की मात्रा को निर्धारित करते हैं ।

 

सौर स्थिरांक क्या होता है ?

सौर स्थिरांक से हमारा अभिप्राय सौर ऊर्जा की उस मात्रा से है जो कि पृथ्वी का कोई भाग, सूर्य की किरणों से समकोण बनाने पर प्रति इकाई क्षेत्रफल प्रति मिनट प्राप्त करता है। इसका मान 2 ग्राम कैलोरी प्रति वर्ग सेंटीमीटर प्रति मिनट माना जाता है। वास्तव में सौर स्थिरांक के मान में समय-समय पर अंतर पाया जाता है। सौर स्थिरांक के मान में इस भिन्नता का कारण पृथ्वी और सूर्य के बीच दूरी में परिवर्तन होना और सौर कलंक हैं। सौर कलंकों की संख्या तथा आकार बदलते रहते हैं। यह एक चक्रीय प्रक्रिया है जिसकी अवधि 11 वर्ष होती है। सौर कलंकों के कम या अधिक होने के कारण सूर्यातप की मात्रा में भिन्नता पाई जाती है। इसी प्रकार पृथ्वी एवं सूर्य के बीच दूरी के संदर्भ में उपसौर (जनवरी) की स्थिति में सूर्यातप की मात्रा अधिक और अपसौर (जुलाई) की स्थिति में सूर्यातप की मात्रा कम प्राप्त होती है।

 

धरातल सूर्य से आने वाली संपूर्ण ऊर्जा का अवशोषण नहीं करता। इसका कुछ भाग परावर्तित हो जाता है। सौर विकिरण का वह भाग जो धरातल द्वारा परावर्तित कर दिया जाता है उसे एलबिडो कहते हैं। बर्फ से ढके धरातल या हल्के रंग वाले धरातल पर इसकी मात्रा उच्च होती है, जबकि गहरे रंग वाले धरातल पर यह अनुपात कम होता है। सूर्य की किरणों का झुकाव भी परावर्तन की मात्रा को प्रभावित करता है। अधिकतर किरणों की स्थिति में परावर्तन अपेक्षाकृत अधिक होता है। सूर्य से प्राप्त होने वाली लंबवत किरणों से अधिक मात्रा में सूर्यातप प्राप्त होता है। इसके विपरीत तिरछी किरणों से कम सूर्यातप प्राप्त होता है क्योंकि तिरछी किरणों की ऊर्जा अधिक बड़े क्षेत्र में फैल जाती है और ऊर्जा की प्रति इकाई क्षेत्रफल मात्रा कम हो जाती है।

 

सूर्यातप की मात्रा दिन की अवधि, और अक्षांशों के अनुसार भी परिवर्तित होती है। विषुवत रेखा के आस-पास सूर्य की किरणें लंबवत होने से यह क्षेत्र अधिक ऊर्जा प्राप्त करता है। इसके विपरीत विषुवत रेखा से दूर जाने पर सूर्य की किरणें अधिक तिरछी होती जाती हैं जिस कारण उच्च अक्षांसीय क्षेत्रों में सौर ऊर्जा की कम मात्रा प्राप्त होती है। इसी प्रकार प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा छोटे दिनों की अपेक्षा लंबे दिनों में अधिक होती है। मध्य अक्षांशों में ग्रीष्म काल में दिन की अवधि लम्बी होने के कारण इन क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में सौर ऊर्जा प्राप्त होती है। है। धरातल की प्रकृति भी सूर्यातप की मात्रा को प्रभावित करती है। पहाड़ी क्षेत्रों में जी ढाल सूर्य के सम्मुख होते हैं वह भाग सूर्य विमुख और छाया वाले वालों की अपेक्षा अधिक ऊर्जा व सूर्यातप प्राप्त करते हैं। यही कारण हैं कि हिमालय क्षेत्र में दक्षिणाभिमुख वालों पर तापमान उत्तराभिमुख दालों से ऊंचे होते हैं।

 

सूर्यातप को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों के मिले-जुले प्रभावों के कारण धरातल पर उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में ध्रुवीय क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक सूर्यातप की मात्रा प्राप्त होती है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में सूर्य की किरणें वर्ष भर लगभग लंबवत होती हैं। यह क्षेत्र बादलों से भी मुक्त रहता है जिस कारण यहां अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक सूर्यातप प्राप्त होता है। भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में भी प्राप्त सूर्यातप की मात्रा अधिक होती है। परंतु यह मात्रा कर्क तथा मकर वृत्तों के निकट मात्रा से कुछ कम होती है। इसका एक कारण इस क्षेत्र में आकाश का मेघाच्छादित रहना है। मध्य अक्षांशो में ग्रीष्म ऋतु में दिन की अवधि लंबी होने के कारण यहां सूर्यातप की अधिक मात्रा प्राप्त होती है। परंतु शीतकाल में रातें लंबी और दिन छोटे होने पर यह मात्रा कम हो जाती है। ध्रुवीय क्षेत्रों में सूर्य की अत्यधिक तिरछी किरणों के कारण सूर्यातप की कम मात्रा प्राप्त होती है। बर्फ से आच्छादित इन क्षेत्रों से सौर विकिरण का परावर्तन भी अधिक होता है इसलिए यह प्रदेश सबसे कम सूर्यातप प्राप्त करते हैं।

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