भूगोल का अर्थ परिभाषाएं |भूगोल की विविध शाखाएं भौतिक भूगोल मानव भूगोल आर्थिक भूगोल | Geography Study in Hindi

 भूगोल का अर्थ परिभाषाएं भूगोल की विविध शाखाएं 

भूगोल का अर्थ परिभाषाएं |भूगोल की विविध शाखाएं भौतिक भूगोल मानव भूगोल आर्थिक भूगोल | Geography Study in Hindi


भूगोल का अर्थ 

  • अंग्रेजी शब्द Geography दो लैटिन शब्दों Gco (पृथ्वी) और Graphy (लिखना / चित्रण) से मिलकर बना है। अतः भूगोल को पृथ्वी के अध्ययन से संबंधित विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। वास्तव में भूगोल को इसके विकास के इतिहास के विभिन्न कालों में भिन्न-भिन्न प्रकार से परिभाषित किया गया है तथा विभिन्न विद्वानों ने इस विषय की परिभाषा भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से देने का प्रयास किया है। इस विषय की परिभाषा के संदर्भ में मतभेद के बावजूद यह बात लगभग सर्वमान्य है कि भूगोल पृथ्वी का मानव निवास के रूप में अध्ययन करने वाला विषय है। विस्तृत रूप से परिभाषित किए जाने पर भूगोल मानव तथा उसके पर्यावरण एवं दोनों के बीच संबंधों का अध्ययन करता है। यहां पर्यावरण शब्द का उपयोग व्यापक दृष्टिकोण से किया गया है जिसके अंतर्गत मानव के भौतिक एवं सांस्कृतिक दोनों ही प्रकार के पर्यावरण को सम्मिलित किया जाता है। भौगोलिक अध्ययन का केंद्रीय विषय स्थानिक उपागम, अर्थात विभिन्न प्रक्रमों, तत्वों तथा प्रारूपों का स्थानिक वितरण है। अतः भूगोल वह विषय है जो कि विभिन्न तथ्यों के स्थानिक वितरण और संगठनों का अध्ययन कर, उनकी व्याख्या प्रदान करता है। अतः जो भी घटनाएं धरातल पर होती हैं अथवा पाई जाती हैं वे सभी भूगोल की विषय वस्तु के लिए महत्वपूर्ण अंग या अंश हैं। परन्तु भूगोल विषय का अध्ययन क्षेत्र अपेक्षाकृत सीमित है तथा इसके अंतर्गत केवल मानव को प्रभावित करने वाले तथा उससे प्रभावित होने वाले पर्यावरण को ही सम्मिलित किया जाता है। 


  • भूगोलवेत्ताओं के कार्यक्षेत्र का विस्तार धरातल के नीचे व उसके थोड़ा ऊपर अर्थात् पृथ्वी के आंतरिक भाग और उसके वायुमंडल तक सीमित है। इस क्षेत्र को निश्चित रूप से उस क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जहां जीवन सम्भव है। इस क्षेत्र को जैवमण्डल कहा जाता है। जैवमण्डल मनुष्य का भौतिक पर्यावरण है। मानव का सांस्कृतिक अथवा मानवीय पर्यावरण, सामाजिक नियमों और सामाजिक रीति-रिवाजों से मिलकर बनता है तथा ये नियम विभिन्न समुदायों के परस्पर संबंधों और विभिन्न लोगों तथा विभिन्न प्रकार के भौतिक पर्यावरण से उनके संबंधों तथा पारस्परिक अंतःक्रिया का परिणाम होते हैं। मानवीय क्रियाकलाप एवं गतिविधियां मानव के भौतिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण से प्रभावित होती हैं इसलिए भूगोलता मानवीय गतिविधियों के स्थानिक प्रारूपों की उनके अपने पर्यावरण के संदर्भ में व्याख्या करने की कोशिश करते हैं। 
  • भूगोल का कार्यक्षेत्र अत्यंत जटिल एवं विस्तृत है। प्राचीन समय से इस विषय के अध्ययन के लिए दो उपागम महत्वपूर्ण रहे हैं। यह उपागम हैं- प्रादेशिक उपागम तथा क्रमबद्ध उपागम । प्रादेशिक उपागम अद्वितीय (unique) की विचारधारा पर आधारित है और इसके अनुसार किन्हीं दो स्थानों के बीच कोई समानताएं नहीं होती ।  इस उपागम के अनुसार भूगोल की अध्ययन पद्धति वर्णनात्मक होनी चाहिए। प्रादेशिक उपागम दो प्रदेशों अथवा स्थानों के मध्य अंतर स्पष्ट करने से संबंधित है तथा इसके अनुसार प्रत्येक प्रदेश अपने आप में अनूठा होता है। चूंकि धरातल पर प्रत्येक क्षेत्र अपने आप में अनूठा होता हैइसलिए यह उपागम निष्कर्ष निकालने तथा सिद्धांत निर्माण की क्रिया की आज्ञा नहीं देता है। अतः प्रादेशिक भूगोल की अध्ययन शैली वर्णानात्मक है। इसके विपरीत क्रमबद्ध उपागम सार्वभौमिकता (universality) की विचारधारा पर आधारित है। इसके अनुसार यद्यपि सभी प्रदेश एक-दूसरे से भिन्न हैं परन्तु विश्व के विभिन्न भागों के बीच कुछ समानताएं भी पाई जाती हैं। क्रमबद्ध उपागम का समर्थन करने वाले इस बात पर बल देते हैं कि भूगोलवेत्ताओं का उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों के बीच समानताएं निर्धारित करना और इनके आधार पर सिद्धांत तथा नियमों का निर्माण करना होना चाहिए जिससे कि भौगोलिक प्रारूपों एवं दृश्यमानों की व्याख्या की जा सके। इस उपागम के अनुसारभूगोल एक विवेचनात्मक एवं विश्लेषणात्मक विषय है . 


भूगोल की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं 

कांट : भूगोल भूतल का क्षेत्र विवेचनात्मक अध्ययन करने वाला विषय है। 


रिटर : भूगोल विज्ञान की वह शाखा है, जो भूमण्डल के विभिन्न लक्षणों, घटनाओं तथा उनके संबंधों का अध्ययन करती है। रिटर ने भूगोल में प्रादेशिक उपागम पर बल दिया है। 


हम्बोल्ट : भूगोल प्रकृति के अध्ययन से संबंधित विज्ञान है तथा इसका उद्देश्य विभिन्न प्राकृतिक तत्वों के अंतर्सम्बंधों का अध्ययन करना है। | हम्बोल्ट ने भूगोल को एक विवेचनात्मक विज्ञान माना है। 


रैटजल : भूगोल मानव तथा उसके पर्यावरण के बीच सह-संबंधों के अध्ययन का विषय है। उन्होंने भूगोल में मानव केन्द्रीय विचारधारा पर बल दिया है।

 

हार्टशॉन : भूगोल क्षेत्रीय विभिन्नताओं का अध्ययन तथा उनका विश्लेषण करने वाला विज्ञान है।

 

भूगोल की विविध शाखाएं 

  • यद्यपि यूनानी भूगोलवेत्ताओं को सबसे प्राचीन भूगोलवेत्ता माना जाता है परन्तु उनके काल में भूगोल का स्वरूप इस विषय के आधुनिक स्वरूप से काफी भिन्न था तथा  इसकी विभिन्न शाखाओं का विकास भी नहीं हुआ था। इस काल में समस्त वैज्ञानिक = ज्ञान काफी सीमित था तथा विविध विषयों को पृथक् करने के लिए इतनी स्पष्ट सीमाएं भी नहीं थीं, जितनी स्पष्ट वे आज हैं। उदाहरण के लिए वे लोग भूगोल तथा अन्य विषयों जैसे कि जीवनपति विज्ञान इतिहास और खगोल विज्ञान में अंतर नहीं करते थे। यही कारण है कि यूनानी भूगोलवेत्ताओं को प्राचीन गणितज्ञों, इतिहासकारों, चिकित्सकों आदि की श्रेणी में भी शामिल किया जाता रहा है। जैसे-जैसे मानव के ज्ञान के विस्तार में वृद्धि हुई भूगोलको अलग कर दिया गया। यद्यपि हिकेटियसन थियोफास्टस को प्राचीन भूगोलवेत्ता माना गया है (थियोफ्रास्ट्स प्रथम व्यक्ति था जिसने स्वयं को भूगोलवेत्ता कहा), इस विषय को इतिहास से अलग करने तथा भूगोल के कार्यक्षेत्र को परिभाषित करने का श्रेय कांट को जाता है। कांट ने भूगोल को क्षेत्र विवेचनात्मक विज्ञान के रूप में और इतिहास को एक कालक्रम विवेचनात्मक विज्ञान के रूप में परिभाषित किया है।

 

यूनान काल और रोमन काल में वैज्ञानिक ज्ञान में तेजी से वृद्धि हुई। इससे ना केवल नए विषयों का प्रादुर्भाव हुआ बल्कि उनका विविध शाखाओं में विभाजन भी हुआ तथा प्रमुख शाखाओं में विशिष्टीकरण भी दिखलाई दिया। इसके परिणामस्वरूप भूगोल में भी अनेक शाखाओं का जन्म हुआ भूगोल की कुछ प्रमुख शाखाएं और उनका विशिष्टीकरण निम्न प्रकार है-

 

भौतिक भूगोल 

भौतिक भूगोल तथा मानव भूगोल मूल विषय की दो महत्वपूर्ण शाखाएं रही हैं। भौतिक भूगोल, भौतिक पर्यावरण और उन विविध गतिविधियों से संबन्धित है जो कि पृथ्वी के भौतिक पर्यावरण में परिवर्तन लाती हैं। इसकी विविध उपशाखाएं हैं जो कि भौतिक पर्यावरण के विशिष्ट घटकों के अध्ययन से संबंधित हैं. 

 

भू-आकृति विज्ञान-

भू-आकृति विज्ञान को भौतिक भूगोल की उस शाखा के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो कि भूतल की बनावट के अध्ययन से संबंधित है। साधारण शब्दों में इसे स्थलाकृतियों के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। चूंकि यह विषय स्थलाकृतियों के निर्माण से भी संबंधित है, इसलिए यह इनका निर्माण करने वाले पदार्थों के अध्ययन से भी संबंधित है। अतः भूपर्पटी में पाए जाने वाले पदार्थों तथा भूपर्पटी को प्रभावित करने वाले अन्तगत तथा बर्हिजीत बलों के अध्ययन को भी इसमें सम्मिलित किया जाता है। भौतिक भूगोल की यह शाखा भू-विज्ञान से काफी निकट रूप से संबंधित है।

 

जलवायु विज्ञान 

भौतिक भूगोल की यह शाखा वायुमंडल के संघटन, - उसकी संरचना, ऊर्जा तथा वायुमंडल में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करती है। भौतिक भूगोल की यह शाखा मौसम विज्ञान से निकट रूप से संबंधित है। जलवायु विज्ञान मानव जीवन पर जलवायु के प्रभावों तथा संसार के विभिन्न भागों में पाई जाने वाली जलवायु का भी अध्ययन करता है।

 

समुद्र विज्ञान - 

समुद्र विज्ञान समुद्रों का अध्ययन करने वाला विषय है। समुद्र विज्ञान न केवल समुद्र तल के स्वरूप से संबंधित है बल्कि समुद्री जल के लक्षणों जैसे तापमान, लवणता, घनत्व और समुद्र में होने वाली गतिविधियों का भी अध्ययन करता है।

 

जैव भूगोल 

व भूगोल जीवों एवं वनस्पतियों के उनके पर्यावरण से संबंध - का अध्ययन करता है। इस प्रकार इसमें पौधों तथा जंतुओं का अध्ययन शामिल है। जैव भूगोल से संबंधित क्षेत्र जैवमंडल कहलाता है। जैवमंडल वह क्षेत्र है जिसमें जीवन संभव है। इस क्षेत्र का विस्तार पृथ्वी के आंतरिक भाग से वायुमंडल तक है। जैवमंडल में जलमंडल, स्थलमंडल एवं वायुमंडल को सम्मिलित किया जाता है। जैव भूगोल को विभिन्न शाखाओं में बांटा जा सकता है जैसे कि पौधों और उनके पर्यावरण का अध्ययन पादप भूगोल के नाम से तथा जंतुओं और उनके पर्यावरण के अध्ययन को जंतु भूगोल के नाम से जाना जाता है। भूगोल की इस शाखा को पारिस्थितिकी भी कहा जाता है।

 

मानव भूगोल 

मानव भूगोल भी मूल विषय की एक प्रमुख शाखा है। मानव भूगोल, पृथ्वी पर मानवीय क्रियाओं के अध्ययन से संबंधित है। इसके अंतर्गत मानव समूहों तथा उनकी सांस्कृतिक विशेषताओं के अध्ययन को भी सम्मिलित किया जाता है। मानव बसाय, मानवीय कार्यकलापों के विकास की प्रक्रिया और मानव की विश्व के विभिन्न भागों को अपने अनुकूल बनाने की प्रक्रिया भी मानव भूगोल के अध्ययन के अंतर्गत आने वाले महत्वपूर्ण विषय है। भूगोल की इस प्रमुख शाखा की कई उपशाखाएं हैं जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण उपशाखाएं निम्नलिखित हैं

 

जनसंख्या भूगोल- 

जनसंख्या भूगोल का विषय क्षेत्र मानव भूगोल के काफी समान है परंतु इसकी परिभाषा अपेक्षा अधिक सीमित है। जनसंख्या वृद्धि और उसका वितरण इस विषय के अध्ययन क्षेत्र के प्रमुख अंग हैं। भूगोल की यह शाखा जनसमूह उनकी सामाजिक एवं भाषा संबंधी संरचना के अतिरिक्त जना वृद्धि और गतिशीलता के सिद्धांतों एवं नियमों के अध्ययन से भी संबंधित है।

 

सांस्कृतिक भूगोल - 

मानव भूगोल की यह शाखा समय के साथ विविध सांस्कृतिक क्रियाओं तथा प्रक्रमों का किसी क्षेत्र के मानवीय पर्यावरण के संदर्भ में अध्ययन करती है। सांस्कृतिक भूगोलवेत्ताओं के अनुसार विभिन्न संस्कृतियां मानव तथा उसके पर्यावरण की पारस्परिक अन्तः क्रिया का परिणाम होती हैं। इस शाखा का उद्देश्य मानव संस्कृतियों के स्थानिक विभेदों का अध्ययन करना भी है।

 

अधिवास भूगोल - 

मानव अधिवासों का विकास, उनका अपने पर्यावरण से सहसंबंध और उनके विभिन्न प्रकारों का अध्ययन, भूगोल की इस शाखा का कार्यक्षेत्र है। इसके अतिरिक्त अधिवास भूगोल के अंतर्गत अधिवासों के वितरण के अध्ययन को भी सम्मिलित किया जाता है। अधिवासों के आंतरिक संगठन के साथ-साथ यह विषय अधिवासों में व्यक्तियों तथा यातायात के प्रवाह का भी अध्ययन करता है। अधिवास भूगोल को सामान्यतया नगरीय तथा ग्रामीण भूगोल में विभाजित किया जाता है। है

 

राजनैतिक भूगोल - 

यह मानव भूगोल की एक और प्रमुख शाखा है तथा यह विभिन्न क्षेत्रों के राजनीतिक संगठन और समय के साथ इसमें होने वाले परिवर्तनों तथा राजनीति में भौगोलिक तथ्यों की भूमिका के अध्ययन से संबंधित है। भू-राजनीति इस विषय का एक महत्वपूर्ण अंग है जो भौगोलिक तत्वों के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों राजनैतिक महत्वका निर्धारण व मूल्यांकन करता है। इसकी एक नई शाखा सार्वजनिक चुनावों में लोगों के मत व्यवहार आदि का अध्ययन करती है। इस शाखा को चुनावी भूगोल कहा जाता है।

 

आर्थिक भूगोल 

अनेक भूगोलवेत्ता आर्थिक भूगोल को मानव भूगोल की एक महत्वपूर्ण आरंभिक शाखा मानते हैं जिसका आज के संदर्भ में भूगोल में अपना एक विशिष्ट अधिकार क्षेत्र है। भूगोल की यह शाखा मानव की आर्थिक क्रियाओं के स्थानिक प्रारूपों का अध्ययन करती है। इसके अतिरिक्त यह शाखा विभिन्न आर्थिक क्रियाओं के विकास में भौतिक तथ्यों के प्रभाव एवं भूमिका का अध्ययन तथा प्रादेशिक विशिष्टीकरण व आर्थिक क्रियाओं और व्यापार आदि की वृद्धि का अध्ययन भी करती है। भूगोल की इस शाखा ने कई अन्य उपशाखाओं को जन्म दिया है जिनमें से कुछ उपशाखाएं निम्नलिखित हैं-

 

कृषि भूगोल – 

भूगोल की यह शाखा कृषि के विकास में प्राकृतिक एवं - भौगोलिक तत्वों के प्रभावों का अध्ययन करती है। कृषि कार्यकलापों, भूमि उपयोग एवं फसलों स्थानिक प्रारूपों का अध्ययन भी इस शाखा के अध्ययन क्षेत्र के अंग हैं। कृषि भूगोल के और विशिष्ट करने से पोषण भूगोल नामक एक नई शाखा का विकास हुआ है।

 

औद्योगिक भूगोल 

भूल के समान ही औद्योगिक भूगोल भी आर्थिक भूगोल की एक उपशाखा है जो कि औद्योगिक गतिविधियों के स्थानिक प्रारूपों का अध्ययन करती है। औद्योगिक भूगोल के कार्यक्षेत्र में औद्योगिक अवस्थिति के सिद्धांतों को भी सम्मिलित किया जाता है।

 

परिवहन भूगोल

 परिवहन भूगोल परिवहन तंत्र के अध्ययन से संबंधित - विषय है। किसी क्षेत्र के उपस्थित परिवहन तंत्रों के अध्ययन के अतिरिक्त परिवहन भूगोलवेत्ता भविष्य के लिए इन मंत्रों के विकास की रूपरेखा भी सुझाते हैं। संसाधन भूगोल - यह आर्थिक भूगोल की एक महत्वपूर्ण शाखा है जो कि संसाधनों के स्थानिक वितरण के अध्ययन से संबंधित है। संभावित संसाधनों का आकलन और उनके संरक्षण की आवश्यकता तथा इसके उपाय संसाधन भूगोलवेत्ताओं के आकर्षण एवं रुचि के विषय हैं।

 

विकास का भूगोल- 

भूगोल की यह नई शाखा आर्थिक विकास के अन्वेषण से संबंधित है। इस विषय का उद्देश्य विभिन्न क्षेत्र में किस स्तर में अंतरों का विश्लेषण करना है ।

 

उपरोक्त शाखाओं के अतिरिक्त भूगोल की कई अन्य शाखाएं भी हैं जिनमें ऐतिहासिक भूगोल, सैनिक भूगोल, प्रादेशिक भूगोल, मौलिक भूगोल, चिकित्सा भूगोल, लिंग अध्ययन आदि को शामिल किया जाता है। 

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि भूगोल का कार्यक्षेत्र अथवा विषय-वस्तु काफी विस्तृत है तथा इसकी कई शाखाएं अन्य विषयों जैसे समाजशास्त्र, राजनैतिक विज्ञान व अर्थशास्त्र से निकटता से जुड़ी हैं। विभिन्न तथ्यों तथा तत्वों का स्थानिक अध्ययन, भौगोलिक अध्ययन का मुख्य उद्देश्य है, तथा यही विशेषता भूगोल को अन्य विज्ञानों व सामाजिक विज्ञानों से पृथक करती है। इस प्रकार किसी तत्व अथवा तथ्य एवं स्थान के विभिन्न स्थानिक आयामों का अध्ययन भूगोल की विशेषता है। इसलिए भूगोल को एक स्थानिक विज्ञान कहा जाता है।

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