ऐतिहासिक व्यक्तित्व : रानी चेन्नम्मा का जीवन परिचय |Rani Chennamma Short Biography in Hindi

रानी चेन्नम्मा का जीवन परिचय  (Rani Chennamma Short Biography in Hindi)

ऐतिहासिक व्यक्तित्व : रानी चेन्नम्मा का जीवन परिचय |Rani Chennamma Short Biography in Hindi


रानी चेन्नम्मा का जीवन परिचय

 

रानी चेन्नम्मा का दक्षिण भारत के कर्नाटक में वही स्थान है जो स्वतंत्रता संग्राम के सन्दर्भ में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का है. चेन्नम्मा ने लक्ष्मीबाई से पहले ही अंग्रेजों की सत्ता को सशस्त्र चुनौती दी थी और अंग्रेजों की सेना को उनके सामने 2 बार मुँह की खानी पड़ी थी.

 

 रानी चेन्नम्मा के बारे में प्रमुख तथ्य


  • रानी चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्टूबर, 1778 में कर्नाटक के बेलगावी जिले के एक छोटे से गांव ककाती में हुआ था. पिता धूलप्पा और माता पद्मावती ने इनका पालन-पोषण बिलकुल एक राजकुमार की तरह किया था. चेन्नम्मा को संस्कृतकन्नड़मराठी और उर्दू आदि भाषाओं के साथ-साथ घुड़सवारीअस्त्र-शस्त्र चलाने और युद्ध कला की भी शिक्षा दी गई. राजा मल्लासारजा से विवाह के बाद वे कित्तुरु (वर्तमान कर्नाटक प्रान्त के बेलगाम जिले में स्थित) की रानी बन गई.

 

  • पति और इकलौते बेटे के निधन के बाद उन्होंने 1824 में शिवलिंगप्पा नाम के एक दूसरे बच्चे को गोद लेकर इसे अपनी गद्दी का वारिस घोषित कर दिया. लेकिन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अपनी 'हड़प नीतिके तहत् रानी के इस उत्तराधिकारी को स्वीकार नहीं किया. हालांकि उस समय तक औपचारिक तौर पर हड़प नीति लागू नहीं हुई थी. इसके बावजूद ब्रिटिश शासन ने शिवलिंगप्पा को निर्वासित करने का आदेश दे दिया.

 

  • रानी ने अंग्रेजों का आदेश नहीं माना. उन्होंने बड़ी ही विनम्रता से बॉम्बे प्रेसिडेंसी के लेफ्टिनेंट गवर्नर लॉर्ड एलफिस्टन को एक पत्र भेजा और उनसे आग्रह किया कि वह कित्तुरु के मामले में हड़प नीति लागू न करें. लेकिन उनके आग्रह को अंग्रेजों ने बड़ी ही बेरुखी से ठुकरा दिया. इस तरह ब्रिटिश और कित्तुरु के बीच लड़ाई शुरू हो गई. वास्तव में अंग्रेजों की नजर कित्तुरु के खजाने और आभूषणों के जखीरे पर थी जिसका मूल्य उस वक्त करीब ₹15 लाख था.

 

  • अंग्रेजों ने 20,000 सिपाहियों और 400 बन्दूकों के साथ कित्तुरु पर हमला कर दिया. अक्टूबर 1824 में रानी और अंग्रेजों के बीच पहली लड़ाई हुई. उस लड़ाई में ब्रिटिश सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा. कलेक्टर और अंग्रेजों का एजेंट सेंट जॉन ठाकरे कित्तुरु की सेना के हाथों मारा गया. इसके अलावाकित्तुरु के बहादुर सैनिकों ने दो ब्रिटिश अधिकारियों सर वॉल्टर एलियट और स्टीवेंसन को बंधक बना लिया गया.
  • मजबूर होकर अंग्रेजों ने समझौते का रास्ता अपनाया और वादा किया कि वह अब युद्ध नहीं करेंगे. रानी ने भी दया भाव से ब्रिटिश अधिकारियों को रिहा कर दिया. लेकिन अंग्रेजों ने रानी को फिर धोखा दिया और दोबारा से युद्ध छेड़ दिया. रानी चेन्नम्मा अपने सहयोगियों संगोल्ली रयन्ना और गुरुसिदप्पा के साथ बहुत ही बहादुरी से लड़ींलेकिन अंग्रेजों के मुकाबले कम सैनिक और सीमित संसाधन होने के कारण वह हार गई. उनको बेलहोंगल के किले में कैद कर दिया गया. वहीं 21 फरवरी, 1829 के दिन रानी वीरगति को प्राप्त हो गई. • 
  • उनकी पहली जीत और विरासत का जश्न अब भी कर्नाटक में मनाया जाता है. हर साल कित्तुरु में 22 से 24 अक्टूबर तक कित्तुरु उत्सव लगता है. उनकी एक प्रतिमा नई दिल्ली के पार्लियामेंट हाउस में लगी है. 
  • रानी चेन्नम्मा को 'कर्नाटक की लक्ष्मीबाईभी कहा जाता है. वह पहली भारतीय शासक थीं जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया, 1857 के संग्राम के करीब तीन दशक पहले ही. भले ही अंग्रेजों की सेना के मुकाबले उनके सैनिकों की संख्या कम थी और उनको गिरफ्तार किया गयालेकिन ब्रिटिश शासन के खिलाफ बगावत का नेतृत्व करने के लिए उनको अब तक याद किया जाता है.

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