पृथ्वी की उत्पत्ति पृथ्वी का निर्माण करने वाले पदार्थों की प्रकृति | Earth origin Details in Hindi

पृथ्वी की उत्पत्ति, पृथ्वी का निर्माण करने वाले पदार्थों की प्रकृति 

पृथ्वी की उत्पत्ति पृथ्वी का निर्माण करने वाले पदार्थों की प्रकृति | Earth origin Details in Hindi



पृथ्वी की उत्पत्ति 

  • अधिकांश विद्वानों के मतानुसार पृथ्वी की उत्पत्ति सूर्य के एक छोटे भाग से हुई मानी जाती है। पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित अधिकांश सिद्धांत इस बात की पुष्टि करते हैं। कि पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों की उत्पत्ति गर्म गैसीय पदार्थ के रूप में हुई है जो पहले द्रव में परिवर्तित हुआ और बाद में ठण्डा होने पर ठोस रूप में परिवर्तित हो गया।

 

  • ग्रहों की उत्पत्ति से संबंधित अवधारणा सर्वप्रथम काण्ट ने प्रस्तुत की थी। यह सिद्धांत गैसीय सिद्धांत के नाम से प्रसिद्ध है। लाप्लास ने पृथ्वी की उत्पत्ति के संबंध में निहारिका परिकल्पना का प्रतिपादन किया। इस सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति उन अनेक छल्लों में से एक छल्ले से हुई है जो कि एक निहारिका के घूमते-घूमते ठंडे होने और सिकुड़ने की क्रिया से गति में विभेद के परिणामस्वरूप इस निहारिका से अलग हो गए थे। इस निहारिका (नेयुला) का शेष बचा भाग सूर्य के रूप में विद्यमान माना जाता है तथा विभिन्न ग्रहों की उत्पत्ति इन छल्लों से हुई मानी जाती है।

 

  • पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित एक अधिक विश्वसनीय सिद्धांत जीन्स और जैफ्रीज द्वारा प्रतिपादित किया गया है। इनके मतानुसार अंतरिक्ष में दो तारे उपस्थित थे बजाय एक तारे के जैसाकि लाप्लास ने माना था। उनके इस सिद्धांत को ज्वारीय परिकल्पना के नाम से जाना जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार एक बड़ा सितारा घूर्णन करते हुए एक अन्य छोटे तारे के अत्यंत निकट पहुंच गया जिस कारण उसके आकर्षण के परिणामस्वरूप छोटे सितारे के तल पर ज्वारीय तरंगों की उत्पत्ति हुई। अंतत: बड़ा ताराछोटे तारे से दूर जाने लगा तथा जो पदार्थ ज्यारीय तरंगों के रूप में छोटे सितारे के तल से उठा था वह आकर्षण के कारण इसके साथ-साथ छोटे तारे से दूर खिंचता चला गया। अब यह पदार्थ पुनः छोटे तारे के पास वापिस नहीं आ सकता था और ना ही बड़े तारे के पीछे जा पाया। इस प्रकार यह ज्वारीय पदार्थ छोटे तारे से पृथक् होकर इस सितारे के चारों ओर घूर्णन करने लगा। इन्हीं ज्वारीय संरणों के रूप में निकले पदार्थ के ठण्डे तथा ठोस होने से पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों की उत्पत्ति हुई तथा इस छोटे सितारे का शेष भाग सूर्य के रूप में बचा रह गया। ज्वारीय सिद्धांत को काफी मान्यता प्राप्त हैं और इसे पृथ्वी की उत्पत्ति के संदर्भ में वास्तविकता के काफी निकट माना जाता है। सूर्य से बढ़ती दूरी के क्रम में रखने पर विभिन्न ग्रह एक सिगार की आकृति (बीच में मोटा तथा किनारों पर पतला) बनाते हैं। इस तथ्य को इस सिद्धांत का एक साक्ष्य माना जा सकता है।

 

  • जीन्स और जैफ्रीज के सिद्धान्त के आधार पर अन्य कई विद्वानों ने भी पृथ्वी की उत्पत्ति का विश्लेषण करने का प्रयास किया है तथा इससे मिलते जुलते सिद्धान्त अथवा इस सिद्धान्त में सुधार करने वाले सिद्धान्त प्रस्तुत किए हैं। बफन तथा रसेल के सिद्धान्तों को ऐसे सिद्धान्तों के उदाहरण कहा जा सकता है।

 

  • एक अन्य सिद्धान्त जो कई नवीन सिद्धान्तों का आधार हैओटो रिमड द्वारा प्रस्तुत किया गया है। इनके मतानुसारसौर मण्डल की उत्पत्ति (विशेषतया ग्रहों को उत्पत्ति) ब्रह्माण्ड में बड़ी मात्रा में फैले गैस एवं धूल कणों से हुई है। इस पदार्थको उत्पत्ति उल्काओं से निकले पदार्थ से मानी जा सकती है। ओटो मिड के मतानुसार प्रारम्भ में जब सूर्य आकाश गंगा के निकट से गुजर रहा था तो उसको आकर्षण शक्ति के कारण कुछ गैसीय पदार्थ तथा मूलकण इसकी और आकर्षित हो गए तथा सूर्य की परिक्रमा करने लगे। इस पदार्थ से ग्रहों की उत्पत्ति हुई मानी जाती है।

 

  • पृथ्वी की उत्पत्ति के संदर्भ में सबसे विस्तृत सिद्धांत बिग बैंग सिद्धान्त को माना जा सकता है। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन जॉर्ज लेमेटेयर तथा राबर्ट बेगोनर ने ब्रह्मण्डआकाश गंगा तथा सौर मंडल की उत्पत्ति की व्याख्या करने के लिए किया था। इस मत के अनुसार लगभग 15 अरब वर्ष पहले भारी पदार्थों से निर्मित एक विशाल नेबुला था जिसमें एकाएक विस्फोट होने से पदार्थ चारों ओर बिखर गया। इस बिखरे पदार्थ के कणों के पुनःसृजन से अनेक पिंडों की उत्पत्ति हुई जिनसे आकाशगंगाओं का जन्म हुआ। ब्रह्माण्ड में लगातार विस्तार होते रहने से आकाशगंगाओं के मध्य दूरी बढ़ती गई। बाद में आकाशगंगाओं में भी विस्फोट हुए जिनसे प्राप्त पदार्थों में तारे बने तथा तारों में पुनः विस्फोट होने से सौर मंडल तथा ग्रहों की उत्पत्ति हुई।

 

पृथ्वी का निर्माण करने वाले पदार्थों की प्रकृति 

  • पृथ्वी की उत्पत्ति में सम्मिलित पदार्थों के बारे में लोगों की राय में काफी मतभेद रहा है। उदाहरणार्थउपरोक्त सिद्धांतों में से अधिकांश सिद्धान्तों में यह माना गया है कि प्रारंभ में पृथ्वी गर्म पदार्थ के रूप में उत्पन्न हुई थी जो बाद में ठंडी होती गई। इस प्रकार पृथ्वी का ऊपरी भाग जो शीघ्रता से ठंडा हुआठोस भूपर्पटी में परिवर्तित हो गया। परन्तु आंतरिक भाग जहां से ऊष्मा ह्रास की दर धीमी हैआज भी तरल अथवा द्रव के रूप में है। कुछ अन्य सिद्धांतों के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति ठोस पदार्थ के रूप में हुई मानी जाती है। इस विचारधारा के अनुसार इसके आंतरिक भाग की ऊष्मा तथा तरल अवस्था का मुख्य कारण भूगर्भ में रेडियोधर्मी पदार्थों का क्षय होना है। इसके अतिरिक्त ऊपरी परतों के दबाव से अंदर के पदार्थों के पिघलने के परिणामस्वरूप भी पृथ्वी का आंतरिक भाग द्रव अवस्था में है। ऐसा भी कहा जाता है कि पृथ्वी की उत्पत्ति छोटे-छोटे ठोस कणों से मिलकर एक बृहत रूप धारण करने से हुई है। इन कणों के परस्पर मिलकर बड़ा आकार धारण करने की इस प्रक्रिया में भी अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न हुई जिससे पृथ्वी के आंतरिक भाग में उपस्थित चट्टानें पिघल कर तरल रूप में परिवर्तित हो गई। परन्तु यह निश्चित रूप से माना जा सकता है कि पृथ्वी की उत्पत्ति चाहे जिस प्रकार के पदार्थ से हुई हो यह एक समय तरल अवस्था में अवश्य रही है। साथ ही पदार्थ के एकत्रीकरण की प्रक्रिया के साथ-साथ इस पदार्थ का घनत्व के आधार पर विभाजन अथवा विभेदात्मक वितरण भी हुआ है। इस प्रकार पृथ्वी में अनेक परत पाई जाती है जो अपने गुणों के कारण एक-दूसरे से पृथक मानी जाती हैं। इनके भौतिक तथा रासायनिक गुणोंमोटाईघनत्वतापमान तथा धात्विक अंशों में भी अंतर पाए जाते हैं। पृथ्वी का भाग हल्के पदार्थों से बना है। पृथ्वी की यह परत जो कि सिलिका और अल्यूमीनियम जैसे कम घनत्व वाले खनिजों से बनी है। सियाल कहलाती है। इससे नीचे की परत जो कि सिलिकेट और मैग्नीशियम के योग से बनी है साइमा कहलाती है। पृथ्वी का केंद्रीय भाग भारी खनिजों जैसे निकेल तथा लोहे से बना है । इस भाग को निफे नाम दिया गया है। इस प्रकार पृथ्वी का विभिन्न परतों में विभाजन इन्हीं विषमताओं का परिणाम है। अधिकांश अनुमानों के अनुसार पृथ्वी की ठोस ऊपरी परत (भूपर्पटी) की उत्पत्ति 4.6 अरब वर्ष पूर्व मानी जाती है।

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