स्वंतंत्रता का अर्थ परिभाषा एवं प्रकार | Freedom Definition and Types in Hindi

स्वतन्त्रता का अर्थ परिभाषा एवं प्रकार 

स्वंतंत्रता का अर्थ परिभाषा एवं प्रकार | Freedom Definition and Types in Hindi


 

स्वंतंत्रता का अर्थ परिभाषा 

 

स्वंतंत्रता का अंग्रेजी रूपान्तर 'लिबर्टी' लैटिन भाषा के 'लिबर' शब्द से निकला है जिसका अर्थ होता है ' बन्धनों का अभाव। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज असीमित स्वतन्त्रता का उपभोग कर ही नहीं सकता। उसे सामाजिक नियमोमं की मर्यादा के अन्तर्गत रहना होता है। अतः राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत स्वतन्त्रता की जिस रूप में कल्पना की जाती है, उस रूप स्वतन्त्रता मानवीय प्रकृति और सामाजिक जीवन के इन दो विरोधी तत्वों (बन्धनों व अभाव और नियमों के पालन) में सामंजस्य का नाम है। और इनकी परिभाषा करते हुए कहा सकता है कि "स्वतन्त्रता व्यक्ति की अपनी इच्छानुसार कार्य करने की शक्ति का नाम है बशर्ते कि इनसे दूसरे व्यक्ति की इसी प्रकार की स्वतन्त्रता में कोई बाधा न पहुँचे।


स्वतन्त्रता की परिभाषा  

शीले के अनुसार - स्वतन्त्रता अति शासन की विरोधी है"

 

प्रो0 लास्की के शब्दों में, स्वतन्त्रता मेरा अभिप्राय यह है कि उन सामाजिक परिस्थितियों के अस्तित्व पर प्रतिबन्ध न हो, जो आधुनिक सभ्यता में मनुश्य के सुख के लिए नितान्त आवश्यक है।

 

गैटल ने कहा है, "स्वतन्त्रता का समाज में केवल नकारात्मक स्वरूप ही नहीं है, वरन् सकारात्मक स्वरूप भी है। स्वतन्त्रता के सकारात्मक या वास्तविक स्वरूप की नकारात्मक स्वरूप ही नहीं, वरन् सकारात्मक स्वरूप भी है।" स्वतन्त्रता के सकारात्मक या वास्तविक स्वरूप की नकारात्मक स्वरूप से भिन्नता बताते हुए टी0एस0 ग्रीन ने लिखा है कि जिस प्रकार सौन्यर्य कुरूपता के अभाव नाम ही नहीं होता, उसी प्रकार स्वतन्त्रता प्रतिबन्धों के अभाव का नाम नहीं है। आगे चलकर ग्रीन ही स्वन्त्रता के सकारात्मक रूप को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं कि स्वतन्त्रता ऐसे कार्य करने और उपयोग करने की शक्ति कानाम जो करने योग्य या उपभोग के के योग्य हो । “

 

अतः स्वतन्त्रता की परिभाषा करते हुए कहा जा सकता है कि "स्वतन्त्रता जीवन की ऐसी अवस्था का नाम है जिसमें व्यक्ति के जीवन पर न्यूनतम प्रतिबन्ध हों और व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व विकास हेतु अधिकतम सुविधाऐं प्राप्त हो । “

 

स्वतन्त्रता का नकारात्मक दृष्टिकोण 

 

स्वतन्त्रता के नकारात्मक दृष्टिकोण का सबसे अधिक प्रमुख रूप में प्रतिपादन जे०एस० मिल के द्वारा 1859 ई0 में प्रकाशित अपने निबन्ध 'स्वतन्त्रता' में किया गया है। मिल का कथन है कि व्यक्ति का उद्देश्य अपने व्यक्तित्व का उच्चतम एवं अधिकतम विकास है और यह विकास केवल स्वतन्त्रता के वातावरण में ही सम्भव है। यदि व्यक्ति को यह स्वाधीनता न दी जाए तो मानव जीवन का मूल ही विफल हो जाएगा। समाज की उन्नति और विका के लिए भी व्यक्ति को अधिकतम स्वाधीनता देना आवश्यक है। इस प्रकार मिल के अनुसार, "व्यक्ति के तीवन में राज्य का न्यूनतम हस्तक्षेप और अधिकतम सम्भव सीमा तक व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार जीवन व्यतीत करने की छूट स्वतन्त्रता है और वह इस अपनाने पर बल देता है। मिल व्यक्ति-स्वतता की प्रबलतम समर्थक है।

 

मिल व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के दो पहलुओं पर बल देता है- विचार स्वन्त्रता और कार्य स्वतन्त्रता।

 

मिल के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को विचार और अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त होनी चाहिए तथा राज्य के द्वारा किसी भी प्रकार की विचारधारा या भावभिव्याप्ति पर बन्धन नहीं लगाया जाना चाहिए।

 

कार्य स्वतन्त्रता के विषय में, मिल मानव कार्यो को दो भागों में विभाजित करता - 

(1) स्व विषयक (2) पर-विषयक। 

स्व-विषयक अर्थात व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित , पर विषयक अर्थात ऐसे कार्य, जिनका प्रभाव समाज के अन्य व्यक्तियों के जीवन पर पड़ता है। 

मिल का कथन है कि स्व-विषयक कार्यो में व्यक्ति को पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त होनी चाहिए, लेकिन पर विषयक कार्यो में व्यक्ति की स्वतन्त्रता सीमित होती है, विशेषकर जबकि उसके कार्यो से समाज के अन्य व्यक्ति की स्वतन्त्रता में बाधा पहुंचती हो।

 

मिल व्यक्ति के जीवन पर ‘न्यूनतम प्रतिबन्धों की स्थिति' को स्वतन्त्रता का नाम दे के नकारात्मक दृष्टिकोण का प्रतिपादन करता है। आज की परिस्थितियों में मिल की इस स्वतन्त्रता को वास्तविक स्वतन्त्रता नहीं कहा जा सकता है।

 

स्वतन्त्रता के विविध रूप

 

फ्रांसीसी विद्वान मॉण्टेस्क्यू ने एक स्थान पर कहा है कि स्वतन्त्रता के अतिरिक्त शायद ही कोई ऐसा शब्द हो जिसके इतने अधिक अर्थ होते है और जिसके नागरिकों के मस्तिष्क पर इतना अधिक प्रभाव डाला हो।" मॉण्टेस्क्यू के इस कथन का कारण यह है कि राजनीति विज्ञान में स्वतन्त्रता के विविध रूप प्रचलित हैं, जिसमें अग्रलिखित प्रमुख हैं:

 

1. प्राकृतिक स्वतन्त्रता:- 

इस धारणा के अनुसार प्रकृति की देन है और मनुष्य जन्म से ही स्वतन्त्रता होता है। इसी विचार को व्यक्त करते हुए केसो ने लिखा है कि "मनुष्य स्वतन्त्रत उत्पन्न होता है, किन्तु सर्वत्र यह बन्धनों में बंधा हुआ है। "

 

प्राकृतिक स्वतन्त्रता का आशय मनुष्यों की अपनी इच्छानुसार कार्य करने की स्वतन्त्रता से है। संविदावादी विचारकों का मत है कि राज्य की उत्पत्ति के पूर्व व्यक्तियों को इसी प्रकार की स्वतन्त्रता प्राप्त थी। संयुक्त राज्य अमरका की 'स्वाधीनता घोषणा' और फ्रांस की 'राज्यक्रान्ति' में इसी प्रकार की स्वतता का प्रतिपादन किया गया है। प्राकृतिक स्वतन्त्रता की इस धारणा के अनुसार स्वतन्त्रता प्रकृति प्रदत्त और निरपेक्ष होती है अर्थात् समाज या राज्य व्यक्ति की स्वतन्त्रता को किसी भी प्रकार से सीमित या प्रतिबन्धित नहीं कर सकता है।

 

परन्तु प्राकृतिक स्वतन्त्रता की यह धारणा पूर्णतया भ्रमात्मक है। प्राकृतिक स्वतन्त्रता की स्थिति में तो ‘मत्स्य न्याय' का व्यवहार प्रचलित होगा और परिणामतः समाज में केवल कुछ ही व्यक्ति अस्थायी रूप से स्वतन्त्रता का उपभोग कर सकेंगे। व्यवहार में प्राकृतिक स्वतन्त्रता का अर्थ है। केवल शक्तिशाली व्यक्तियों की स्वतन्त्रता ।

 

2. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता:- 

इसका तात्पर्य यह है कि व्यक्ति के उन कार्यो पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होना चाहिए, जिनका सम्बन्ध केवल उसके ही अस्तित्व से हो। इस प्रकार के व्यक्तिगत कार्यों में भोजन, वस्त्र धर्म और पारिवारिक जीवन को सम्मिलित किया जा सकता है। व्यक्तिगत स्वन्त्रता के समर्थकों के अनुसार इनसे सम्बन्धित कार्यो में व्यक्तियों को पूर्ण स्वन्त्रता प्राप्त होनी चाहिए। व्यक्तिवादी और कुछ सीमा तक बहुलवादी विचारकों ने इस स्वतन्त्रता का प्रबल समर्थन किया है। मिल व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का समर्थन करते हुए ही कहते है कि "मानव समाज को केवल आत्मरक्षा के उद्देश्य से ही किसी व्यक्ति की स्वतन्त्रता में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से हस्तक्षेप करने का अधिकार हो सकता है। अपने ऊपर, अपने शरीर, मस्तिष्क और आत्मा परा व्यक्ति सम्प्रभु हैं।

 

3. नागरिक स्वतन्त्रता:- 

नागरिक स्वतन्त्रता का अभिप्राय व्यक्ति की उन स्वतन्त्रताओं से है जो व्यक्ति या राज्य का सदस्य होने के नाते प्राप्त करता है। नागरिक स्वतन्त्रता का उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति को समान अवसर और अधिकार प्रदान करना होता है। अतः स्वभाव से ही यह स्वतन्त्रता असीमित या निरंकुश नहीं हो सकती है।

 

नागरिक स्वतन्त्रता के दो प्रकार होते है -

 (1) शासन के विरोध की स्वतन्त्रता (2) व्यक्ति को व्यक्ति और व्यक्तियों के समुदाय से स्वतन्त्रता । शासन के विरूद्ध व्यक्ति की स्वतन्त्रता लिखित या अलिखित संविधान द्वारा मौलि अधिकारों के माध्यम से या अन्य किसी प्रकार से स्वीकृत की जाती है। नागरिक स्वतनता का दूसरा रूप मनुष्य के वे अधिकार है जिन्हें वह राज्य के अन्य समुदायों और मनुष्यों के विरूद्ध प्राप्त करता है।

 

4. राजनीतिक स्वतन्त्रता:- 

अपने राज्य के कार्यो में स्वततंतापूर्वक सक्रिय भाग लेने की स्वतन्त्रता को राजनीतिक स्वतन्त्रता कहा जाता है। लास्की के अनुसार, "राज्य के कार्यों में सक्रिय भाग लेने की शक्ति ही राजनीतिक स्वतन्त्रता हैं। "

 
राजनीतिक स्वतन्त्रता के अन्तर्गत व्यक्ति को ये अधिकार प्राप्त होते है-

 

(1) मतदान देने का अधिकार 

(2) निर्वाचित होने का अधिकार 

(3) उचित योग्यता होने पर सार्वजनिक पद प्राप्त करने का अधिकार और 

(4) सरकार के कार्यों की आलोचना का अधिकार। इन अधिकारों से यह स्पष्ट है कि राजनीतिक स्वतन्त्रता केवल एक प्रजातन्त्रात्मक देश में ही प्राप्त की जा सकती है।

 

5. आर्थिक स्वतन्त्रता:- 

वर्तमान समय में आर्थिक स्वतन्त्रता का तात्पर्य व्यक्ति की ऐसी स्थिति से जिसमें व्यक्ति अपने आर्थिक प्रयत्नों का लाभ स्वयं प्राप्त करने की स्थिति में हो तथा किसी प्रकार उसके श्रम का दूसरे के द्वारा शोषण न किया जा सके। लास्की के अनुसार, "आर्थिक स्वतन्त्रता की अभिप्राय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जीविका कमाने की समुचित सुरक्षा तथा सुविधा प्राप्त हो । व्यक्ति को बेरोजगारी और अपर्याप्ता के निरन्तर भय से मुक्त रखा जाना चाहिए जो कि अन्य किसी भी अपर्याप्ता की अपेक्षा व्यक्तित्व की समस्त शक्ति को बहुत अधिक आघात पहुंचाती है। व्यष्टि को कल को आवश्यकताओं से मुक्त रखा जाना चाहिए।"

 

6. नैतिक स्वतन्त्रता:- 

व्यक्ति को अन्य प्रकार की सभी स्वतन्त्रताएं प्राप्त होने पर भी यदि वह नैनिक दृष्टि से परतंत्र हो, तो उसे स्वतन्त्र नहीं कहा जा सकता। नैतिक स्वतन्त्रता ही वास्तविक स्वतन्त्रता एवं महान स्वतन्त्रता है। नैतिक स्वतन्त्रता का अर्थ व्यक्ति की उस मानसिक स्थिति से है जिसमें वह अनुचित लोभ-लालच के बिना अपना सामाजिक जीवन व्यतीत करने की योग्यता रखता हो।

 

काम्टे के विचार में व्यक्ति की विवेकपूर्ण इच्छा शक्ति ही उसकी वास्तविक स्वतन्त्रता है।

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