खाद्य प्रसंस्करण | पाक क्रिया के उद्देश्य | Food Processing in Hindi

खाद्य प्रसंस्करण , पाक क्रिया के उद्देश्य , Food Processing in Hindi

खाद्य प्रसंस्करण , पाक क्रिया के उद्देश्य , Food Processing in Hindi

खाद्य प्रसंस्करण

 

  • भोजन में व्याप्त सभी पौष्टिक तत्व हमारे शरीर की वृद्धि व विकास के लिए अत्यधिक आवश्यक है। सभी प्रकार के खाद्य पदार्थ जैसे अनाजदालेंमाँस व सब्जियों को भोजन के रूप में ग्रहण करने से पूर्व पकाया जाता है। पकाने से खाद्य पदार्थों की पौष्टिकता तो बढ़ती ही हैसाथ ही साथ वे अधि आकर्षकसुन्दरसुपाच्य एवं स्वादिष्ट भी हो जाते हैं। पकाने से भोजन में विविधता आती है तथा एकरसता भी दूर हो जाती है। जैसे गाजर से गाजर की सब्जीहलवाखीर का बनाना। " ताप द्वारा भोजन को पकाने को पाक क्रिया कहते हैं"। अच्छी पाक कला के द्वारा परिवार में भोजन अधिक पौष्टिक होने के साथ परिवार को स्वीकार्य हो जाता है।

 

  • किसी खाद्य पदार्थ को कितना व किस विधि से पकाना हैयह तभी ज्ञात हो सकता हैजब हमें उसके रासायनिक घटकों व उन पर ताप के प्रभाव की जानकारी होती है। अत्यधिक ताप में देर तक पकाने से भोजन के रासायनिक घटकों में परिवर्तन आ जाता है अतः उनकी पौष्टिकता नष्ट हो जाती है। इसलिए पकाने की विधि का चयन इस प्रकार से होना चाहिएजिससे कि खाद्य पदार्थ सुरक्षि तो रहे साथ ही साथ उसकी पौष्टिकता भी बनी रहे।

 

  • इस ज्ञान समायोजित कर हम खाद्य पदार्थों में विविधताभरपूर स्वाद के साथ विभिन्न प्रकार की बनावट प्रदान कर सकते हैं। पाक कला लोगों के रहन सहनस्थान व भोज्य सम्बन्धी आदतों के अनुरूप बदलती रहती है।

 

1 पाक क्रिया के उद्देश्य

 

खाद्य पदार्थ का रूप सुधारना- 

पकाने से भोज्य पदार्थों में स्वाद व महक तो बढ़ती है साथ ही उसका बाह्य स्वरूप भी आकर्षित बन जाता है। पकने के उपरान्त खाद्य पदार्थों में विभिन्न रंग उजागर होते हैंजिससे उनमें विविधता आती है। पकने के बाद खाद्य पदार्थ अपनी स्वाभाविक गंध छोड़ देते हैं। जैसे मछली को पकाने से उससे अरुचिकर गंध दर हो जाती है।

 

लम्बे समय तक संग्रहित करना- 

पकाने की क्रिया खाद्य पदार्थ की खराब होने की अवधि को बढ़ा देती हैजैसे-दूध से मक्खनपनीरफलों से जैम व मुरब्बा।

 

सूक्ष्म जीवाणु व कीटाणु का नाश करना- 

खाद्य पदार्थों में व्याप्त सूक्ष्म जीवाणु जो उन्हें सड़ाकर खराब करते हैंवे भोज्य पदार्थों के पकने की वजह से नष्ट हो जाते हैं।

 

खाद्य पदार्थों को सुपाच्य बनाना

पकाने की विधि भोजन सामग्री को नर्म व पाचनशील बनाती हैजिससे खाद्य पदार्थ आसानी से चबाने योग्य बन जाते हैं तथा पाचक रस सरलता से अपना प्रभाव डाल सकते हैं जैसे ऊष्मा के सम्पर्क में आने से माँस के हीमोग्लोबिन का विघटन होने से उसका कच्चा स्वरूप समाप्त हो जाता हैसाथ ही स्टार्च युक्त भोज्य पदार्थ के कण पा सोख लेते हैं तथा फूल कर फट जाते हैं जिससे वह सुपाच्य हो जाते हैं।

 

2  विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थ बनाने सम्बन्धी तैयारी

 

छीलना 

  • अधिकतर सब्जियों व फलों को छीलकर ही प्रयोग में लाया जाता हैजिससे इन्हें पकाने में कम समय लगता है। परन्तु छीलने की प्रक्रिया के कारण सब्जियों में पाये जाने वाले विटामिन जो कि छिल्के में व उसके नीचे पाये जाते हैंवे नष्ट हो जाते हैं। 
  • छीलने की वजह से फल व सब्जियों में सुगन्ध के साथ- साथ पोषक तत्व कम हो जाते हैं वे जल्दी खराब भी हो जाते हैं। इसके बचाव के लिए फल व सब्जी का छिलका पतला उतारना चाहिए। 
  • सब्जियों को खाना बनाने से पूर्व ही धोना चाहिए। 
  • यांत्रिक तकनीक द्वारा निकाले गये छिल्के से पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं। जैसे गाजर की ऊपरी परत में काफी पोषक तत्व होते हैंजो छीलने की वजह से नष्ट हो जाते हैं। इसलिए छिलका उतारने की बजाय खुरच देना चाहिए। 
  • उबाले जाने वाले खाद्य पदार्थों को बिना छीले ही पकाना चाहिए।

 

काटना 

  • सभी सब्जियों को खाने से पूर्व काटा जाता हैजिससे उनकी सतह बढ़ जाती है व उनमें हवातापएंजाइम का उचित प्रभाव पड़ता है। 
  • काटने की प्रक्रिया से सब्जी जल्दी व समान रूप से पकती हैं। सब्जियों को हमेशा मोटा काटना चाहिए। बारीक काटने पर सब्जियों का क्षेत्रफल बढ़ जाता है जिससे अधिक मात्रा में पोषक तत्व नष्ट होते हैं। 
  • सब्जी एवं रसीले फलों को काटने के उपरान्त तुरन्त उपयोग में लाना चाहिए। 
  • फल एवं सब्जियों को बिना छिले एवं काटे ही धोना चाहिए अन्यथा पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं।

 

पीसना 

  • इस क्रिया में खाद्य पदार्थों को बारीक कणों में पीसा जाता है। जैसे मसाले व चटनी बनाना । यह प्रक्रिया भोजन पकाने की तैयारी से अधिक देर पहले नहीं करनी चाहिए। पीसे हुए खाद्य पदार्थको हमेशा ढककर रखना चाहिए अन्यथा उसके पोषक तत्वों का ऑक्सीकरण होने के कारण ही सुगन्ध व पोषक तत्वों में कमी आ जाती है। मसालों को  भूनकर फिर सुखाकर पीसा जाये तो उसकी सुगन्ध बढ़ जाती है।

 

भिगोना 

  • किसी भी खाद्य पदार्थ को पानी में डालकर कुछ समय तक रखने को भिगोना कहते हैं। यह प्रायः दालों में इस्तेमाल होता है। 
  • इस क्रिया से खाद्य पदार्थ नरम व मुलायम हो जाते हैं व आसानी से पकने के साथ ही साथ सुपाच्य भी हो जाते हैं। 
  • इस क्रिया में खाद्य पदार्थ को ज्यादा देर तक नहीं भिगोना चाहिए अन्यथा पानी में घुलनशील विटामिन नष्ट हो जाते हैं। भिगोने के लिए उतना पानी ही इस्तेमाल करना चाहिए जितने में खाद्य पदार्थ आसानी से डूब सकें। यथासम्भव खाना पकाते समय उसी पानी का प्रयोग करना चाहिए जिसमें खाद्य पदार्थ भिगोया गया है।

 

अंकुरित करना (Germination) 

  • अनाजों एवं दालों में अंकुरण के समय अनेक रासायनिक परिवर्तन होते हैं। अंकुरण से एन्जाइम की क्रियाशीलता में परिवर्तन होता है। इन परिवर्तनों के फलस्वरूप ही बीजों का पौष्टिक मूल्य बदल जाता है। अंकुरण के लिए ऐसे वातावरण का होना आवश्यक है जिसमें अंकुर की श्वसन गति बढ़ सके। श्वसन की गति बढ़ने से वसा तथा कार्बोहाईड्रेट अधिक उपयोगी हो जाते हैं।

 

कार्बोहाईड्रेट-

  •  कार्बोहाईड्रेट के रूप में स्टार्च प्रमुख है। अंकुरण की प्रक्रिया द्वारा स्टार्चमाल्टोज़ आदि अपने सरल रूप (ग्लूकोज) में परिवर्तित हो जाते हैं जिसके कारण अनाजों व दालों की पाचनशीलता बढ़ जाती है।

 

 प्रोटीन - 

  • विभिन्न एंजाइम जो बीज में पाये जाते हैं अंकुरण के समय प्रोटीन को उसकी सरलत इकाई अमीनो अम्ल में परिवर्तित कर देते हैंफलस्वरूप प्रोटीन की पाचनशीलता में वृद्धि हो जाती है।

 

वसा - 

  • वसा अंकुरण द्वारा ग्लिसरॉल (Glycerol) तथा वसीय अम्ल (Fatty acid) में परिवर्तित हो जाते हैं। परिपक्व बीजों में वसा युक्त पदार्थ बड़े आकार की गोलिकाओं (Globules) के रूप में होते हैं जो अंकुरण के समय छोटी-छोटी गोलिकाओं में टूट जाते हैं। अतः वसा भी आसानी से पच जाता है।

 

विटामिन - 

  • अंकुरण द्वारा थायमिनराइबोफ्लेविननियासिन तथा एस्कॉर्बिक अम्ल की मात्रा अधिक बढ़ जाती है। अंकुरण की क्रिया से अनाजों का लौह लवण मुक्त रूप में आ जाता है जिस कारण उसका अवशोषण शीघ्रता से होता है।

 

भोजन की पाचनशीलता में वृद्धि - 

  • इस प्रक्रिया से अनाजों के ऊपर सेल्यूलोज (Cellulose) की परत मुलायम हो जाती हैजिससे अनाज सुपाच्य हो जाता है। साबुत दालों वायु अथवा गैस उत्पन्न करने वाली समस्या से भी अंकुरण निजात दिलाता है।

 

हानिकारक तत्वों की मात्रा में कमी- 

  • अनाजों व दालों में टैनिन (tannin) एवं फाइटेट (phytate) आदि पाये जाते हैं। जिसकी वजह से उनके पोषक तत्वों की उपलब्धता कम हो जाती है। अंकुरण की प्रक्रिया द्वारा इन हानिकारक पदार्थों से निजात पाई जा सकती है।

 

कम समय में पकने का पौष्टिकता पर प्रभाव- 

  • भीगे बीज नरम पड़ जाते हैं जिससे उनको पकाने के लिये अधिक तापमान एवं समय की आवश्यकता नहीं होती हैसाथ ही पकाते समय विटामिन की मात्रा का कोई नुकसान नहीं होता है।

 

उपचारात्मक आहार के रूप में प्रयोग- 

  • अंकुरित अनाज कब्ज के मरीज के लिये फायदेमंद होता है। सुपाच्य होने के कारण इसे बीमार व्यक्ति को देना भी लाभदायक होता है।

 

भोजन में विविधता लाना- 

  • अंकुरित अनाज को सलाद के रूप में या पकाकर जैसे-चीलाकटलेटडोसा या फिर भाप में भूनकर खाया जा सकता है जिससे भोजन में विविधता आती है।

 

माल्ट बनाना- 

  • अनाजों को भिगोकरअंकुरित कर सुखाकरभूनकर पीसा जाता है। इस प्रक्रिया को माल्ट बनाना (malting) कहते हैं। इस आटे से विभिन्न खाद्य बनाये जाते हैं। इस प्रक्रिया से खाद्य पदार्थ सुपाच्य हो जाते हैं।

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