ऑडिट दिवस 2022 : इतिहास उद्देश्य महत्व | Audit Day 2022 in Hindi

ऑडिट दिवस 2022 : इतिहास उद्देश्य महत्व

ऑडिट दिवस 2022 : इतिहास उद्देश्य महत्व | Audit Day 2022 in Hindiऑडिट दिवस 2022 : इतिहास उद्देश्य महत्व | Audit Day 2022 in Hindiऑडिट दिवस 2022 : इतिहास उद्देश्य महत्व | Audit Day 2022 in Hindiऑडिट दिवस 2022 : इतिहास उद्देश्य महत्व | Audit Day 2022 in Hindiऑडिट दिवस 2022 : इतिहास उद्देश्य महत्व | Audit Day 2022 in Hindi



ऑडिट दिवस 2022 : इतिहास उद्देश्य महत्व


  • 16 नवंबर, 2021 को पहली बार ‘ऑडिट दिवस’ का आयोजन किया गया। ‘ऑडिट दिवस’ एक संस्था के रूप में ‘भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक’ (CAG) की ऐतिहासिक उत्पत्ति और पिछले कई वर्षों में शासन, पारदर्शिता और जवाबदेही में उसके को चिह्नित करने के लिये मनाया जाता है। ‘भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक’ (CAG) भारत के संविधान के तहत एक स्वतंत्र प्राधिकरण है। महालेखाकार का कार्यालय वर्ष 1858 में स्थापित किया गया था, ठीक उसी वर्ष जब अंग्रेज़ों ने ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत का प्रशासनिक नियंत्रण अपने हाथों में लिया था। वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा एक नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक नियुक्त किये जाने का प्रावधान किया गया। वर्ष 1976 में CAG को लेखांकन के कार्यों से मुक्त कर दिया गया।

 

भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक 

भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (Comptroller & Auditor General of India-CAG) भारत के संविधान के तहत एक स्वतंत्र प्राधिकरण है।

यह भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग (Indian Audit & Accounts Department) का प्रमुख और सार्वजनिक क्षेत्र का प्रमुख संरक्षक है।

इस संस्था के माध्यम से संसद और राज्य विधानसभाओं के लिये सरकार और अन्य सार्वजनिक प्राधिकरणों (सार्वजनिक धन खर्च करने वाले) की जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है और यह जानकारी जनसाधारण को दी जाती है।


भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक इतिहास 

  • महालेखाकार का कार्यालय वर्ष 1858 में स्थापित किया गया था, ठीक उसी वर्ष जब अंग्रेज़ों ने ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत का प्रशासनिक नियंत्रण अपने हाथों में लिया था।
  • वर्ष 1860 में सर एडवर्ड ड्रमंड को पहले ऑडिटर जनरल के रूप में नियुक्त किया गया। इसके कुछ समय बाद भारत के महालेखापरीक्षक को भारत सरकार का लेखा परीक्षक और महालेखाकार कहा जाने लगा।
  • वर्ष 1866 में इस पद का नाम बदलकर नियंत्रक महालेखा परीक्षक कर दिया गया और वर्ष 1884 में इसे भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक के रूप में फिर से नामित किया गया।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत महालेखापरीक्षक को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया क्योंकि इस पद को वैधानिक दर्जा दिया गया था।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने संघीय ढाँचे में प्रांतीय लेखा परीक्षकों के लिये प्रावधान करके महालेखापरीक्षक के पद को और शक्ति दी।
  • इस अधिनियम में नियुक्ति और सेवा प्रक्रियाओं का भी उल्लेख था और भारत के महालेखापरीक्षक के कर्त्तव्यों का संक्षिप्त विवरण भी।
  • वर्ष 1936 के लेखा और लेखा परीक्षा आदेश ने महालेखापरीक्षक के उत्तरदायित्वों और लेखा परीक्षा कार्यों का प्रावधान किया।
  • यह व्यवस्था वर्ष 1947 तक अपरिवर्तित रही। स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा एक नियंत्रक और महालेखापरीक्षक नियुक्त किये जाने का प्रावधान किया गया।
  • वर्ष 1958 में CAG के क्षेत्राधिकार में जम्मू और कश्मीर को शामिल किया गया।
  • वर्ष 1971 में केंद्र सरकार ने नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (कर्त्तव्य, शक्तियाँ और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 लागू किया।
  • अधिनियम ने CAG को केंद्र और राज्य सरकारों के लिये लेखांकन और लेखा परीक्षा दोनों की ज़िम्मेदारी दी।
  • वर्ष 1976 में CAG को लेखांकन के कार्यों से मुक्त कर दिया गया।


ब्रिटेन के CAG से तुलना

  • भारत का CAG केवल महालेखापरीक्षक की भूमिका निभाता है, नियंत्रक महालेखाकार की नहीं, जबकि ब्रिटेन में महालेखापरीक्षक के साथ-साथ इसमें नियंत्रक महालेखाकार की शक्ति भी निहित होती है।
  • भारत में CAG पैसा खर्च होने के बाद खातों का लेखा-जोखा करता है यानी पोस्ट-फैक्टो, जबकि UK में CAG की मंज़ूरी के बिना सरकारी खजाने से कोई पैसा निकाला ही नहीं जा सकता है।
  • भारत में CAG संसद का सदस्य नहीं होता, जबकि ब्रिटेन में कैग हाउस ऑफ कॉमंस का सदस्य होता है।


भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक  संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 148 CAG की नियुक्ति, शपथ और सेवा की शर्तों से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 149 भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के कर्त्तव्यों और शक्तियों से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 150 कहता है कि संघ और राज्यों को खातों का विवरण राष्ट्रपति के अनुसार (CAG की सलाह पर) रखना होगा।
  • अनुच्छेद 151 कहता है कि संघ के खातों से संबंधित CAG की रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी जाएगी, जो संसद के प्रत्येक सदन के पटल पर रखी जाएगी।
  • किसी राज्य के लेखाओं के संबंध में भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट राज्य के राज्यपाल को प्रस्तुत की जाएगी, जो उन्हें राज्य के विधानमंडल के समक्ष रखेगा।
  • अनुच्छेद 279- ‘शुद्ध आय’ की गणना CAG द्वारा प्रमाणित की जाती है, जिसका प्रमाणपत्र अंतिम माना जाता है।
  • तीसरी अनुसूची- भारत के संविधान की तीसरी अनुसूची की धारा IV भारत के CAG और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा पदभार ग्रहण के समय ली जाने वाली शपथ का प्रावधान करती है।
  • छठी अनुसूची- इस अनुसूची के अनुसार, ज़िला परिषद या क्षेत्रीय परिषद के खातों को राष्ट्रपति की अनुमति के साथ CAG द्वारा अनुमोदित प्रारूप के अनुसार रखा जाना चाहिये।
  • इन निकायों के खाते का लेखा-जोखा इस तरह से करना होगा जिस प्रकार CAG उचित समझता है और ऐसे खातों से संबंधित रिपोर्ट राज्यपाल को प्रस्तुत की जाएगी, जो विधानमंडल के समक्ष रखी जाती है।


कैग की स्वायत्तता

  • CAG की स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिये संविधान में कई प्रावधान किये गए हैं।
  • CAG राष्ट्रपति की सील और वारंट द्वारा नियुक्त किया जाता है और इसका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक होता है। ( दोनों में से जो भी पहले हो)
  • CAG को राष्ट्रपति द्वारा केवल संविधान में दर्ज प्रक्रिया के अनुसार हटाया जा सकता है जो कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के तरीके के समान है।
  • एक बार CAG के पद से सेवानिवृत्त होने/इस्तीफा देने के बाद वह भारत सरकार या किसी भी राज्य सरकार के अधीन किसी भी कार्यालय का पदभार नहीं ले सकता।
  • CAG भारत में सरकार की लोकतांत्रिक व्यवस्था की एक कड़ी है। अन्य कड़ियों में सर्वोच्च न्यायालय, चुनाव आयोग और संघ लोक सेवा आयोग शामिल हैं।
  • कोई भी मंत्री संसद में CAG का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता।
  • CAG का वेतन और अन्य सेवा शर्तें नियुक्ति के बाद भिन्न (कम) नहीं की जा सकतीं।
  • उसकी प्रशासनिक शक्तियाँ और भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग में सेवारत अधिकारियों की सेवा शर्तें राष्ट्रपति द्वारा उससे परामर्श के बाद ही निर्धारित की जाती हैं।
  • CAG के कार्यालय का प्रशासनिक व्यय, जिसमें सभी वेतन, भत्ते और पेंशन शामिल हैं, भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं जिन पर संसद में मतदान नहीं हो सकता।



CAG और लोक लेखा समिति

(Public Accounts Committee- PAC)

  • लोक लेखा समिति भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत गठित एक स्थायी संसदीय समिति है।
  • CAG की ऑडिट रिपोर्ट केंद्र और राज्य में लोक लेखा समिति को सौंपी जाती है।
  • विनियोग खातों, वित्त खातों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों पर ऑडिट रिपोर्ट की जाँच लोक लेखा समिति द्वारा की जाती है।
  • केंद्रीय स्तर पर इन रिपोर्टों को CAG द्वारा राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया जाता है, जो संसद में दोनों सदनों के पटल पर रखी जाती हैं।
  • CAG सबसे ज़रूरी मामलों की एक सूची तैयार करके लोक लेखा समिति को सौंपता है।
  • CAG कभी-कभी राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों के विचारों की व्याख्या और अनुवाद भी करता है।
  • CAG यह देखता है कि उसके द्वारा प्रस्तावित सुधारात्मक कार्रवाई की गई है या नहीं। यदि नहीं तो वह मामले को लोक लेखा समिति के पास भेज देता है जो मामले पर आवश्यक कार्रवाई करती है।

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