लोक आय अर्थ तथा महत्त्व वर्गीकरण तथा स्त्रोत |Public Revenue : Classification and Sourses in Hindi

 लोक आय: वर्गीकरण तथा स्त्रोत (Public Revenue : Classification and Sources )

Public Revenue : Classification and Sourses  in Hindi


 

लोक आय: वर्गीकरण तथा स्त्रोत- प्रस्तावना

 

आज के आर्थिक नियोजन के युग में उत्पत्ति का जो महत्व अर्थशासत्र में है, वही महत्त्व लोक आगम का लोक वित्त में है। वर्तमान समय में राज्यों के कार्यों में वृद्धि होने के कारण सार्वजनिक व्यय की राशि भी बढ़ती जा रही है। लोक आगम के स्रोत में कर वे अनिवार्य भुगतान हैं जो करदाता द्वारा सरकार के प्रति बिना किसी ऐसी आशा से किये जाते हैं कि उसे उनके बदले में कोई प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त होगा।

 

 लोक आय  अर्थ तथा महत्त्व (Meaning and Significance ) 

  • जिस प्रकार एक व्यक्ति को अपनी आवश्यकता की पूर्ति हेतु आय की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार सरकार को  अपने कार्यों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए आय की आवश्यकता होती है। सरकार को प्राप्त होने वाली सभी प्रकार की आय को सार्वजनिक आय कहा जाता है। लोक वित्त के अध्ययन में सरकारी आय को वही स्थान प्राप्त होता है जो कि अर्थशास्त्र के अध्ययन में उत्पादन (Production) को प्राप्त होता है। जिस प्रकार उपभोग (consumption ) की पूर्ति के लिए उत्पादन आवश्यक होता है, उसी प्रकार सरकारी खर्च की पूर्ति के लिए सरकारी आय आवश्यक होती है।

 

  • सरकार को विभिन्न स्रोतों से जो आय प्राप्त होती है उसे सरकारी आय या सरकारी राजस्व कहा जाता है, किंतु डाल्टन ने सरकारी आय का व्यापक तथा संकुचित, दोनों ही अर्थों में प्रयोग किया है। उसने व्यापक अर्थ में इसे सरकारी प्राप्तियों (Public receipts) का नाम दिया है और संकुचित अर्थ में सरकारी आय या सरकारी राजस्व (public revenue) की संज्ञा दी है। सरकारी राजस्व में करों (taxes ) सरकारी उद्यमों द्वारा प्रदान की जाने वाली वस्तुओं व सेवाओं की कीमतों, फीस तथा जुर्माने जैसी प्रशासनिक क्रियाओं की आय तथा उपहारों व अनुदानों को सम्मिलित किया जाता है, किंतु सरकारी प्राप्तियों में सरकार की उन सभी आमदनियों को सम्मिलित किया जाता है जो कि किसी भी निश्चित अवधि में उसे प्राप्त होती हैं। अन्य शब्दों में, सरकारी प्राप्तियाँ (public receipts) = सरकारी राजस्व (public revenue) + अन्य सभी स्रोतों की आय जैसे कि व्यक्तियों, बैंकों या केन्द्रीय बैंक से लिया जाने वाला उधार तथा नई पत्र - मुद्रा जारी करना. 

 

  • आज के आर्थिक नियोजन के युग में उत्पत्ति का जो महत्त्व अर्थशास्त्र में है, वही महत्व लोक आगम का लोक वित्त में है। वर्तमान समय में राज्यों के कार्यों में वृद्धि होने के कारण सार्वजनिक व्यय की राशि भी बढ़ती जा रही है। इस बढ़ते हुए व्यय की पूर्ति हेतु सार्वजनिक आय में वृद्धि करना आवश्यक हो गया है। आधुनिक युग में आय संबंधी साधनों का उद्देश्य केवलन आय प्राप्त करना ही नहीं है, अपितु एक प्रभावकारी राजकोषीय यंत्र के रूप में उत्पादन, रोजगार, विनियोग एवं अन्य आर्थिक क्रियाओं को भी प्रभावित करना हैं प्रत्येक अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक व्यय एवं र्सार्वजनिक ऋण नीति के साथ-साथ सार्वजनिक आय के संबंध में भी निश्चित नीति का निर्धारण करके वांछित उद्देश्यों की पूर्ति करने हेतु एक शक्तिशाली साधन की व्यवस्था की जा सकती है। इसलिए वर्तमान युग में सार्वजनिक आय प्रत्येक अर्थव्यवस्था के लिए, चाहे विकसित हो या अविकसित, महत्वपूर्ण सिद्ध हुई है। सरकार की लोकप्रियता एवं सफलता सम्पूर्ण सार्वजनिक आय पर निर्भर करती हैं इस प्रकार निजी व्यक्तियों तथा सरकार, दोनों के लिए सार्वजनिक आय के तरीकों तथा उसकी प्रकृति के अध्ययन का व्यवहारिक महत्त्व अधिक हो गया है।

 

लोक आय के स्रोत (Sources of public Revenue) 

अब हम सरकारी आय के विभिनन स्रोतों या रूपों का अध्ययन करेंगे। ये स्रोत निम्नलिखित हैं

 

1. कर (Taxes ) 

2. व्यावसायिक आय (Commercial Revenues) 

3. प्रशासनिक आय (Administrative Revenues) 

4. उपहार तथा अनुदान (Gifts and Grants )

 

 

1 कर (Taxes) 

कर वे अनिवार्य भुगतान (compulsory payments) हैं जो करदाता द्वारा सरकार के प्रति बिना किसी ऐसी आशा से किये जाते हैं कि उसे उनके बदले में कोई प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त होगा । बेस्टेबिल के अनुसार, "कर व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह के पास विद्यमान धन का वह अनिवार्य अंशदान (compulsory contribution ) है जो कि सरकारी कार्यों को सेवा के बदले में दिया जाता है।" प्रो० सैलिग्मैन (Seligmen) का कहना है कि, "कर व्यक्ति द्वारा सरकार को दिये जाने वाले उस अनिवार्य अंशदान को कहत हैं जो सबके सामान्य हित के लिए किये जाने वाले खर्चों के भुगतान में अदा किया जाता है और उसके बदले में कोई विशेष लाभ नहीं दिया जाता।" टॉजिग (Taussig) के अनुसार, "सरकारी द्वारा ली जाने वाली अन्य धनराशियों के मुकाबले कर के संबंध में विशेष बात यह है कि इसमें करदाता व सरकारी सत्ता के बीच प्रत्यक्ष यप से लेने और देने वाली बात (quid pro quo) नहीं पाई जाती है।"

 

कर की विशेषता या लक्षण (Characteristics of a Tax)

 

उपर्युक्त वर्णित परिभाषाओं से स्पष्ट है कि कर में कुछ विशेषतायें पाई जाती हैं, जो इस प्रकार हैं -

 

1. अनिवार्य भुगतान (compulsory contribution) 

कर नागरिक द्वारा आवा निवास तथा सम्पत्ति आदि के कारण से देश की सीमा में रहने वाली प्रजा द्वारा राज्य को दिया जाने वाला अंशदान है और यह अंशदान सामान्य उपयोग (common use ) के लिए ही दिया जाता हैं चूँकि यह एक अनिवार्य अंशदान है, अतः कोई भी व्यक्ति कर की अदायगी से इनकार नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए कोई भी व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि चूँकि उसे राज्य द्वारा प्रदान की जाने वाली कुछ सेवाओं का लाभ नहीं मिल रहा है अथवा चूँकि उसे वोट देने का अधिकार प्राप्त नहीं है, अतः वह कर देने को बाध्य नहीं है। अतः कर उस प्रत्येक व्यक्ति को अदा करना पड़ता है जिस पर कि राज्य द्वारा कर लगाया जाता है भले ही वह वयस्क (Adult) हो या अवयस्क (minor) और नागरिक हो या विदेशी। यही नहीं, यदि कोई व्यक्ति कर देने से इनकार करे तो उसे दण्ड दिया जाता है। परंतु इसके बावजूद कर की कुछ सीमाएँ हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी विशेष पदार्थ पर कर लगाया जाता है तो उसे पदार्थ का उपयोग न करके वह कर से बच सकता है। मान लीजिये कि शराब पर कर लगाया गया है तो सरकार इस कर को अदा करने के लिए किसी व्यक्ति को केवल तभी बाध्य कर सकती है। जबकि वह शराब का उपयोग करे। परंतु यदि वह शराब नहीं पीता है, तो उसे शराब पर लगे कर को अदा करने के लिए भी बाध्य नहीं किया जा सकता। इन सीमाओं के अतिरिक्त कर एक अनिवार्य भुगतान ही है और इसकी यही विशेषता इसको अन्य किसी की सरकारी आय से पृथक् करती है।

 

2. व्यक्तिगत दायित्व (Personal Obligation) : 

कर करदाता पर व्यक्तिगत दायित्व (personal obligation) डालता है। इसका अर्थ यह है कि यदि किसी व्यक्ति पर कर लगा है तो उसका कर्त्तव्य या दायित्व है कि उसे अदा करे और किसी भी स्थिति में उससे बचने की न सोचे। उदाहरण के लिए मान लीजिये लोगों की आमदनियों पर कर लगाया गया है, तो चूँकि लोगों की आय के अनेक स्रोत हो सकते हैं, अतः संभव है, सरकार को लोगों की आय के सभी स्रोतों का पता न हो। इस स्थिति में, यह करदाता का कर्त्तव्य है कि वह अपनी समस्त आय को घोषित करे और कर अदा करते समय अपीन कुल आय को ही दृष्टिगत रखे ।

 

3. कर समाज के हित के लिए लगाया जाता है (The Tax is imposed for the General and Common Benefit ) - 

करदाताओं से करों के रूप में जो अंशदान प्राप्त होता है, वह हो सकता है कि केवल उनके ही लाभ के लिए खर्च न किया जाए। बल्कि सर्व सामान्य के हित में खर्च किया जाए। हो सकता है कि कोई व्यक्ति अपनी सभी आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ न हो विशेष रूप से ऐसी आवश्यकताओं को पूरा करने में जिस पर कि भारी मात्रा में खर्च होता है, जैसे कि अस्पताल का निर्माण। इस स्थिति में राज्य सभी लोगों के लाभ के लिए ऐसी सेवाओं की व्यवस्था करता है अतः इस सामान्य बोझ को उठाने के लिए ऐसे सभी लोगों पर कर लगाया दिये जाते हैं जो कि उन्हे अदा करने में समर्थ होते हैं।

 

4. कर और राज्य द्वारा प्रदान की गई सेवाओं में कोई संबंध नहीं (No relation between Taxation and State Services) - 

कर की अदायगी, राज्य द्वारा व्यक्ति के लिए की जाने वाली किसी विशेष सेवा के भुगतान के लिए नहीं की जाती और न कर इसलिए अदा किया जाता है कि करदाता को राज्य द्वारा कोई विशिष्ट लभ प्रदान किया गया है। इस प्रकार कर इसलिए नहीं दिये जाते क्योंकि कर देने वाले व्यक्ति को राज्य से कोई लाभ प्राप्त हुआ है अथवा राज्य ने उसके लिए कोई सेवा की है। परंतु कर की इस विशेषता की भी कुछ सीमायें हैं। उदाहरण के लिए भूमि कर (Land Tax) केवल उन्हीं व्यक्तियों द्वारा अदा किया जाता है जिनके पास भूमि होती है अथवा जो भूमि से लाभ उठाते हैं। इसी प्रकार, मनोरंजन कर (Entertainment tax) केवल उन्हीं व्यक्तियों द्वारा दिया जाता है जो मनोरंजन का लाभ प्राप्त करते हैं। इस स्थिति पर प्रकाश डालते हुए प्रो० डि. मार्को (De Marco) ने कर की इस विशेषता की सीमाओं के संबंध में कहा कि आधुनिक राज्य में कराधान का कानून परस्पर विनिमय के संबंध (Exchange relationship) की मान्यता पर आधारित है, अर्थात् राज्य द्वारा सेवा की व्यवस्था की जाती है और उसके बदले में सरकार को कर अदा किया जाता है। अतः डि मार्को के अनुसार, "कर प्रत्येक नागरिक द्वारा सरकार को दी जाने वाली वह कीमत है जो कि वह उन सामान्य सार्वजनिक सेवाओं की लागत के अपने उस हिस्से के बदले में अदा करता है जिसे वह उपयोग करता है।

 

परन्तु यहाँ यह बात ध्यान रखने योग्य है कि किसानों से भूमि कर के रूप में जो अंशदान प्राप्त किया जाता है. हो सकता है कि राज्य द्वारा उसका उपयोग केवल उन्हीं के लाभ के लिए न किया जाए, बल्कि संपूर्ण समाज के ही लाभ के लिए दिया जाए। इसी प्रकार, मनोरंजन का लाभ प्राप्त करने के बदले में लोगों से सरकार को जो अंशदान प्राप्त होता है, हो सकता है कि सरकार द्वारा वह केवल उन्हीं के लाभ के लिए प्रयोग में न लाकर सम्पूर्ण समुदाय के लाभ के ही प्रयोग में लाया जाए। इस प्रकार व्यक्ति द्वारा कर के रूप में अदा की जाने वाली धनराशि तथा सरकारी सेवा से उसे प्राप्त होने वाले लाभ के बीच कोई संबंध नहीं है। अतः कर एक अनिवार्य अंशदान है ओर यह अंशदान सर्व सामान्य को प्रदान किये जाने वाले लाभ के लिए ही होती हैं तथा सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवा तथा अदा किये जाने वाले कर के बीच परस्पर कोई संबंध नहीं होता।

 

कर के तत्त्व 

उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कर के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं 1. अनिवार्य अंशदान (compulsory contribution) - कर एक अनिवार्य अंशदान है, यदि कर लगने की कानून द्वारा निर्धारित दशाएँ लागू होती हों।

 

1. "The law of taxation in modern state is based on the assumption of an exchange relationship, that is the exchange of a payment of the state for the provision of public services by the state."

 

2. "The tax is the pric which citizen pays to the state to cover his share of the cost the general public services which he will consume."

 

2. केवल सरकार द्वारा कर लगाना (taxes are imposed by a government) केवल सरकार द्वारा ही लगाये जाते हैं। यदि किसी मंदिर या अन्य संस्था के प्रबंधक किसी क्षेत्र के प्रत्येक परिवार के लिए हर वर्ष एक विशिष्ट रकम देना अनिवार्य कर दें, तो इसे किसी भी स्थिति में कर नहीं कहा जा सकता।

 

3. त्याग का समावेश (Involvement of Sacrifice) -कर के भुगतान में त्याग की भावना निहित होती हैं क्योंकि करदाता समाज के सामान्य हित में ही कर अदा करता है।

 

4. समाज कल्याण (Social Welfare) -कर संपूर्ण समुदाय के कल्याण के उद्देश्य से लगाया जाता है, अर्थात् कर से प्राप्त होने वाली आय एक ओर तो समाज के विशेष वर्ग के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण समाज के कल्याण के लिए खर्च कर दी जाती है और दूसरी ओर इस खर्च से आय की असमानताएँ दूर होती हैं।

 

5. भुगतान के लिए लाभ शर्त नहीं (The benefit is not the condition for the payment ) - लाभ प्राप्त होना कर की अदायगी की कोई अनिवार्य शर्त नहीं है। कर इसलिए नहीं अदा किये जाते क्योंकि करदाता सरकारी खर्च से कोई लाभ प्राप्त करते हैं, अपितु इसलिए अदा किये जाते हैं क्योंकि वे अनिवार्य होते हैं। साथ ही करदाता को यदि कोई लाभ मिलता भी है तो यह जरूरी नहीं है कि वह अदा किये गए कर के अनुपात में ही हो।

 

6. सेवा लागत से कोई संबंध नहीं (No relation with the Cost of service) - सरकारी सेवा द्वारा व्यक्तियों को जो लाभ प्रदान किया जाता है, कर उस लाभ की लागत ( cost ) को वसूल करने के लिए नहीं लगाया जाता, अर्थात् कर का उन सेवा की लागत से कोई संबंध नहीं होता जो कि सरकार व्यक्ति को प्रदान करती है। उदाहरण के लिए यह हो सकता है कि एक गरीब व्यक्ति खर्च से लाभान्वित तो सबसे अधिक हो किंतु कराधान का प्रतिकूल प्रभाव उस पर सबसे ही किया जाता है।

 

7. आय में से भुगतान (The Payment from income) -कर आय पर भी लगाये जा सकते हैं और पूँजी पर भी । परंतु उनका भुगतान आय में से ही किया जाता है।

 

8. व्यक्तिगत कर अदायगी ( Indivisual Payment ) - कर व्यक्ति, सम्पत्ति या वसतु किसी पर भी लगाये जा सकते हैं, परन्तु उनकी अदायगी व्यक्तियों द्वारा ही की जाती है।

 

9. कानूनी वसूली (Legal Collection) कर एक कानूनी वसूलयाबी (Legal collection) हैं

 

2 व्यावसायिक आय (commercial Revenues ) 

व्यावसायिक आय वे आमदियाँ हैं जो कि सरकार को अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं अथवा सेवाओं की कीमतों के रूप में प्राप्त होती हैं। अन्य शब्दों में, उस आय को व्यावसायिक आय कहा जाता है जो कि सरकार द्वारा सरकारी उद्यमों (Public enterprises) की वस्तुओं व सेवाओं को बेचकर प्राप्त की जाती है। इस आय को कीमतों (prices) का नाम दिया जाता है और वह इसलिए क्योंकि वह सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली वस्तुओं व सेवाओं की कीमतों के रूप में प्राप्त होती हैं। व्यावसायिक आय में डाक व्यय की अदायगियाँ चुंगी, सरकारी साख निगमें द्वारा उधार दिये गये धन का ब्याज, सरकारी भण्डारों की शराब के लिए अदा की जाने वाली कीमतें, सरकार द्वारा वितरित की जाने वाली बिजली की कीमतें, रेल सेवा आदि की अदायगियाँ सम्मिलित की जाती हैं। कभी-कभी सरकार इस्पात तथा खनिज तेल जैसी वस्तुओं के उत्पादन से भी आय प्राप्त करती है, किंतु इसके बावजूद, संसार के अधिकांश देशों में व्यावसायिक उद्यमों से होने वाली बचतों या बेशियों (Surpluses) को आय का कोई महत्वपूर्ण स्रोत नहीं माना जाता।

 

कर तथा कीमत में अंतर (Difference between tax and price)

 

कर तथा कीमत में मुख्य अंतर -

 

1. अदायगी का अंतर 

कर तो एक अनिवार्य अंशदान है जो ऐसे प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अदा किया जाता है जिस पर कि वह लगाया जाता है किंतु कीमत उन व्यक्तियों द्वारा अदा की जाती है, तो सरकार द्वारा उत्पादित वस्तुएँ तथा सेवाएँ खरीदते हैं।

 

2. लाभ का अंतर - 

कर इस बात की कोई गारंटी नहीं देता कि उस भुगतान के बदले में कोई लाभ (benefit) भी प्राप्त होगा कि नहीं, और यदि होगा तो उसकी मात्रा ( amount ) तथा प्रकृति ( nature ) क्या होगी, किन्तु कीमतें वस्तुओं तथा सेवाओं के बदले में की जाने वाली प्रत्यक्ष अदागियाँ हैं और उन अदायगियों (payments) की मात्रा खरीदी गई वस्तुओं और सेवाओं की मात्रा पर निर्भर होती है। प्रो० पी० ई० टेलर ने इस बात को इन शब्दों में व्यक्त किया है कि "व्यावसायिक आय को अन्य श्रेणियों की आय से पृथक करने वाली इसकी विशेषताएँ हैं अदायगी या भुगतान के बदले में वस्तु या सेवा की प्रत्यक्ष प्राप्ति (direct receipt) तथा दूसरे, भुगतान की धनराशि का मोटे तौर पर वस्तु या सेवा की लागत (या लाभ ) के साथ समायोजन (adjustment) "

 

यहाँ उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा उत्पादित वस्तुओं की कीमत और औसत या सीमांत उत्पादन लागत के बीच दा ही कोई साम्य या समानता की स्थिति बनी रहती हो, ऐसी बात नहीं है। यह हो सकता है कि सरकारी उद्यमों धारा अपनाई जाने वाली सामान्य सामाजिक नीति (general social policy) और व्यावसायिक नीति ( business policy) के साथ टकराव उत्पन्न हो जाए, जैसी कि डाक व्यय की दरों अथवा सुरंग मार्ग के भाड़ों के बारे में होता है कि ये दरें और भाड़े कभी भी सेवा की लागत को पूरी नहीं करते। ऐसे उदाहरणों में आमतौर पर यह वांछनीय माना जाता है कि सामाजिक कल्याण के लिए सरकारी सेवा काफी व्यापक रूप से उपलब्ध कराई जाये, अपेक्षाकृत उसके कि वस्तु की लागत तथा कीमत यदि बराबर होती तो उस स्थिति में उपलब्ध कराई जानी संभव होती। अन्य कुछ ऐसे भी उदाहरण हैं कि जिनमें कुल वस्तुओं तथा सेवाओं के वितरण के लिए सरकारी एकाधिकारों (Government monopolies) की स्थापना की जाती है ओर इसलिए ताकि एकाधिकारी लाभ कमाये जा सकें। भारत में रेल सेवा तथा बिजली के वितरण की सेवाएँ इसके प्रमुख उदाहरण हैं। फ्रांसीसी तम्बाकू एकाधिकार (Rrench tobacco monopoly) भी इसी का उदाहरण है तथा सरकार द्वारा संचालित मद्यशालाएँ भी इसी श्रेणी में आती हैं। इन मामलों में यह हो सकता है कि इन एकाधिकारों की स्थापना में सरकार का एकमात्र उद्देश्य लाभ प्राप्त करना ही न हो, बल्कि अपने द्वारा प्रदान की जाने वाली वस्तुओं व सेवाओं के वितरण पर नियंत्रण रखना भी हो। जैसा कि टेलर (Taylor) ने कहा है "यह हो सकता है कि इस क्षेत्र में नियंत्रण ( control) के उद्देश्य से की जाने वाली एकाधिकारी कार्यवाही भी उतनी ही महत्वपूर्ण हो जितनी कि लाभ की संभावनाएँ।"

 

सरकार वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन तथा उनकी बिक्री के क्षेत्र में अनेक कारणों से प्रविष्ट हो सकती है। कुछ मामलों में, यह हो सकता है कि प्राइवेट साहसी ऐसे उद्यमों की स्थापना करने के इच्छुक ही न हों या तो इसलिए क्योंकि उनमें बहुत कम लाभ होने की आशा है अथवा इसलिए क्योंकि उनसे प्रतिफल या लाभों की प्राप्ति बहुत दीर्घकाल के बाद होने की आशा है, उदाहरण के लिए डाक सेवा तथा नहरों व बिजली उत्पन्न करने वाले बांधों का निर्माण आदि। दूसरे कुछ आवश्यक सेवाएं सरकार द्वारा इसलिए भी हाथ में ली जा सकती हैं जिससे एकाधिकारी किस्म के प्राइवेट संगठनों से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा की जा सके, जैसे कि नगर परिवहन सेवा (city transport service) तथा जल प्रदाय सेवा (water supply service)। तीसरे, कुछ अन्य मामलों में, यह माना जाता है कि अमुक सेवा प्राइवेट व्यक्तियों की तुलना में सरकार द्वारा अधिक अच्छी तथा सस्ती प्रदान की जा सकती है, जैसे कि बिजली का उत्पादन तथा वितरण । चौथे कुछ ऐसे भी मामले हैं जिनमें सरकार उक्त उद्यमों (enterprises) को अपने हाथ में ले लेती है जो कि अर्थव्यवस्था (economy) को लिए मूलभूत महत्त्व के होते हैं। सरकार द्वारा ऐसे उद्यमों से संबंधित वस्तुओं का उत्पादन सम्पूर्ण देश के ही हित में माना जाता है। लोहा व इस्पात, भारी विद्युत पदार्थ, तेल तथा खनिज आदि ऐसे ही उद्यमों के उदाहरण हैं। यहाँ इस बात बात का उल्लेख करना भी महत्वपूर्ण होगा कि इन व्यावसायिक आमदनियों की प्रकृति मुख्यतः उन कीमतों के समान ही होती है जो कि वस्तुओं तथा सेवाओं के गैर-सरकारी उत्पादकों को दी जाती है।

 

3 प्रशासनिक आय (Administrative Revenues) 

जिन प्राप्तियों (receipts) को प्रशासनिक आय की श्रेणी में रखा जाता है, वे हैं- शुल्क या फीस, लाइसेंस, जुर्माने, सम्पत्ति जब्त करने और उत्तराधिकारी के अभाव में सम्पत्ति पर अधिकार करने आदि से होने वाली प्राप्तियाँ तथा विशेष कर निर्धारण (Special assessments) । इन प्राप्तियों की एक विशेषता तो यह होती है कि व्यक्ति को न्यूनाधिक रूप से इस बात की छूट होती है कि वह इनका भुगतान करे या नहीं। दूसरे, ये प्राप्तियाँ व्यक्ति को प्रत्यक्ष लाभ प्रदान करती हैं या उस पर जुर्माना करती हैं किंतु इनकी स्थिति में, यह आवश्यक नहीं है कि भुगतान की गई धनराशि का या तो लाभ के मूल्य से अथवा उस लाभ को प्रदान करने की लागत से घनिष्ठ संबंध हो । प्रशासनिक आमदनियों की एक अन्य अनोखी विशेषता यह है कि ये सामान्यतः सरकार के प्रशासनिक कार्यों के गौण उत्पादन (by product) के रूप में प्राप्त होती हैं और यही कारण है कि इन्हें प्रशासनिक आय का नाम दिया जाता है ।

 

इन प्रशासनिक आमदनियों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है-

 

(क) शुल्क या फीस (Fees): 

प्रो० सेलिग्मैन ने फीस की परिभाषा इस प्रकार की है- "शुल्क अथवा फीस उस धनराशि को कहते हैं जो कि सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली प्रत्येक ऐसी आवर्ती सेवा (recirromg service) की लागत अदा करने के लिए दी जाती है, जो कि मुख्यतः जनता के हत के लिए होती है किंतु जो फीस देने वाले को ऐसी विशेष लाभ पहुँचाती है जिसको मापा जा सके।" इस प्रकार फीस एक ऐसी अदायगी है जो कि उन प्रशासनिक सेवाओं की लागत को पूरा करने के लिए सरकार को दी जाती है जो संपूर्ण जनता के हित में सम्पन्न की जाती है किंतु जो व्यक्तियों को विशेष लाभ प्रदान करती है। अतः फीस केवल उन्हीं व्यक्तियों द्वारा अदा की जाती है जो कि सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं से कोई विशेष लाभ प्राप्त करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई छात्र राजकीय विद्यालय में पढ़कर शिक्षा का लाभ प्राप्त करना चाहता है तो उसे उसके लिए फीस देनी होती है।

 
फीस तथा कीमत में अंतर (
Differences between Fees and Price ) 

फीस तथा कीमत में कई मुख्य अंतर पाए जाते हैं -

 

1. कीमत ऐच्छिक फीस अनिवार्य 

कीमतें तो सदा ही ऐच्छिक अदायगियाँ (voluntary payments) होती हैं, किंतु फीस अनिवार्य अंशदान भी हो सकती हैं, यद्यपि दोनों का ही भुगतान विशेष सेवाओं के बदले में किया जाता है।

 

2. आदान-प्रदान का तत्व (qiod pro qou) 

आदान-प्रदान का तत्व जो कि कर में पाया जाता है, फीस में भी विद्यमान रहता है किंतु कीमतों में इस तत्व का अभाव है। 


3. व्यावसायिक क्रियाएँ- 

फीस व्यावसायिक सेवा के लिए किया जाने वाला भुगतान नहीं है, बल्कि सरकार की प्रशासनिक क्रियाओं के गौण उत्पादन है किंतु कीमतें सरकार द्वारा की जाने वाली व्यावसायिक क्रियाओं के लिए की जाने वाली अदायगियाँ हैं।

 

(ख) लाइसेन्स शुल्क (Licence Fees) 

लाइसेन्स शुल्क की प्रकृति बहुत कुछ फीस या शुल्क से ही मिलती-जुलती है किंतु इसमें तथा फीस में कुछ अंर भी है। "लाइसेंस शुल्क उस स्थिति में अदा किया जाता है जबकि सरकारी सत्ता से यह प्रार्थना की जाती है कि वह कोई अधिक स्पष्ट तथा निश्चित किस्म की सेवा प्रदान करने की बजाय एक अनुमति ( permission) अथवा विशेषाधिकार (privilege) प्रदान कर दे।" मोटर वाहनों का रजिस्ट्रेशन शुल्क, मोटरें चलाने के परमिट की अदायगी और बन्दूक या रिवाल्वर रखने का लाइसेंस शुल्क ऐसे ही शुक्ल के कुछ उदाहरण हैं। इन मामलों में किसी भी व्यक्ति को शुल्क अदा करने के लिए बाध्य नहीं किया जाता, अपितु जो भी व्यक्ति बन्दूक या मोटर का उपयोग करना चाहता है तो उसके लिए उसे आवश्यक शुल्क का भुगतान करना होता है। शुल्क अदा करने पर शुल्कदाता को जो लाभ प्राप्त होता है वह बंदूक रखने या मोटर का उपयोग करने को कानूनी व व्यावहारिक सुविधा के रूप में होता है। ऐसे में शुल्क का उद्देश्य कभी-कभी यह भी होता है कि विभिन्न प्रकार की क्रियाओं एवं गतिविधियों का नियमन अथवा नियंत्रण किया जाए; उदाहरण के लिए कानून व व्यवस्था की स्थापना करने के उद्देश्य से जिम्मेदार व्यक्तियों के बन्दूकों व रिवाल्वरों के लाइसेंस दिये जाते हैं। इसी प्रकार शराब की बिक्री पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए शराब की दुकानें चलाने के लिए लाइसेंस दिये जाते हैं। जन सुरक्षा के हित में, मोटर चालकों से मोटर चलाने के लिए लाइसेंस प्राप्त के लिए प्राप्त करने के लिए कहा जाता है और ये लाइसेंस केवल तभी प्राप्त किये जाते हैं जबकि व्यक्ति किसी वाहन ( vehicle) को चलाने की दृष्टि से ठीक (fit) होता है। अतः लाइसेंस शुल्क में नियमन या नियंत्रण का जो तत्व पाया जाता है वह इसे शुल्क तथा कर दोनों ही से पृथक् करता है।

 

(ग) विशेष कर निर्धारण (Special Assessments) 

प्रो० सेलिग्मैन के शब्दों में, "विशेष कर निर्धारण या विशेष उगाही (special assessment) उस अनिवार्य अंशदान को कहते हैं जो प्रदान किये जाने वाले विशेष लाभों के अनुपात में वसूल किया जाता है और जिसका उद्देश्य लोकहित की दृष्टि से अधिकार में ली गई सम्पत्ति में विशेष सुधार करने की लागत अदा करना होता है।" जब सरकार सड़क निर्माण, नालियों की व्यवस्था तथा सड़कों व गलियों में प्रकाश की व्यवस्था जैसे सार्वजनिक सुधार के कुछ कार्य अपने हाथ में लेती है, तो ऐसे सुधारों से संपूर्ण जनता को तो सामान्य लाभ पहुँचता ही है, परंतु उन व्यक्तियों को विशिष्ट लाभ होता है जिनकी दुकान-मकान आदि सम्पत्ति उस सड़क के किनारे होती हैं। इन सुधारों के परिणामस्वरूप इन सम्पत्तियों के मूल्यों अथवा किरायों में वृद्धि हो जाती है। अतः हो सकता है कि सरकार इस प्रकार किये गए खर्च का कुछ भाग वसूल करने के लिए उस क्षेत्र के लोगों पर कोई विशेष कर निर्धारित कर दे । ऐसा विशेष कर निर्धारण सामान्यतः सम्पत्ति के मूल्य में होने वाली वृद्धि के अनुपात में ही किया जाता है और इस दृष्टि से यह भिन्न होता है।

 

विशेषताएँ (Characteristics) सैलिग्मैन के अनुसार विशेष कर निर्धारण में निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं -

 

(1) इसमें विशेष उद्देश्य (special purpose) का तत्व पाया जाता है। 

(2) इसमें सरकारी सेवा से मिलने वाले विशिष्ट लाभ को मापा जा सकता है। 

(3) विशेष कर निर्धारण (special assessment) आरोही ( progressive ) नहीं होते, बल्कि प्राप्त होने वाले लाभ (benefit) के अनुसार अपुनाती (proportional) होते हैं। 

(4) ये विशिष्ट स्थानीय सुधारों के लिए लगाये जाते हैं।

 

निर्धारण की विशेष कर निर्धारण से तुलना 

(Comparision of Special Assessment with a Tax)

 

समानताएँ (Similarities) - इसमें निम्नलिखित समानताएँ पाई जाती हैं - 

(1) उद्देश्य (Object)- दोनों में ही सार्वजनिक उद्देश्य का तत्व (element of public purpose) पाया जाता है, क्योंकि सरकारी आय चाहे कर (Tax) के रूप में प्राप्त हुई हो अथवा विशेष कर निर्धारण (special assessment) के रूप में सम्पूर्ण रूप में समाज के और साथ-साथ विशिष्ट व्यक्ति के हित के लिए खर्च की जाती है। 

(2) अनिवार्य अंशदान (Compulsory contribution ) - कर की तरह विशेष कर निर्धारण भी एक अनिवार्य अंशदान है। अतः इन दोनों में ही अनिवार्यता का तत्व भी पाया जाता है।

 

असमानताएँ (Dis-similarities) - 

कर तथा विशेष कर निर्धारण के बीच तीन असमानताएँ (Dis-similarities) भी पाई जाती हैं। ये निम्नलिखित हैं

 

(1) उपयोग की विभिन्नता (Dis-similarities of Assessment) 

करों के रूप में प्राप्त होने वाली आय सरकार के सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति में लगाई जाती है, किंतु विशेष कर निर्धारण या विशेष उगाही के रूप में समाप्त होने वाली आय विशिष्ट स्थानीय सुधारों (special local improvement) में लगाई जाती है।

 

(2) निर्धारण का आधार (Basis of Assessment ) -

कर को लगाने के आधार अनेक हो सकते हैं, जैसे कि आय व्यय सम्पत्ति का मूल्य आदि, किंतु विशेष कर निर्धारण या विशेष उगाही को लगाने का आधार केवल एक होता है, वह है लाभ (benefit) | अन्य शब्दों में, विशेष कर निर्धारण प्राप्त होने वाले लाभों के अनुपात में लगाया जाता है।

 

(3) उद्देश्य की भिन्नताएँ (Dis-similarities of Object) - 

विशेष कर निर्धारण अधिकांशतया कुछ पूँजी विकास योजनाओं के लिए धन प्राप्त करने के उद्देश्य से लगाए जाते हैं, किंतु कर (taxes) पूँजीगत विकास योजनाओं की वित्तीय व्यवस्था के लिए भी लगाये जाते हैं और सरकार के चालू व्यय की पूर्ति के लए भी।

 

(4) अदायगी की भिन्नताएँ (Dis-similarities of payment ) - 

विशेष कर निर्धारण कीमतों से भी इस दृष्टि से भिन्न है क्योंकि कीमतों की अदायगी ऐच्छिक होती है जबकि विशेष कर निर्धारण की अदायगी अनिवार्य होती है।

 

(घ) अर्थदण्ड तथा जुर्माने ( Fines and penalties) 

अर्थदण्ड तथा जुर्माने सरकारी आय के महत्वपूर्ण स्रोत नहीं हैं। अर्थदण्ड (Fine) का संबंध दण्ड (punishment) से होता है और जुर्माना (penalty) कानून के उल्लंघन पर किया जाता है। इन दोनों का ही उद्देश्य किसी अनुचित कार्य के लिए दण्ड देना तथा अपराधों को रोकना होता है।

 

(ङ) जमानत या सम्पत्ति आदि जब्त करना (Forfeitures) 

जमानतों (bails) अथवा सम्पत्ति को जब्त करने से आशय उन जुर्मानों से होता है जोकि अदालतों द्वारा लोगों पर इसलिए किये जाते हैं कि वे निश्चित तिथि को अदालत में उपस्थित होने में असफल रहे अथवा उन्होंने पहले किये गये ठेकों अथवा करारों (contracts) को पूरा नहीं किया। स्पष्ट है कि सरकार की आय के इस स्रोत का भी महत्व बहुत ही कम है।

 

(च) मृतक की सम्पत्ति पर कब्जा (Escheat ) 

सरकारी की आय का यह स्रोत ऐसे व्यक्ति की सम्पत्ति पर सरकार के दावे का प्रतीक है जो बिना कानून उत्तराधिकारी नियत किये अथवा अपनी सम्पत्ति को देने के बारे में बिना वसीयत किये ही मर गया हो। इस स्थिति में उस व्यक्ति की बैंक में जमा धनराशि तथा अन्य सभी सम्पत्तियाँ सरकार के अधिकार में चली जाती हैं। सम्पत्ति पर कब्जे के इस अधिकार (Escheat ) के अंतर्गत, सरकार भंग की गई शिक्षा संस्थाओं अथवा अन्य न्यासों (trusts) की बेवारसी सम्पत्ति (unclaimed property) पर भी अपना कब्जा कर सकती है। सरकारी आय का यह भी कोई महत्वपूर्ण स्रोत नहीं है।

 

4 उपहार तथा अनुदान ( Gifts and Grants ) 

भेंट या उपहार ( gifts) वे ऐच्छिक अंशदान हैं जो प्राइवेट व्यक्ति अथवा गैर-सरकारी दाताओं (donors) द्वारा ऐसे विशिष्ट कार्यों के लिए सरकार को दिये जाते हैं जैसे कि युद्धकाल या संकटकाल के समय सहायता कोष (relief fund) अथवा प्रतिरक्षा कोष ( defennce fund) । ऐसे अंशदान देशभक्त, दानशील एवं जनसेवी व्यक्तियों द्वारा युद्ध अकाल तथा ऐसे ही अन्य संकटकालीन अवसरों पर दिये जाते हैं।

 

  • आधुनिक राजस्व व्यवस्था में केवल युद्धकाल या संकटकाल को छोड़कर इन उपहारों को कोई उल्लेखनीय स्थान प्राप्त नहीं है। प्राचीनकाल की राजकीय व्यवस्था में अवश्य इनको महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था जबकि राजा, नवाब तथा जागीरदार आदि शासक अपनी प्रजा से नजराने लिया करते थे। आजकल उपहार ( gifts) की कुल मात्रा (अनुदानों की नहीं) इतनी थोड़ी होती है कि राजस्व व्यवस्था में उसका स्थान नाममात्र का ही होता है। उपहारों तथा अनुदानों के रूप में होने वाली प्राप्तियों की विशेषता यही है कि ये ऐच्छिक प्रकृति की होती हैं और इनको देने वाला व्यक्ति बदले में किसी भी प्रत्यक्ष लाभ की आशा नहीं करता। अनुदानों (grants) की स्थिति में, दाता सरकार ( donor government) अन्य किसी स्तर पर सरकारी कार्य को सम्पन्न करने के लिए वित्तीय सहायता देती है। संघीय शासन वाले देशों में, केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को और राज्य सरकारें स्थानीय सरकारों (local government) को साधारणतः इसलिए सहायक अनुदान (grants-in-aid) देती है ताकि उन्हें इस योग्य बनाया जा सके कि वे अपने कार्यों को सफलतापूर्वक कर सकें अथवा एकरूपता (uniformity) अथवा कार्यकुशलता की दृष्टि से कुछ ऐसे विशिष्ट कार्यों को अपने हाथों में ले सकें जैसे कि राजमार्गों का निर्माण तथा रख-रखाव (maintenance) | अतः ये अनुदान शर्तरहित (unconditional) भी हो सकते हैं अथवा केवल कुछ विशिष्ट कार्यों को सम्पन्न करने के लिए भी दिये जा सकते हैं।

 

  • कभी-कभी एक देश की सरकार अन्य देश से अनुदान प्राप्त करती हैं जिसे आमतौर पर विदेशी सहायता (foreign aid) कहा जाता है। विदेशी सहायता कई मदों (plan heads) के बीच परस्पर सह-संबंध बना रहे तथापि, उचित यह होगा कि इस वर्गीकरण को छेड़ा न जाये, अन्यथा संसद के प्रति जवाबदेही तथा समाज के प्रति उत्तरदायिता के जो ठोस लाभ इससे अब प्रापत होते हैं, वे समाप्त हो जायेंगे। परंतु सरकार को यह अवश्य करना चाहिये कि बजट को खर्चों की योजना की मदों के अनुसार वितरित करने की एक ऐसी पृथक् व्यवस्था की जाए जिससे कि निष्पत्ति बजट के निर्माण का उद्देश्य पूरा हो सके. 

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