देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता |Science of Devanagari script

देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता

देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता |Science of Devanagari script
 

देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता (Science of Devanagari script)

  • हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी के संबंध में राहुल सांकृत्यायन का कथन है, देवनागरी दुनिया की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से देवनागरी लिपि की वर्णमाला विश्व की सभी वर्णमाला लिपियों की अपेक्षा निश्चय ही पूर्णतर है। देवनागरी की वर्णमाला एक अत्यन्त तर्क पूर्ण ध्वन्यात्मक क्रम (phonetic order) में व्यवस्थित है। यह क्रम इतना तर्कपूर्ण है कि अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक संघ (IPA ) ने अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला के निर्माण के लिये मामूली परिवर्तनों के साथ इसी क्रम को अंगीकार कर लिया।

 

  • देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता का मूलाधार है उसका आंतरिक पक्ष और आंतरिक पक्ष से तात्पर्य लिपि में निहित उन तत्वों से है जिनसे सैद्धान्तिक पीठिका पर यह अपनी वैज्ञानिकता स्थापित कर पाई है। ये गुण हैं लिपि क्रम की वैज्ञानिकता और वर्णमाला का व्यवस्थित क्रम, जितनी उच्चारण ध्वनियाँ हैं, उन सभी के लिए अलग-अलग लिपिचिन्ह, प्रत्येक लिपिचिन्ह द्वारा केवल एक उच्चारण ध्वनि का बोध कराने वाला केवल एक ही लिपिचिन्ह होना, संपर्क लिपि की अपूर्व क्षमता तथा वैज्ञानिकता के संदर्भ आदि। 


देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता के  गुणों को निम्नानुसार क्रमबद्ध किया जा सकता है

 

(1) लिपि क्रम की वैज्ञानिकता विश्व की अनेक प्रमुख लिपियों में ध्वनियों के नाम भिन्न हैं और उनके उच्चारणात्मक ध्वनिमूल्य भिन्न हैं। (जैसे h का नाम एच है और प्राय: इसका उच्चारण ह होता है), इसके विपरीत नागरी में दोनों में कोई अंतर नहीं है। इसकी वर्णमाला का वर्णक्रम अत्यंत वैज्ञानिक है। ध्वनियों का वर्गीकरण क्रम भी बड़ा वैज्ञानिक है। नागरी के लिपिक्रम की वैज्ञानिकता का सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण माहेश्वर सूत्र है। नागरी की वर्णमाला उच्चारण स्थान एवं उच्चारण प्रयत्न के आधार पर वैज्ञानिक क्रम से सुनियोजित है। 


उच्चारण स्थान नागरी लिपि वर्णमाला के प्रत्येक वर्ग की उच्चारण स्थान की दृष्टि से व्यवस्था की गई है जैसे

 

आरंभ में स्वरध्वनियाँ- (अ, , , , , , , , , , , अं, अ) हैं। 

तदनंतर स्थानानुसारी वर्गक्रम से 27 स्पर्श व्यंजन हैं 

क वर्ग की पांच ध्वनियों (क्, ख् , ग् , घ् ,  ) तथा ह एवं विसर्ग का उच्चारण कंठ से होता है। इसलिए ये कण्ठ्य ध्वनियां कहलाती हैं। 

च वर्ग की पांचों ध्वनियों (च छ, ज् झ् ञ) तथा य एवं श का स्थान तालु है। 

ट वर्ग की ध्वनियों तथा र और ष का स्थान मूर्धा है 

त वर्ग की सभी ध्वनियों तथा ल एवं स का स्थान दन्त है। 

वर्ग की पांचों ध्वनियों का स्थान ओष्ठ है। 

तत्पश्चात् अंतस्थ ( य, , ,व) 

तदनंतर ऊष्म ध्वनियाँ (श्  ष् स् ह्) हैं। 

प्रत्येक वर्ण की अंतिम ध्वनि (ङ ञ, , , म) का स्थान नासिका है। अनुस्वार का स्थान भी यही है। 

ए और ऐ का उच्चारण कंठ तथा तालु से होता है। 

ओ और औ का उच्चारण कंठ तथा ओष्ठ से होता है।

 

( 2 ) व्यवस्थित वर्णमाला

  • नागरी लिपि की वर्णमाला का रूप अत्यंत व्यवस्थित है। इसमें स्वरों और व्यञ्जनों को अलग-अलग रखा गया है। स्वरों में भी हस्व और दीर्घ के युग्म ( अ, , , , , ऊ) हैं। पहले मूल स्वर रखे गए हैं, फिर संयुक्त स्वर । 
  • ध्वनियों के अंतर्गत पहले कंठ ध्वनियों को रखा गया और अंत में ओष्ठन्य ध्वनियों को । 
  • यहां तक कि प्रत्येक वर्ग की प्रथम, तृतीय एवं अंतिम ध्वनियां अल्प प्राणध्वनि (क, , ङ) तथा द्वितीय एवं चतुर्थ ध्वनि महाप्राण ध्वनि (ख, घ) है। 
  • प्रत्येक वर्ग की अंतिम ध्वनि को अनुनासिक रखा गया है जैसे ङ ञ, , , म । 
  • इस प्रकार प्रत्येक वर्ग की ध्वनियों में पहले अघोष एवं उसके बाद सघोष ध्वनियों का उल्लेख है। इस प्रकार पहले की दो ध्वनियां अघोष तथा अंतिम तीन ध्वनियां सघोष हो जाती हैं।

 

(3) उच्चारण के अनुरूप लेखन

नागरी लिपि अक्षरात्मक लिपि है और अक्षरात्मक लिपि में प्रत्येक ध्वनि के लिए पृथक-पृथक वर्ण होते हैं। इसमें प्रत्येक स्वर के लिए भिन्न चिह्न होता है, जो उच्चारण के अनुरूप लिखे जाते हैं जैसे यदि 'रहीम' बोला है तो उसे 'र + अ+ह्+ई+म+अ' लिखना होगा, जबकि अंग्रेजी में ऐसा नहीं है। उसमें अनेक लिखी हुई ध्वनियों का उच्चारण नहीं होता। जैसे 'Knife ' का उच्चारण 'नाइफ' है। इसमें '' ध्वनि का उच्चारण नहीं होता। 

( 4 ) एक ध्वनि एक लिपि 

नागरी लिपि की एक अन्य अद्वितीय विशेषता यह है कि इसमें प्रत्येक ध्वनि के लिए अलग-अलग चिह्न हैं तथा एक चिह्न की एक ही ध्वनि है। जबकि रोमन लिपि में एक ध्वनि के लिए अनेक लिपि चिह्न हैं जैसे- '' ध्वनि के लिए रोमन लिपि में उ, (झ), (ह्र) का प्रयोग किया जाता है।

 

(5) व्यंजन चिह्न की आक्षरिकता

इससे तात्पर्य है व्यंजन के उच्चारण के साथ स्वर का उच्चारण होना। यह गुण नागरी लिपि में ही है, रोमन आदि अन्य लिपियों में नहीं। इसके कारण नागरी लिपि में लेखन की गति बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए यदि 'मदन' को अंग्रेजी में लिखना होगा, तो लिखेंगे 'Madan' स्पष्ट है कि जहां नागरी में इसे केवल तीन चिह्नों द्वारा व्यक्त कर दिया गया है, वहीं रोमन में छह चिह्नों की आवश्यकता पड़ी है।

 

( 6 ) पृथक-पृथक लिपि-

चिह्न देवनागरी में प्रत्येक स्वर और व्यंजन ध्वनि के लिए पृथक लिपि चिह्न है। यद्यपि ऐसा करने से कुल स्वर और व्यंजन की संख्या रोमन लिपि की तुलना में अधिक अवश्य हो गई है, किन्तु इससे लिपि में अल्पप्राण और महाप्राण ध्वनियों के लिए अलग-अलग लिपि - चिह्न है क (अल्पप्राण), ख (महाप्राण) जबकि रोमन लिपि में इसके लिए K (क), Kh (ख) होगा। इतना ही नहीं बल्कि संयुक्त व्यंजनों के लिए भी स्वतंत्र लिपि चिह्न की देवनागरी में व्यवस्था है जैसे क्ष, , ज्ञ आदि।

 

(7) हस्व-दीर्घ का भेद 

नागरी लिपि में ह्रस्व और दीर्घ का भेद बिल्कुल स्पष्ट होने के कारण ध्वनियों को अधिक शुद्धता से लिखा जा सकता है जैसे- तल, तला, ताल, ताला, पर रोमन लिपि में इसे शुद्धता के साथ लिखना मुश्किल होगा क्योंकि ' TALA' लिख देने मात्र से उपरोक्त चारों ध्वनियों का उच्चारण किया जा सकता है। इस प्रकार रोमन लिपि में उच्चारण का भ्रम बना रहता है।

 

(8) भारतीय भाषाओं के लिये वर्णों की पूर्णता एवं सम्पन्नता (52 वर्ण, न बहुत अधिक न बहुत कम)

 

( 9 ) सरलता -

अन्य लिपियों की तुलना में नागरी लिपि सरल है। जहां रोमन लिपि को पढ़ने के लिए शब्द का उच्चारण भी याद करना पड़ता है, वहां नागरी लिपि में ऐसा नहीं है। यहां तक कि यह तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालय तथा उर्दू लिपियों से भी सरल और सुगम लिपि है।

 

(10) नवनीयता- 

समें अनेक विदेशी ध्वनियों को समावेश करने की अपूर्व क्षमता है। इसी कारण देवनागरी लिपि ने उर्दू की पांच ध्वनियों को - , , , , फ तथा अंग्रेजी की '' ध्वनि को स्वीकार कर लिया है।

 

(11) सर्व समावेशकता 

इस लिपि की यह विशेषता है कि इसमें विश्व की समस्त भाषाओं की ध्वनियों को लिख सकते हैं। तमिल, तेलुगु, कन्नड़ तथा उर्दू भाषा को नागरी लिपि के माध्यम से लिखा जा सकता है। यहां तक कि निरर्थक ध्वनियों को भी यह लिपि अपने चिह्न द्वारा व्यक्त कर सकती है।

 

( 12 ) सुन्दरता 

यह लिपि देखने में कलात्मक और सुडौल है। इसकी शिरोरखा ने इसके सौन्दर्य में और भी अधिक वृद्धि की है। देवनागरी लिपि में यद्यपि अनेक विशेषताएं हैं, परंतु कुछ कमियाँ भी विद्यमान हैं, जैसे 


  • र के कई रूप प्रयुक्त होते हैं; जैसे इन शब्दों में राम, प्रथम, राष्ट्र, धर्म आदि । 
  • क्ष, त्र, ज्ञ, श्र आदि संयुक्ताक्षरों को वर्णमाला से हटाया जा सकता है क्योंकि अन्य संयुक्ताक्षरों के लिये स्वतंत्र प्रतीक नहीं हैं। 
  • क मात्रा से अनुस्वार के साथ-साथ पंचमाक्षरों का भी काम लिया जाता है; जैसे गंगा के स्थान पर गंगा, चञ्चल के स्थान पर चंचल, खण्डन के बजाय खंडन, पन्थ के जगह पर पंथ, कम्पन के स्थान पर कंपन, आदि । 
  • कुछ संयुक्ताक्षरों को लिखने के कई रूप प्रचलित हैं।

 

परंतु इन मामूली कमियों के चलते देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता और विशेषताओं को नकारा नहीं जा सकता। नागरी लिपि की वैज्ञानिकता तथा अन्य अनेक गुणों को देखते हुए यह बात स्पष्ट होती है कि यह एक आदर्श और वैज्ञानिक लिपि है। पूर्णता, स्पष्टता, संक्षिप्तता तथा सुनियोजितता इसकी मुख्य विशेषताएं हैं। इन्हीं सब गुणों को देखते हुए जॉन गिल क्राइट ने सही कहा है मानव मस्तिष्क से निकली हुई वर्णमालाओं में नागरी सबसे अधिक पूर्ण वर्णमाला है।

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