अंतर्राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण दिवस : थीम (विषय) इतिहास उद्देश्य महत्व | International disaster risk reduction day

 अंतर्राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण दिवस  : इतिहास उद्देश्य महत्व

अंतर्राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण दिवस  : इतिहास उद्देश्य महत्व | International disaster risk reduction day


अंतर्राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण दिवस 13 अक्तूबर

  • विश्व स्तर पर आपदा न्यूनीकरण और इसके कारण उत्पन्न होने वाले जोखिम को कम करने के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने हेतु प्रतिवर्ष 13 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण दिवसका आयोजन किया जाता है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण दिवसकी स्थापना वर्ष 1989 में दुनिया भर में आपदा न्यूनीकरण की संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु संयुक्त राष्ट्र महासभा’ (UNGA) के आह्वान के बाद की गई थी। 
  • जलवायु परिवर्तन को लेकर किसी विशिष्ट कार्रवाई के अभाव में विकासशील देशों को भविष्य में और अधिक चरम मौसम की घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है, जो मृत्यु दर को बढ़ा सकता है एवं महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना को प्रभावित कर सकता है। ऐसी स्थिति में बेहतर नियोजन एवं जोखिम के प्रति जागरूकता के माध्यम से प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदाओं से उत्पन्न जोखिमों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।


अंतर्राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण दिवस 2023 की थीम (विषय) 

Theme of the Day 2023 : Fighting inequality for a resilient future

2022 Theme : Early Warning 

  • 2022, में अंतर्राष्ट्रीय दिवस सेंदाई, फ्रेमवर्क के लक्ष्य जी पर ध्यान केंद्रित करेगा: "2030 तक लोगों के लिए बहु-खतरा से सम्प्राबंधित प्चेरारंभिक चेतावनी प्रणालियों और आपदा जोखिम आकलन की उपलब्धता और पहुंच में पर्याप्त वृद्धि।" मार्च 2022 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा की गई घोषणा से इस लक्ष्य को प्राप्त करने की तात्कालिकता को मजबूत किया गया था कि "संयुक्त राष्ट्र यह सुनिश्चित करने के लिए कार्य  करेगा कि पृथ्वी पर प्रत्येक व्यक्ति को पांच साल के भीतर प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली द्वारा संरक्षित किया जाए।"
  • सेंदाई, फ्रेमवर्क का प्राथमिक लक्ष्य नया बनाने से बचना और मौजूदा जोखिम को कम करना है। लेकिन जब यह संभव नहीं है, तो जन-केंद्रित पूर्व चेतावनी प्रणाली और तैयारियां लोगों, संपत्तियों और आजीविका को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए शीघ्र कार्रवाई करने में सक्षम हो सकती हैं। #ArlyWarningForAll #DRRRDay

 सेंदाई फ्रेमवर्क क्या है ?

आपदा न्यूनीकरण के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क 2015-30

(Sendai Framework for Disaster Reduction)

  • जापान के सेंदाई, मियागी (Miyagi) में 14 से 18 मार्च, 2015 तक आयोजित आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन (United Nations World Conference on Disaster Risk Reduction) में इसे अपनाया गया था।
  • संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UN Office for Disaster Risk Reduction-UNDRR) जिसे पूर्व में आपदा न्यूनीकरण के लिये संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय नीति (United Nations International Strategy for Disaster Reduction-UNISDR) के रूप में जाना जाता था, संयुक्त राष्ट्र सचिवालय का हिस्सा है और इसके कार्य सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय और मानवतावादी क्षेत्रों में विस्तारित हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिसंबर 1999 में आपदा न्यूनीकरण के लिये अंतर्राष्ट्रीय रणनीति अपनाई और इसका कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिये इसके सचिवालय के रूप में UNISDR की स्थापना की।
  • संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में आपदा जोखिम की कमी के लिये क्षेत्रीय संगठनों और सामाजिक-आर्थिक तथा मानवीय गतिविधियों के बीच समन्वय और सामंजस्य सुनिश्चित करने हेतु वर्ष 2001 में इसके जनादेश को संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में केंद्रबिंदु के रूप में कार्य करने हेतु विस्तारित किया गया था।
  • UNISDR को 18 मार्च, 2015 को सेंदाई, जापान में आयोजित आपदा जोखिम में कमी को लेकर तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन में अपनाया गया था।


प्राथमिकता वाले चार क्षेत्र

आपदा जोखिम का अध्ययन

  • प्रासंगिक आँकड़ों के संग्रह, विश्लेषण, प्रबंधन एवं उपयोग को बढ़ावा देना तथा उपयोगकर्त्ताओं की विभिन्न श्रेणियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए व्यावहारिक सूचनाओं के प्रयोग को सुनिश्चित करना।
  • आपदा से हुए नुकसान का व्यवस्थित रूप से मूल्यांकन, रिकॉर्ड, साझाकरण एवं सार्वजनिक ख़ाका तैयार करना तथा इस संदर्भ में आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण एवं सांस्कृतिक विरासत के प्रभावों को समझना।
  • अनुभव साझा करने, पुरानी घटनाओं से सबक लेकर बेहतर कार्यकलापों और आपदा जोखिम में कमी पर प्रशिक्षण एवं शिक्षा के माध्यम से सभी स्तरों पर सरकारी अधिकारियों, नागरिक समाजों, समुदायों तथा स्वयंसेवकों के साथ-साथ निजी क्षेत्र के ज्ञान में वृद्धि करना।
  • आपदा जोखिम मूल्यांकन तथा नीतियों के विकास एवं कार्यान्वयन में वैज्ञानिक ज्ञान को समाहित करने के लिये पारंपरिक, स्वदेशी, स्थानीय ज्ञान तथा प्रथाओं का उपयोग सुनिश्चित करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से आपदा जोखिम के अध्ययन को बढ़ावा देना, इसमें प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, बेहतर पहुँच, गैर-संवेदनशील डेटा का साझाकरण एवं उपयोग तथा आपदा जोखिम के समय संचार के सफल कार्यान्वयन के संबंध में राष्ट्रीय उपायों का अपनाने आदि पर बल दिया गया है।
  • आपदा की रोकथाम, लचीलेपन (आपदा से उबरने) तथा एक ज़िम्मेदार नागरिकता की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये प्रभावी वैश्विक एवं क्षेत्रीय अभियान चलाना।

आपदा जोखिम प्रबंधन में सुधार करना:

  • स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर पहचान किये गए (चिह्नित) जोखिमों से निपटने के लिये तकनीकी, वित्तीय तथा प्रशासनिक आपदा जोखिम प्रबंधन क्षमता का आकलन करना।
  • भूमि उपयोग एवं शहरी नियोजन, भवन संहिता, पर्यावरण और संसाधन प्रबंधन तथा स्वास्थ्य एवं सुरक्षा मानकों को संबोधित करने वाले क्षेत्रीय कानूनों एवं नियमों की मौजूदा सुरक्षा में वृद्धि करने वाले प्रावधानों के अनुपालन हेतु उच्च स्तर सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक तंत्र की स्थापना करना तथा प्रोत्साहन देना।
  • 2015-2030 के लिये आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर सेंदाई फ्रेमवर्क को लागू करने हेतु एक निर्दिष्ट राष्ट्रीय केंद्रबिंदु और आपदा जोखिम को कम करने के लिये राष्ट्रीय एवं स्थानीय स्तर पर प्रासंगिक हितधारकों को समाहित करने वाले सरकारी समन्वय मंचों को स्थापित कर उन्हें सशक्त बनाना।
  • निजी क्षेत्र, नागरिक समाज, पेशेवर संगठनों, वैज्ञानिक संगठनों तथा संयुक्त राष्ट्र की भागीदारी के साथ आपदा जोखिम प्रबंधन के लिये प्रमाण-पत्र एवं पुरस्कार जैसे गुणवत्तापूर्ण मानकों के विकास को बढ़ावा देना।
  • आपदा जोखिम वाले क्षेत्रों में मानव बस्तियों की सुरक्षा या पुनर्वास के मुद्दों को संबोधित करने हेतु सार्वजनिक नीतियों को तैयार करना।

लचीलेपन हेतु आपदा जोखिम में कमी के लिये निवेश:

  • विकास एवं आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियों, नीतियों, योजनाओं, कानूनों तथा विनियमों को सभी प्रासंगिक क्षेत्रों में लागू करने के लिये प्रशासन के सभी स्तरों पर आवश्यकतानुसार संसाधनों का आवंटन सुनिश्चित करना।
  • शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में आपदाओं के वित्तीय प्रभाव को कम करने के लिये सार्वजनिक तथा निजी निवेश के हस्तांतरण एवं बीमा, जोखिम-साझाकरण एवं प्रतिधारण तथा वित्तीय सुरक्षा हेतु तंत्र को बढ़ावा देना।
  • ग्रामीण विकास योजना में आपदा जोखिम मूल्यांकन, मानचित्रण एवं प्रबंधन को बढ़ावा देना तथा इसके साथ-साथ पहाड़ों, नदियों, तटीय बाढ़ के क्षेत्रों और सूखा एवं बाढ़ प्रवण अन्य सभी क्षेत्रों में आवश्यक प्रबंधन पर बल देना।
  • देश के महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के आपदा के प्रति लचीलेपन (Resilience) में वृद्धि करना।
  • आपदा जोखिम को कम करके भूख एवं गरीबी के उन्मूलन के उद्देश्य को प्राप्त करने संबंधी अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को सुदृढ़ तथा व्यापक बनाना।
  • प्रभावी प्रतिक्रिया के लिये आपदा-रोधी तैयारी को बढ़ावा देना तथा पुनः प्राप्ति, पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण में बेहतर निर्माण पर बल देना
  • बचाव एवं राहत गतिविधियों को शुरू करने के लिये जन जागरूकता को बढ़ावा देना तथा आवश्यक सामग्रियों के भंडारण के लिये सामुदायिक केंद्र स्थापित करना।
  • आपदा के पश्चात् त्वरित प्रतिक्रिया हेतु मौजूदा कार्यबल एवं स्वैच्छिक श्रमिकों को आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करना तथा आपात स्थितियों में बेहतर प्रदर्शन सुनिश्चित करने के लिये तकनीकी एवं रसद (logistical) क्षमताओं को मज़बूत बनाना।
  • आपदा के बाद पुनर्निर्माण की जटिल एवं महँगी प्रकृति को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय संस्थाओं के समन्वय हेतु प्रभावित समुदायों तथा व्यापार सहित सभी स्तरों पर विभिन्न संस्थानों, प्राधिकरणों एवं संबंधित हितधारकों के सहयोग को बढ़ावा देना।
  • आपदा के पश्चात् पुनर्निर्माण हेतु आवश्यक तैयारियों के लिये मार्गदर्शन प्रदान करना।
  • रुग्णता एवं मृत्यु दर की रोकथाम हेतु केस रजिस्ट्री के लिये एक तंत्र तैयार करना तथा आपदा के कारण होने वाली मृत्यु दर के संबंध में एक डेटाबेस स्थापित करना।
  • ज़रूरतमंद लोगों को आवश्यक मनोचिकित्सकीय सहायता तथा मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना तथा अन्य सहायतार्थ योजनाओं को बढ़ावा देना।
  • देशों और सभी संबंधित हितधारकों के बीच अनुभव तथा ज्ञान के साझाकरण के लिये अंतर्राष्ट्रीय पुनर्प्राप्ति मंच (International Recovery Platform) जैसे अंतर्राष्ट्रीय तंत्र को बढ़ावा देना।

हितधारकों की अपेक्षित भूमिका

  • आपदा जोखिमों के प्रभावी कार्यान्वयन एवं लैंगिक आधार पर संवेदनशील आपदा जोखिमों को कम करने वाली नीतियों, योजनाओं तथा कार्यक्रमों के निर्माण और कार्यान्वयन हेतु आवश्यक संसाधनों की पूर्ति के लिये महिलाओं की भागीदारी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अतः उन्हें इसके लिये ज़रुरी साधन एवं विकल्प उपलब्ध कराए जाने चाहिये।
  • बच्चे एवं युवापरिवर्तन के महत्त्वपूर्ण घटक होते हैं। अत: उन्हें आपदा जोखिमो को कम करने की दिशा में योगदान करने हेतु उचित महत्त्व एवं साधन मुहैया कराए जाने चाहिये।
  • वृद्ध व्यक्तियों के पास वर्षों से अर्जित ज्ञान, कौशल एवं बुद्धिमता होती है, जो आपदा जोखिम को कम करने की दृष्टि से अमूल्य संपत्ति है, अतः उन्हें आपदा की प्रारंभिक चेतावनी जारी करने सहित नीतियों, योजनाओं एवं तंत्रों के निर्माण आदि में शामिल किया जाना चाहिये।
  • स्थानीय लोग अपने अनुभव एवं पारंपरिक ज्ञान के माध्यम से आपदा की प्रारंभिक चेतावनी सहित योजनाओं तथा तंत्रों के विकास एवं कार्यान्वयन में महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान कर सकते हैं।
  • शैक्षणिक समुदाय, वैज्ञानिक तथा अनुसंधान संस्थाओं एवं नेटवर्क द्वारा आपदा जोखिम कारकों एवं परिदृश्यों पर विशेष रूप से ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
  • व्यापारियों, व्यावसायिक संघों तथा निजी क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों के साथ-साथ परोपकारी संस्थाओं को आपदा जोखिम-सूचित निवेश के माध्यम से आपदा जोखिम प्रबंधन को व्यवसाय मॉडल एवं प्रथाओं में एकीकृत करने पर बल देना चाहिये।
  • मीडिया द्वारा सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने और समझ में वृद्धि तथा योगदान हेतु स्थानीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक स्तर पर एक सक्रिय एवं समावेशी भूमिका निभाने की आवश्यकता है, ताकि छोटे पैमाने पर होने वाली आपदाओं के साथ-साथ बड़ी आपदाओं के संदर्भ में सटीक एवं उपयोगी जानकारियों का प्रसार किया जा सके।

अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की अपेक्षित भूमिका

  • संयुक्त राष्ट्र तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय संगठनों, जो आपदा जोखिम को कम करने की दिशा में कार्यरत हैं, द्वारा अपनी रणनीतियों के समन्वय में वृद्धि की जानी चाहिये।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर संयुक्त राष्ट्र की कार्य योजना, संयुक्त राष्ट्र विकास सहायता फ्रेमवर्क एवं देशों के अपने कार्यक्रमों के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र संघ की अन्य कार्यप्रणालियों द्वारा संसाधनों के इष्टतम उपयोग को बढ़ावा देने तथा विकासशील देशों के अनुरोध पर वर्तमान ढाँचे के कार्यान्वयन में समर्थन दिये जाने की आवश्यकता है।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु संयुक्त राष्ट्र कार्यालय द्वारा वर्तमान फ्रेमवर्क के कार्यान्वयन, उसे और आगे बढ़ाने तथा समीक्षा के संदर्भ में समर्थन प्रदान किये जाने की उम्मीद है।
  • अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों, जैसे कि विश्व बैंक एवं क्षेत्रीय विकास बैंकों द्वारा विकासशील देशों को एकीकृत आपदा जोखिमों को कम करने के लिये वित्तीय सहायता तथा ऋण प्रदान करने हेतु वर्तमान रूपरेखा की प्राथमिकताओं पर विचार करने की अपेक्षा की जाती है।
  • निजी क्षेत्र एवं व्यापार के साथ जुड़ाव हेतु संयुक्त राष्ट्र की मुख्य पहल के रूप में संयुक्त राष्ट्र ग्लोबल कॉम्पैक्ट द्वारा सतत् विकास एवं आपदा से उबरने के लिये आपदा जोखिम में कमी जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दे को बढ़ावा दिये जाने की ज़रूरत हैं।
  • इसके अलावा अंतर-संसदीय संघों और अन्य प्रासंगिक क्षेत्रीय निकायों तथा संसदीय तंत्रों को आपदा जोखिम न्यूनीकरण का समर्थन करने एवं राष्ट्रीय कानूनी ढाँचे को मज़बूत बनाने के लिये यथोचित प्रयास करने चाहिये।

आपदा (Disaster) किसे कहते हैं परिभाषा 

  • आपदा प्रबंधन अधिनियम,2005 में आपदा को परिभाषित किया गया है।
  • इस अधिनियम के मुताबिक, आपदा का तात्पर्य किसी भी क्षेत्र में प्राकृतिक या मानव निर्मित कारणों से उत्पन्न "तबाही, दुर्घटना एवं गंभीर घटना" से है।
  • आपदा प्रबंधन अधिनियम,2005 के तहत सरकार ने कोविड-19 महामारी को आपदा घोषित किया गया है। इसीलिए सरकार आपदा प्रबंधन अधिनियम,2005 के तहत कोविड-19 महामारी के लिए दिशा-निर्देश जारी करती है।
  • राष्ट्रीय स्तर पर लाकडाउन भी इसी अधिनियम के तहत लगाया गया था।
  • हाल ही में भारत सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम,2005 के तहत ही निजी संयंत्रों के पास मौजूदा भंडार सहित समस्त तरल ऑक्सीजन’ (liquid oxygen) सरकार को उपलब्ध कराने तथा इसका केवल चिकित्सीय उद्देश्यों में प्रयोग करने का आदेश दिया है।


आपदा प्रबंधन अधिनियम,2005 (Disaster Management Act,2005)

  • आपदा प्रबंधन अधिनियम को वर्ष 2005 में पारित किया गया था। हालांकि यह अधिनियम वर्ष 2006 से लागू हुआ था।
  • इस अधिनियम का उद्देश्य आपदा के समय कुशल प्रबंधन से है। ताकि क्षति व नुकसान को सीमित किया जा सके।
  • आपदा प्रबंधन अधिनियम,2005 भारत सरकार के गृह मंत्रालय को समग्र राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन को संचालित करने के लिये नोडल मंत्रालय के रूप में नामित करता है।
  • यह अधिनियम के तहत राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, राज्य स्तर पर राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और जिला स्तर पर ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के गठन का प्रावधान करता है। ताकि पूरे देश में संस्थानों की एक व्यवस्थित संरचना को बनाए रखा जा सके। इसके अतिरिक्त, सरकार भारत में कहीं भी किसी भी प्राधिकरण को आपदा प्रबंधन करने या सहायता प्रदान करने के लिए कोई भी निर्देश जारी कर सकती है।
  • गौरतलब है कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की अध्यक्षता भारत के प्रधानमंत्री करते हैं।
  • आपदा प्रबंधन अधिनियम,2005 के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (National Disaster Response Fund) का भी गठन किया गया है।

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