भारतीय वायुसेना 08 अक्तूबर, 2023 को अपना 92वाँ स्थापना दिवस मना रही
है। भारतीय वायुसेना की स्थापना आधिकारिक तौर पर 8 अक्तूबर, 1932 को हुई थी और वायुसेना की पहली उड़ान 01 अप्रैल, 1933 को भरी गई थी।
प्रारंभ
में भारतीय वायुसेना को ‘रॉयल इंडियन एयर फोर्स’ के रूप में जाना जाता था, वर्ष 1950 के बाद जब भारत को एक
गणराज्य के रूप में स्थापित किया गया, तब ‘रॉयल’ शब्द को हटा दिया गया।
वर्तमान में ‘भारतीय
वायुसेना’ भारतीय सशस्त्र बलों की वायु शाखा है और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी
वायुसेना है। इस दिवस के आयोजन का उद्देश्य आधिकारिक और सार्वजनिक रूप से
राष्ट्रीय सुरक्षा में भारतीय वायुसेना के महत्त्व के विषय में जागरूकता बढ़ाना है।
गौरतलब है कि ‘भारतीय वायुसेना’ (IAF) पर भारतीय हवाई क्षेत्र को सुरक्षित रखने के साथ-साथ संघर्ष
के दौरान हवाई युद्ध में हिस्सा लेने का उत्तरदायित्व है, इस प्रकार भारतीय
वायुसेना, भारतीय नौसेना और
थलसेना के साथ-साथ देश की रक्षा प्रणाली का एक मौलिक और महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
इसके अलावा यह प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भी महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान करती है।
‘भारतीय वायुसेना’ विभिन्न युद्धों में शामिल रही है,जिसमें द्वितीय विश्वयुद्ध, चीन-भारत युद्ध, ऑपरेशन कैक्टस, ऑपरेशन विजय, कारगिल युद्ध, भारत-पाकिस्तान युद्ध, कांगो संकट, ऑपरेशन पूमलाई और ऑपरेशन
पवन आदि प्रमुख हैं।
भारतीय वायुसेना दिवस इतिहास
भारतीय वायु सेना का
आधिकारिक तौर पर गठन 08 अक्तूबर 1932 को किया गया। इसकी पहली
वायुयान फ्लाइट 01 अप्रैल 1933 को अस्तित्व में आई।
इसकी नफरी पर आर ए एफ द्वारा प्रशिक्षित छह अफसर और 19 हवाई सिपाही (शाब्दिक
तौर पर वायुयोद्धा) थे। इसकी इन्वेंट्री में योजनाबद्ध नं. 1 (थल सेना के सहयोग से)
स्क्वॉड्रन के ''ए'' फ्लाइट के मूल में द्रिग
रोड स्थित चार वेस्टलैंड वापिती IIए थल सेना बाइप्लेन शामिल थे।
साढ़े चार वर्ष के बाद ''ए'' फ्लाइट ने बागी भिट्टानी
जनजाति के लड़ाकों के विरुद्ध भारतीय सेना के ऑपरेशनो मे सहायता करने के लिए उत्तरी
वजीरिस्तान में मिरानशाह से पहली बार किसी लड़ाई में भाग लिया। इसी दौरान अप्रैल 1936 में पुराने वापिती
वायुयानों से एक ''बी'' फ्लाइट गठित की गई। परंतु
जून 1938 में जाकर ही ''सी'' फ्लाइट का गठन हो पाया
जिससे नं. 1 स्क्वॉड्रन की
नफरी पूरी हो पाई। द्वितीय विश्व युद्ध के शुरू होने तक यही एकमात्र भारतीय वायु
सेना फॉर्मेशन रही, हालांकि इसके
कार्मिकों की संख्या अब तक बढ़कर 16 अफसरों और 662 वायुसैनिकों की हो़ गई थी।
1939 में चैटफील्ड समिति
द्वारा भारत की रक्षा से संबंधित समस्याओं का फिर से मूल्यांकन किया गया। इस समिति
ने भारत स्थित आर ए एफ (रॉयल एयर फोर्स) स्क्वॉड्रनों में और अधिक उपस्कर शामिल
करने का सुझाव तो दिया परंतु प्रमुख बंदरगाहों की सुरक्षा में सहायता करने के लिए
स्वैच्छिक आधार पर पांच फ्लाइट गठित करने की योजना के अतिरिक्त और कोई ऐसा सुझाव
नहीं दिया जो भारतीय वायु सेना के धीमे विकास में कोई तेजी ला सके। इस आधार पर
भारतीय वायु सेना के एक वॉलंटियर रिजर्व को प्राधिकृत किया गया, हालांकि प्रस्तावित तटीय
रक्षा फ्लाइट (सी डी एफ) को उपस्करों से लैस करने का काम वायुयानों की उपलब्धता
में कमी के कारण गति नहीं पकड़ सका। फिर भी इस प्रकार की पांच फ्लाइटें गठित की गईं, नं. 1 मद्रास में, नं. 2 मुम्बई में, नं. 3 कोलकाता में, नं. 4 कराची में और नं. 5 कोचीन में। नं. 6 फ्लाइट का गठन बाद में
विशाखापत्तनम में किया गया। भारतीय वायु सेना और आर ए एफ के नियमित कार्मिकों को
शामिल कर बनाई गई इन फ्लाइटों में पूर्व-आर ए एफ वापिती और नं. 1 स्क्वॉड्रन भारतीय वायु
सेना के हॉकर हार्ट में कन्वर्जन के बाद इसके द्वारा छोड़े गए वायुयान शामिल किए
गए। आखिरकार स्क्वॉड्रन को एक वर्ष के भीतर ही अतिरिक्त पुर्जों की कमी के कारण
वापिती वायुयानों पर वापस आना पड़ा और पुराने हो चुके वेस्टलैंड बाइप्लेन की कमी
ऑडैक्स की एक फ्लाइट द्वारा पूरी की जाने लगी।
जनवरी 1950 में भारत
ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के भीतर एक गणतांत्रिक देश बन गया और भारतीय वायु सेना ने
अपने नाम से पहले का ''रॉयल'' उपसर्ग हटा दिया। इस समय
इसके पास स्पिटफायर, वैम्पायर और टेम्पेस्ट वायुयानों से लैस छह
लड़ाकू स्क्वॉड्रनें कानपुर, पूना, अंबाला और पालम से ऑपरेट
कर रही थी, एक बी-24 बमवर्षक स्क्वॉड्रन थी, एक सी-47 डकोटा
परिवहन स्क्वॉड्रन थी, एक ए ओ पी फ्लाइट थी, पालम स्थित एक
संचार स्क्वॉड्रन थी और एक विकासशील प्रशिक्षण संगठन था। प्रशिक्षण काफी हद तक आर
ए एफ द्वारा स्थापित पद्धति के अनुरूप था और अधिकतर अनुदेशक यूके में सीएफएस से
स्नातक थे। टाइगर मॉथ और हार्वर्ड वायुयानों से लैस हैदराबाद स्थित नं. 1 उड़ान
प्रशिक्षणस्कूल और प्रेंटिस तथा हार्वर्ड वायुयानों से लैस जोधपुर स्थित नं. 2
उड़ान प्रशिक्षण स्कूल के अतिरिक्त बेगमपेट, कोयम्बतूर और जोधपुर में
भारतीय वायु सेना कॉलेज थे। डि हैविलैंड वैम्पायर के लाइसेंस के तहत एच ए एल
द्वारा वैम्पायर वायुयानों का निर्माण शुरू किया गया और इसे आयात किए गए प्रमुख
असेंबली घटकों से एक बैच तैयार करने के बाद आगे 250 और वैम्पायर टी एमके 55 भी
तैयार करने थे जिनमें से 10 आयात की गई किट से तैयार किए जाने थे।
Post a Comment